Interim Budget: खेती को जलवायु संकट के प्रभाव से बचाने के लिए पीएम प्रणाम और टेक्नोलॉजी फंड पर बढ़ सकता है फोकस
विशेषज्ञ मानते हैं कि अंतरिम बजट में पीएम किसान सम्मान निधि की राशि बढ़ाई जा सकती है और खेती में रसायनों का इस्तेमाल कम करने के लिए शुरू की गई पीएम प्रणाम स्कीम पर फोकस बढ़ाया जा सकता है। जलवायु संकट का खेती पर असर दिनों-दिन गहराता जा रहा है। इससे निपटने के लिए किसी रणनीति के संकेत भी मिल सकते हैं।
एस.के. सिंह, नई दिल्ली। कहने को तो चुनावी साल 2019-20 का पहला बजट भी अंतरिम था, लेकिन उसमें देश के 12 करोड़ किसानों को हर साल 6000 रुपये ‘सम्मान निधि’ देने की घोषणा की गई थी। चुनाव से पहले इसकी पहली किस्त किसानों के खाते में ट्रांसफर भी कर दी गई। इसलिए इस बार भी कृषि क्षेत्र को अंतरिम बजट से कुछ उम्मीदें हैं तो वह बेमानी नहीं। खास कर यह देखते हुए कि हाल की तिमाही में कृषि क्षेत्र की ग्रोथ रेट घटी है। जुलाई-सितंबर 2023 में यह सिर्फ 1.2% थी।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अंतरिम बजट में पीएम किसान सम्मान निधि की राशि बढ़ाई जा सकती है और खेती में रसायनों का इस्तेमाल कम करने के लिए शुरू की गई पीएम प्रणाम स्कीम पर फोकस बढ़ाया जा सकता है। जलवायु संकट का खेती पर असर दिनों-दिन गहराता जा रहा है। इससे निपटने के लिए किसी रणनीति के संकेत भी मिल सकते हैं। खेती में टेक्नोलॉजी का प्रयोग बढ़ाने के लिए फंड बढ़ाया जा सकता है। कृषि कर्ज का लक्ष्य 20 लाख करोड़ से बढ़ाकर 22 लाख करोड़ रुपये किया जा सकता है। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि राज्यों के साथ विचार-विमर्श की प्रक्रिया फिर शुरू की जानी चाहिए, जो कई वर्षों से बंद है। अंतरिम बजट में न सही, आगे चलकर बड़े किसानों को आयकर दायरे में लाने की भी चर्चा है।
पीएम किसान निधि में बढ़ोतरी की उम्मीद
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी दर्जा देने और किसानों को डायरेक्ट इनकम सपोर्ट देने के पक्षधर कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा जागरण प्राइम से कहते हैं, “अभी सरकार किसानों को प्रतिमाह 500 रुपये की दर से साल में 6000 रुपये दे रही है। उसे दोगुना किया जा सकता है। यह साल का 12000 रुपये होना चाहिए। तेलंगाना और महाराष्ट्र पहले ही 12000 रुपये देने की घोषणा कर चुके हैं। वहां केंद्र के 6000 रुपये के अतिरिक्त राज्य सरकार बाकी रकम दे रही है। उड़ीसा में भी यह राशि 10000 रुपये है।”
2023-24 के बजट में कृषि एवं संबद्ध कार्यकलापों के लिए 84,214 करोड़ रुपये और पीएम किसान योजना के लिए 60,000 करोड़ रुपये रखे गए हैं। वर्ष 2022-23 में पीएम किसान योजना के लिए 68,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, लेकिन इसे संशोधित कर 60,000 करोड़ रुपये किया गया।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय जरूरी
मध्य प्रदेश के पूर्व कृषि सचिव और कृषि वैल्यू चेन उपलब्ध कराने वाली समुन्नति एग्रो के डायरेक्टर प्रवेश शर्मा कहते हैं, “कृषि सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा से सीधे जुड़ा है। जलवायु परिवर्तन का संकट हमारी खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करेगा। उससे निपटने के लिए हमें व्यापक रणनीति बनानी पड़ेगी। उस दिशा में भी कुछ संकेत बजट में दिया जाना चाहिए।” शर्मा के अनुसार, अब दुनिया भर में क्लाइमेट रेजिलिएंट खेती की बात हो रही है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने का एक उपाय टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले बजट में कृषि और सहकारिता क्षेत्र के लिए घोषणा करते हुए कहा था कि कृषि के लिए डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का गठन किया जाएगा जो ओपन सोर्स होगा। इससे फसल की प्लानिंग और उनकी सेहत, कृषि इनपुट, कर्ज तथा बीमा तक बेहतर पहुंच, फसलों के आकलन, मार्केट इंटेलिजेंस के जरिए समावेशी और किसान केंद्रित समाधान तैयार करने में मदद मिलेगी। इससे एग्रीटेक इंडस्ट्री और स्टार्टअप को भी बढ़ावा मिलेगा।
ग्रामीण युवाओं के लिए एग्रीकल्चर एक्सेलरेटर फंड बनाने का भी ऐलान किया गया था। उद्देश्य यह था कि ये युवा किसानों की चुनौतियों का सस्ता समाधान लेकर आएं। अधिक कीमत वाली बागवानी फसलों के लिए 2,200 करोड़ रुपये की आत्मनिर्भर क्लीन प्लांट योजना की भी घोषणा की गई थी ताकि बीमारी-मुक्त और अच्छी क्वालिटी की फसलें तैयार हो सकें।
2022-23 में कृषि उन्नति योजना का ऐलान करते हुए इसके लिए 7,183 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जिसे बाद में संशोधित कर 5,000 करोड़ किया गया। मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 7,066 करोड़ का प्रावधान किया गया है। प्राकृतिक खेती के लिए 459 करोड़ रुपये दिए गए हैं।
