प्राइवेट अस्पतालों में दो में से एक बच्चे का जन्म सी-सेक्शन से, भारत के हर राज्य में आदर्श दर से ज्यादा सी-सेक्शन
ईआईटी मद्रास में मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं द्वारा की गई स्टडी रिपोर्ट के अनुसार 2016 में सी-सेक्शन के मामले जहां 17.2 फीसद हुए करते थे वहीं अब यह मामले 21.5 फीसद हो गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 28 में सी-सेक्शन के लिए आदर्श दर की 15% से अधिक सी-सेक्शन हुए हैं।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/ संदीप राजवाड़े
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी मद्रास) के शोधकर्ताओं की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि बीते पांच सालों में सी-सेक्शन डिलीवरी के मामलों में तेजी आई है। आईआईटी मद्रास में मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं द्वारा की गई स्टडी रिपोर्ट के अनुसार 2016 में सी-सेक्शन के मामले जहां 17.2 फीसद हुए करते थे वहीं अब यह मामले 21.5 फीसद हो गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 28 में सी-सेक्शन के लिए "आदर्श दर" की 15% से अधिक सी-सेक्शन हुए हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में 21% सी-सेक्शन प्रसव, और निजी अस्पतालों और दक्षिण में 40% से अधिक प्रसव उन महिलाओं पर किए गए जिनकी गर्भावस्था को कम जोखिम के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
इस अध्ययन रिपोर्ट को आईआईटी मद्रास की वार्शिनी नीति मोहन और डॉ. पी शिरिषा, शोध विद्वान, डॉ. गिरिजा वैद्यनाथन और प्रोफेसर वी.आर. मुरलीधरन ने तैयार किया है। अध्ययन के निष्कर्ष बीएमसी प्रेग्नेंसी एंड चाइल्डबर्थ नामक सुप्रसिद्ध सहकर्मी-समीक्षा पत्रिका में प्रकाशित किए गए।
सिजेरियन सेक्शन (सी-सेक्शन) डिलीवरी एक शल्य प्रक्रिया है जिसमें मां के पेट में चीरा लगा कर एक या अधिक बच्चों को जन्म दिया जाता है। यह मां-बच्चे के लिए जीवनदायी है यदि चिकित्सा विज्ञान के अनुसार ऐसा करना आवश्यक हो। हालांकि यदि सी-सेक्शन आवश्यक नहीं हो तो इसके स्वास्थ्य संबंधी कई बुरे परिणाम हो सकते हैं। यह एक आर्थिक बोझ है और इसका सार्वजनिक स्वास्थ्य संसाधनों पर भी बोझ पड़ता है।
कई कारणों से सी-सेक्शन आवश्यक होता है (जैसे कि मां की उम्र 18 वर्ष से कम या 34 वर्ष से अधिक होना, दो बच्चों के जन्म के बीच 24 महीने से कम अंतर होना या मां का चौथा या उसके भी बाद का बच्चा होना) और ऐसे मामलों में बच्चों को जन्म देने के परिणाम बुरे सकते हैं। ऐसे कारणों को जन्म देने में अधिक खतरा माना जाता है।
तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ के तुलनात्मक अध्ययन में देखा गया कि यद्यपि गर्भावस्था संबंधी समस्याएं और जन्म देने में अधिक खतरा दोनों के मामले छत्तीसगढ़ में अधिक थे लेकिन सी-सेक्शन का चलन तमिलनाडु में अधिक था।
निजी अस्पतालों में सी-सेक्शन के मामले अधिक
आईआईटी मद्रास के मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर वी आर मुरलीधरन ने इन निष्कर्षों की अहमियत और देश की स्वास्थ्य नीति बनाने वालों के लिए इसका अर्थ विस्तार से बताया, ‘‘बच्चों का जन्म सी-सेक्शन से होने का सबसे बड़ा कारण बच्चों का जन्म स्थान (सरकारी या फिर निजी अस्पताल) था। यह एक बड़ा खुलासा है जिसका अर्थ यह है कि सर्जरी करने का कारण ‘क्लिनिकल’ नहीं था। पूरे भारत और छत्तीसगढ़ के गैर-गरीब तबकों में सी-सेक्शन चुनने की अधिक संभावना थी, जबकि तमिलनाडु का मामला चौंकाने वाला था जहां गरीब तबकों की महिलाओं का निजी अस्पतालों में सी-सेक्शन होने की अधिक संभावना सामने आई।’’
पूरे भारत में 2021 तक के पिछले पांच वर्षों में सी-सेक्शन के मामले 17.2 प्रतिशत से बढ़ कर 21.5 प्रतिशत हो गए। निजी क्षेत्र के अस्पतालों के लिए ये आंकड़े 43.1 प्रतिशत (2016) और 49.7 प्रतिशत (2021) हैं जिसका अर्थ यह है कि निजी क्षेत्र के अस्पतालों में दो में से एक बच्चे का जन्म सी-सेक्शन से हुआ।
इस बढ़ोतरी के कई कारण हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने यह देखा कि शहरी क्षेत्रों की अधिक शिक्षित महिलाओं में सी-सेक्शन से बच्चों को जन्म देने की संभावना अधिक थी, जो यह संकेत देता है कि महिलाओं के अधिक आत्मनिर्भर होने और बेहतर स्वास्थ्य सेवा सुलभ होने जैसे कारणों से सी-सेक्शन का चलन बढ़ा है।
