नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। पांच साल बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के दो दिन के दौरे पर पहुंचे। इस दौरे को लेकर दुनिया भर में चर्चा और बयानबाजी थी। रूसी राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास 'क्रेमलिन' के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि मोदी की इस यात्रा को पश्चिमी देश ईर्ष्या की नजर से देखते हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा कि ऐसे समय में जब रूस लगातार यूक्रेन पर हमला कर रहा है तब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का वहां जाकर दुनिया के सबसे बड़े अपराधी के साथ गले मिलना बहुत ही दुखद है। लेकिन इन सब बयानों से इतर भारत ने अपनी विदेश नीति में तारतम्यता, सामंजस्य और संतुलन का उदाहरण दुनिया के सामने पेश किया है। भारत ने पिछले कुछ दशकों में वैश्विक शक्ति संतुलन के बीच ये लगातार दिखाया है कि वो ना तो किसी देश का पिछलग्गू है और ना रहेगा, लेकिन अपने हितों से समझौता भी नहीं करेगा। रूस यात्रा के तुरंत बाद भारतीय प्रधानमंत्री आस्ट्रिया के दौरे पर चले गए।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के रशियन मामलों के एक्सपर्ट प्रोफेसर अमिताभ सिंह कहते हैं कि मौजूदा समय में भारत अपनी सामारिक स्वायत्तता और किसी भी तरीके से डायलॉग जारी रखने को लेकर प्रतिबद्ध है। अपनी विकास आवश्यकताओं के लिए अमेरिका के साथ घनिष्ठ रणनीतिक साझेदारी जारी रखना और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती दादागीरी का मुकाबला करना, मास्को के साथ मजबूत संबंध बनाए रखना और उभरते चीन-रूस अक्ष से निकटता की किसी भी धारणा से बचना, भारत की प्राथमिकताएं हैं। रूस और भारत के साझा रणनीतिक हित हैं और बहुध्रुवीयता के मुद्दे पर एक मत हैं। रूस और भारत एक बहुध्रुवीय दुनिया और बहुध्रुवीय एशिया चाहते हैं, जिसमें किसी एक देश का आधिपत्य ना हो। जब सभी की नज़रें एक बहुप्रतीक्षित भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा पर हैं, तो भारत रणनीतिक स्वायत्तता के लंबे समय से चले आ रहे सिद्धांत के महत्व को रेखांकित करने में सक्षम रहा है। भारत, रूस, चीन और भारत, रूस और अमेरिका के साथ त्रिकोणीय संबंधों की गतिशीलता का प्रबंधन भारतीय कूटनीति की सरलता की परीक्षा लेगा।

चीन और रूस के बीच घनिष्ठ दोस्ती की अवधारणा को तोड़ने की कोशिश

अमिताभ सिंह कहते हैं कि दुनिया में यह अवधारणा बलवती हो रही थी कि रूस और चीन अभिन्न मित्र बन चुके हैं। ऐसे में पीएम मोदी की पुतिन से मुलाकात इस धारणा को भी तोड़ेगी। वहीं भारत ग्लोबल साउथ में बतौर नेतृत्वकर्ता अपनी भूमिका को लगातार मजबूत कर रहा है। इस स्थिति में यह दौरा वैश्विक स्तर पर यह संदेश देगा कि भारत दुनिया में संतुलन स्थापित करने का पक्षधर है। भारत ने यूक्रेन पर आक्रमण की निंदा तो की है लेकिन संयुक्त राष्ट्र के कई प्रस्तावों में रूस के खिलाफ मतदान से खुद को दूर रखा है। इससे निश्चित तौर पर यूरोपीय देश निराश हैं, जिन्हें उम्मीद थी कि भारत रूस के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएगा लेकिन अब तक भारत की विदेश नीति ये रही है कि वो किसी के खिलाफ नहीं है बल्कि सबको साथ लेकर चलना चाहता है। दूसरी तरफ रूस के लिहाज से भी यह यात्रा काफी अहम थी। मोदी और रूसी राष्ट्रपति के गले लगने की तस्वीरें स्पष्ट संकेत देती हैं कि बिडेन प्रशासन द्वारा भारत को लुभाने के प्रयासों के बावजूद भारत रूस के साथ गहरे संबंध बनाए रखेगा। यह भी दर्शाता है कि पुतिन उतने अलग-थलग नहीं हैं, जितना व्हाइट हाउस ने उम्मीद की थी।

