खराब सड़कों का निर्माण, आखिर 2030 तक मार्ग दुर्घटनाओं में 50 प्रतिशत की कमी कैसे लाई जा सकेगी
एक ऐसे समय जब द्रुत गति से सड़कों का निर्माण हो रहा है तब यह ठीक नहीं कि उनकी डिजाइन में खामियों का सिलसिला कायम रहे। क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि इस तथ्य से परिचित होने के बाद भी कुछ नहीं किया जा पा रहा है कि सड़कों की डिजाइन में मानकों का उल्लंघन हो रहा है।
यह अच्छा हुआ कि केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि सड़क दुर्घटनाओं के लिए मुख्य रूप से रोड इंजीनियरिंग की खामियां जिम्मेदार हैं, लेकिन यह चिंता की बात है कि उन्होंने यह भी कहा कि तमाम प्रयासों के बाद भी दोषपूर्ण डीपीआर यानी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बनाने का सिलसिला कायम है।
उन्होंने भले ही इंजीनियरों को यह नसीहत दी कि उन्हें डीपीआर की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करना चाहिए, लेकिन इसमें संदेह है कि केवल इससे बात बनने वाली है। यह सुनिश्चित किया जाना समय की मांग है कि दोषपूर्ण डीपीआर तैयार करने वालों को जवाबदेह ठहराया जाए, क्योंकि सड़क दुर्घटनाओं में बड़ी संख्या में लोग जान गंवाने के साथ अपंग भी हो रहे हैं।
सड़क दुर्घटनाएं किस तरह भयावह सिद्ध हो रही हैं, यह इससे समझा जा सकता है कि हर घंटे औसतन 19 लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवाते हैं। यह एक डराने वाला आंकड़ा है। इसे लेकर केवल यह कहने से काम चलने वाला नहीं है कि देश में सड़क दुर्घटनाओं का परिदृश्य बहुत निराशाजनक है। इस परिदृश्य में तब तक बदलाव नहीं आने वाला, जब तक सड़क हादसों के लिए जिम्मेदार कारणों का निवारण नहीं किया जाता। उचित यह होगा कि केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय इसके लिए आवश्यक कदम उठाए कि किसी भी सड़क के निर्माण में दोषपूर्ण डिजाइन देखने को न मिले।
एक ऐसे समय जब द्रुत गति से सड़कों का निर्माण हो रहा है, तब यह ठीक नहीं कि उनकी डिजाइन में खामियों का सिलसिला कायम रहे। क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि इस तथ्य से परिचित होने के बाद भी कुछ नहीं किया जा पा रहा है कि सड़कों की डिजाइन में मानकों का उल्लंघन हो रहा है।
समझना कठिन है कि जब हम संचार और मिसाइल तकनीक समेत अन्य अनेक क्षेत्रों में उत्कृष्टता का परिचय देने में समर्थ हैं, तब फिर सड़कों की डिजाइन सही तरह से क्यों नहीं कर पा रहे हैं? क्या सड़कों के निर्माण की तकनीक मिसाइल बनाने से भी अधिक कठिन है? यदि नहीं तो उनके निर्माण में मानकों का उल्लंघन क्यों हो रहा है? खराब अथवा कामचलाऊ तरीके से सड़कों का निर्माण होते रहना इच्छाशक्ति की कमी का ही परिचायक है। इससे यह भी पता चलता है कि मार्ग दुर्घटनाओं में मरने और जख्मी होने वाले लोगों की परवाह नहीं की जा रही है।
यदि सड़क सुरक्षा सचमुच सरकार की शीर्ष प्राथमिकता है तो फिर इसका क्या मतलब कि सड़कों की डिजाइन सुधरने का नाम नहीं ले रही है? आखिर सड़कों की डिजाइन सुधारे बिना 2030 तक मार्ग दुर्घटनाओं में 50 प्रतिशत की कमी कैसे लाई जा सकती है और वह भी तब, जब खुद केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री यह मान रहे हैं कि सड़क दुर्घटनाओं के लिए मुख्य रूप से रोड इंजीनियरिंग की खामियां जिम्मेदार हैं?