नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन और पौलेंड की यात्रा पर है। वैश्विक स्तर पर इस दौरे के कई आयाम देखे जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि इससे दुनिया भर में भारत की पीस डिप्लोमेसी को मजबूती मिलेगी, वहीं ग्लोबल साउथ के लीडर के तौर पर भी एक सशक्त छवि के तौर पर उभर कर सामने आएगा। यूरोप और रूस के बीच चल रही तनातनी के इस दौर में भारत दोनों के बीच एक सेतु का काम कर सकता है। इससे वैश्विक स्तर पर संतुलन बनेगा और शायद इससे पश्चिम का दबाव कम हो जाएगा जो भारत के तटस्थ रुख का आलोचक रहा है। भारत शांति के लिए सीमित योगदान भी दे पाता है, तो इससे और वैश्विक स्तर पर भारत और मोदी का कद भी ऊंचा होगा।

पौलेंड में भारत के राजदूत रहे अजय बिसारिया कहते हैं कि मोदी के पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों के दौर में पौलेंड बिलकुल अलग था पर मौजूदा दौर में पौलेंड पूरी तरह बदल चुका है। जबकि इसने यूरो को अपनी मुद्रा के रूप में अपनाने से इनकार कर दिया, पोलैंड ने अपने बुनियादी ढांचे को उन्नत करने के लिए यूरोपीय संघ की उदारता का अच्छा उपयोग किया। पौलेंड एक विकसित अर्थव्यवस्था में तब्दील हो चुका है, जो पड़ोसी यूक्रेन के लिए एक आदर्श है। आज पोलैंड पुतिन के रूस का मुखर आलोचक और यूरोपीय संघ में एक प्रमुख देश है।

शंघाई इंटरनेशनल स्टडीज यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस एंड पब्लिक अफेयर्स के इंटरनेशनल रिलेशंस और फॉरेन पॉलिसी के एसोसिएट प्रोफेसर डा. राज वर्मा का कहना है कि यूक्रेन यात्रा का प्राथमिक उद्देश्य भारत-यूक्रेन द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना है। दूसरा, संतुलन बनाना है। मोदी ने रूस का दौरा किया। उन्हें यूक्रेन का दौरा करना है, हालांकि यह दौरा प्रतीकात्मक है और आधे दिन का है। अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश युद्ध में भारत के तटस्थ रुख के आलोचक रहे हैं। भारत ने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए सार्वजनिक रूप से रूस की निंदा नहीं की है। तीसरा, शांति का संदेश फैलाना भी बेहद अहम है। ऐसी उम्मीदें हैं कि भारत इस संघर्ष में मध्यस्थ की भूमिका निभाना चाहता है। वह इस बात को दुनिया के समक्ष रखना चाहता है कि वह ग्लोबल साउथ का नेता है और वैश्विक मामलों में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।

हालांकि डा. राज वर्मा कहते हैं कि यह यात्रा अपने आप में वैश्विक मामलों में भारत की भूमिका को मजबूत नहीं करती है। यूक्रेन का दौरा करके, मोदी दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो सहित उन कुछ विश्व नेताओं की पंक्ति में शामिल होंगे, जिन्होंने युद्ध में तटस्थता बनाए रखते हुए रूस और यूक्रेन दोनों की यात्रा की है।