अमेरिका से भी स्थिति में संतुलन

अमिताभ सिंह बताते हैं कि अमेरिका की तुलना में चीन की बढ़ती शक्ति के मद्देनजर दोनों देशों के बीच सैन्य और रणनीतिक सहयोग बढ़ रहा है। भारत और अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा रणनीतिक लक्ष्य रखते हैं। हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी दख़लंदाज़ी को रोकने के साझा लक्ष्य ने दोनों देशों को रणनीतिक रूप से करीब ला दिया। बढ़ती मित्रता के बावजूद, उनके वैश्विक दृष्टिकोण में भिन्नता है, विशेष रूप से वैश्विक नेतृत्व भूमिका की अमेरिकी अवधारणा और रणनीतिक गठबंधन की इसकी अवधारणा और रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक दक्षिण के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए भारत की लंबे समय से पोषित प्रतिबद्धता। मॉस्को की यात्रा, जो वाशिंगटन में नाटो की तीन दिवसीय बैठक के साथ हुई, वाशिंगटन और कीव में चिंता का विषय बनी हुई है। मोदी-पुतिन की बैठक के बारे में पूछे जाने पर, विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि हमने रूस के साथ उनके संबंधों के बारे में अपनी चिंताओं को सीधे भारत के साथ स्पष्ट कर दिया है।

रूस में भारत के पूर्व राजदूत और राष्ट्रीय सुरक्षा उप सलाहकार पंकज सरन बताते हैं कि भारतीय प्रतिष्ठान अभी भी वाशिंगटन के साथ संबंधों को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानता है। उन्होंने कहा कि भारत यह तर्क देकर अमेरिकी चिंताओं को दूर करने की कोशिश कर सकता है कि रूस के साथ मित्रता से भारत मॉस्को और पश्चिम के बीच संभावित मध्यस्थ के रूप में उपयोगी साबित हो सकता है।

व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव कैरिन जीन-पियरे से जब पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की मुलाकात पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका एक रणनीतिक भागीदार हैं। दोनों देशों के बीच हर मुद्दे पर स्पष्ट बातचीत होती है। यूक्रेन की बात आती है तो भारत सहित सभी देश स्थायी शांति हासिल करने के प्रयासों का समर्थन करते हैं। कैरिन जीन-पियरे ने कहा कि अमेरिका का मानना है कि भारत के पास ये क्षमता है कि वो रूस से बातचीत कर युद्ध को रुकवा सकता है। हालांकि, युद्ध को रोकने का आखिरी फैसला राष्ट्रपति पुतिन का है। राष्ट्रपति पुतिन ने युद्ध शुरू किया, और वही युद्ध समाप्त कर सकते हैं।"

व्यापारिक समझौते भी अहम

मॉस्को बैठक ने दोनों देशों के बीच "विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक संबंध" को और गहरा किया। विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने बताया कि शिखर सम्मेलन में आर्थिक एजेंडा ज्यादा हावी रहा है। वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय कारोबार को मौजूदा 65 अरब डॉलर से बढ़ाकर 100 डॉलर करने का लक्ष्य रखा गया है। वर्ष 2021 में 21वें शिखर सम्मेलन में द्विपक्षीय कारोबार को वर्ष 2025 तक 25 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा गया था। यह इसलिए संभव हुआ है, क्योंकि यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने अमेरिका व पश्चिमी देशों के दबाव को दरकिनार करके रूस से भारी मात्रा में कच्चे तेल की खरीद की है।

