विवेक काटजू : कनाडा की संसद में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के एक बेजा बयान ने भारत-कनाडा संबंधों की दशा-दिशा बदलकर रख दी है। ट्रूडो ने कहा कि ऐसे आरोप हैं कि कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों का हाथ हो सकता है। कनाडा ने भारत के एक राजनयिक को देश छोड़ने का आदेश भी दे दिया। इसके बाद भारत ने भी आक्रामक कूटनीतिक कार्रवाई की। उसने कनाडा के राजनयिक को देश छोड़ने के साथ ही कनाडाई लोगों के लिए वीजा स्थगित करने का सख्त निर्णय लिया।

जिस निज्जर को लेकर इतना बखेड़ा खड़ा हुआ, वह खालिस्तान टाइगर फोर्स का सरगना था, जिसकी कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में हत्या कर दी गई थी। माना जाता है कि वह खालिस्तानी गुटों की आपसी लड़ाई में मारा गया। निज्जर कई वर्ष पहले भारत से भाग गया था। वह अवैध तरीके से कनाडा पहुंचा और किसी तरह कनाडाई नागरिकता ले ली। भारत ने निज्जर को 2020 में आतंकी घोषित किया था। उसे पंजाब में कई हिंसक घटनाओं का जिम्मेदार माना गया। इसकी सूचना कनाडा को दी गई, पर उसने कोई कदम नहीं उठाया। इसके चलते निज्जर अपना नापाक एजेंडा चलाता रहा।

खालिस्तान से जुड़ी भारत विरोधी गतिविधियों पर कनाडा ने बीते चार दशकों से कोई संज्ञान ही नहीं लिया। वहां खालिस्तान समर्थक खुलेआम भारत को खंडित करने की चुनौती देते हैं। वे हिंसा में भी लिप्त रहे हैं और मंदिरों को भी निशाना बनाते रहे हैं। वे भारतीय राजनयिकों को खुलेआम धमका चुके हैं। लोगों की जान पर बन आए खतरे से निपटने के बजाय कनाडा इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर स्वीकार करता रहा।

खालिस्तान समर्थकों पर कार्रवाई न कर कनाडा उलटे निज्जर हत्याकांड जांच में भारत से सहयोग चाहता है। खालिस्तान समर्थकों को संरक्षण देने वाले कनाडा का रवैया कोई नया नहीं है। उसके इसी रवैये के चलते खालिस्तानी आतंकियों ने 1985 में एअर इंडिया के कनिष्क विमान को बम विस्फोट से उड़ा दिया था। इस घटना में 329 लोगों की जान गई थी। इस मामले की जांच-पड़ताल और दोषियों पर कानूनी शिकंजा कसने के बजाय कनाडाई एजेंसियां हाथ पर हाथ धरे बैठी रहीं। आखिरकार एक न्यायिक जांच के चलते तीस साल बाद परोक्ष रूप से कनाडा ने उसके लिए खेद प्रकट कर कर्तव्य की इतिश्री कर ली।

संसद में भारत के खिलाफ बयान देने के साथ ही ट्रूडो ने यह भी कहा था कि हाल में जी-20 शिखर सम्मेलन से इतर अपनी बैठक में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष निज्जर का मामला उठाया था। उनकी सरकार का समर्थन करने वाले दल भी ट्रूडो के साथ खड़े दिखे, लेकिन एक प्रमुख विपक्षी दल ने पूरे तथ्य सामने रखने की मांग की है। ऐसी खबरें भी हैं कि कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और खुफिया एजेंसी के प्रमुख निज्जर मामले की जांच के सिलसिले में भारत में अपने समकक्षों से मिले।

निज्जर से जुड़े कनाडा के आरोपों को भारत ने सिरे से खारिज कर दिया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इन्हें बेतुका और संदिग्ध मंशा से प्रेरित बताया। इसके साथ ही भारत ने उस ओर भी ध्यान दिलाया कि कनाडा में कैसे उन खालिस्तान समर्थकों को राजनीतिक संरक्षण हासिल है, जो भारत में हिंसा और अलगाववाद को बढ़ावा देने में लगे हैं। इस मामले में कनाडा की शिथिलता पर भारत ने अफसोस भी जताया।

