कोरोना से ठीक हुए मरीजों में हार्ट अटैक और मौत ज्यादा होने की बात गलतः पटना एम्स की रिसर्च
कोरोना से ठीक हुए मरीजों में हार्ट अटैक व ब्लड क्लॉटिंग के साथ मौत बढ़ने को लेकर फैले भ्रम व अफवाह की सच्चाई का पता लगाने के लिए पटना एम्स ने स्टडी की। उनके आकलन में कोरोना पीड़ितों में ऐसे मामले नहीं बढ़े हैं। अन्य कुछ तकलीफें जरूर आईं हैं।
नई दिल्ली, संदीप राजवाड़े। कोरोना से ठीक हुए मरीजों में क्या हार्ट अटैक के मामले बढ़े हैं.. क्या उनमें ब्लड क्लॉटिंग की समस्या ज्यादा आई है.. कोरोना से बचने के बाद भी क्या पीड़ितों की इन बीमारियों से मौत की संख्या बढ़ी है.. इस तरह की अफवाहें कोरोना की लहर के दौरान फैली थीं। इनकी सच्चाई पता लगाने के लिए पटना एम्स ने स्टडी की है। इसमें डॉक्टरों ने पाया कि कोरोना से स्वस्थ हुए मरीजों की बाद में जल्दी मौत की संख्या बहुत कम है। रिसर्च में शामिल 457 मरीजों में से सिर्फ 10 की मौत हुई, उनमें भी निधन का कारण अलग-अलग था।
रिसर्च में निकले निष्कर्ष को लेकर पटना, गुरुग्राम और रायपुर के डॉक्टरों से बात की गई। उनका कहना है कि कोरोना से ठीक हुए मरीजों में हार्ट अटैक की संख्या बढ़ने का भी कोई सबूत नहीं है। यह जरूर है कि कुछ मरीजों को थकान, सांस फूलने, नींद में गड़बड़ी जैसी समस्याएं हुईं और कुछ में ये अभी तक बनी हैं। लोगों में तनाव बढ़ने के भी केस मिले हैं। इसलिए विशेषज्ञों का कहना है कि हार्ट अटैक और ब्लड क्लॉटिंग से होने वाली समस्याओं से बचने के लिए लोगों को नियमित कसरत तथा योग करने के साथ समय-समय पर ब्लड प्रेशर, शुगर और कोलेस्ट्रॉल की जांच करानी चाहिए।
पटना एम्स के श्वसन रोग विभाग के डॉ. दीपेंद्र कुमार राय और एनेस्ठिसिया विभाग के डॉ. निशांत सहाय ने कोरोना से ठीक हुए मरीजों की बाद में मौत और बीमारी के अन्य लक्ष्णों की स्टडी की। डॉ. दीपेंद्र ने बताया कि इस रिसर्च का मुख्य उद्देश्य कुछ अफवाहों की सच्चाई का पता लगाना था। लोगों में जो भ्रम था कि कोरोना के कारण ज्यादा हार्ट अटैक हो रहे हैं, ब्लड क्लॉटिंग से लकवा मार रहा है। हम पता लगाना चाहते थे कि क्या सही में ऐसा हो रहा है। यह स्टडी इंडियन जर्नल ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन में प्रकाशित हुई है।
पटना एम्स में जुलाई-अगस्त 2020 के दौरान के कोविड के 984 मरीज भर्ती हुए, उनमें से दो महीने में 729 डिस्चार्ज हुए। इस स्टडी में कोरोना से स्वस्थ हुए 457 मरीजों का छह महीने तक फॉलोअप किया गया। बाकी मरीजों से भी संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उनके मोबाइल नंबर व पता गलत थे।
17 फीसदी मरीजों में कोविड के बाद कुछ परेशानी नियमित
डॉ. दीपेंद्र ने बताया कि हमारी स्टडी में अधिकतर मरीज पूरी तरह स्वस्थ निकले। सिर्फ 17 फीसदी को छह महीने तक स्वास्थ्य संबंधी कोई न कोई परेशानी थी। 457 में से 79 मरीजों (17.21%) में खांसी, सांस फूलने, थकान, नींद न आने और सिरदर्द की समस्या रही। इन मरीजों में से 6.12% में सांस फूलने, 5.93% में थकान, 4.59% में खांसी, 4.37% में नींद में गड़बड़ी और 2.63% में सिरदर्द की परेशानी मिली।
सर्वे में शामिल 10% मरीज दोबारा भर्ती हुए
कोविड से ठीक होकर डिस्चार्ज हुए 457 मरीजों में से 42 को छह महीने के दौरान दोबारा हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ा। स्वास्थ्य समस्या वाले 79 मरीजों में से 36 घर में ही ठीक हो गए। इन छह महीनों के दौरान 10 मरीजों की मौत हुई। इनके कारणों का खुलासा स्टडी में नहीं किया गया है। हालांकि डॉक्टरों के अनुसार कुछ को हार्ट अटैक हुआ तो कुछ को पहले से कोई न कोई गंभीर बीमारी थी।
