जागरण संपादकीय: सेहत से खिलवाड़, वायु प्रदूषण से निपटने में नाकाम सरकारी तंत्र
कम से कम सीपीसीबी को सही आंकड़े तो देने ही चाहिए क्योंकि यह कोई नियम नहीं हो सकता कि यदि कहीं एक्यूआइ आंकड़ा 500 से ऊपर हो जाए तो उसे सार्वजनिक करने की जरूरत नहीं रह जाती। वायु की गुणवत्ता का सही आंकड़ा न देना लोगों को अंधेरे में रखना और साथ ही उनकी सेहत से जानबूझकर खिलवाड़ करना है।
यह देखना दयनीय और चिंताजनक है कि समस्त सरकारी तंत्र दिल्ली और देश के एक बड़े हिस्से को अपनी चपेट में लेने वाले वायु प्रदूषण से निपटने में बुरी तरह नाकाम है। इससे भी अधिक चिंताजनक यह है कि इस नाकामी को छिपाने की कोशिश होती दिख रही है। इसके तहत वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआइ के सही आंकड़े को सार्वजनिक करने से बचा जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानी सीपीसीबी यह दलील दे रहा है कि 500 से अधिक एक्यूआइ के आंकड़े को इसलिए प्रकट नहीं किया जाता, क्योंकि यह स्पष्ट ही होता है कि वायु की गुणवत्ता में इससे अधिक कमी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है और यह आंकड़ा छूते ही उससे निपटने के कदम उठाए जाने लगते हैं। क्या सीपीसीबी यह कहना चाहता है कि एक्यूआइ चाहे 500 हो या 800 या फिर 1200 तो यह एक ही बात है? आखिर ऐसे कैसे हो सकता है? यदि कहीं एक्यूआइ 900 होगा तो वह उस इलाके से दोगुना हानिकारक होगा, जहां वह 450 होगा। यदि सीपीसीबी यह कहना चाहता है कि इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि एक्यूआइ 450 हो या 900 तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह भी स्वाभाविक है कि यदि कहीं एक्यूआइ 450-500 हैं और कहीं 900-1000 तो जहां ज्यादा है, वहां वायु प्रदूषण की रोकथाम के कहीं अधिक कठोर उपाय करने होंगे।
सीपीसीबी की मानें तो जो अन्य एजेंसियां दिल्ली या फिर दूसरे शहरों का एक्यूआइ आंकड़ा दे रही हैं, वह भिन्न मानकों पर है। यह सही हो सकता है, लेकिन क्या इसके आधार पर यह मान लिया जाए कि दिल्ली में एक्यूआइ 450-500 से ऊपर जा ही नहीं रहा है? सीपीसीबी यह तो कह रहा है कि वायु गुणवत्ता संबंधी उसके आंकड़े प्रमाणिक और विश्वसनीय हैं, लेकिन वह यह नहीं कह पा रहा है कि अन्य एजेंसियों के आंकड़े भरोसे लायक नहीं। आखिर क्यों?
कम से कम सीपीसीबी को सही आंकड़े तो देने ही चाहिए, क्योंकि यह कोई नियम नहीं हो सकता कि यदि कहीं एक्यूआइ आंकड़ा 500 से ऊपर हो जाए तो उसे सार्वजनिक करने की जरूरत नहीं रह जाती। वायु की गुणवत्ता का सही आंकड़ा न देना लोगों को अंधेरे में रखना और साथ ही उनकी सेहत से जानबूझकर खिलवाड़ करना है। यदि सीपीसीबी के वायु की गुणवत्ता मापने के मानक भिन्न हैं तो भी उसे ऐसा तंत्र तो बनाना ही होगा, जिससे अधिकतम एक्यूआइ की सटीक गणना की जा सके, ताकि किसी तरह का संशय न रहे। इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि उन कारणों का पता लगाया जाए, जिनके चलते तमाम उपायों के बाद भी वायु प्रदूषण पर लगाम नहीं लग रही है। अच्छा हो कि इस नतीजे पर पहुंचने में और देर न की जाए कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं, वे निष्प्रभावी हैं और उनसे बात बनने वाली नहीं है।