नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी।   पानी के मामले में भारत, दुनिया में सबसे अधिक दबाव झेल रहे देशों में एक है। देश के 40% से अधिक क्षेत्रों में सूखे का संकट है। 2030 तक बढ़ती आबादी के कारण देश में पानी की मांग अभी हो रही आपूर्ति के मुकाबले दोगुनी हो जाएगी। अपशिष्ट जल के शोधन और पुन: उपयोग की प्रभावी रणनीति नहीं होने की वजह से एक अरब से अधिक की आबादी, अपनी घरेलू, कृषि और औद्योगिक जरूरतों के लिए भूजल आपूर्ति पर निर्भर होती जा रही है। भारत में जितना सीवेज या अपशिष्ट जल निकलता है उसमें से सिर्फ 16.8 प्रतिशत की सफाई करके उसका दोबारा इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, भूजल तेजी से घटता जा रहा है।

विश्व स्वाथ्य संगठन के मुताबिक़ एक व्यक्ति को अपने ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हर दिन करीब 25 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। भारत के बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई में नगर निगम द्वारा निर्धारण 150 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से भी ज्यादा पानी दिया जाता है। दिल्ली प्रति व्यक्ति पानी के खपत के लिहाज से दुनिया में पहले स्थान पर है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के घरेलू दूषित पानी से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि जो पानी साफ किया जाता है उसमें से सिर्फ 5 प्रतिशत पानी का दोबारा इस्तेमाल किया जाता है। जल संरक्षण के लिए कदम उठाए जाने के साथ ही ग्रे वाटर या घर में इस्तेमाल हो चुके पानी को साफ कर उसके फिर से इस्तेमाल किए जाने से जल संकट की स्थिति से निपटने में राहत मिल सकती है। रिसर्च गेट में छपे एक रिसर्च जर्नल के मुताबिक आवासीय भवनों में हल्के भूरे जल गैर-पेय घरेलू रंग के इस्तेमाल हो चुके पानी को फिर से साफ कर शौचालय में फ्लशिंग, घर की सफाई और बगीचे की सिंचाई को कुल घरेलू मांग की 35% जरूरत को पूरा किया जा सकता है।

दिल्ली में हालात नहीं सुधर रहे, बीमारियों का जोखिम भी

आंकड़ों के अनुसार 2014 और 2020 के बीच चालू सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की संख्या दोगुनी हो गई, लेकिन जल उपचार की क्षमता अभी भी गंभीर रूप से कम है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार , भारत में सभी प्रांतों में प्रतिदिन 72.4 बिलियन लीटर अपशिष्ट जल उत्पन्न होता है, जिसमें महाराष्ट्र (9.1 बिलियन), उत्तर प्रदेश (8.3 बिलियन), तमिलनाडु (6.4 बिलियन) और गुजरात (5.0 बिलियन) लगभग 40 प्रतिशत अपशिष्ट जल के लिए जिम्मेदार हैं। 1,093 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता प्रतिदिन केवल 26.9 बिलियन लीटर अपशिष्ट जल की थी, जबकि 2020/2021 के नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार लगभग 400 प्लांट या तो चालू नहीं हैं या निर्माणाधीन हैं। इसका मतलब है कि केवल 37 प्रतिशत सीवेज का ही उपचार किया जा रहा है, जिससे संक्रामक बीमारियों और दूषित भोजन और पीने के पानी का जोखिम बढ़ रहा है।

ग्रे वाटर या वेस्ट वाटर

घरों में नहाने, सिंक में बर्तन धोने, रसोई, वाशिंग मशीन में या कपड़े धोने से उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट जल को ग्रे वाटर कहा जाता है। इस ग्रे वॉटर को भौतिक, रासायनिक, जैविक और प्राकृतिक तरीकों से साफ कर फिर से इस्तेमाल में लाया जा सकता है। ग्रे वाटर को उपयुक्त उपचार के बाद शौचालय फ्लशिंग, बगीचे और पौधों की सिंचाई, कृषि सिंचाई, फर्श धोने, कार धोने, जमीन को रिचार्ज करने आदि के लिए फिर से उयोग किया जा सकता है। रिसर्च गेट में छपे एक रिसर्च जर्नल के मुताबिक आवासीय भवनों में हल्के भूरे जल गैर-पेय घरेलू रंग के इस्तेमाल हो चुके पानी को फिर से साफ कर शौचालय में फ्लशिंग, घर की सफाई और बगीचे की सिंचाई को कुल घरेलू मांग की 35% जरूरत को पूरा किया जा सकता है। मिश्रित ग्रे वाटर के मामले में, उपचारित पानी का 20-25% अतिरिक्त हिस्सा ग्राउंड वाटर रीचार्ज, सिंचाई या कुछ अन्य गैर-पेय प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। अध्ययन से पता चलता है कि उपचारित ग्रे वाटर को पुनर्चक्रित करके और उसका पुनः उपयोग करके हर दिन बहुत सारा ताजा पानी बचाना संभव है।

दुनिया भर में वेस्ट वाटर के 56% का ही ट्रीटमेंट किया जा सका

विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार , 2020 में दुनिया के घरेलू अपशिष्ट जल प्रवाह का केवल 56 प्रतिशत ही सुरक्षित रूप से उपचारित किया गया था। इसका मतलब है कि दुनिया 2030 तक सभी के लिए पानी और स्वच्छता सुनिश्चित करने के संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य को पूरा करने के लिए काफी हद तक पटरी से उतर गई है। अपशिष्ट जल उपचार अपशिष्ट जल (सीवेज) से प्रदूषकों को हटाने की प्रक्रिया है, ताकि इसे पर्यावरणीय क्षति के बिना प्रकृति में वापस लौटाया जा सके।