दोनों देशों ने अनुसंधान पर सहयोग के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किए और मॉस्को में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए मोदी ने दोनों देशों के लोगों के बीच संबंधों को बढ़ाने के लिए कज़ान और येकातेरिनबर्ग में नए वाणिज्य दूतावास खोलने की भी घोषणा की। मोदी ने अपने भाषण में कहा, "भारत और रूस कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं और वैश्विक समृद्धि में नई ऊर्जा भर रहे हैं।"

रूस का कोई भी उल्लेख हर भारतीय को एक ऐसे सहयोगी की याद दिलाता है जो भारत के भरोसेमंद दोस्त के रूप में अच्छे और बुरे समय में हमारे साथ रहा है। भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, यूक्रेन पर आक्रमण से पहले 2021 में रूसी कच्चे तेल का भारतीय आयात 2.5 बिलियन डॉलर था जो 2023 में बढ़कर 46.5 बिलियन डॉलर हो गया। पिछले साल, केवल चीन ने रूसी कच्चे तेल की अधिक खरीद की।

जानकार कहते हैं कि भारत के लिए, रूस हथियार, ऊर्जा और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है, जिसे भारत एक महान शक्ति बनने के लिए अपरिहार्य मानता है। विश्लेषकों का यह भी कहना है कि भारत नहीं चाहता कि रूस भारत के प्रतिद्वंद्वी पड़ोसी चीन पर अत्यधिक निर्भर हो जाए। भारत विश्व स्तर पर रूसी हथियारों का सबसे बड़ा आयातक बना हुआ है और अपनी रक्षा प्रणालियों और रखरखाव के लिए रूस पर अत्यधिक निर्भर है।

नाभिकीय समझौते

मोदी की यात्रा के दौरान मंगलवार को रूसी सरकारी समाचार एजेंसी TASS ने बताया कि दोनों देश रूस द्वारा भारत में छह नए उच्च क्षमता वाले परमाणु रिएक्टरों के निर्माण के साथ-साथ अगली पीढ़ी के छोटे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के लिए बातचीत कर रहे हैं। परमाणु ऊर्जा को लेकर तमाम विवादों के बावजूद, यह जलवायु संकट के लिए कई देशों के जवाब का हिस्सा बनता जा रहा है। दुनिया के दूसरे हिस्सों में परमाणु संयंत्रों और ईंधन की आपूर्ति करने की वैश्विक होड़ जारी है, और रूस कई मायनों में जीत रहा है।

अटलांटिक काउंसिल के ट्रांसअटलांटिक सिक्योरिटी इनिशिएटिव की वरिष्ठ फेलो एलिज़ाबेथ ब्रॉ ने सीएनएन को बताया, "व्यावसायिक रूप से कहें तो रूस बहुत सी चीज़ें बनाने में अच्छा नहीं है, लेकिन उसके पास प्राकृतिक संसाधन हैं और सोवियत काल से ही उसकी एक मज़बूत परमाणु परंपरा है और अब वह इसका फ़ायदा उठा सकता है।" "स्पष्ट रूप से क्रेमलिन ने तय किया है कि यह एक अच्छा विचार होगा और कुछ देश अपने परमाणु ऊर्जा उत्पादन का विस्तार करने के इच्छुक हैं। तेल निर्यात की तरह भारत भी उन देशों में से एक है।"

परमाणु शक्ति में यह प्रभुत्व पुतिन को विश्व मंच पर अपनी स्थिति बनाए रखने में मदद कर रहा है, भले ही अमेरिका और यूरोप युद्ध के मुद्दे पर उनसे दूर भाग रहे हों। और मोदी स्पष्ट रूप से भारत की गुटनिरपेक्ष विदेश नीति की परंपरा पर कायम हैं, जो उसे पश्चिम का मित्र बने रहने के साथ-साथ रूस के साथ व्यापार करने की अनुमति देता है।

