नई दिल्ली, जागरण प्राइम। जागरण न्यू मीडिया द्वारा कृषि सम्मेलन ‘जागरण एग्री पंचायत’ का आयोजन किया गया। कृषि सम्मेलन ‘जागरण एग्री पंचायत’ में देश के कृषि नीति-निर्माता, वैज्ञानिक, कृषि क्षेत्र में इनोवेटिव काम करने वाले किसान और एक्टिविस्ट शामिल हुए।

केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि खेती भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और किसान उसकी जान हैं। उन्होंने कहा कि किसान सबसे बड़ा उत्पादक भी है और उपभोक्ता भी है। कांग्रेस की प्राथमिकता में कृषि नहीं रही है। एक तरफ हम खाद्य सुरक्षा मजबूत करेंगे। वहीं, दूसरी तरफ किसानों की आय बढ़ाना हमारा लक्ष्य है।

उन्होंने कहा कि ज्यादा उत्पादन के लिए 65 फसलों की 109 किस्में विकसित की गई हैं। सिंचाई की वजह से मध्य प्रदेश में कृषि में 18 फीसदी तक वृद्धि देखने को मिली। उन्होंने ‘लैब को लैंड’ से जोड़ने की बात करते हुए कहा कि किसानों को सीधे वैज्ञानिक से जोड़ने की योजना बनाई जा रही है। उन्होंने किसानों को सस्ता और आसान ऋण दिलवाने और क्रेडिट कार्ड अभियान की बात कही, ताकि कोई भी किसान ऋण के जाल में न फंसे। उन्होंने कहा कि यूपीए के शासन काल में फसल बीमा की राशि बहुत कम थी। वहीं, आज प्रधानमंत्री किसान बीमा योजना के तहत प्रीमियम की तुलना में तीन गुना बीमा राशि मिली है।

उन्होंने कृषि के विविधीकरण पर जोर देते हुए कहा कि हमें गेहूं और धान के अलावा मछली पालन और मधुमक्खी पालन जैसे विकल्पों को भी अपनाने के साथ ही हाइड्रोपोनिक जैसे नए उपाय अपनाने की जरूरत है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि खेती में अत्यधिक खाद इस्तेमाल करने के बजाय प्राकृतिक खेती को अपनाने की जरूरत है। हालांकि, इसकी वजह से उत्पादन घटने नहीं दिया जाएगा। भारत फूड बास्केट बनेगा और दुनिया का पेट भी भरेगा।

केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पर्ल फॉर्मिंग के जानकार अशोक मनवानी, खजूर किसान सदूला राम चौधरी, इनोवेटिव फार्मिंग के नरेन्द्र सिंह मेहरा, ड्रैगन फ्रूट किसान वैभव चावडा को ‘जागरण एग्री पंचायत अवार्ड’ से सम्मानित किया। उन्होंने इस सम्मेलन में शामिल लोगों के साथ अपने अनुभव और ज्ञान को शामिल किया।

जागरण न्यू मीडिया के सीईओ भरत गुप्ता ने कहा कि देश तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की कोशिश कर रहा है और इसमें कृषि में शामिल 47 फीसदी आबादी की महत्वपूर्ण भूमिका है। कार्यक्रम के पहले सत्र में भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के पूर्व सचिव सिराज हुसैन ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ सरकार की इनोवेटिव स्कीम है, जो कम प्रीमियम पर किसानों को बीमा का लाभ देती है। उन्होंने कहा कि यह स्कीम सूखा प्रभावित राज्यों में काफी कारगर है।

जागरण न्यू मीडिया के एडिटर-इन-चीफ और एग्जीक्यूटिव प्रेसिडेंट राजेश उपाध्याय ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहा, “भारत की कृषि की कहानी अविश्वनीय है। आज हमने अपनी खाद्य सुरक्षा को न केवल सुनिश्चित किया है, बल्कि वैश्विक निर्यातक बनने की तरफ कदम बढ़ा चुके हैं। उन्होंने कहा कि हम जलवायु परिवर्तन और युवा प्रतिभाओं को खेती की ओर आकर्षित करने की जरूरत जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। वहीं, खाद्य प्रसंस्करण और कृषि निर्यात का अद्भुत अवसर है।”

