जलवायु संकट का असरः बाढ़, लू, शीतलहर और चक्रवात जैसी किसी न किसी आपदा से रोज जूझ रहा भारत
भारत में 1 जनवरी से 30 सितंबर 2023 तक 273 दिनों में से 235 दिन- 86 प्रतिशत से कुछ अधिक दिन चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव हुआ। सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार इन नौ माह में मध्य प्रदेश ने सबसे ज्यादा चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया है। वहां करीब हर दूसरे दिन ऐसी घटना हुई। हालांकि इन आपदाओं में बिहार में सबसे ज्यादा लोगों की जान गई है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। भारत ने साल 2023 के नौ महीनों में लगभग हर दिन मौसमी आपदा देखी है। लू, शीत लहर, चक्रवातों और बिजली गिरने से लेकर भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन तक की घटनाओं से भारतीयों को रोज जूझना पड़ा है। इस वर्ष 1 जनवरी से 30 सितंबर 2023 के बीच 86 प्रतिशत दिनों में ऐसी घटनाएं हुईं, जो देश में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है।
रिपोर्ट बताती है कि इन आपदाओं की वजह से नौ महीने में 2,923 लोगों की मौत हो गई। 1.84 मिलियन हेक्टेयर (एमएचए) क्षेत्र में फसलें प्रभावित हुईं और 80,000 से अधिक घर नष्ट हो गए। यहीं नहीं, इस कारण से 92,000 से अधिक पशुधन भी काल के गाल में समा गए। रिपोर्ट के अनुसार, चिंताजनक बात यह है कि ये गणनाएं कम हो सकती हैं क्योंकि प्रत्येक घटना का डेटा एकत्र नहीं किया जाता है और न ही सार्वजनिक संपत्ति या कृषि के नुकसान की गणना की जाती है। इस रिपोर्ट को 30 नवंबर से शुरू होने वाले जलवायु सम्मेलन कॉप-28 की पृष्ठभूमि में पेश किया गया है।
भारत में 1 जनवरी से 30 सितंबर 2023 तक 273 दिनों में से 235 दिन- 86 प्रतिशत से कुछ अधिक दिन - चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव हुआ। सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार इन नौ माह में मध्य प्रदेश ने सबसे ज्यादा चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया है। वहां करीब-करीब हर दूसरे दिन ऐसी घटना हुई। हालांकि, इन आपदाओं में बिहार में सबसे ज्यादा लोगों की जान गई है। आंकड़ों के अनुसार जून से सितम्बर के बीच जहां बिहार में 642 लोगों की मौत हो गई, वहीं हिमाचल प्रदेश में इन आपदाओं की भेंट चढ़ने वालों का आंकड़ा 365 और उत्तर प्रदेश में 341 दर्ज किया गया। पंजाब में सबसे अधिक पशुधन की मौत हुई।
विश्लेषण के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा 15,407 घर क्षतिग्रस्त हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ पंजाब में सबसे ज्यादा 63,649 मवेशियों की मौत इन चरम मौसमी आपदाओं में हुई है। केरल में चरम मौसम वाले दिनों की अधिकतम संख्या 67 और मौतें 60 दर्ज की गईं। तेलंगाना में सबसे अधिक प्रभावित फसल क्षेत्र दर्ज किया गया। 11,000 से अधिक घर नष्ट होने के साथ कर्नाटक को इस मामले में सबसे अधिक नुकसान हुआ।
आपदा की दृष्टि से, बिजली और तूफान सबसे अधिक बार आए। 273 में से 176 दिनों में इस कारण से 711 लोगों की जान गई। इनमें से सबसे ज्यादा मौतें बिहार में हुईं लेकिन सबसे ज्यादा कहर भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन ने बरपाया, जिसके कारण 1,900 से अधिक लोगों की जान चली गई।
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायणन कहती हैं कि देश ने 2023 में अब तक जो देखा है वह गर्म होती दुनिया में नया 'असामान्य' है। हम यहां जो देख रहे हैं वह जलवायु परिवर्तन का वॉटरमार्क है। ऐसी घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। एक चरम घटना जिसे हम हर 100 साल में एक बार देखते थे, अब हर पांच साल या उससे भी कम समय में घटित होने लगी है। यह हमारे सबसे गरीबों की कमर तोड़ रहा है, जो सबसे अधिक प्रभावित हैं।
सीएसई की एनवायरनमेंट रिसोर्स यूनिट की सदस्य और इस रिपोर्ट के लेखकों में से एक किरण पांडेय कहती हैं कि 2022 की तुलना में 2023 में अधिक तबाही देखी गई है। उदाहरण के लिए, 2023 में पूरे देश में मौसम की चरम घटनाएं बदतर हुई हैं। पिछले साल के 34 राज्यों की तुलना में इस साल सभी 36 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश प्रभावित हुए हैं। फसल क्षेत्र को नुकसान का दायरा भी बढ़ गया है। बीते साल यह 15 राज्यों तक सीमित था; इस साल 20 राज्य प्रभावित हैं।
डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा कहते हैं, “दुबई में COP28 के शुरू होने से ठीक पहले आने वाली यह रिपोर्ट बेहद महत्वपूर्ण है। यह रिपोर्ट उपलब्ध सभी आंकड़ों को खंगालने का प्रयास करती है और देश के सामने आने वाले जलवायु खतरे का व्यापक मूल्यांकन पेश करती है।''
इस बार सर्दियां हुई अधिक गर्म
यदि इस साल सर्दियों में तापमान से जुड़े आंकड़ों को देखें तो जहां जनवरी का महीना औसत से थोड़ा अधिक गर्म रहा। फरवरी में भी तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा दर्ज किया गया। फरवरी का औसत तापमान सामान्य (1981-2010 के औसत तापमान) से 1.36 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। वहीं दिन के समय का औसत तापमान 1.86 डिग्री रिकॉर्ड किया गया।
जलवायु परिवर्तन से जान-माल का नुकसान
क्लाइमेट वलनरेबल फोरम के आकलन के मुताबिक तापमान 2 डिग्री बढ़ने पर 2050 तक गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या 370% बढ़ जाएगी तथा लोगों के काम के घंटे 50% कम हो जाएंगे। बीमार और बुजुर्गों के लिए अधिक गर्मी और उमस खतरनाक साबित हो रही है। मानव जीवन पर इस साल की गर्मी के प्रभाव का अभी पूरा आकलन नहीं किया गया है, लेकिन नेचर पत्रिका के अनुमान के मुताबिक यूरोप में पिछले साल इससे कम गर्मी ने 61 हजार लोगों की जान ली थी।