नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी।  यातायात, उद्योग और अन्य कारणों से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण प्रति वर्ष तीन मिलियन से अधिक लोग असामयिक मृत्यु का शिकार हो रहे हैं। विश्व स्तर पर यह मलेरिया और एचआईवी/एड्स से मरने वालों की कुल संख्या से भी अधिक है।

सड़क यातायात से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कण तथा जीवाश्म ईंधन के जलने से सल्फर डाइऑक्साइड सहित प्रदूषकों को बच्चों में फेफड़ों के विकास में कमी, अस्थमा, हृदय रोग और टाइप 2 मधुमेह की शुरुआत से जोड़ा गया है। गर्भवती महिलाओं के वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से भ्रूण के मस्तिष्क के विकास पर भी असर पाया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार जिस हवा में हम सांस लेते हैं वह खतरनाक रूप से प्रदूषित हो रही है: दस में से नौ लोग प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं।

अमेरिकन इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च की शोधकर्ता उत्तरा बालकृष्णन और माग्डा त्सनेवा के मुताबिक वायु प्रदूषण से मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावाओं के बारे में लोगों को बेहद कम जानकारी है। उन्होंने भारत के लोगों के उपलब्ध डेटा के आधार पर किए गए अध्ययन में पाया कि वायु प्रदूषण के चलते लोगों को सांस की कई तरह की समस्याएं बढ़ गई हैं। वहीं नींद न आना, कमजोरी महसूस होना, डिप्रेशन जैसे मामले भी बढ़े हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जैसे विकासशील देशों में वायु प्रदूषण की वास्तविक स्वास्थ्य लागत का सटीक अनुमान लगाना मुश्किल है। पर्यावरण नीति बनाते समय इसका ध्यान रखना बेहद जरूरी है।

हार्वर्ड और इमोरी यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने अमेरिका में रहने वाले बुजुर्गों पर वायु प्रदूषण के प्रभावों का अध्ययन किया। इसमें उन्होंने अमेरिका की सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत मेडिकेयर में 64 साल से अधिक आयु वर्ग के लगभग 90 लाख लोगों के आंकड़ों पर अध्ययन किया। इसमें 15.2 लाख से ज्यादा लोगों में अवसाद के लक्षण पाए गए। भारत और चीन में हार्ट फेल के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। यहां वायु प्रदूषण कार्डियोवास्कुलर रोग और सांस की बीमारी जैसे रोगों का प्रमुख कारण है। दुनिया भर में हार्ट फेल से होने वाली मौतों के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। अकेले भारत और चीन में विश्व के 46.5 फीसदी नए मामले सामने आए हैं। यह खुलासा यूरोपियन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी में प्रकाशित शोध में हुआ है।

दिमाग पर पड़ता है असर

लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर आदर्श त्रिपाठी कहते हैं कि हवा में मौजूद प्रदूषण का असर सीधे तौर पर हमारे दिमाग पर पड़ता है। कई रिसर्च में पाया गया है कि हवा में मौजूद पर्टिकुलेट मैटर खास तौर पर PM2.5 का स्तर ज्यादा होने पर याददाश्त संबंधित बीमारियां होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। वहीं हवा में प्रदूषण ज्यादा होने से नींद न आना, घबराहट, बेचैनी और डिप्रेशन जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। ऐसे में अगर आपके इलाके में हवा में प्रदूषण ज्यादा है तो बाहर कम निकलें, घर में ऐसे पौधे लगाएं जो प्रदूषण कम करने में मदद करते हों। अगर आप चाहें तो घर में एयर प्यूरीफायर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ध्यान रहे, आपके इलाके में अगर वायु प्रदूषण ज्यादा है और आप लम्बे समय से कमजोरी महसूस कर रहे हों, काम में मन न लग रहा हो या डिप्रेशन फील हो रहा हो तो आप किसी मनोचिकित्सक से तुरंत मिलें।

डिप्रेशन और स्ट्रैस बढ़ाता है प्रदूषण

गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज कन्नौज के प्रोफेसर और मनोचिकित्सक डॉक्टर ओम प्रकाश सिंह कहते हैं कि चाहे ध्वनि प्रदूषण हो या वायु प्रदूषण ये इंसानी दिमाग पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। हवा में प्रदूषण का स्तर, खास तौर पर पर्टिकुलेट मैटर बढ़ने पर व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है। उसे गुस्सा भी ज्यादा आता है। सबसे अधिक मुश्किल तब होती है जब हवा में प्रदूषण ज्यादा होने पर व्यक्ति की फिजिकल एक्टिविटी कम हो जाती है। बाहर कम निकलने या घर में ज्यादा देर तक फोन या किसी अन्य स्क्रीन के सामने ज्यादा समय बिताने से दिमाग में स्ट्रेस लेवल बढ़ जाता है। ऐसे में नींद न आने या बार-बार नींद टूटने की समस्या होती है। वहीं व्यक्ति का टॉलरेंस लेवल भी कम हो जाता है और उसे बहुत जल्द गुस्सा आने लगता है। लम्बे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने पर डिप्रेशन का खतरा भी बढ़ जाता है।

