स्कन्द विवेक धर, एस.के. सिंह, नई दिल्ली। चार देशों के यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) के साथ हुए व्यापार समझौते ने भारत के लिए यूरोप में संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। यूरोपियन यूनियन के बाजारों में भारतीय कंपनियों के लिए पैठ बनाना आसान हो गया है। इस समझौते में इमिग्रेशन आसान बनाने की भारत की सबसे महत्वपूर्ण मांग को भी मान लिया गया है। इसी मांग को लेकर यूरोपियन यूनियन और यूके के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर अब तक सहमति नहीं बन पाई है। विश्लेषकों की मानें तो यूके और ईयू के साथ जल्द एफटीए की संभावनाएं बढ़ गई हैं।

ईएफटीए में स्विट्जरलैंड, नार्वे, आइसलैंड और लिकटेंस्टीन शामिल हैं। इन चारों में स्विट्जरलैंड भारत का सबसे बड़ा व्यापारी भागीदार है। ईएफटीए के साथ व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौता (टीईपीए) 2022 की शुरुआत से अब तक मोदी सरकार का तीसरा प्रमुख व्यापार सौदा है। भारत इस दौरान संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ऑस्ट्रेलिया के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर कर चुका है।

टीईपीए की खास बात ये है कि इसमें ट्रेड के साथ इमिग्रेशन को भी जगह मिली है। इससे सेवा क्षेत्र के पेशेवरों का इन देशों में आना-जाना आसान हो जाएगा। इस समझौते के तहत वीजा और वर्क परमिट हासिल करने की प्रक्रिया में सहूलियत दी जाएगी। गौरतलब है कि भारत-ईएफटीए व्यापार समझौते पर बातचीत जनवरी 2008 में शुरू हुई थी, लेकिन लंबे समय तक रुकी रही।

इन चार देशों से भारत का प्रमुख आयात सोना, चांदी, कोयला, फार्मास्यूटिकल्स, वनस्पति तेल, डेयरी मशीनरी, चिकित्सा वस्तुएं, कच्चे तेल और वैज्ञानिक उपकरणों का है। भारत इन देशों को रसायन, लोहा और इस्पात, कीमती पत्थर, धागे, खेल के सामान, कांच के बर्तन और थोक दवाओं का निर्यात करता है। समझौते के अनुसार, ईएफटीए पशु उपभोग के लिए उपयोग किए जाने वाले चावल को छोड़कर भारतीय चावल निर्यात पर शुल्क हटा देगा।

निवेश नहीं तो टैरिफ में छूट पर पुनर्विचार

ईएफटीए ने भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश करने और अगले 15 वर्षों में दस लाख प्रत्यक्ष रोजगार सृजित करने की भी बाध्यकारी प्रतिबद्धता जताई है। निवेश प्रतिबद्धता पूरी नहीं हुई तो भारत ने समझौते से हटने का अधिकार सुरक्षित रखा है। अगर कोई तीसरा पक्ष ईएफटीए के जरिए भारत में निवेश करता है तो उसे ईएफटीए का निवेश नहीं माना जाएगा। तीसरे देश की कोई कंपनी, जिसकी ईएफटीए में ज्यादा बिजनेस गतिविधियां नहीं हैं, उसके निवेश को भी इसमें शामिल नहीं किया जाएगा।

निर्यातकों के संगठन फियो के डायरेक्टर जनरल और सीईओ अजय सहाय इस एग्रीमेंट को कई मायने में अनोखा मानते हैं। वे कहते हैं, “भारत ने पहली बार किसी विकसित देश समूह के साथ व्यापार समझौता किया है। ऑस्ट्रेलिया या जापान के साथ देश स्तर पर समझौता हुआ है। आसियान के साथ भारत का समझौता है लेकिन वे विकसित देश नहीं हैं। दूसरा, हमने पहली बार टैरिफ में छूट को निवेश से जोड़ा है। हमने कहा है कि अगर 100 अरब डॉलर का निवेश नहीं आया तो हम टैरिफ में छूट जारी रखने पर पुनर्विचार करेंगे। तीसरा, हमने पहली बार सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए समझौता किया है। इस समझौते में पर्यावरण, श्रम और जेंडर की बात है।” उन्होंने बताया कि ये देश ग्रीन टेक्नोलॉजी, मेडिकल उपकरण या इलेक्ट्रिकल मशीनरी जैसे सेक्टर में आगे हैं। इन सेक्टर में भारत में निवेश आना हमारे लिए बहुत अच्छा होगा।