हुसैन ने कहा कि साल 2014 में ‘कृषि सिंचाई योजना’ की शुरुआत की गई थी। मध्य प्रदेश में इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। ‘प्राइस सस्टेनेबल फंड’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले दस सालों में सरकार ने बफर स्टॉक बनाया है और दालों का बफर स्टॉक सिस्टम फेलियर नहीं है। ‘फ्री मार्केट’ से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि एमएसपी (मिनिमम स्पोर्ट प्राइस) और पीडीएस (पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम) जरूरी हैं। उन्होंने कहा, “बाजार को इस हद तक ही रेगुलेट किया जाना चाहिए कि वह ऑप्टिमम लेवल पर ऑपरेट कर सके।”

उन्होंने जलवायु परिवर्तन से कृषि उत्पादन पर होने वाले असर का जिक्र करते हुए कहा, “हमारा एग्रीकल्चरल सरप्लस बहुत मार्जिनल है। जब तक हमारा बहुत ज्यादा सरप्लस न हो जाए, तब तक रेगुलेशन रखना होगा। हमारा सरप्लस इतना नहीं है कि उस पर भरोसा कर सकें। ऐसे में सरकार का कंट्रोल अभी कुछ दिन और रहेगा।” हुसैन ने कहा कि किसान को डीलर से कीटनाशक की सही जानकारी नहीं मिल पाती है और इसके गलत इस्तेमाल से बीमारियां हो रही हैं। जागरण एग्री-पंचायत में शामिल नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) के चेयरमैन डॉ. मीनेश शाह ने कहा कि भारत में सबसे ज्यादा पशु हैं, लेकिन हमारा मॉडल लो इनपुट-लो आउटपुट का है। उन्होंने कहा कि अगर हम अपना मॉडल बदलेंगे, तो उससे दिक्कतें आ सकती हैं।

उन्होंने कहा कि पशुओं की उत्पादकता हम बढ़ा रहे हैं। विकास की दर अच्छी है, लेकिन नंबर के मामले में हम पीछे हैं। उन्होंने कहा कि हम कृत्रिम गर्भाधान को बढ़ावा दे रहे हैं और इसका डेटा रख रहे हैं, ताकि बेहतर नस्लों का चयन किया जा सके। उन्होंने मवेशियों की वजह से होने वाले मिथेन उत्सर्जन के बारे में कहा, “कुछ सालों से हम सस्टेनेबलिटी पर जोर दे रहे हैं। पशु के आहार की बैलेंसिंग करने से 15% तक मीथेन का उत्सर्जन कम हो जाता है। मोबाइल ऐप्लिकेशन ‘ई-गोपाल’ की मदद से राशन बैलेंसिंग की जा सकती है।” उन्होंने कहा कि 10 लाख पशुपालकों को इसमें शामिल किया गया है।

डॉ. शाह ने कहा कि 2050 तक हमारा लक्ष्य नेट जीरो कार्बन एमिशन तक पहुंचना है। उन्होंने वाराणसी के सामुदायिक बायोगैस प्लांट का जिक्र करते हुए कहा, “गोबर में फ्यूल है और गोबर में फर्टिलाइजर है।” उन्होंने कहा कि वाराणसी में 100 टन क्षमता वाला गोबर गैस संयंत्र काम कर रहा है, जिससे मिलने वाले ईंधन से एक लाख लीटर दूध का प्रसंस्करण किया जाता है। गोवर्धन स्कीम के तहत पशुपालक घरेलू बायोगैस के लिए आर्थिक मदद पा सकते हैं। इसके अलावा, एनडीडीबी, सुजुकी के साथ मिलकर गांव के स्तर पर बायोगैस बनाएगी, जिसका इस्तेमाल गाड़ियों में किया जाएगा।

ऑर्गेनिक मिल्क से जुड़े एक सवाल के जवाब में डॉ. शाह ने कहा, “हमारे देश के दूध की क्वालिटी किसी भी देश में उत्पादित होने वाले दूध से कम नहीं है। ऑर्गेनिक मिल्क के लिए कोई स्टैंडर्ड नहीं है। ऐसे में मार्केटिंग हथकंडों में नहीं आना चाहिए।” उन्होंने कहा कि इसका स्टैंडर्ड तय करने के लिए काम किया जा रहा है।

