नई दिल्ली। संदीप राजवाड़े।

बचपन में टीवी या मोबाइल स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने का खामियाजा आपको युवावस्था या बड़ी उम्र में चुकाना पड़ सकता है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी में यह खुलासा हुआ है। स्टडी के अनुसार, जो बच्चे टीवी या मोबाइल पर ज्यादा समय बिताते हैं उनमें कम उम्र में ही हाई बीपी, शुगर, मोटापा तथा मेटाबॉलिक सिंड्रोम जैसी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। यह स्टडी 42 साल तक की गई। जागरण प्राइम ने इस स्टडी पर कई भारतीय विशेषज्ञ डॉक्टरों से बात की। उनका कहना है कि पिछले कुछ सालों में बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ने से उनका शारीरिक और मानसिक विकास बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। कम उम्र में ही युवा मोटापा, शुगर और बीपी जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। उनकी आंखों की रोशनी प्रभावित हो रही है, उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन और आक्रामकता बढ़ गई है। अगर ध्यान नहीं दिया गया तो बच्चों पर व्यावहारिक और बौद्धिक रूप से गंभीर प्रभाव पड़ेगा।

तीन साल से 45 की उम्र तक किया आकलन

न्यूजीलैंड के डुनेडिन मल्टीडिस्प्लिनरी हेल्थ एंड डेवलपमेंट रिसर्च यूनिट की तरफ से 1972-1973 में यह स्टडी शुरू की गई थी। स्टडी करने वाले डुनेडिन स्कूल ऑफ मेडिसिन के डिपार्टमेंट ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन के एमडी डॉ. आरजे हैनकॉक्स ने पाया कि स्क्रीन पर बिताये जाने वाले बच्चों के समय और उनकी उम्र के साथ बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं में सीधा संबंध होता है। बच्चे व किशोर टीवी देखने में जितना अधिक समय बिताते हैं, उनमें ऑक्सीजन का उपयोग उतना कम होता है। इससे हाई ब्लड प्रेशर के साथ कम उम्र में मोटापा की दर बढ़ती जाती है।

शोधकर्ताओं ने 1972-73 से तीन साल के 1037 बच्चों के साथ स्टडी शुरू किया, जिनमें से कुछ समय बाद 997 बच्चे रह गए। उनके टीवी देखने के समय और स्वास्थ्य पर लगातार निगरानी रखी गई। बच्चों के 5 साल, 7 साल, 9 साल और 11 साल के होने पर उनके हफ्तेभर में टीवी देखने के समय का आकलन किया गया। इसके बाद उनके 13 साल, 15 साल और 32 के उम्र होने पर टीवी स्क्रीन समय का आकलन किया गया। बच्चों ने टीवी पर सबसे ज्यादा समय 5 से 15 की उम्र के दौरान बिताया। 45 की उम्र होने पर 997 में से जीवित 938 लोगों को अध्ययन में शामिल किया गया।

2 घंटे से ज्यादा टीवी देखने वालों में मेटाबोलिक सिंड्रोम का खतरा

स्टडी में तीन साल की उम्र से हर दो साल बाद 15 की उम्र तक बच्चों का सोमवार से शुक्रवार तक टीवी देखने के समय का आकलन किया गया। उनके 32 साल के होने पर दोबारा इसका आकलन किया गया। जिन बच्चों ने इन दिनों में 2 घंटे से ज्यादा समय टीवी पर बिताया, उनमें वयस्क होने पर मेटाबोलिक सिंड्रोम के लक्षण दिखाई दिए। लड़कों में टीवी देखने की आदत लड़कियों की तुलना में ज्यादा मिली। मेटाबोलिक सिंड्रोम लड़कों में 34 फीसदी और लड़कियों में 20 फीसदी पाया गया। स्टडी में 879 प्रतिभागियों का 45 की उम्र और बचपन के समय का मेटाबॉलिक सिंड्रोम डेटा उपलब्ध रहा। स्टडी में पता चला कि 5 से 15 वर्ष की उम्र के दौरान टीवी देखने का संबंध 45 की उम्र में अधिक बीएमआई वैल्यू, कम कार्डियोरेस्पिरेटरी फिटनेस, कमर का अधिक आकार और बीपी से जुड़ा हुआ है।

हैनकॉक्स का कहना है कि यह स्टडी यह साबित नहीं करती है कि टीवी स्क्रीन टाइम ज्यादा होने से सीधे तौर पर स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है, लेकिन इस स्टडी से यह जरूर कहा जा सकता है कि स्क्रीन पर अधिक समय बिताने वाले बच्चे शारीरिक गतिविधि कम करते हैं। उनका वजन अधिक होने व कम फिट होने का खतरा बढ़ा रहता है। इससे उन्हें कई बड़ी बीमारियां हो सकती हैं।

यह अध्ययन 1970 के दशक में शुरू किया गया था, उस समय स्क्रीन के विकल्प के रूप में सिर्फ टीवी था। विशेषज्ञों का कहना है कि अब स्क्रीन टाइम बढ़ने और इसके कई विकल्प होने से समस्या और बढ़ी है।