दूसरी बीमारी से पीड़ित मरीजों में परेशानी
गुरुग्राम के सनर इंटरेनशनल हॉस्पिटल के कॉर्डियोलॉजी विभाग के निदेशक व एचओडी डॉ. डीके झाम्ब का कहना है कि जिन्हें पहले से स्टेंट लगा था या हार्ट में ब्लॉकेज था, उन्हें कोरोना के बाद समस्या हुई। लेकिन यह कहना सही नहीं होगा कि कोरोना से ठीक हुए मरीजों में हार्ट अटैक या ब्लड क्लॉटिंग के मामले बढ़े या उनसे मौत की संख्या बढ़ी है। कोरोना से ठीक होने के कुछ दिनों तक जरूर ब्लड गाढ़ा रहता है, उससे कुछ लोगों को दिक्कतें भी हुईं। कुछ की एंजियोप्लास्टी हुई या ब्लड क्लॉटिंग के कारण सांस लेने में परेशानी हुई, लेकिन यह संख्या बहुत ही कम है।
रायपुर मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर व एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) के इंचार्ज डॉ. स्मित श्रीवास्तव ने भी बताया कि कोविड के मरीजों में एक-दो महीनों के दौरान ब्लड गाढ़ा होने की बात सामने आई, लेकिन उसके कारण हार्ट अटैक या अन्य परेशानी के मामले बहुत कम हैं। छह महीने तक हमने भी ऐसे कई मरीजों का आकलन किया जिनमें थकान के लक्षण थे। डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार पिछले एक साल के दौरान उनके द्वारा किए गए 1700 एंजियोप्लास्टी के केस में सिर्फ 4 मरीज ऐसे मिले, जिन्हें कोविड होने के बाद यह समस्या आई। इसलिए कोरोना के कारण हार्ट अटैक या ब्लड क्लॉटिंग से मौत की बात साबित नहीं होती है।
केस बढ़े, लेकिन मौत के पीछे लाइफ स्टाइल भी
रायपुर रामकृष्ण केयर अस्पताल के सीनियर एमडी (मेडिसिन) डॉ. अब्बास नकवी के अनुसार कोरोना के बाद अचानक हार्ट अटैक के केस बढ़े हैं। कम उम्र के लोगों में भी यह समस्या दिखी, लेकिन यह साबित नहीं हो पाया है कि कोरोना के कारण ऐसा हुआ है। लोगों की लाइफ स्टाइल बदली है और स्ट्रेस बढ़ना भी कहीं न कहीं फैक्टर रहा है। पुरानी गंभीर बीमारियों से पीड़ित होना भी बड़ा कारण है।
लंदन की रिसर्च में नतीजे विपरीत
क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन ने 25 अक्टूबर 2022 को जारी एक रिसर्च में दावा किया कि कोरोना संक्रमित मरीजों में दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यह रिसर्च 54 हजार मरीजों पर की गई। इसके अनुसार जो कोविड मरीज अस्पताल में भर्ती हुए उनमें दिल की बीमारी और जो अस्पताल में भर्ती नहीं हुए उनमें ब्लड क्लॉटिंग का खतरा ज्यादा मिला। रिसर्च के अनुसार नॉन-कोरोना मरीज की तुलना में कोविड से ठीक होने वालों में हार्ट फेल्योर की आशंका 21.6 फीसदी, ब्लड क्लॉटिंग की 27.6 फीसदी और स्ट्रोक का खतरा 17.5 फीसदी ज्यादा दिखा। जो कोविड मरीज अस्पताल में भर्ती नहीं हुए उनमें ब्लड क्लाटिंग का खतरा 2.7 गुना और मौत का खतरा 10 गुना रहता है। कोरोना से ठीक होने के बाद 30 दिन तक खतरा ज्यादा रहता है।
बचावः बीपी, ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल नियमित टेस्ट कराएं
सनर इंटरनेशनल हॉस्पिटल के डॉ. झाम्ब का कहना है कि हार्ट अटैक या ब्लड क्लॉटिंग से बचा जा सकता है। इसके लिए कोरोना से ठीक हुए मरीजों व सामान्य लोगों को भी जागरूक रहने की जरूरत है। नियमित रूप से योग-कसरत करने के साथ ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर की जांच करानी चाहिए। साल में दो या तीन बार कोलेस्ट्रॉल चेक कराएं। नियमित जांच से किसी समस्या का समय रहते पता लगाया जा सकता है।
रायपुर के डॉ. स्मित श्रीवास्तव का कहना है कि कोरोना से ठीक हुए मरीज योग के जरिए अपनी क्षमता बढ़ा सकते हैं। अनुशासित खानपान और शरीर में होने वाली छोटी सी परेशानी व बीमारी पर नजर रखने से बड़ी समस्याओं से बचा जा सकता है।