जागरण संपादकीय: राजनीति से अलग नहीं हो सकता क्रिकेट, पाकिस्तान को समझनी होगी इसकी असली वजह
बीसीसीआई ने इस पर आपत्ति जताई तो आईसीसी को पीसीबी से कहना पड़ा कि वह ऐसा नहीं कर सकता। पीसीबी को अपने कदम पीछे खींचने पड़े। इससे पीसीबी के साथ पाकिस्तान की भी फजीहत हुई। आखिर पीसीबी ने यह हरकत क्यों की? क्या उसे यह पता नहीं था कि इस पर बीसीसीआई ही नहीं भारत सरकार को भी आपत्ति होगी?
राजीव सचान। पाकिस्तान में होने वाली चैंपियंस ट्राफी के मामले में फिलहाल इतना ही पता है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट बोर्ड अर्थात आईसीसी को यह सूचित कर दिया है कि उसकी टीम पाकिस्तान खेलने नहीं जाएगी। खबर है कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड यानी पीसीबी ने आईसीसी से पूछा है कि बीसीसीआई यह बताए कि वह किन कारणों से अपनी टीम उनके देश नहीं भेज रहा।
पता नहीं बीसीसीआई क्या जवाब देता है और उसके जवाब से पीसीबी संतुष्ट होता है या नहीं, लेकिन कहना कठिन है कि भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान जाएगी। अभी यह भी तय नहीं कि यदि भारतीय टीम पाकिस्तान नहीं जाती तो वहां चैंपियंस ट्राफी होगी या नहीं? यह भी स्पष्ट नहीं कि यदि चैंपियंस ट्राफी पाकिस्तान में नहीं होगी तो फिर क्या किसी अन्य देश में हाइब्रिड तरीके से होगी? इसके तहत कुछ मैच पाकिस्तान में हो सकते हैं और कुछ अन्य देश में। चूंकि एशिया कप इसी तरह हो चुका है, इसलिए इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा रहा है।
इस सबके बीच पीसीबी इसी पर जोर दे रहा है कि हम हाइब्रिड माडल नहीं अपनाने वाले, लेकिन शायद उसे ऐसा करने के लिए बाध्य होना पड़े, क्योंकि यदि बीसीसीआई इस पर अड़ जाता है कि वह अपनी टीम पाकिस्तान नहीं भेजने वाला तो फिर पीसीबी और आईसीसी के सामने बिना भारत के चैंपियंस ट्राफी कराने की नौबत आ सकती है। यदि ऐसा होता है तो इस ट्राफी का आकर्षण ही फीका पड़ जाएगा। इतना ही नहीं, आईसीसी को आर्थिक क्षति का भी सामना करना पड़ेगा, क्योंकि जिस प्रतियोगिता में भारत नहीं खेलेगा, उसमें भारतीय कंपनियां अपने विज्ञापन क्यों देंगी?
क्रिकेट के सबसे अधिक दर्शक भारत में हैं और भारतीय कंपनियां बड़ी संख्या में उन मैचों में आयोजक-प्रायोजक बनती हैं, जिनमें भारत की भागीदारी होती है। यदि पाकिस्तान भारत के बिना चैंपियंस ट्राफी कराने पर अड़ जाता है तो ब्राडकास्टर अपने हाथ खड़े सकते हैं। चूंकि चैंपियंस ट्राफी का भविष्य अधर में है, इसलिए इस पर खूब बहस हो रही है कि भारतीय टीम को पाकिस्तान जाना चाहिए या नहीं? इस बहस के बीच ही पीसीबी ने यह तय किया कि वह चैंपियंस ट्राफी की नुमाइश अपने कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के शहरों में भी कराएगा।
बीसीसीआई ने इस पर आपत्ति जताई तो आईसीसी को पीसीबी से कहना पड़ा कि वह ऐसा नहीं कर सकता। पीसीबी को अपने कदम पीछे खींचने पड़े। इससे पीसीबी के साथ पाकिस्तान की भी फजीहत हुई। आखिर पीसीबी ने यह हरकत क्यों की? क्या उसे यह पता नहीं था कि इस पर बीसीसीआई ही नहीं, भारत सरकार को भी आपत्ति होगी? साफ है कि पीसीबी भारत को उकसाना चाह रहा था। कोई भी समझ सकता है कि पीसीबी ने यह काम सरकार और उसे नियंत्रित करने वाली सेना के इशारे पर किया होगा।
खुद पीसीबी के चेयरमैन रहे नजम सेठी का यह मानना है कि चैंपियंस ट्रॉफी की गुलाम कश्मीर में नुमाइश का फैसला पाकिस्तानी सेना के कहने पर ही लिया गया। साफ है कि पाकिस्तान के मामले में इस जुमले का कोई मतलब नहीं कि क्रिकेट को राजनीति से अलग रखना चाहिए।
भारत जब भी पाकिस्तान की हरकतों के चलते उससे क्रिकेट खेलने से इन्कार करता है तो उसे दुनिया भर से यह उपदेश सुनने को मिलता है कि खेल को राजनीति से अलग रखना चाहिए। इस पर गौर करें कि यह उपदेश देने वालों ने अभी हाल में रूस को पेरिस ओलिंपिक से बाहर कर दिया। चैंपियंस ट्राफी का भविष्य जो भी हो, यह जानना आवश्यक है कि भारतीय टीम ने पाकिस्तान जाना कबसे बंद किया।
ऐसा नवंबर 2008 में मुंबई में भीषण आतंकी हमले के बाद से किया गया। इस हमले में 160 से अधिक लोग मारे गए थे। इस हमले में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और उसकी सेना का हाथ था। यह विडंबना ही है कि नवंबर माह में ही इस पर बहस हो रही है कि भारतीय क्रिकेट टीम को पाकिस्तान जाना चाहिए या नहीं? जिन्हें यह लगता है कि भारत को खेल भावना के तहत अपनी क्रिकेट टीम पाकिस्तान भेजनी चाहिए, उन्हें इस पर गौर करना चाहिए कि क्या पाकिस्तान ने मुंबई हमले के गुनहगारों को दंडित करने के लिए कुछ किया है? उसने कुछ नहीं किया है।
मुंबई हमले की साजिश रचने वाले पाकिस्तान में आज भी खुले आम घूम रहे हैं- ठीक वैसे ही जैसे पठानकोट और अन्यत्र आतंकी हमले की साजिश रचने वाले घूम रहे हैं। मुंबई में हमला करने आए आतंकियों को फोन पर निर्देश देने वाला लश्कर के आतंकी सरगना जकीउर रहमान लखवी को भारत के दबाव में जेल भेजने का काम अवश्य किया गया था, लेकिन यह भारत और दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के लिए ही था, इसका पता तब चला, जब यह खबर आई कि “जेल” में रहने के दौरान ही वह पिता बन गया। हाल में उसे रावलपिंडी में खुले आम घूमते देखा गया।
स्पष्ट है कि पाकिस्तान की मुंबई हमले के गुनहगारों को दंडित करने में कोई दिलचस्पी नहीं। उससे यह पूछा जाना चाहिए कि यदि उसकी इसमें दिलचस्पी है कि भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान आए तो वह इसमें कोई रुचि क्यों नहीं ले रहा कि मुंबई हमले के गुनहगार दंडित हों? यह सही है कि पाकिस्तान के तमाम लोगों की यह बड़ी चाहत है कि भारतीय क्रिकेटर उनकी धरती पर खेलने आएं, लेकिन क्या भारत इसे भुला दे कि मुंबई हमले के गुनहगार पाकिस्तान में खुले आम घूम रहे हैं? पाकिस्तान को यह पता चलना ही चाहिए कि मुंबई हमले के गुनहगारों को पालने के कारण ही भारतीय टीम उसके यहां खेलने नहीं आ रही है।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)