संदीप राजवाड़े। नई दिल्ली।

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ने का सबसे बुरा असर बच्चों, खासकर 15 साल से कम उम्र वालों में दिखाई दे रहा है। प्रदूषण से सिर्फ पुराने सांस और दिल की जुड़ी बीमारियों के मरीज ही नहीं बल्कि नए लोग भी बीमार हो रहे हैं। श्वसन- फेफड़े और बच्चों के विशेषज्ञ डॉक्टरों के अनुसार प्रदूषण से बच्चों में दिल, फेफड़े, सांस से जुड़ी बीमारियों के साथ उनके मानसिक विकास (मेंटल डेवलपमेंट) पर भी बेहद खराब प्रभाव पड़ रहा है। इतना ही नहीं दिल्ली- एनसीआर के तीन बड़े अस्पतालों के विशेषज्ञों के अनुसार हफ्तेभर के दौरान बच्चों में सांस व फेफड़े से संबंधित तकलीफ के केस बढ़ गए हैं। अस्पताल में रोजाना सामान्य दिनों की तुलना में इस बीमारी से जुड़े नए बच्चे दोगुना से ज्यादा हो गए हैं। जांच में पाया गया है कि रोजाना 30-35 सिगरेट पीने वाले स्मोकर की तरह इस प्रदूषण से बच्चों की सांस की नली सिकुड़ रही है। उनके फेफड़े प्रभावित होने से सांस लेने में तकलीफ हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण पर रोक लगाना तो संभव नहीं दिखाई दे रहा है, लेकिन कुछ उपाय करके बच्चों पर प्रदूषण के शारीरिक व मानसिक विकास के दुष्प्रभाव को रोका जा सकता है।

केस एक- दिल्ली के मयूर विहार में रहने वाले 14 साल के अभिषेक (परिवर्तित नाम) को पिछले कुछ दिनों से लगातार खांसी आ रही थी। वह न तो ठीक से खाना खा पा रहा था न ही खेलकूद कर पा रहा था। रात में खांसी बढ़ने से उसकी तकलीफ और बढ़ जाती थी और वह नहीं सो पाता था। इस कारण वह चिड़ाचिड़ा भी हो गया। बच्चों के डॉक्टरों को दिखाने और दवा का डोज पूरा करने के बाद भी उसे राहत नहीं मिली तो डॉक्टर की सलाह पर उसे नोएडा सेक्टर 27 स्थित कैलाश अस्पताल में दिखाया गया। सांस- फेफड़े रोग विशेषज्ञ ने जांच की तो पाया कि प्रदूषण के कारण अभिषेक के फेफडे़ में इंफेक्शन हो गया है। इस कारण उसे लगातार खांसी आ रही है।

केस दो- गुड़गांव की 10 साल की वान्या (परिवर्तित नाम) रोजाना स्कूल के बाद शाम को दो घंटे सोसायटी ग्राउंड में खेलने जाती है। पिछले कुछ दिनों से उसे सांस लेने में दिक्कत होने लगी। उसके परिवारवालों ने बताया कि वान्या को पहले कभी इस तरह की परेशानी या लक्षण नहीं आए थे। वे दो साल पहले ही यहां ट्रांसफर होकर आए हैं। पहले उसे बच्चों के अस्पताल ले गए, वहां से डॉक्टर की सलाह पर गुड़गांव स्थित सनार इंटरनेशनल हॉस्पिटल ले जाया गया। डॉक्टरों ने जांच में पाया कि उसे सांस लेने में तकलीफ प्रदूषण का स्तर बढ़ने के कारण हुई है। वह जिस एरिया में रहती है, वहां प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा होता है।

प्रदूषण के कारण बच्चों के ब्रेन और फेफड़े पर असरः पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. बंदना मिश्रा