सर्विसेज निर्यात और निवेश में मिलेगा लाभ

सहाय के अनुसार, भारत को वस्तु निर्यात में ज्यादा लाभ मिलने की संभावना नहीं है। स्विट्जरलैंड ने 1 जनवरी से इंडस्ट्रियल गुड्स आयात पर ड्यूटी खत्म कर दी है। इसलिए भारत को अतिरिक्त फायदा नहीं मिलेगा। हमें कृषि उत्पादों में एडवांटेज मिल सकता है, लेकिन उनके मानक इतने ऊंचे हैं कि हमारे निर्यातकों के लिए उन्हें पूरा कर पाना मुश्किल होगा। हालांकि प्रोसेस्ड फूड सेगमेंट में भारत को प्रवेश मिल सकता है।

सहाय के अनुसार, “हमने इस एफटीए में निवेश और सर्विसेज से संतुलन बनाया है। हमने 100 अरब डॉलर निवेश की शर्त रखी है। अगर इतना पैसा वहां से आता है और घरेलू स्तर पर भी 200 से 300 अरब डॉलर निवेश होगा, तो कुल मिलाकर बड़ा इन्वेस्टमेंट हो जाएगा।” उन्होंने बताया कि सर्विसेज में उन देशों को हमने बिजनेस सर्विसेज, हेल्थ सेक्टर जैसे क्षेत्रों में रियायत दी है। हमें भी आईटी, बिजनेस सर्विसेज, ऑडियो विजुअल, एनीमेशन गेमिंग, एजुकेशनल सर्विसेज में छूट मिली है।

सहाय के मुताबिक, “एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि समझौते में म्यूचुअल रिकॉग्निशन यानी आपसी मान्यता की बात है। यह नर्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट, आर्किटेक्ट जैसे प्रोफेशनल के लिए है। हमने पहले देखा है कि जब तक हमारी डिग्री को मान्यता नहीं मिलती तब तक हमें उन देशों में एक्सेस नहीं मिलता है। आपसी मान्यता से हमारे प्रोफेशनल को उनके बाजार में आसानी से एंट्री मिल जाएगी।”

स्विट्जरलैंड को बेस बना सकती हैं भारतीय कंपनियां

ईएफटीए ने अपने 92.2% टैरिफ लाइन में छूट दी है। भारत से इन देशों को 99.6% निर्यात इन्हीं वस्तुओं का होता है। भारत ने ईएफटीए को 82.7% टैरिफ लाइन पर छूट दी है। यह वहां से भारत में 95.3% आयात के बराबर है। इसमें भी 80% आयात सोने का होता है। फार्मा, मेडिकल डिवाइस और प्रोसेस्ड फूड जैसे पीएलआई वाले सेक्टर का ध्यान रखा गया है। डेयरी, सोया, कोयला और संवेदनशील कृषि उत्पादों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। ईएफटीए से सिर्फ 1.5% आयात को ड्यूटी फ्री एक्सेस मिलेगी।

समझौते से भारतीय कंपनियों को यूरोपियन यूनियन के बाजार में बिजनेस बढ़ाने का अवसर मिलेगा। स्विट्जरलैंड का 40% से ज्यादा सर्विसेज निर्यात यूरोपियन यूनियन को होता है। भारतीय कंपनियां ईयू के बाजार के लिए स्विट्जरलैंड को बेस बना सकती हैं।

सहाय कहते हैं, “इन चारों देशों के साथ भारत का कुल व्यापार लगभग 19.5 अरब डॉलर का है। उसमें से 18.5 अरब डॉलर स्विट्जरलैंड के साथ है। इसमें भी काफी बड़ा हिस्सा सोने का है। हम स्विट्जरलैंड से सोना बहुत आयात करते हैं।”