शारीरिक के साथ मानसिक विकास प्रभावित

भोपाल एम्स के डायरेक्टर और सीनियर पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक डॉ. अजय सिंह का कहना है कि स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों का विकास बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। आजकल इससे जुड़े मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं। बच्चों के लंबे समय तक मोबाइल, टीवी या आईपैड देखने से आंख की रोशनी प्रभावित होने के साथ उनका मानसिक व शारीरिक विकास दोनों प्रभावित होता है। एक ही पोजीशन में लंबे समय तक बैठे रहने से शारीरिक गतिविधियां नहीं होती हैं। इससे जोड़ों की समस्या सामने आती है। फास्टफूड खाने और फिजिकल एक्टिविटीज न होने से मोटापा बढ़ने के साथ बीपी, शुगर के साथ मेटाबॉलिक सिंड्रोम से जुड़ी बीमारियों के लक्षण दिखाई देते हैं।

स्पीच और व्यवहार पर बुरा असर

रायपुर बाल गोपाल चिल्ड्रन हॉस्पिटल के डायरेक्टर और सीनियर पीडियाट्रिक डॉ प्रशांत केडिया का कहना है कि आजकल बच्चों को बचपन से टीवी- मोबाइल की लत लग जाती है। ऐसे बच्चों में शारीरिक और मानसिक विकास के साथ व्यावहारिक और बोलने (स्पीच) की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। आजकल हमारे पास ऐसे कई केस आ रहे हैं, जिसमें एक साल से कम उम्र के बच्चों के हाथ में मोबाइल और वीडियो देखने की आदत लगा दी जाती है। उससे उनकी बोलने की क्षमता प्रभावित हो रही है। फिजिकल एक्टिविटीज न होने से बच्चों में मोटापा, चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन और व्यवहार में आक्रामकता जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं। इसके साथ ही बच्चों को कम उम्र में बड़ों वाली बीमारियां हो रही हैं।

बच्चों को एडिक्टेड बना रहा है ज्यादा स्क्रीन टाइम

पटना एम्स के डायरेक्टर डॉ जीके पाल ने बताया कि अब ऐसे कई केस आ रहे हैं, जिनमें कम उम्र के बच्चों में मेटाबॉलिक सिंड्रोम से जुड़े लक्षण दिखाई दे रहे हैं। मोटापा, चिड़चिड़ापन के साथ अल्प आयु व युवावस्था में डिप्रेशन, शुगर, बीपी की बीमारी हो रही है। बच्चों में मोबाइल और टीवी स्क्रीन की लत का ही दुष्परिणाम है कि शारीरिक गतिविधि नहीं होने से बच्चों का मानसिक और व्यवहारिक विकास नहीं हो पा रहा है। कम उम्र के बच्चों में बड़ी बीमारियां हो रही हैं। व्यवहार में आक्रामकता, धैर्य की कमी आदि लक्षण दिखाई दे रहे हैं। इसका बड़ा कारण आज आज की पेरेंटिंग है। बच्चों के साथ समय बिताने और बात करने की बजाय पेरेंट्स उनके हाथ में मोबाइल- गैजेट्स दे रहे हैं, जिसके कारण वे इसके आदी हो जा रहे हैं।

समाधानः बच्चों को काउंसिलिंग के साथ पेरेंटिंग में बदलाव लाएं

डॉ पाल का कहना है कि बच्चों में जितना ज्यादा स्क्रीन टाइम होगा, उतना इनकी मानसिक और शारीरिक दोनों विकास प्रभावित होगा। सबसे पहले माता-पिता को अपना पेरेंटिंग सिस्टम बदलना होगा। इसके लिए 3 स्टेप में काम किया जा सकता है। पहला काउंसलिंग, जो बच्चों के साथ उनके माता-पिता करें, जिसमें वे बच्चे की सोच व रुचि जानें, स्क्रीन टाइम के दुष्परिणाम बताएं। दूसरा, उनके व्यवहार में आए परिवर्तन को लेकर नेचर थैरेपी की जानी चाहिए। मनोचिकित्सक से बात कर इसका हल तलाशना चाहिए। तीसरा स्टेप है गुड लाइफ। साथ में खाना, बोलना, उनके साथ समय बिताना। उन्हें फिजिकल एक्टिविटीज में लगाएं, इससे स्क्रीन टाइम की लत कम होगी और उनका शारीरिक और विकास पर अच्छा असर पड़ेगा।

डॉ. केडिया ने बताया कि वैसे भी एक्सपर्ट्स और हेल्थ गाइडलाइन के अनुसार 18 महीने से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल या स्क्रीन देखने से बचाया जाना चाहिए। डेढ़ साल से 5 साल तक के बच्चों के लिए टीवी या मोबाइल स्क्रीन टाइम एक घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए। लेकिन आज पेरेंट्स के पास समय की कमी है या सिंगल फैमिली होने कारण वह बच्चों को छोटी उम्र से मोबाइल व टीवी की लत लगा देते हैं। इसका दुष्परिणाम अब बच्चों में कई बीमारियों व समस्याओं के रूप में दिखाई देने लगा है।

स्टडी में टीवी स्क्रीन टाइम और मेटाबोलिक फिटनेस वैल्यू

बचपन में टीवी स्क्रीन टाइम- 435 (पुरुष)- 2.42 घंटे (सोम से शुक्र)

बचपन में टीवी स्क्रीन टाइम - 428 (महिला) - 2.30 घंटे (सोम से शुक्र)

मेटाबोलिक सिंड्रोम के लक्षण- 435 पुरुष में से 148 में, 428 महिला में 86 में मिले।