इंटरनेशनल रिलेशंस, फॉरेन पॉलिसी और स्ट्रेटेजिक अफेयर्स एक्सपर्ट गौरव गोयल कहते हैं कि 1954 के दौर से भारत और पौलेंड के रिश्ते हैं। अगर भारत को यूरोप में पकड़ बनानी है तो पौलेंड से रिश्तों को और प्रगाढ़ करना होगा। यह दौरा पौलेंड से 70 सालों के संबंधों की वर्षगांठ को मनाने का भी उत्सव है। यह दौरा मूलत : यूक्रेन के संदर्भ में काफी अहम है। यूक्रेन से विवाद सुलझाने में भारत कितनी प्रबल भूमिका निभा पाएगा, यह देखना काफी अहम होगा। यूक्रेन से युद्ध का असर दुनिया भर की इकोनॉमी पर पड़ा है। भारत पर इसका प्रभाव पड़ा। यह वार ऐसे समय शुरू हुआ जब दुनिया कोविड आपदा का सामना कर रही थी। इसने भारत समेत दुनिया की अर्थव्यवस्था को झकझोरा हुआ था। वहीं इस युद्ध के कारण रूस की चीन पर निर्भरता बढ़ गई। यह ऐसी स्थिति चीन के लिहाज से ज्यादा बेहतर है। बीआरआई के द्वारा चीन अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर रहा है साथ ही भारत को घेर भी रहा है। गौरतलब है किबीआरआई एक ऐसा प्रोजेक्ट है जो मुख्य रूप से चीन को अरब सागर से जोड़ता है। यह चीन के झिंजियांग उइघुर स्वायत्त क्षेत्र में काशगर से लेकर पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह तक फैला है। यह परियोजना गिलगित बाल्टिस्तान में पाकिस्तान के कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करती है और अरब सागर तक पहुंचने से पहले उत्तर से दक्षिण तक पाकिस्तान को पार करती है।

विकसित पौलेंड और भारत को एक दूसरे का भागीदार बनना होगा

पौलेंड में भारत के राजदूत रहे अजय बिसारिया बताते हैं कि भारत को विकसित पोलैंड के साथ चर्चा करने के लिए बहुत कुछ है। यूरोपीय परिषद के पूर्व अध्यक्ष और पोलैंड की उदार गठबंधन सरकार के वर्तमान प्रमुख डोनाल्ड टस्क के साथ मोदी की बातचीत में खाद्य प्रसंस्करण, रक्षा, ऊर्जा और आईटी में पारस्परिक निवेश पर चर्चा होगी। बिसारिया पौलेंड और भारत के ऐतिहासिक परिदृश्य के संदर्भ में बात करते हुए बताते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध को लेकर पोलैंड और भारत का एक ऐतिहासिक संबंध है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जामनगर (गुजरात) के महाराजा जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी ने पोलैंड के 600 से ज्यादा लोगों को शरण दी थी। कालिदास से लेकर समकालीन कविता तक भारतीय साहित्य का अनुवाद करने की एक शताब्दी से अधिक की परंपराओं के साथ, योग, भारतीय सिनेमा और इंडोलॉजी में पौलेंड का प्रेम साफ दिखता है।

बिसारिया कहते हैं कि पोलैंड नये यूरोप का चेहरा मात्र नहीं है। यह नाटो की पूर्वी सीमा रेखा है, जो यूक्रेन के रूस से युद्ध के दौरान यूरोप का महत्वपूर्ण सप्लाई लिंक है। 15 लाख से अधिक यूक्रेनी शरणार्थियों की मेजबानी और यूक्रेन के पक्ष में खड़ा रहने वाला पोलैंड, एक शानदार भूमिका अदा कर रहा है। मोदी की वारटाइम डिप्लोमेसी की यह पहली बैठक नहीं होगी।

संतुलन की रणनीति में भारत का किरदार सबसे अहम

डा. राज वर्मा कहते हैं कि दोनों पक्षों से कूटनीति और बातचीत के माध्यम से युद्ध समाप्त करने को कहना काफी अहम होगा। किसी भी पक्ष की आलोचना नहीं करना, किसी भी पक्ष को कोई सहायता प्रदान नहीं करना एक बेहतर रणनीति है। वहीं किसी भी पक्ष को दोषी न कहना भी सही होगा। भारत अप्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का आलोचक रहा है। वर्मा बताते हैं कि मोदी ने उज्बेकिस्तान के समरकंद में एससीओ शिखर सम्मेलन के मौके पर पुतिन के साथ अपनी द्विपक्षीय बैठक में कहा था कि आज का युग युद्ध का युग नहीं है। अपनी रूस यात्रा के दौरान, पुतिन के साथ अपनी बैठक में, मोदी ने अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें तब फटकार लगाई जब एक अस्पताल पर रूसी मिसाइल हमले में बच्चों सहित नागरिकों की मौत हो गई।