आवारा पशुओं से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ‘सेक्स शॉर्टेड सीमेन’ जैसी तकनीक से यह पक्का किया जा सकता है कि 85-90 फीसदी बछिया ही पैदा हो। ऐसे में आने वाले समय में तकनीक की मदद से आवारा पशुओं पर रोक लगाई जा सकती है।

‘जागरण एग्री-पंचायत’ ‘डेयरी और पशुपालन के जरिए किसानों की आय बढ़ाना’ सेशन में शामिल आईसीएआर- सीआईआरसी (सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन कैटल) के डायरेक्टर डॉ. अशोक कुमार मोहंती ने कहा, “हमारा प्रयास है कि देसी गाय का प्रोडक्शन बढ़ाया जाए।” उन्होंने कहा कि दूध का प्रोडक्शन बढ़ा है और किसानों को देसी ब्रीड के साथ ही क्रॉस बीड के मवेशियों को भी रखना चाहिए।

पॉल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया के कोषाध्यक्ष रिकी थापर ने कहा कि पशुपालन को जब कृषि के साथ जोड़ा जाएगा तभी किसानों की आय बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि मुर्गी पालन में 65 फीसदी खाद्यान्न का खर्च आता है, ऐसे में यह कृषि को भी सपोर्ट करती है। साथ ही, संगठित पॉल्ट्री फार्म में कम समस्या आ रही है, बल्कि गैर-संगठित कारोबार में ज्यादा दिक्कत हैं।

आईसीएआर-नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट, करनाल के एनिमल बायोकेमिस्ट्री डिविजन के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. सुनील कुमार ओंटेरु ने कहा कि प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए हम ऐसे टूल-किट विकसित कर रहे हैं जो समय पर किसानों को बता सके कि कब गर्भाधान किया जाए और सही समय पर बीमारियों के बारे में पता चल सके, ताकि तत्काल इलाज किया जा सके।

उन्होंने कहा कि ‘जीन एनालिसिस’ की मदद से हम ‘फीड कन्वर्जन रेशियो’ को बढ़ा सकते हैं और इस पर शोध चल रहा है। स्थानीय नस्लों को प्राथमिकता देने की बात करते हुए डॉ. ओंटेरु ने कहा कि उत्तर भारत का ब्रीड उत्तर में ही अच्छा प्रोडक्शन देगा।

धानुका ग्रुप के चेयरमैन आरजी अग्रवाल ने कहा कि खेतों में सही रसायन का इस्तेमाल जरूरी है। उन्होंने कहा, “कोई भी सामान खरीदें तो उसका बिल जरूर लें और अगर दुकानदार बिल न दे तो शिकायत करें। आप चाहें तो प्रोडक्ट के क्यूआर कोड को स्कैन करके भी पता लगा सकते हैं कि वह नकली है या असली।”

उन्होंने जल संरक्षण के लिए स्प्रिंकलर के इस्तेमाल पर जोर देते हुए कहा कि मिट्टी जांच के बाद माइक्रो न्यूट्रिशन और खाद के इस्तेमाल से पैदावार बढ़ सकती है। एग्रो केमिकल फेडरेशन ऑफ इंडिया के डायरेक्टर जनरल डॉक्टर कल्याण गोस्वामी ने कहा कि हॉर्टिकल्चर में नेचुरल फार्मिंग आसान है, लेकिन हर जगह पर रसायन के बगैर खेती करना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि नेचुरल फार्मिंग चलते रहना चाहिए, लेकिन यह केमिकल फार्मिंग को रिप्लेस नहीं कर सकता है।

आईसीएआर-आईएआरआई, पूसा, दिल्ली के डिविजन ऑफ सीड साइंस एंड टेक्नोलॉजी के प्रमुख डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्रा ने कहा कि अब फूड सिक्योरिटी के साथ न्यूट्रिशन वैल्यू पर भी जोर दिया जा रहा है। अभी जो बीज विकसित किया जा रहा है उनमें न्यूट्रिशन सिक्योरिटी का भी ध्यान रखा जाता है।

