नई दिल्ली, स्कन्द विवेक धर। अपने आप को भारतीय कानूनों से परे मानने वाले ओवर दि टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म तंबाकू नियंत्रण कानून (कोटपा) 2003 को भी अंगूठा दिखा रहे हैं। इन प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने वाली फिल्मों और वेबसीरीज में धूम्रपान के दृश्यों की भरमार तो होती ही है, साथ ही इनमें किसी प्रकार का डिस्क्लेमर भी नहीं दिया जा रहा है। इतना ही नहीं, स्कूली छात्र-छात्राओं तक को धड़ल्ले से धूम्रपान और नशा करते हुए दिखाया जा रहा है।

जागरण प्राइम ने अपनी रिसर्च में विभिन्न ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित फिल्मों और वेब सीरीज का अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि इन प्लेटफॉर्म में धूम्रपान, मदिरापान और यहां तक कि ड्रग्स के सेवन से जुड़े दृश्यों में भी कोई चेतावनी प्रसारित नहीं की जाती। यहां तक कि सिनेमाघरों के लिए फिल्म में पहले से मौजूद चेतावनी को भी ब्लर कर दिया जाता है। धूम्रपान के दृश्यों को इस तरह दिखाया जाता है कि वह युवाओं को ‘कूल’ और ‘ग्लैमरस’ लगें।

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर स्मोकिंग के दृश्यों को लेकर एक अध्ययन किया। पीएचएफआई की वाइस प्रेसिडेंट और प्रोफेसर (रिसर्च एंड हेल्थ प्रमोशन) डॉ मोनिका अरोड़ा कहती हैं, "नेटफ्लिक्स और अमेज़ॅन प्राइम वीडियो पर 15 से 24 वर्षीय भारतीय युवाओं के बीच दस सबसे लोकप्रिय श्रृंखलाओं के 188 एपिसोड में तंबाकू इमेजरी का हमने अध्ययन किया। इसमें पता चला कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भारतीय युवाओं के बीच लोकप्रिय शो में बड़ी संख्या में तंबाकू का चित्रण किया जा रहा है। बॉलीवुड फिल्मों में हमने जो अब तक देखा है, उसकी तुलना में ओटीटी पर तंबाकू इमेजरी की सीमा बहुत अधिक है। कोई भी शो तंबाकू नियंत्रण अधिनियम, 2003 के तहत तंबाकू मुक्त फिल्म और टीवी नियमों का अनुपालन नहीं करता है।

तंबाकू दुनियाभर में सालाना 81 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार है। भारत में 15 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लगभग 26.6 करोड़ लोग तंबाकू का उपयोग करते हैं। देश में तंबाकू के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का बोझ खासा अधिक है। इस बोझ को कम करने और देश में तंबाकू के चलन पर अंकुश के लिए भारत सरकार ने कोटपा कानून लागू किया है।

इस कानून के तहत तंबाकू और तंबाकू से बने पदार्थों के किसी भी तरह के विज्ञापन पर रोक है। इतना ही नहीं, सभी फिल्म में तंबाकू से होने वाले नुकसान पर कम से कम 20 सेकंड का वीडियो दिखाना और धूम्रपान के दृश्य में “तंबाकू स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है” डिस्क्लेमर देना अनिवार्य है। यह नियम टीवी पर भी लागू होता है।

कोटपा कानून के उल्लंघन पर 5 साल तक की जेल और/या 5000 रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है। इसे लागू करने की जिम्मेदारी फिल्म या विज्ञापन का प्रसारण करने वाले सिनेमाघरों और टीवी चैनलों की होती है। ऑनलाइन स्ट्रीमिंग के मामले में यह जिम्मेदारी सीधा ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की बनती है।

2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन और गैर सरकारी संस्था वाइटल स्ट्रैटेजी द्वारा किए गए एक साझा अध्ययन में सामने आया कि इस नियम के चलते लोगों में धूम्रपान के खतरों के प्रति जागरुकता बढ़ी है और वे धूम्रपान छोड़ने के लिए प्रेरित हुए हैं। हालांकि, अब इस सकारात्मक बदलाव पर खतरा मंडराने लगा है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और गैर-सरकारी संगठन वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया के साझा अध्ययन में कहा गया है कि 20 से 25 वर्ष के युवा सप्ताह में 5 से लेकर 20 घंटे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर बिताते हैं। ऐसे में ओटीटी के नियमन का अभाव चिंता का प्रमुख विषय है। ओटीटी प्लेटफॉर्म फिल्मों या वेब सीरीज के पात्रों में तंबाकू का अत्यधिक उपभोग दिखाते हैं। इससे हमारे बच्चों और यूथ के बीच फिर से तंबाकू का प्रमोशन होने लगा है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता कहते हैं, कोटपा कानून के दायरे में ओटीटी प्लेटफॉर्म को लाने की मांग स्वास्थ्य मंत्रालय तथा अनेक संगठनों ने की है। संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत लोगों को जीने का अधिकार है, जिसको सुनिश्चित करने के लिए संसद ने कोटपा कानून बनाया था। इस कानून के दायरे में फिल्म, टीवी और विज्ञापन आदि सभी आते हैं और ओटीटी के लिए कानून में कोई छूट का प्रावधान नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी दुबे कहते हैं, यह बहुत ही महत्वपूर्ण और गंभीर विषय है। धूम्रपान से कैंसर, डिप्रेशन और तमाम तरह के रोग होते हैं। मदिरा के अत्यधिक सेवन से लीवर, किडनी के बेकार होने की आशंका होती है। भारत जैसे विशाल देश में अत्यधिक जनसंख्या की वजह से स्वास्थ्य सेवाएं हमेशा कम ही पड़ती हैं। ऐसी स्थिति में हर सम्भव प्रयास होना चाहिए कि अधिक से अधिक लोगों को धूम्रपान व मदिरापान के सेवन के दुष्परिणाम पता हो।

दुबे कहते हैं, पहले भी भारतीय कानूनों का नई परिस्थितियों के अनुसार विस्तार किया गया है। नोटिस/समन पहले डाक के माध्यम से ही भेजे जाते थे लेकिन अब ईमेल को भी अपनाया गया है। ऐसे ही इंडियन एविडेंस एक्ट, 1872 में 65-बी को जोड़ कर इलेक्ट्रॉनिक्स रिकॉर्ड्स को साक्ष्य के रूप में मान्यता दी गयी। ऐसे में कोटपा कानून का दायरा भी आसानी से ओटीटी तक बढ़ाया जा सकता है।

भारत के लिए ग्लोबल लीडर बनने का मौका

वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया की सीईओ भावना मुखोपाध्याय कहती हैं, यह देखना चिंताजनक है कि स्ट्रीमिंग मीडिया तंबाकू के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एक आश्रय स्थल बन गया है। उपाध्याय ने कहा कि यह तंबाकू के उपयोग को हतोत्साहित करने वाले प्रावधानों को कमजोर कर रहा है। भारत को फिल्मों के नियमों का विस्तार ओटीटी तक करना चाहिए। उन्होंने कहा कि तंबाकू के नियमन में भारत ग्लोबल लीडर रहा है। ओटीटी पर नियमन लागू कर भारत फिर से दुनिया के सामने नजीर पेश कर सकता है।