फसलों के विविधीकरण को बढ़ावा
खेती में उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल कम करना भी इसी का एक हिस्सा कहा जा सकता है। देविंदर शर्मा के मुताबिक, सरकार ने पीएम प्रणाम नाम से अच्छी स्कीम चलाई है, जिसमें रासायनिक न्यूट्रिएंट्स का इस्तेमाल कम करने की बात है। मेरे विचार से वह महत्वपूर्ण योजना है। इससे फर्टिलाइजर सब्सिडी कम करने में भी मदद मिलेगी। इस पर फोकस बढ़ाया जा सकता है।
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल से मिट्टी और पानी की क्वालिटी खराब हुई है। इसे सुधारने के लिए भी कदम उठाने की जरूरत है। खासकर पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में। फसलों के विविधीकरण पर फोकस बढ़ाना जरूरी है। विविधीकरण के लिए बागवानी, पशुपालन और फिशरीज जैसे सेक्टर प्रमुख हैं।
2023-24 के बजट में कृषि क्षेत्र के लिए सब्सिडी में कटौती की गई थी। फूड सब्सिडी के लिए 2022-23 के संशोधित अनुमान 2.87 लाख करोड़ की तुलना में 1.97 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। उर्वरक सब्सिडी के लिए 2.25 लाख करोड़ रुपये की जगह 1.75 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। केंद्रीय उर्वरक मंत्री ने पिछले दिनों कहा था कि इस वर्ष उर्वरक सब्सिडी 1.7 लाख से 1.8 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है।
किसानों को ‘सी2 प्लस 50’ की कीमत
देविंदर शर्मा के मुताबिक, “संभव है कि सरकार स्वामीनाथन फॉर्मूले के तहत ‘सी2 प्लस 50’ की कीमत किसानों को देने की घोषणा कर दे। पिछले दिनों राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, उसमें भारतीय जनता पार्टी ने धान के लिए मध्य प्रदेश में 3100 और छत्तीसगढ़ में 3200 रुपये प्रति क्विंटल कीमत देने का वादा किया था। वह सी2 प्लस 60 से भी ज्यादा है। सरकार यह घोषणा कर सकती है कि हमने दो राज्यों में कर दिया है, बाकी राज्यों में भी ऐसा करने जा रहे हैं।”
प्रवेश शर्मा नीतिगत स्तर पर धीमी गति का मुद्दा उठाते हुए कहते हैं, “दो-तीन वर्षों से नीतिगत स्तर पर कुछ उदासीनता देख रहा हूं। 2020 में जब सरकार को तीन कृषि कानून वापस लेने पड़े, तो उसके बाद से इंटीग्रेटेड पॉलिसी थिंकिंग लगता है बंद हो गई।” शर्मा के अनुसार, “मेरे विचार से बजट में सरकार को यह संकेत देना चाहिए कि केंद्र सरकार एक व्यापक नीतिगत परामर्श की प्रक्रिया चालू करना चाहती है। उसका पहला कदम यह होगा कि केंद्र सरकार राज्यों से बात करे। पिछला कृषि मंत्रियों का सम्मेलन राधामोहन सिंह के समय हुआ था।”
रोजगार के लिए कृषि पर निर्भरता घटाना जरूरी
रोजगार के मामले में कृषि पर निर्भरता बहुत अधिक है। आज भी यह लगभग 45% लोगों के लिए रोजगार का साधन है। इसलिए विशेषज्ञों का सुझाव है कि यह निर्भरता कम करने वाली नीति बननी चाहिए। लोग कृषि से निकल कर दूसरे क्षेत्रों में जाएं। इसके लिए कृषि से जुड़े फूड प्रोसेसिंग, वेयरहाउसिंग, कोल्डचेन इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे सेगमेंट पर ध्यान दिया जा सकता है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) पर 2021-22 में 98,467 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। उसके बाद वर्ष 2022-23 में 73,000 करोड़ रुपये के प्रावधान को संशोधित कर 89,400 करोड़ रुपये करना पड़ा था। हालांकि 2023-24 के बजट में इसके लिए 60,000 करोड़ रुपये रखे गए हैं। संशोधित अनुमानों में इसमें फिर बढ़ोतरी संभव है।
कृषि आय बढ़ाने के उपाय
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने पिछले महीने राजधानी दिल्ली में एक कार्यक्रम में किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई सुझाव दिए थे। उनका कहना था कि बहुत से ऐसे प्रदेश हैं जहां अब भी फसल और मवेशी दोनों में प्रोडक्टिविटी बहुत कम है। इसे बढ़ाने से किसानों की आय भी बढ़ेगी। आज अनेक उपभोक्ता क्वालिटी के लिए अधिक कीमत देने को तैयार हैं तो किसान ऐसे प्रोडक्ट पर फोकस कर सकते हैं। इसके अलावा, अनेक राज्यों में किसानों को एमएसपी मिलता ही नहीं है। वहां एमएसपी दिया जाए तो कृषि की ग्रोथ रेट दोगुनी हो जाएगी। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश का उदाहरण देते हुए रमेश चंद ने कहा कि अगर ये राज्य 6-7% की कृषि विकास हासिल कर सकते हैं तो बाकी देश में इस ग्रोथ रेट को क्यों नहीं हासिल किया जा सकता।
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समीक्षा समिति की सदस्य आशिमा गोयल ने एक इंटरव्यू में कहा कि सरकार गरीब किसानों के खाते में पैसे डालकर उनकी मदद कर रही है। सरकार अमीर किसानों पर इनकम टैक्स लगाकर टैक्स ढांचे में संतुलन बना सकती है। अभी कृषि से होने वाली कमाई पर इनकम टैक्स नहीं लगता है।