ऐसा लगता है कि यह दोस्ती बदस्तूर जारी रहेगी। छह और संयंत्रों के लिए परमाणु सहयोग को गहरा करना आने वाले दशकों तक दोनों देशों को बांधे रखेगा। संयंत्रों को बनाने में कई साल लग सकते हैं, लेकिन उन्हें नियमित रखरखाव, तकनीकी उन्नयन और यूरेनियम के साथ निरंतर ईंधन भरने की भी आवश्यकता होती है, जो रूस के पास प्रचुर मात्रा में है।

रूसी सेना में कार्यरत कर्मचारी

भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने संवाददाताओं से कहा कि रूस अपनी सेना में सेवारत सभी भारतीयों को हटाने करने के लिए काम करेगा, क्योंकि मोदी ने स्पष्ट रूप से इस कदम का अनुरोध किया था। इस साल भारत में यह मुद्दा राजनीतिक रूप से विवादास्पद हो गया, जब ऐसी रिपोर्टें सामने आईं कि “सुरक्षा सहायक” या कुली के रूप में नौकरी के अवसर तलाश रहे भारतीयों को रूस में भर्ती किया गया और संभवतः उनकी इच्छा के विरुद्ध मोर्चे पर लड़ने के लिए तैनात किया गया। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि अब तक कम से कम चार भारतीय युद्ध में मारे गए हैं।

रूसी यूरेनियम पर अमेरिकी प्रतिबंध

रूस अक्षय ऊर्जा तकनीक की दौड़ में चीन से पिछड़ गया है और अपने ऊर्जा परिवर्तन में अमेरिका से बहुत पीछे है, क्योंकि उसने बहुत कम पवन और सौर ऊर्जा क्षमता विकसित की है। संयुक्त राज्य अमेरिका को पता है कि यह कितनी बड़ी समस्या है। बिडेन प्रशासन विदेशों में परमाणु तकनीक बेचने के लिए रूस के साथ प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश कर रहा है। इसने मई में अपना रुख बदल दिया, जब इसने रूसी यूरेनियम आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बनिस्पत वह अपने स्वयं के अगली पीढ़ी के रिएक्टरों को ईंधन देने के लिए HALEU का उत्पादन करने के लिए अपने स्वयं के उद्योग को तेजी से विकसित करने में लगा हुआ है।

आस्ट्रिया दौरे के मायने

अमिताभ सिंह बताते हैं कि आस्ट्रिया नाटो का सदस्य नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी का वहां का दौरा पश्चिम को भी इस बात का संदेश देगा कि भारत रूस, अमेरिका और यूरोप के साथ संतुलन साधने का पक्षधर है। वहीं आस्ट्रिया से कारोबार के मामले में भारत की स्थिति अधिक बेहतर है। वहां की आबादी करीब नब्बे लाख है जिसमें 31 हजार भारतीय हैं। इनमें पंजाब और केरल के लोग अधिक हैं। सोशल सर्विस सेक्टर में अधिक लोग काम करते हैं। भारत-ऑस्ट्रिया सांस्कृतिक संबंध मजबूत और बढ़ रहे हैं। भारतीय उस्ताद जुबिन मेहता ने ऑस्ट्रिया में नियमित रूप से प्रदर्शन किया है। वैसे भी, 1949 में राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद से ही भारत ने ऑस्ट्रिया के साथ बेहतरीन संबंध बनाए हैं। भारत को ऑस्ट्रियाई निर्यात 2 बिलियन यूरो और भारतीय निर्यात लगभग 1 बिलियन यूरो का है। भारत में ऑस्ट्रियाई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगभग 532 मिलियन यूरो और भारतीय निवेश लगभग 128 मिलियन यूरो है। आयरलैंड, साइप्रस और माल्टा के साथ ऑस्ट्रिया यूरोपीय संघ का सदस्य है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऑस्ट्रिया अपनी नीतियों में रूस विरोधी नहीं है, हालांकि वह यूक्रेन में युद्ध से थक गया है।