रिजर्व बैंक जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों को लेकर नियमों में व्यापक बदलाव करने की जो तैयारी कर रहा है, वह समय की मांग है। जानबूझकर कर्ज न लौटाने वालों के खिलाफ यथाशीघ्र कार्रवाई इसलिए होनी चाहिए, क्योंकि रिजर्व बैंक के तमाम प्रयासों के बाद भी ऐसे लोगों की संख्या में कमी नहीं आ रही है, जो कर्ज लेकर उसे चुकाना जरूरी नहीं समझते। इसमें केवल बड़े उद्यमी ही नहीं हैं। यह काम उद्यमियों के अलावा अन्य लोग भी करते हैं।

संभवतः यही कारण है कि रिजर्व बैंक ने यह सोचा है कि जानबूझकर कर्ज न लौटाने वालों में उन्हें भी शामिल किया जाए, जिन्होंने 25 लाख रुपये से अधिक का ऋण ले रखा है और उसे चुकाने से इन्कार कर रहे हैं। विलफुल डिफाल्टर यानी जानबूझकर कर्ज न लौटाने वाले बैंकिंग व्यवस्था के लिए एक बड़ा बोझ हैं। इनमें से अनेक ऐसे होते हैं, जो कर्ज लौटाने की क्षमता रखने के बाद भी विलफुल डिफाल्टर बनने को तैयार रहते हैं।

ऐसा इसीलिए है, क्योंकि ऐसे कर्जदार यह जानते हैं कि उनके खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई होने में लंबा समय लग जाता है। कई बार तो ऐसे लोग थोड़ा-बहुत कर्ज चुकाकर अपना नाम कर्ज न लौटाने वालों की सूची से बाहर करवा लेते हैं और फिर शेष कर्ज लौटाने में आनाकानी करते हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं कि इनमें से कुछ विदेश भाग जाते हैं। वहां से उन्हें स्वदेश लाना कितना कठिन काम है, यह विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी आदि से समझा जा सकता है।

यह उचित ही है कि रिजर्व बैंक कर्ज लेकर उसे न चुकाने वालों के साथ ही उनकी गारंटी लेने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई करने पर विचार कर रहा है। रिजर्व बैंक को अपने उस नियम पर भी विचार करना चाहिए, जिसके चलते विलफुल डिफाल्टरों का नाम सार्वजनिक नहीं हो पाता। यह नियम एक तरह से बेईमानी करने वालों के हित में ही है।

हालांकि फंसे हुए कर्जों के चलते बैंकों के एनपीए यानी गैर निष्पादित परिसंपत्ति में अच्छी-खासी कमी आई है और घाटे में डूबे अधिकांश बैंक मुनाफे में आ गए हैं, लेकिन ऐसे मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं, जिनमें लोग कर्ज लेकर उसे चुकाते नहीं। इसी कारण कुछ समय पहले वित्त मंत्री ने बैंकों के प्रमुखों को यह निर्देश दिया था कि वे फंसे हुए कर्जों को लेकर सतर्क रहें।

आवश्यकता केवल इसकी नहीं है कि जानबूझकर कर्ज न लौटाने वालों की परिभाषा नए सिरे से तय की जाए, बल्कि ऐसे उपाय करने की भी है, जिससे गलत इरादे रखने वाला कोई भी व्यक्ति कर्ज न ले सके। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कई मामले ऐसे हैं, जिनमें यह देखने को मिला कि अपात्र लोग यानी घपलेबाज बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से भारी-भरकम कर्ज लेने में सफल रहे और उनके नाम भी सार्वजनिक होने में वर्षों लग गए।