सनार इंटरनेशनल हॉस्पिटल गुड़गांव की पल्मोनोलॉजी विभाग की एचओडी डॉ. बंदना मिश्रा ने बताया कि वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ कई प्रकार की बीमारियां लोगों को होने लगती हैं। दिल्ली- एनसीआर में तो इसकी दिक्कत ज्यादा देखने को मिलती है। इस प्रदूषण का सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ता है। 15 साल की उम्र से कम के बच्चों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अभी हफ्तेभर के दौरान मेरी ओपीडी में रोजाना सांस की तकलीफ के 45-50 मरीज आ रहे हैं। इनमें बच्चों की संख्या करीबन आधी है। सामान्य दिनों में रोजाना 30-35 मरीज आते थे, जिनमें 4-5 ही बच्चे होते थे। प्रदूषण बढ़ने से बच्चों के सांस लेने की नली प्रभावित हो रही है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि रोजाना 30-35 सिगरेट पीने वाले स्मोकर को जो नुकसान सांस की नली में होता है, वैसा ही बच्चों को इस वायु प्रदूषण से हो रहा है। इनकी श्वसन नली सिकुड़ रही है। इसका असर उनके फेफड़े पर पड़ता है। उन्हें अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, निमोनिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों के ब्रेन और हार्ट में इसका असर होने से उनका मानसिक व शारीरिक विकास दोनों प्रभावित होता है।

डॉ. बंदना ने बताया, हमारे पास ऐसे कई बच्चे आ रहे हैं, जिन्हें एक महीने से लगातार खांसी हो रही है। माता-पिता के साथ बच्चों के डॉक्टर भी इसे लेकर परेशान हैं। खांसी होने पर पहले बच्चे को उनके डॉक्टर के पास ले जाते हैं, दवा का पूरा डोज होने के बाद भी बच्चे को कोई राहत नहीं मिल रही है। तब डॉक्टर उन्हें चेस्ट या सांस से जुड़ी बीमारियों के विशेषज्ञों के पास भेजते हैं। वहां जांच में मिलता है कि उनके फेफड़े में परेशानी है। उनकी सांस की नली डैमेज हो रही है। स्कूल जाने और खेलकूद के समय बच्चे प्रदूषण के संपर्क में आते हैं। यहां नवंबर से जनवरी के दौरान अनेक बच्चे पहली बार प्रदूषण के कारण दिक्कत की शिकायत लेकर आते हैं।

दूषित हवा से बच्चों का मानसिक- शारीरिक विकास प्रभावितः पीडियाट्रिक्स डॉ. विनीत क्वात्रा

गुरुग्राम के अर्टेमिस मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक्स विभाग के हेड डॉ. विनीत क्वात्रा ने बताया कि इन दिनों जो प्रदूषण का स्तर है, उससे पहले से सांस-फेफड़े व दिल के मरीजों के साथ सामान्य लोग भी प्रभावित हो रहे हैं। इसमें बच्चों की संख्या ज्यादा है। वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में श्वसन से संबंधित बीमारियां दिखाई देने लगी हैं। लंबे समय तक सूखी और परेशान करने वाली खांसी की दिक्कत सबसे ज्यादा बच्चों को हो रही हैं। एक महीने तक दवा लेने के बाद भी खांसी बनी रह रही है। इससे न तो बच्चा सो पा रहा है न खा पा रहा है। नींद व स्वास्थ्य सही न होने से मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन और डिप्रेशन जैसी समस्याएं देखने को मिल रही हैं। वैसे भी प्रदूषण का असर बच्चों में इसलिए ज्यादा होता है कि वे स्कूल, घर और बाहर खेलने के दौरान भी इसके संपर्क में आते हैं। उनके ब्रेन, हार्ट और फेफड़े विकसित होते रहते हैं, उन पर ज्यादा इफेक्ट पड़ता है।

डॉ. विनीत का कहना है कि सामान्य दिनों में हमारे पास पुराने मरीज ज्यादा आते थे, अब प्रदूषण का स्तर बढ़ते ही सांस व फेफड़े की समस्या वाले नए मरीज आने लगे हैं। सामान्य दिनों में 30-35 बच्चों की ओपीडी होती थी, उनमें 4-5 ही सांस से जुड़ी तकलीफ के होते थे। पिछले एक हफ्ते के दौरान प्रदूषण के कारण 35 मरीजों की ओपीडी में से 15-20 बच्चे इसी तरह परेशानी वाले आते हैं। बच्चों में अस्थमा, सांस लेने की दिक्कत समेत अन्य लक्षण दिखाई दे रहे हैं। अगर बच्चों के घर व बाहर प्रदूषण के संपर्क से बचने के लिए कुछ उपाय किए जाएं तो उन्हें गंभीर बीमारियों से बचाया जा सकता है।

ओपीडी में सांस की समस्या वाले बच्चों की संख्या तीन गुना बढ़ीः  चेस्ट फिजिशियन डॉ. ललित मिश्रा

नोएडा सेक्टर 27 स्थित कैलाश हॉस्पिटल के सीनियर चेस्ट फिजिशियन डॉ. ललित मिश्रा ने बताया कि दिल्ली- एनसीआर में साल दर साल वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक होता जा रहा है। इससे हर उम्र के लोगों को परेशानी हो रही है। बच्चों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें खांसी, अस्थमा, सांस लेने में दिक्कत जैसे लक्षण देखने को मिल रहे हैं। पिछले छह-सात दिन के दौरान ही हमारे अस्पताल में सांस-फेफड़े से जुड़ी दिक्कत वाले बच्चों की संख्या अचानक बढ़ गई है। जहां पहले रोजाना 40 मरीजों में बच्चों की संख्या 4-5 होती थी, वहां अब उनकी संख्या करीबन आधी (लगभग 20) हो गई है। इनमें 15 साल से कम उम्र के बच्चे ही ज्यादा हैं। जांच के दौरान यह भी पाया गया कि प्रदूषण से बच्चों के लंग्स सिकुड़ रहे हैं।

18 करोड़ बच्चे रोजाना जहरीली हवा लेने को मजबूर

डब्ल्यूएचओ के अनुसार 10 में से एक बच्चे (पांच वर्ष उम्र से कम) की मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है। 2022 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 3,61,000 बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के कारण सांस से जुड़ी बीमारियों से हुई। 15 साल से कम उम्र के विश्व के 93 फीसदी करीबन 18 करोड़ बच्चे रोजाना जहरीली हवा में सांस लेते हैं। इससे उनका शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होता है। 2019 में दुनिया में 42 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले हो गई। बाहरी और घरेलू प्रदूषण दोनों के प्रभाव को मिला दिया जाए तो दुनिया में 2019 में 67 लाख लोगों की आकस्मिक मौत हुई। इनमें से 89 फीसदी मौतें कम व मध्य आय वाले देशों में हुई। इसमें भी सबसे अधिक संख्या दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में थी। प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े पर्यावरण खतरों में से एक है। विश्व की 99 फीसदी आबादी ऐसी जगहों में रह रही है, जहां हवा की क्वालिटी मानक से खराब है। वायु प्रदूषण के स्तर को अगर कम किया जाए तो हार्ट अटैक, दिल की बीमारी, फेफड़ों के संक्रमण व कैंसर, अस्थमा के साथ सांस संबंधित बीमारियों के बोझ को कम किया जा सकता है।

बचाव- शाम को वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगता है, उस दौरान बच्चों को बाहर न खेलने भेंजे

वायु प्रदूषण कम करने का प्रयास शासन-प्रशासन की तरफ से लगातार किया जा रहा है, लेकिन इससे प्रदूषित हवा को नहीं रोका जा सकता है। डॉक्टरों के अनुसार ठंड के महीने में दिल्ली-एनसीआर में यह समस्या लगातार बनी रहेगी। इससे अपने आप को और बच्चों को बचाने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं।

डॉ. बंदना मिश्रा ने बताया कि अभी बच्चों को मास्क पहनाकर ही बाहर भेंजे। घर में ऐसे प्लांट लगाएं, जिससे ताजी हवा बनती है। घरों में धुआं व स्मोक स्प्रे का प्रयोग न करें। एंटी ऑक्सीडेंट व इम्युनिटी बूस्टर लें।

डा. विनीत क्वात्रा का कहना है कि शाम को बाहर प्रदूषण कण की मात्रा बढ़ने लगती है। इस दौरान हवा में नमी होने से ये प्रदूषित कण हवा में नीचे ही रह जाते हैं। इस दौरान बच्चों को घर के बाहर खेलने न भेंजे, हो सके तो उन्हें दोपहर या शाम साढ़े पांच के पहले खेलने को कहें। इसके अलावा मास्क बेहद जरूरी है। विटामिन सी की कमी दूर करने के लिए खुद व बच्चों को संतरा, मौसंबी जैसे फ्रूट का सेवन ज्यादा करें।

डॉ. ललित मिश्रा का कहना है कि जहां तक हो बच्चों को बाहर ले जाने से बचें। उनके खानपान पर ध्यान दें। ठंडे पेय पदार्थ व आइसक्रीम न खिलाएं।