उत्तरी अमेरिका और यूरोप में 80 प्रतिशत घरेलू अपशिष्ट जल प्रवाह को सुरक्षित रूप से उपचारित किया गया है और उप-सहारा अफ्रीका और मध्य और दक्षिणी एशिया में 30 प्रतिशत से भी कम सुरक्षित रूप से उपचारित किया गया है। यह प्रवृत्ति उन क्षेत्रों के बीच असमानताओं को दर्शाती है, जहां साइट पर सेप्टिक टैंक की तुलना में सीवर कनेक्शन की अधिक पहुंच है।

राजधानी में नाले

राजधानी में कुल 22 ऐसे नाले हैं, जिनका गंदा पानी सीधे यमुना नदी में गिरता है। इनमें कुछ ऐसे भी नाले हैं, जिनसे सबसे ज्यादा गंदा पानी यमुना में पहुंचता है। इनमें आईएसबीटी नाले से 35 एमएलडी, दिल्ली गेट नाले से 90 एमएलडी, सेन नर्सिंग होम नाले से 66 एमएलडी, बारापुला नाले से 140 एमएलडी और शाहदरा नाले से करीब 500 एमएलडी सीवेज वॉटर यमुना में जा रहा है जिससे यमुना काफी प्रदूषित हो रही है।

भारत में शोधित पानी की मात्रा 3,517 करोड़ क्यूबिक मीटर से ज्यादा रहने का अनुमान

भारत में पैदा हो रहे सीवेज और उसकी शोधन क्षमता के आधार पर देखें तो 2050 तक देश में शोधित पानी की कुल मात्रा 3,517 करोड़ क्यूबिक मीटर से ज्यादा रहने का अनुमान है। काउंसिल आन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘रियूज आफ ट्रीटेड वेस्टवाटर इन इंडिया’ में सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक इस सीवेज के उपचार से जितना पानी मिलेगा, उससे दिल्ली से भी 26 गुना बड़े क्षेत्र की सिंचाई की जा सकती है। यह न केवल सिंचाई के लिए भूजल पर बढ़ते दबाव को कम करेगी साथ ही इससे कृषि पैदावार में भी वृद्धि होगी।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रल बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा 2021 में जारी आंकड़ों को देखें तो देश में शहरी क्षेत्रों से हर दिन करीब 7,236.8 करोड़ लीटर सीवेज पैदा हो रहा है। उसमें से केवल 2,023.6 करोड़ लीटर को ही ट्रीट किया जा रहा है।

देश में सीवेज ट्रीटमेंट की कुल क्षमता 44 फीसदी है, लेकिन विडंबना देखिए की देश में कुल सीवेज का केवल 28 फीसदी ही ट्रीट हो रहा है, जबकि बाकी गंदे पानी को ऐसे ही नदियों, झीलों और जल स्रोतों में डाला जा रहा है, जो उनके भी प्रदूषण का कारण बन रहा है। यदि देश के अधिकांश राज्यों को देखें तो उनकी सीवेज उपचार क्षमता, पैदा हो रहे सीवेज के 50 फीसदी से भी कम है।

गंभीर समस्या बन चुका है बढ़ता जलसंकट

रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक देश में 15 प्रमुख नदी घाटियों में से 11 को जल संकट का सामना करना होगा। ऐसे में पानी की मांग और पूर्ति में मौजूद अंतर को भरने के लिए वैकल्पिक जल स्रोतों को खोजना जरूरी है। आंकड़े दर्शाते हैं कि देश में सीवेज की बड़ी मात्रा को ऐसे ही जल स्रोतों में डाला जा रहा है जो गंभीर समस्याएं पैदा कर रहा है। ऐसे में सीईईडब्ल्यू द्वारा जारी इस रिपोर्ट का सुझाव है कि अपशिष्ट जल को भारत के जल संसाधनों का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहिए। साथ ही रिपोर्ट में इस उपचारित अपशिष्ट जल को जल प्रबंधन से जुड़ी सभी नीतियों, योजनाओं और नियमों में शामिल करने की सिफारिश की गई है। इतना ही नहीं दूषित जल के सुरक्षित निर्वहन और पुनः उपयोग दोनों के लिए जल गुणवत्ता मानकों को बेहतर तरीके से परिभाषित करने की भी आवश्यकता है। इसके अलावा शोधित दूषित जल के पुनः उपयोग के लिए शहरी स्थानीय निकायों की भूमिका और जिम्मेदारी भी तय करने की जरूरत है।

अब तक, चेन्नई, एकमात्र प्रमुख भारतीय शहर है, जहां इस दिशा में कदम आगे बढ़े हैं। चेन्नई ने 2019 की गर्मियों में बड़े जल संकट का सामना किया था। इसके बाद, इस तरह के संकट से निपटने के लिए, चेन्नई के शहरी जल प्राधिकरण ने पानी के ट्रीटमेंट यानी शोधन और पुन: उपयोग के लिए एक प्रभावी बिजनेस मॉडल विकसित किया है। बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत के हर दूसरे बड़े शहर को इस बहुमूल्य संसाधन के पुन: उपयोग को सीखने से पहले चेन्नई की तरह के संकट को झेलना होगा?