सी-सेक्शन और वजन बढ़ने का संबंध
महिलाओं का वजन अधिक और उम्र 35-49 वर्ष होने पर सिजेरियन डिलीवरी की संभावना उन महिलाओं से दोगुनी देखी गई जिनका वजन कम और उम्र 15-24 वर्ष थी। अधिक वजन की महिलाओं के इस तरह बच्चों को जन्म देने का अनुपात 3 प्रतिशत से बढ़ कर 18.7 प्रतिशत हो गया, जबकि 35-49 वर्ष की महिलाओं के लिए यह अनुपात 11.1 प्रतिशत से थोड़ा कम 10.9 प्रतिशत देखा गया।
गौरतलब है कि गर्भावस्था संबंधी समस्याओं से परेशान महिलाओं का अनुपात 42.2 प्रतिशत से घट कर 39.5 प्रतिशत हो गया। इसका अर्थ यह है कि सी-सेक्शन डिलीवरी की दर बढ़ने का मोटे तौर पर ‘गैर-क्लिनिकल’ कारण था। दरअसल ऐसे कई ‘गैर-क्लिनिकल’ कारण हो सकते हैं, जैसे महिलाओं की निजी पसंद, सामाजिक-आर्थिक स्तर, शिक्षा और फिर चिकित्सा में पारंपरिक सोच रखने वाले चिकित्सक जो जोखिम उठाने से बचते हैं।
2016-2021 के बीच अध्ययन की अवधि में पूरे भारत में कुल मिला कर निजी क्षेत्र के अस्पतालों में महिलाओं के सी-सेक्शन होने की संभावना चार गुनी अधिक थी। छत्तीसगढ़ में महिलाओं के निजी अस्पतालों में सी-सेक्शन से डेलिवरी की संभावना दस गुनी अधिक थी, जबकि तमिलनाडु में तीन गुनी अधिक संभावना थी।
शोधकर्ताओं ने यह तथ्य सामने रखा कि सरकारी अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण ऐसा हो सकता है। छत्तीसगढ़ में 2021 में प्रसूति रोग विशेषज्ञों और स्त्री रोग विशेषज्ञों के मंजूर पदों में 77 प्रतिशत पद पर कोई नियुक्ति नहीं थी।
इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पूर्व शोधकर्ताओं ने 2015-2016 और 2019-21 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों का मिलान और विश्लेषण किया। एनएफएचएस एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण है जो पूरे भारत में जनसंख्या और स्वास्थ्य के सूचकों, खास कर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य का डेटा तैयार करता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सी-सेक्शन की दर 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत रखने की अनुशंसा की है।
शोधकर्ताओं का सुझाव है कि ‘‘हम सी-सेक्शन की सीमा लागू करने में विशेष सावधानी बरतें क्योंकि विभिन्न श्रेणियों के बीच कई भिन्नताएं हैं और जिन राज्यों की आबादी अधिक चलायमान है उनमें सी-सेक्शन कराने की जरूरत जैसा कारण अधिक प्रचलित हो सकता है। तमिलनाडु में निजी क्षेत्र के अस्पतालों में सी-सेक्शन कराने वाली गरीब महिलाओं का अनुपात काफी अधिक होना चिंताजनक है। मसला यह है कि क्या ऐसा करना क्लिनिकली आवश्यक है? इस पर अधिक विश्लेषण और सुधार करने की जरूरत है।
ये रिपोर्ट भी करती है तस्दीक
कॉउन्सिल फॉर सोशल डेवलपमेंट (सीएसडी) द्वारा तेलंगाना पर जारी एक कम्पेंडियम से पता चला है कि राज्य में 2019-20 के दौरान करीब 60.7 फीसदी नवजातों के जन्म सी-सेक्शन की मदद से हुए थे। एनएफएचएस -5 के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह आंकड़ा 58.4 फीसदी और शहरों में 64.3 फीसदी था।
इसी तरह गोवा में आपरेशन से जन्म लेने वाले बच्चों की जो तादाद पिछली बार एनएफएचएस-4 में 31.4 फीसदी थी वो एनएफएचएस-5 में बढ़कर 39.5 फीसदी पर पहुंच गई थी।
वहीं आंध्र प्रदेश में पिछली बार के सर्वेक्षण में सिजेरियन का जो आंकड़ा 40.1 फीसदी था, वो इस बार 42.4 फीसदी पर पहुंच गया। अरुणाचल प्रदेश में भी यह 8.9 फीसदी से बढ़कर 14.8 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 9.9 फीसदी से बढ़कर 15.2 फीसदी और असम में 13.4 फीसदी से बढ़कर 18.1 फीसदी हो गया है।
केरल में भी सिजेरियन डिलीवरी का आंकड़ा 35.8 फीसदी से बढ़कर 38.9 फीसदी पर पहुंच गया है। वहां निजी हेल्थ क्लिनिकों और सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों, दोनों जगहों पर सिजेरियन की तादाद बढ़ी है। हालांकि अन्य राज्यों के विपरीत नागालैंड और मिजोरम में इसके विपरीत प्रवत्ति देखने को मिली है, जहां सिजेरियन डिलीवरी की तादाद घटी है। गौरतलब है कि नागालैंड में यह आंकड़ा 5.8 फीसदी से घटकर 5.2 फीसदी जबकि मिजोरम में 12.7 फीसदी से घटकर 10.8 फीसदी पर पहुंच गया है।