लापरवाही की आदत, नियम-कानूनों की अनदेखी की प्रवृत्ति विकसित देश बनने में है बाधा
जैसे रेलवे मदुरई में हुए हादसे की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता उसी तरह वे यात्री भी नहीं जो सिलेंडर लेकर बोगी में सवार हुए। यह नहीं माना जा सकता कि यात्री इससे अवगत न हों कि ट्रेन में सिलेंडर लेकर चलना एक दंडनीय अपराध है। वास्तव में यह एक कटु सत्य है कि औसत भारतीय सुरक्षा नियमों की जानबूझकर अनदेखी करने और जोखिम उठाने का आदी हो गया है।
सुरक्षा संबंधी नियमों की अनदेखी और जानबूझकर बरती जाने वाली लापरवाही कैसे घातक नतीजे सामने लाती है, इसका ताजा उदाहरण है मदुरई में ट्रेन की एक बोगी में गैस सिलेंडर फटने से नौ लोगों की मौत। इस घटना में करीब 20 यात्री झुलस भी गए हैं। इस घटना से बचा जा सकता था, यदि ट्रेन की बोगी में सिलेंडर ले जाने से रोका गया होता।
समझना कठिन है कि रेलवे कर्मचारियों ने यात्रियों को सिलेंडर ले जाने से रोका क्यों नहीं और वह भी तब, जब यह स्पष्ट नियम है कि ट्रेन में ज्वलनशील पदार्थ लेकर चलना सख्त मना है? क्या यह विचित्र नहीं कि ट्रेन लखनऊ से मदुरई पहुंच गई, लेकिन इतनी लंबी दूरी के दौरान किसी रेलकर्मी ने यह ध्यान नहीं दिया कि यात्री सिलेंडर साथ लेकर यात्रा कर रहे हैं?
स्पष्ट है कि रेलवे अधिकारी केवल यह कहकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर सकते कि सिलेंडर को अवैध तरीके से ट्रेन की बोगी में ले जाए जाने के कारण यह दर्दनाक हादसा हुआ। माना कि तीर्थयात्रा पर जा रहे लोगों ने पूरी बोगी बुक कराई थी, लेकिन क्या इस तरह की बोगी में किसी को कुछ भी ले जाने की अनुमति है? रेलवे के नियम तो कुछ और ही कहते हैं।
जैसे रेलवे मदुरई में हुए हादसे की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता, उसी तरह वे यात्री भी नहीं, जो सिलेंडर लेकर बोगी में सवार हुए। यह नहीं माना जा सकता कि यात्री इससे अवगत न हों कि ट्रेन में सिलेंडर लेकर चलना एक दंडनीय अपराध है। वास्तव में यह एक कटु सत्य है कि औसत भारतीय सुरक्षा नियमों की जानबूझकर अनदेखी करने और जोखिम उठाने का आदी हो गया है।
केवल ट्रेनों में ही सुरक्षा नियमों का उल्लंघन नहीं किया जाता। यह काम सड़कों और यहां तक कि राजमार्गों पर भी किया जाता है। जहां तमाम दोपहिया वाहन चालक हेलमेट लगाना आवश्यक नहीं समझते, वहीं कार चला रहे अनेक लोग सीट बेल्ट नहीं लगाते। बात केवल इतनी ही नहीं है। लोग तय गति सीमा से अधिक रफ्तार से वाहन चलाते हैं। कई बार तो वे विपरीत दिशा में भी वाहन चलाने लग जाते हैं। कभी-कभी तो रात में भी। ऐसा करके वे अपने साथ दूसरों की भी जान जोखिम में डालते हैं। यदि कभी पुलिस ऐसे लोगों को रोकती-टोकती है तो कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो गलती मानने के बजाय लड़ने पर आमादा हो जाते हैं।
स्वतंत्रता का यह अर्थ नहीं कि जिसके जो मन में आए, वह करे और यहां तक कि नियम-कानूनों का पालन करने से इन्कार करे। दुर्भाग्य से अपने देश में यह काम खूब होता है और इसी कारण आए दिन जानलेवा हादसे होते रहते हैं। यह समझा जाना चाहिए कि औसत लोगों में अनुशासन का अभाव और नियम-कानूनों की अनदेखी की प्रवृत्ति ऐसी खराब आदत है, जो भारत को विकसित देश बनाने में एक बाधा है।