शारदा अस्पताल के जनरल मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डा. अनुराग प्रसाद का कहना है कि वायु प्रदूषण अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और दिल के रोगियों के लिए काफी हानिकारक है। मौजूदा समय में एयरक्वालिटी इंडेक्स लगातार खराब बना हुआ है। घरों में एयर प्यूरीफायर का प्रयोग जरूर करें। वहीं सुबह की सैर करने वालों को सलाह है कि देर शाम और जल्दी सुबह वॉक के लिए न निकलें।

दिल पर असर

दिल्ली स्थित फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट के कार्डियोलॉजिस्ट और कार्डियोलॉजिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट डॉक्टर सुमन भंडारी कहते हैं कि वायु प्रदूषण का सीधा असर दिल पर पड़ता है। इससे डायबिटीज भी बढ़ती है। उन्होंने बताया कि जब से वायु प्रदूषण बढ़ा है दिल के मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है। इसमें हार्ट अटैक के मरीज भी शामिल हैं। कैलाश हॉस्पिटल के सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ पार्थ चौधरी कहते हैं कि ठंड में दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ हार्ट के मरीजों की संख्या भी बढ़ जाती है। सामान्य दिनों में जहां रोज करीब 35 के करीब दिल के मरीज आ रहे थे वहीं पिछले कुछ समय से इन मरीजों की संख्या 45-50 हो गई है। खास बात ये है कि इनमें ज्यादातर नए मरीज हैं। हार्ट अटैक के मामले भी तेजी से बढ़े हैं।

लैंसेट कमीशन ऑन पॉल्यूशन एंड हेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में भारत में वायु प्रदूषण से लगभग 16.7 लाख मौतें हुईं, ये उस साल देश में होने वाली सभी मौतों का 17.8% हिस्सा था। दुनिया की लगभग 91% आबादी उन जगहों पर रहती है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देशों द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक है।

PM 2.5 की शरीर में ज्यादा मात्रा हो जाने से शरीर के कई अंगों में सूजन हो जाती है। यूएन मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ कॉर्डियोलॉजी एंड रिसर्च सेंटर के असोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर राघव बंसल कहते हैं कि कई सारे अध्ययन बताते हैं कि PM 2.5 के हवा में बढ़ने से दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल ये प्रदूषक कण आपकी सांस के जरिए सीधे खून में पहुंच जाता है, जिससे शरीर के कई अंगों में सूजन हो जाती है। दिल की धमनियों पर भी असर होता है। इससे दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। यदि कोई पहले से दिल का मरीज है तो PM 2.5 ज्यादा मात्रा में शरीर में पहुंचने से उसके लिए मुश्किल बढ़ सकती है और उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है।

बच्चों की सांस की नली पर असर

सनार इंटरनेशनल हॉस्पिटल गुड़गांव की पल्मोनोलॉजी विभाग की एचओडी डॉ. बंदना मिश्रा ने बताया कि वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ कई प्रकार की बीमारियां लोगों को होने लगती हैं। दिल्ली-एनसीआर में तो इसकी दिक्कत ज्यादा देखने को मिलती है। इस प्रदूषण का सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ता है। 15 साल की उम्र से कम के बच्चों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अभी हफ्तेभर के दौरान मेरी ओपीडी में रोजाना सांस की तकलीफ के 45-50 मरीज आ रहे हैं। इनमें बच्चों की संख्या करीबन आधी है। सामान्य दिनों में रोजाना 30-35 मरीज आते थे, जिनमें 4-5 ही बच्चे होते थे। प्रदूषण बढ़ने से बच्चों के सांस लेने की नली प्रभावित हो रही है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि रोजाना 30-35 सिगरेट पीने वाले स्मोकर को जो नुकसान सांस की नली में होता है, वैसा ही बच्चों को इस वायु प्रदूषण से हो रहा है। इनकी श्वसन नली सिकुड़ रही है। इसका असर उनके फेफड़े पर पड़ता है। उन्हें अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, निमोनिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों के ब्रेन और हार्ट में इसका असर होने से उनका मानसिक व शारीरिक विकास दोनों प्रभावित होता है।

भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में सामने आया है कि पैदा होने वाले या पैदा हो चुके बच्चों का जीवन वायु प्रदूषण के कारण खतरे में है। प्रदूषण के चलते ऐसे बच्चों की मृत्यु दर बढ़ी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक भारत में नवजात बच्चों की मृत्यु दर पर लगाम लगाने के लिए जरूरी है कि तत्काल वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए कदम उठाए जाएं। अध्ययन में सामने आया है कि हवा में बढ़ते प्रदूषण का असर बच्चों में लिंग के आधार पर अलग अलग है।

रिसर्च जनरल www.sciencedirect.com में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक हवा में बढ़ते PM2.5 कण पूरी दुनिया में चिंता का विषय बन चुके हैं। वैज्ञानिकों ने भारत में हवा में बढ़ते PM2.5 के स्तर का पैदा होने वाले बच्चों या हाल ही में पैदा हुए बच्चों की सेहत पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया है। वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन में पाया कि PM2.5 शिशु मृत्यु दर को मुख्य रूप से नवजात मृत्यु दर को बढ़ाता है। हवा में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर PM2.5 की मात्रा बढ़ने से नवजात बच्चों में मृत्युदर बढ़ जाती है। अध्ययन में पाया गया कि हवा में PM2.5 बढ़ने से नवजात लड़कों की तुलना में लड़कियों में मृत्यु दर अधिक थी।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार 10 में से एक बच्चे (पांच वर्ष से कम) की मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है। 2022 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 3,61,000 बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के कारण सांस से जुड़ी बीमारियों से हुई। 15 साल से कम उम्र के विश्व के 93 फीसदी करीबन 18 करोड़ बच्चे रोजाना जहरीली हवा में सांस लेते हैं। इससे उनका शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होता है। 2019 में दुनिया में 42 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले हो गई। बाहरी और घरेलू प्रदूषण दोनों के प्रभाव को मिला दिया जाए तो दुनिया में 2019 में 67 लाख लोगों की आकस्मिक मौत हुई। इनमें से 89 फीसदी मौतें कम व मध्य आय वाले देशों में हुई। इसमें भी सबसे अधिक संख्या दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में थी। प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े पर्यावरण खतरों में से एक है। विश्व की 99 फीसदी आबादी ऐसी जगहों में रह रही है, जहां हवा की क्वालिटी मानक से खराब है। वायु प्रदूषण के स्तर को अगर कम किया जाए तो हार्ट अटैक, दिल की बीमारी, फेफड़ों के संक्रमण व कैंसर, अस्थमा के साथ सांस संबंधित बीमारियों के बोझ को कम किया जा सकता है।

लड़कियों की हाईट पर असर

क्रॉप और बायोमास बर्निंग का असर लड़कियों की सेहत पर बेहद खतरनाक पड़ रहा है। इसकी वजह से लड़कियों की हाईट कम हो रही है। यह स्टडी आईआईटी दिल्ली के वैज्ञानिक सागनिक डे और इंडियन स्टेटिस्टिकल सेंटर की प्राची सिंह द्वारा की गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक बायोमास बर्निंग का नकारात्मक असर लड़कियों की शुरुआती अवस्था में होता है। जो लड़कियां बायोमास बर्निंग के अधिक संपर्क में आती हैं उनकी हाईट में 1.07 सेमी या 0.7 फीसद की कमी देखी गई। रिपोर्ट में यह भी देखने में आया कि गर्भावस्था के दौरान बायोमास बर्निंग के अधिक संपर्क में आने वाले शिशु की हाईट में 1.70 सेमी. (1.13 फीसद) की कमी आती है। सागनिक डे की रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि जिनकी वित्तीय स्थिति बेहतर होती है उन टीनेजर लड़कियों की हाईट अधिक होती है। यही नहीं माता के शैक्षिक स्तर का संबंध भी हाईट से पाया गया।

रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में होने वाली बायोमास बर्निंग की वजह क्रॉप बर्निंग है तो असम में इसकी वजह जंगलों में लगने वाली आग है। पंजाब में अक्तूबर और नवंबर के समय बड़ी तादाद में क्रॉप बर्निंग होती है। गेहूं की फसल के कारण अप्रैल और मई में भी क्रॉप बर्निंग काफी होती है।

रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर भारत के राज्य बायोमास बर्निंग से अधिक प्रभावित होते हैं। पंजाब, हरियाणा, असम, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, मध्य प्रदेश, त्रिपुरा और नागालैंड इस समस्या से प्रभावित राज्य है।