आईएआरआई, नई दिल्ली के मिट्टी विज्ञान और कृषि रसायन के प्रमुख डॉ. देबाशीष मंडल ने कहा कि आय बढ़ाने के लिए जरूरी है कि हमारे पास खेती से जुड़ी हर जानकारी हो। उन्होंने कहा कि हम खेती में खाद की मात्रा लगातार बढ़ाते जा रहे हैं, हमें इससे बचना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि ऑर्गेनिक खाद भी सही मात्रा में इस्तेमाल करना जरूरी है। आई-फॉरेस्ट के फाउंडर और सीईओ चंद्र भूषण ने कहा कि कृषि के क्षेत्र में अगर हम पर्यावरण के बुनियादी मुद्दों पर काम करें तो काफी फायदा होगा। भू-संरक्षण को लेकर हम काम नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि खेती से जुड़ी जानकारी को डिजिटल तरीके से लोगों तक पहुंचाना जरूरी है। किसानों को तुरंत मौसम की जानकारी मिलनी चाहिए। हमें एग्रो केमिकल का इस्तेमाल सावधानी से करना चाहिए और उसे भी पर्यावरण के अनुकूल बनाने की जरूरत है।

टेरी फेलो डॉ. अरविंद कपूर ने कहा कि किसान न्यूट्रिएंट बेस्ड उर्वरक नहीं डाल रहे हैं। मिट्टी खराब हो चुकी है। उन्होंने कहा कि मौसम में हो रहे परिवर्तन का सामना करने के लिए हमें कम समय में तैयार होने वाली फसलों की किस्में अपनाने की जरूरत है। नैनो फर्टिलाइजर के इस्तेमाल से ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। साथ ही, इससे सरकार पर सब्सिडी का बोझ भी कम होगा।

एग्रो केमिकल फेडरेशन ऑफ इंडिया के डायरेक्टर जनरल डॉक्टर कल्याण गोस्वामी ने कहा कि खाद के इस्तेमाल की वजह से मिट्टी खराब हुई है। हालांकि, इसकी उर्वरा शक्ति पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। देश में 23 करोड़ सॉयल कार्ड दिया गया है, लेकिन मिट्टी के टेस्ट का लैब 11,550 ही हैं। ऐसे में ज्यादा लैब खोलने की जरूरत है, ताकि कहां कौन-सा खाद देना है यह तय हो सके।

छत्तीसगढ़ सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री रामविचार नेताम ने कहा कि कृषि में तकनीक के इस्तेमाल के बिना उत्पादन को बढ़ाया नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज खेती घाटे का सौदा नहीं रह गया है। धान के प्रति एकड़ उत्पादन के मामले में छत्तीसगढ़ अव्वल राज्य बन गया है। उन्होंने कहा, “अच्छी कीमत मिलने पर किसान बेहतर तकनीक का इस्तेमाल कर पाएंगे।” उन्होंने आगे कहा कि कृषि उन्नति योजना के तहत 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा रकम किसानों के खातों में जमा किया गया है।

नेताम ने कहा कि हमने 50 फीसदी तक किसानों को सब्सिडी दी है, जिससे कृषि लागत में कमी आएगी। उन्होंने कहा कि तकनीक के इस्तेमाल से मिलेट का रकबा और उत्पादन दोनों बढ़ रहा है। वहीं, दो फसल पैदा करने से किसानों की आय बढ़ी है। उत्तराखंड सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि राज्य में जीआई टैग, कलस्टर खेती और कृषि ड्रोन जैसे इनोवेशन को शुरू किया गया है। उन्होंने कहा कि मोटे अनाज के बीज की खरीद पर अतिरिक्त 30 फीसदी का अनुदान मिलता है। उन्होंने कहा, “जो मिलेट्स कभी गरीबों का भोजन हुआ करता था वह आज अमीरों की थाली का हिस्सा बन गया है। उन्होंने कहा कि नमो ड्रोन दीदी योजना के तहत राज्य में अब तक 28 ड्रोन का वितरण किया गया है। कृषि मंत्री जोशी ने कहा कि बागवानी के लिए उत्तराखंड के किसानों को 60 फीसदी अनुदान दिया जा रहा है। वहीं, फूलों की खेती के लिए सरकार की ओर से 80 फीसदी अनुदान मिलता है। कार्यक्रम में उत्तराखंड सरकार, छत्तीसगढ़ सरकार और मदर डेयरी का विशेष सहयोग और समर्थन मिला।