घरेलू इंडस्ट्री को तैयारी का पर्याप्त समय

सहाय के अनुसार, आयात की बात करें तो हमने वहां से घड़ी, चॉकलेट आदि के आयात पर जीरो ड्यूटी की उनकी मांग मानी है, लेकिन यह 7 साल में होगा। घड़ियां और चॉकलेट भारत में भी बनते हैं। घरेलू इंडस्ट्री को 7 साल में प्रतिस्पर्धा करने का समय मिल जाएगा। इसी तरह वाइन आयात को शुल्क मुक्त करने के लिए हमने 11 साल का समय लिया है। इस तरह देखा जाए तो घरेलू इंडस्ट्री को प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयारी का पर्याप्त समय दिया गया है।

समझौते की अन्य प्रमुख बातें

ड्यूटी, टैक्स तथा अन्य शुल्क को छोड़ कर कोटा, आयात-निर्यात लाइसेंस या अन्य तरीकों से व्यापार पर अंकुश लगाने की मनाही होगी। भुगतान संतुलन बनाने के लिए किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा। काउंटरवेलिंग जांच शुरू करने से पहले दूसरे देश के साथ आपसी सहमति से समाधान का प्रयास करना पड़ेगा। अगर काउंटरवेलिंग ड्यूटी लगाने का फैसला लिया भी जाता है तो यह ड्यूटी सब्सिडी मार्जिन से कम होगी।

दोनों पक्ष एक-दूसरे के बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा करेंगे। इस संदर्भ में एक-दूसरे के नागरिकों को अपने नागरिक के समान वरीयता देंगे। पृथ्वी विज्ञान, टेलीमेडिसिन, स्टेम (STEM), हेल्थकेयर, बायो टेक्नोलॉजी, डिजिटल टेक्नोलॉजी, रिन्युएबल एनर्जी, स्वच्छ टेक्नोलॉजी और सस्टेनेबल मेटल बनाने में दोनों पक्षों की सरकारी एजेंसियां और संस्थान एक-दूसरे का सहयोग करेंगे।

एंटी डंपिंग ड्यूटी के लिए कोई भी पक्ष मनमाना या संरक्षणवादी कदम नहीं उठाएगा। जांच शुरू करने से 10 दिन पहले दूसरे पक्ष को बताना पड़ेगा। निर्यातक देश 10 दन के भीतर आयातक की आपत्तियां दूर करने के कदम उठाएगा। अगर कोई पक्ष एंट डंपिंग ड्यूटी लगाता है तो ड्यूटी की दर डंपिंग मार्जिन से कम होगी। समझौते के पांच साल बाद एंटी डंपिंग से जुड़े प्रावधानों की समीक्षा होगी। कोई भी पक्ष विवाद निस्तारण के लिए नहीं जाएगा।

टीईपीए पर वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, स्विस संघीय काउंसलर और आर्थिक मामलों के संघीय विभाग के प्रमुख गाइ पार्मेलिन, आइसलैंड के विदेश मंत्री बजरनी बेनेडिक्टसन, लिकटेंस्टीन के विदेश मंत्री डोमिनिक हस्लर और नॉर्वे के व्यापार मंत्री जान क्रिश्चियन वेस्ट्रे ने हस्ताक्षर किए। गोयल ने कहा कि यह समझौता मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा देगा और भारतीय कार्यबल को अवसर प्रदान करेगा। यह भारतीय निर्यातकों को बड़े यूरोपीय और वैश्विक बाजारों तक पहुंचने के लिए एक राह प्रदान करेगा।

वहीं, ईएफटीए के काउंसलर गाइ पार्मेलिन ने कहा कि इस समझौते से ईएफटीए देशों को एक प्रमुख बढ़ते बाजार तक पहुंच मिलेगी। हमारी कंपनियां अपनी सप्लाई चेन में विविधता लाना चाहती हैं। इसमें भारत मदद करेगा। वहीं, भारत को इससे विदेशी निवेश मिलेगा, जो अंततः ज्यादा नौकरियों में तब्दील होगा।

इस समझौते से भविष्य में होने वाले एफटीए में भी मदद मिलने की उम्मीद है। सहाय कहते हैं, “भारत ने इस समझौते में निवेश का क्लॉज डाला जिसे काफी अच्छा रिस्पांस मिला। इसलिए हो सकता है कि भविष्य में होने वाले एग्रीमेंट में भी भारत निवेश का क्लॉज शामिल करे। हालांकि यह कितना सफल होगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उस देश के साथ हमारे कैसे रिश्ते हैं।”