रिपोर्टः ज्यादा उत्सर्जन वाले देशों का क्लाइमेट फाइनेंस में योगदान कम, ग्रांट के बजाय कर्ज में दे रहे मदद
अभी तक जितनी कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन हुआ उसका 20% अमेरिका ने दिया है। जो बाइडेन ने 2024 तक हर साल क्लाइमेट फाइनेंस के लिए 11.4 अरब डॉलर उपलब्ध कराने की बात कही थी लेकिन अमेरिकी कांग्रेस ने इस साल के लिए सिर्फ एक अरब डॉलर की मंजूरी दी
नई दिल्ली, एस.के. सिंह। मिस्र के शर्म-अल-शेख में क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस शुरू होने के साथ कुछ ऐसी रिपोर्ट आई हैं, जिनसे सबसे अधिक उत्सर्जन फैलाने वाले विकसित देशों की उदासीनता का पता चलता है। क्लाइमेट साइंस और क्लाइमेट पॉलिसी पर काम करने वाली संस्था कार्बन ब्रीफ की तरफ से सोमवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक औद्योगीकरण के बाद से अब तक विकसित देशों के कुल उत्सर्जन में 52% के लिए अमेरिका जिम्मेदार है। दुनिया के कुल उत्सर्जन में उसकी हिस्सेदारी 20% है।
सबसे अधिक उत्सर्जन के बावजूद अमेरिका जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील देशों की मदद में कोताही बरत रहा है। विकसित देश 2009 में कोपेनहेगन में आयोजित COP15 में क्लाइमेट फाइनेंस के तौर पर हर साल 100 अरब डॉलर की राशि देने पर सहमत हुए थे। कार्बन ब्रीफ का आकलन है कि अमेरिका को हर साल 100 अरब डॉलर में से 40 अरब देने चाहिए थे, लेकिन उसने 2020 में सिर्फ 8 अरब डॉलर की राशि दी है।
कार्बन ब्रीफ के अनुसार अभी तक वातावरण में जितनी कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन हुआ है उसका लगभग 20% अमेरिका ने दिया है। दूसरे स्थान पर चीन है हालांकि उसका हिस्सा अमेरिका का आधा है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले दिनों 2024 तक हर साल क्लाइमेट फाइनेंस के लिए 11.4 अरब डॉलर उपलब्ध कराने की बात कही थी, लेकिन अमेरिकी कांग्रेस ने इस साल के लिए सिर्फ एक अरब डॉलर की मंजूरी दी है।
कनाडा, ऑस्ट्रेलिया भी दे रहे कम राशि
इंग्लैंड, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया भी उन देशों में हैं जिन्होंने उत्सर्जन पैदा करने के अनुपात में क्लाइमेट फाइनेंस के लिए कम राशि दी है। कनाडा ने क्लाइमेट फाइनेंस में अपने हिस्से का सिर्फ 33%, ऑस्ट्रेलिया ने 38% और इंग्लैंड ने 76% दिया। कनाडा को जितना देना चाहिए था उसकी मदद राशि 3.3 अरब डॉलर, ऑस्ट्रेलिया की 1.7 अरब डॉलर और इंग्लैंड की 1.4 अरब डॉलर कम थी।
क्लाइमेट फाइनेंस के लिए 100 अरब डॉलर में से कौन सा देश कितनी राशि दे रहा है इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन कार्बन ब्रीफ ने अपने स्तर पर यह अनुमान लगाया है। औद्योगीकरण की शुरुआत के साथ इन देशों ने कितना उत्सर्जन किया, उसने इसका भी आकलन किया है और उसी अनुपात में उसने क्लाइमेट फाइनेंस में उन देशों का हिस्सा निकाला है।
40% उत्सर्जन विकसित देशों से
विकसित देश सबसे पहले 1992 में संयुक्त राष्ट्र की तरफ से आयोजित क्लाइमेट वार्ता में विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने में अतिरिक्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने पर सहमत हुए थे। औद्योगीकरण की शुरुआत से लेकर 1992 तक वे देश जीवाश्म ईंधन, उद्योग-धंधे, सीमेंट, लैंड यूज़ आदि से 46% कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार थे। 2020 में भी वे चुनिंदा देश ऐतिहासिक रूप से 40% उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार पाए गए।
ग्रांट के बजाय कर्ज दे रहे विकसित देश
जापान और जर्मनी जैसे देशों ने क्लाइमेट फाइनेंसिंग में अपने हिस्से से अधिक राशि दी है, लेकिन इसमें भी एक पेंच है। इन्होंने ज्यादा राशि कर्ज के तौर पर दी है, ग्रांट के तौर पर नहीं। कर्ज की राशि विकासशील देशों को लौटानी पड़ती है जो आगे चलकर उनके लिए अतिरिक्त बोझ की तरह होता है। जर्मनी ने अपने क्लाइमेट फाइनेंस का 45%, फ्रांस ने 75% और जापान ने 86% कर्ज के तौर पर दिया है।
वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट- इंडिया की क्लाइमेट प्रोग्राम डायरेक्टर उल्का केलकर के अनुसार, “कर्ज के तौर पर ली गई राशि विकासशील देशों को लौटानी पड़ती है। वे देश जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान का खर्च तो उठाते ही हैं, उन पर कर्ज का भी अतिरिक्त बोझ पड़ जाता है। इसलिए इन देशों पर क्लाइमेट कर्ज लगातार बढ़ रहा है।”
2023 में 100 अरब डॉलर देने का अनुमान
क्लाइमेट फाइनेंस को 2009 में औपचारिक रूप दिया गया और विकसित देश इस बात पर राजी हुए कि वे 2020 तक हर साल 100 अरब डॉलर की राशि विकासशील देशों को मुहैया कराएंगे। लेकिन अभी तक एक साल भी ऐसा नहीं बीता जब उन्होंने पूरी राशि दी हो। ओईसीडी (OECD) का आकलन है कि 2020 में विकसित देशों ने 83 अरब डॉलर की राशि दी और 2023 में वे पूरे 100 अरब डॉलर दे सकते हैं।
अब सिर्फ 500 गीगाटन का ‘कार्बन बजट’
जहां तक कार्बन उत्सर्जन की बात है, तो कार्बन ब्रीफ के पिछले साल के आकलन के मुताबिक 1850 से अब तक 2500 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड गैस वातावरण में हम छोड़ चुके हैं। ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए अब हमारे पास सिर्फ 500 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की गुंजाइश यानी ‘कार्बन बजट’ है। अमेरिका ने 1850 से अब तक सबसे अधिक 509 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड गैस वातावरण में छोड़ी है। यह कुल उत्सर्जन का 20% है। दूसरे स्थान पर चीन है जिसका कुल कार्बन उत्सर्जन में 11% (284 गीगाटन) हिस्सा है। उसके बाद रूस 7% (172 गीगाटन), ब्राजील 5% (113 गीगाटन) और इंडोनेशिया 4% (102 गीगाटन) है। टॉप 10 में शामिल अन्य देशों में जर्मनी (88 गीगाटन), भारत (85 गीगाटन), इंग्लैंड (74 गीगाटन), जापान (68 गीगाटन) और कनाडा (65 गीगाटन) शामिल हैं।
1% अमीर 25% उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार
नेचर सस्टेनेबिलिटी की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सिर्फ 1% अमीर लोग 25% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। नेचर ने 1990 से 2019 तक की एक स्टडी के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। इसका कहना है कि 2019 में सहारा अफ्रीका में एक व्यक्ति 1.6 टन कार्बन डाइऑक्साइड के समान उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार था। इसके विपरीत उत्तरी अमेरिका में प्रति व्यक्ति औसत उत्सर्जन इसका 10 गुना था। उत्तरी अमेरिका के शीर्ष 10% लोगों का औसत तो 70 टन था। स्टडी के अनुसार प्री-इंडस्ट्रियल समय की तुलना में ग्लोबल वार्मिग को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिए प्रति व्यक्ति औसत उत्सर्जन को 2050 तक घटाकर 1.9 टन पर लाना पड़ेगा।