कनाडा ने निज्जर मामले को आस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ भी उठाया। इन देशों ने किसी के पक्ष में झुकाव न दिखाते हुए यही रुख दर्शाया कि कनाडा के आरोपों की जांच होनी चाहिए। इन देशों का यह रवैया हैरत भरा नहीं, क्योंकि भारत के साथ बढ़ते आर्थिक-सामरिक हितों के बावजूद वे कनाडा के निकट एवं पारंपरिक सहयोगी हैं। सूत्रों के हवाले से आई खबरों के अनुसार निज्जर मामले में कई देश खुफिया जानकारियां जुटा रहे हैं। ऐसी खबरें भी हैं कि अपनी संसद में बयान देने से पहले ट्रूडो ने बाइडन और पश्चिम के कुछ अन्य नेताओं से भी चर्चा की।

हालांकि बाद में ट्रूडो ने यह स्पष्ट किया कि वह भारत के साथ मामले को बढ़ाना नहीं चाहते और उनकी बस इतनी ही मंशा है कि भारत निज्जर मामले को गंभीरता से ले। इस प्रकरण की एक परिणति यह भी हुई कि भारत-कनाडा व्यापार वार्ता रद हो गई। वहीं हिंद-प्रशांत सेना प्रमुखों की 27-28 सितंबर को होने वाली बैठक में कनाडा के चीफ आफ डिफेंस स्टाफ का आगमन भी अधर में लटक गया है। दोनों ही देश एक दूसरे के विरुद्ध कड़ी भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं और एडवाइजरी जारी कर रहे हैं।

कनाडा से भारत की नाराजगी सर्वथा उचित है। खालिस्तान समर्थकों और भारत विरोधी गतिविधियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आवरण में अनदेखा नहीं किया जा सकता। कनाडा को उस षड्यंत्र पर भी विचार करना होगा, जो पाकिस्तान दशकों से खालिस्तान को लेकर किए जा रहा है। वास्तव में पाकिस्तानी षड्यंत्रकारी दुनिया भर में फैले सिख समुदाय को भारत के विरुद्ध भड़काने में लगे हैं। अन्य पश्चिमी देश भी इस पर विचार करें। कनाडा को यह भी पता होना चाहिए कि यदि किसी मुद्दे पर उसका राजनीतिक वर्ग एकजुट हो सकता है तो भारत में भी राजनीतिक बिरादरी ऐसा कर सकती है, क्योंकि उन्होंने कोई ठोस प्रमाण नहीं दिया और केवल आरोप लगा दिया। ट्रूडो की भाषा गोलमोल है, लेकिन इरादे स्पष्ट हैं।

भारत के रक्षा एवं सामरिक कर्मियों के लिए वीजा जारी करने में भी कनाडा ने अनुचित रवैया अपनाया। वीजा जारी करना या न करना किसी देश का संप्रभु अधिकार है, पर इसकी आड़ में आवेदकों से संवेदनशील एवं गोपनीय जानकारियां तो नहीं मांगी जातीं, जैसा कि कनाडा करता आया है। यह पूरी तरह अस्वीकार्य है और भारतीय एजेंसियों को इस मामले में सार्वजनिक रूप से पक्ष रखना चाहिए। कई सालों से चले आ रहे इस सिलसिले पर अब विराम लगना चाहिए। निज्जर मामले में कनाडा ने जैसे आरोप लगाए, वैसे आरोप केवल पाकिस्तान ही लगाता रहा है। चूंकि कनाडा ने ये आरोप संदेह के आधार पर लगाए, इसलिए भारत ने उन्हें खारिज करके बिल्कुल सही किया। भारत ने पहले भी किसी देश को मिथ्या आरोप नहीं लगाने दिए हैं। शालीन कूटनीतिक भाषा से उनका प्रतिकार किया है। वही परंपरा जारी भी रहनी चाहिए।

(लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं)