प्राचीन भारत में ‘ज्ञान, चरित्र निर्माण और कौशल’ थी शिक्षा की धुरी, इससे भटकाव ही बनी मुख्य समस्या
स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिन (11 नवंबर) पर मनाए जाने वाले राष्ट्रीय शिक्षा दिवस से जागरण प्राइम इस विषय पर सीरीज की शुरुआत कर रहा है। सीरीज की पहली स्टोरी में प्राचीन भारत से लेकर आजादी से पहले तक की शिक्षा व्यवस्था का विश्लेषण किया गया है। इसमें वैदिक काल बौद्ध काल मध्य काल और ब्रिटिश काल का जिक्र है।
जागरण प्राइम, नई दिल्ली। भारत की नई शिक्षा नीति में पूर्व-प्राथमिक स्तर से बच्चों को तैयार करने और पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा शामिल करने पर काफी जोर दिया गया है। इसमें शिक्षा को व्यावहारिक बनाने की भी बात है। लेकिन अतीत की शिक्षा व्यवस्था पर नजर डालें तो पता चलता है कि प्राचीन भारत में इसकी परंपरा रही है। उस समय समग्र शिक्षा ही दी जाती थी, जिसका उद्देश्य विद्यार्थी का संपूर्ण विकास होता था। उसी काल में यहां तक्षशिला और नालंदा जैसे विख्यात विश्वविद्यालय और आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य और कौटिल्य जैसे विद्वान हुए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में अतीत के उसी गौरव को लौटाने की बात है। स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिन (11 नवंबर) पर मनाए जाने वाले राष्ट्रीय शिक्षा दिवस से जागरण प्राइम इस विषय पर सीरीज की शुरुआत कर रहा है। सीरीज की पहली स्टोरी में प्राचीन भारत से लेकर आजादी से पहले तक की शिक्षा व्यवस्था का विश्लेषण किया गया है।