मोदी और भारत शांतिदूत की भूमिका निभाने के लिए अच्छी स्थिति में

अजय बिसारिया कहते हैं कि दिल्ली में हुई जी-20 की बैठक में भारत ग्लोबल साउथ के लीडर की आवाज के तौर पर सामने आया था। मोदी ने साउथ में ग्लोबल डेवलपमेंट कांपेक्ट का जो प्रस्ताव दिया था वह वैश्विक स्तर पर भारत को मजबूत करता है। यह दौरा दुनिया भर में भारत की छवि एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति की बनाता है। इससे साउथ एशिया के प्रति भारत का विजन दिखता है। मोदी को शांतिदूत के तौर पर अपनी भूमिका को लगातार मजबूत करना चाहिए। युद्ध के बाद यूक्रेन के पुर्निमिमाण के लिए भारत सहायता प्रदान कर अपने कद को बढ़ा सकता है।

बिसारिया कहते हैं कि भारत लगातार विवाद को डिप्लोमेसी के मार्फत खत्म करने के पक्ष में है। भारत को लगातार इस पर काम करते रहना चाहिए, लेकिन इतिहास बताता है कि शांतिदूत के लिए विफलता कभी भी छवि पर कोई धब्बा नहीं लगाती बल्कि संघर्ष समाधान यात्रा निरर्थक प्रयासों से भरी होती है।

डा. राज वर्मा कहते हैं कि मुझे लगता है कि भारत शांतिदूत की भूमिका निभाना चाहेगा लेकिन इस समय दोनों पक्ष बातचीत की मेज पर बैठने को तैयार नहीं हैं। हालांकि, मोदी और भारत शांतिदूत की भूमिका निभाने के लिए अच्छी स्थिति में हैं। लेकिन यूक्रेन दौरे पर मोदी के पास कोई शांति योजना नहीं होगी, यदि भारत शांति निर्माता के रूप में कार्य करता है, तो उसे एक बार बल्कि सतत प्रयास करने होंगे। यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत को अंतरराष्ट्रीय संघर्षों/युद्धों में शांतिदूत या मध्यस्थ के रूप में कार्य करने का कोई अनुभव नहीं है। यदि भारत शांति के लिए सीमित योगदान भी दे पाता है, तो इससे मोदी का कद और वैश्विक स्तर पर भारत का रुतबा भी ऊंचा होगा और भारत एक अग्रणी शक्ति बन सकता है।

गौरव गोयल कहते हैं कि अगर भारत शांतिदूत की भूमिका के तौर पर अपनी भूमिका प्रबल तरीके से निभा पाएगा तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसकी स्थाई सीट का दावा मजबूत होगा।

रूस से संबंधों पर नहीं पड़ेगा असर

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों पहले ही रूस का दौरा किय था। ऐसे में यूक्रेन दौरे से क्या भारत और रूस के संबंधों पर कोई प्रतिकूल असर पड़ेगा, इस सवाल के जबाव में डा. राज वर्मा कहते हैं कि जब तक भारत तटस्थ रहेगा, रूस मोदी की यूक्रेन यात्रा के बारे में बुरा नहीं सोचेगा। और भारत तटस्थ रहेगा। यह भारत का शांति निर्माता के रूप में भी स्वागत करेगा क्योंकि भारत और रूस के बीच बहुत विश्वास है और मोदी और पुतिन के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं।

गौरव गोयल कहते हैं कि मौजूदा समय में रूस दुनिया भर में आईसोलेशन में है। ऐसे में वह भी डिप्लोमेटिक तरीके से शांति चाहता है। भारत के लिहाज से देखें तो अगर शांति होती है तो रूस और चीन के बीच आई नजदीकी में फर्क आ सकता है। बीते चार सालों में भारत और रूस के बीच कोई बहुत बड़ी डील नहीं हुई है। ऐसे में एक तरफ जहां भारत यूरोप को यह मैसेज दे पाएगा कि हम तटस्थ नहीं है वहीं दूसरी तरफ रूस को भी यह संदेश देगा कि हम शांति के पक्षधर है।