बायोमास बर्निंग : बायोमास बर्निंग प्रदूषण का बड़ा स्रोत है। यह कॉर्बन डाइ ऑक्साइड, कॉर्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइ ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइ़ड और पीएम कण उत्सर्जित करता है। इनका मानव शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इससे कार्डियक समस्या, श्वास से जुड़ी बीमारियां आदि का खतरा होता है। भारत में वायु प्रदूषण के बड़े कारण ट्रांसपोर्टेशन, कोल आधारित पावर प्लांट, एग्रीकल्चर बर्निंग, जंगलों की आग, इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन आदि हैं। एग्रीकल्चर बर्निंग उत्तर भारत के कई राज्यों में अधिक है। बायोमास बर्निंग भी देश के काफी राज्यों में बड़ी मात्रा में है।

लिवर के लिए भी बढ़ा खतरा

पूरी दुनिया में फैटी लिवर रोग (एमएएफएलडी) एक बड़ी स्वास्थ्य समय बन गया। भारत में भी पिछले कुछ सालों में फैटी लिवर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि खाने पीने में अनियमितता और खराब होते लाइफस्टाइल के अलावा बढ़ता वायु प्रदूषण भी फैटी लिवर की बीमारी को तेजी से बढ़ा रहा है। यूरोपियन एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ द लिवर की आधिकारिक पत्रिका, जर्नल ऑफ हेपेटोलॉजी में छपी एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों का दावा है कि वायु प्रदूषण की समस्या ने फैटी लिवर की समस्या को बढ़ावा दिया है। पूरी दुनिया में 1980 के दशक से फैटी लिवर के मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है, जो वर्तमान में वैश्विक आबादी का एक चौथाई तक पहुंच गई है। एशिया में 2012 और 2017 के बीच यह तेजी से बढ़ा है। इस दौरान इसके मरीजों में लगभग 40% तक बढ़त देखी गई है। लीवर की बढ़ती बीमारी से लिवर सिरोसिस और यकृत कैंसर, यकृत प्रत्यारोपण और यकृत से संबंधित मृत्यु जैसे अंतिम चरण के यकृत रोगों में भी बढ़ोतरी देखी गई है।

प्रदूषण का असर किडनी पर

नई शोध रिपोर्ट में सामने आया है कि किडनी मरीजों के लिए प्रदूषण का गंभीर स्तर काफी नुकसानदायक है। रिपोर्ट के अनुसार गुर्दे की बीमारी वाले लोगों में वायु प्रदूषण का हृदय संबंधी प्रभाव हानिकारक हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण हृदय और गुर्दे की जटिलताओं में एक बड़ा कारक है, लेकिन इसे कार्डियोरेनल घटनाओं से जोड़ने वाले तंत्र को अच्छी तरह से समझा नहीं गया है। अमेरिका में केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह आकलन करने की कोशिश की कि क्या गैलेक्टिन 3 स्तर (मायोकार्डियल फाइब्रोसिस) क्रोनिक किडनी रोग के साथ और बिना उच्च रक्तचाप वाले रोगियों में वायु प्रदूषण के जोखिम से जुड़ा है। वायु प्रदूषण का सीधा संबंध लोगों में सीकेडी के साथ मायोकार्डियल फाइब्रोसिस से है। मायोकार्डियल फाइब्रोसिस तब होती है, जब दिल की फाइब्रोब्लास्ट नामक कोशिका कोलेजेनेस स्कार टिशू पैदा करने लगती हैं। इससे दिल की गति रुकने के साथ-साथ मौत होने की भी आशंका रहती है। तारिक ने कहा कि वायु प्रदूषण को कम करने का लाभ सीकेडी पीड़ितों को होगा, क्योंकि उनमें दिल की बीमारी की खतरा कम हो जाएगा।

आंखो पर असर

शारदा अस्पताल की आप्थेमोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डा. शिप्रा गुप्ता का कहना है कि बढ़ते प्रदूषण की वजह से आंखों में कई तरह की समस्या देखी जा रही है। इसमें सूखापन, आंखों में खुजली होना, कड़कड़ाहट होना आदि। इससे बचने के लिए घर से निकलने से पहले चश्मा पहनें। लुब्रिकेटिंग आईड्रॉप्स डालें। आंखों को अच्छे से धोएं। यदि संभव हो तो आरओ वाटर से धोएं। ज्यादा समस्या बढ़ने पर अपने नजदीकी चिकित्सक से संपर्क करें।

बुजुर्ग अधिक रखें ध्यान

शारदा अस्पताल के डिपॉर्टमेंट ऑफ क्रिटिकल केयर के कंसलटेंट डा. अंकित का कहना है कि मौजूदा समय में दिल्ली का एयरक्वालिटी इंडेक्स काफी खराब है। बुजुर्ग अपनी सेहत का खास ख्याल रखें। ज्यादा जरूरी होने पर ही घर से बाहर निकलें। बुजर्ग लोगों की इम्युनिटी कम होती है। कोई दूसरी बीमारी होने पर प्रदूषण से अधिक दिक्कत हो सकती है। पानी अधिक पिएं। आराम करें। एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें। खुले में कसरत और वॉक करने से पहरेह करें। एलोविरा जैसे प्लांट घर में लगाएं।

वायु प्रदूषण के चलते हुई इतनी बीमारियां

नेशनल हेल्थ एकाउंट डेटा के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2019 में हेल्थकेयर पर होने वाला खर्च लगभग 103.7 बिलियन डॉलर का रहा। इसमें लोगों को होने वाली बीमारियों में वायु प्रदूषण के चलते होने वाली बीमारियां लगभग 11.5 फीसदी रहीं। इन पर होने वाला खर्च लगभग 11.9 बिलियन डॉलर रहा। मेडिकल जनरल लांसेट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में लगभग एक करोड़ साठ लाख लोगों को वायु प्रदूषण के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी ।

जहरीले तत्वों के मिश्रण से खतरनाक हो जाता है प्रदूषण

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर अप्लायड सिस्टम एनालिसिस के पॉल्यूशन मैनेजमेंट रिसर्च ग्रप के सीनियर रिसर्च स्कॉलर पल्लव पुरोहित ने जागरण प्राइम को बताया कि वातावरण में सबसे अधिक घातक अजैविक एयरोसॉल का निर्माण बिजली घरों, उद्योगों और ट्रैफिक से निकलने वाली सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रोजन ऑक्साइड और कृषि कार्यों से पैदा होने वाले अमोनिया के मेल से होता है। 23 फीसद प्रदूषण की वजह यह कॉकटेल है।

पूरे देश की समस्या बना प्रदूषण

सीएसई के विवेक चट्टोपध्याय के मुताबिक प्रदूषण आपकी उत्पादकता को प्रभावित करता है क्योंकि अगर आप सेहतमंद नहीं होंगे तो कार्यक्षेत्र में बेहतर नहीं कर पाएंगे। विवेक कहते हैं कि वायु प्रदूषण को घटाने के लिए सरकार अगर सही कदम उठाए और इसको नियंत्रित कर सके तो इससे जीडीपी को होने वाले नुकसान को काफी कम किया जा सकता है।

क्या होते हैं पर्टिकुलेट मैटर

पर्टिकुलेट मैटर (PM) या कण प्रदूषण वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है। हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से नहीं देख सकते हैं। कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है। कण प्रदूषण में पीएम 2.5 और पीएम 10 शामिल हैं जो बहुत खतरनाक होते हैं। पर्टिकुलेट मैटर विभिन्न आकार के होते हैं और यह मानव और प्राकृतिक दोनों स्रोतों के कारण हो सकता है। स्रोत प्राइमरी और सेकेंडरी हो सकते हैं। प्राइमरी स्रोत में ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, धूल और खाना पकाने का धुआं शामिल हैं। सेकेंडरी स्रोत सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रिया हो सकती है। इनके अलावा जंगल की आग, लकड़ी के स्टोव, उद्योग का धुआं, निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल वायु प्रदूषण आदि अन्य स्रोत हैं। ये कण आपके फेफड़ों में चले जाते हैं जिससे खांसी और अस्थमा के दौरे पड़ सकते हैं। उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक और भी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बन जाता है।

दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटफिक कमेटी के चेयरमैन डा. नरेंद्र सैनी कहते हैं कि जब से हवा में प्रदूषण बढ़ा है सांस के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इलाज के लिए अचानक से आने वाले मरीजों में सांस की बीमारी, फेफड़े में गंभीर संक्रमण, गले में खराश और इंफेक्शन सहित श्वसन तंत्र में संक्रमण के मरीजों की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ी है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम आईसीएमआर बेंगलुरु के डायरेक्टर डॉ. प्रशांत माथुर कहते हैं कि प्रदूषण भी इसमें बड़ा रोल अदा कर रहा है। प्रदूषण में सिर्फ प्रदूषित हवा ही नहीं है बल्कि आसपास धूम्रपान करनेवाला वातावरण, फैक्टरी और धुआं है। इसके अलावा घरों के अंदर होने वाले प्रदूषण इसमें लकड़ी-केरोसिन का उपयोग, किचन में निकलने वाले केमिकल भी हैं।