विवेक देवराय आदित्य सिन्हा। नववर्ष के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे ने एक नई बहस छेड़ दी है। चीन की गोद में बैठी मालदीव की नई सरकार और वहां के तमाम लोग इसे अपने पर्यटन उद्योग को चुनौती के रूप में देख रहे हैं। इससे उपजी खीझ के चलते मालदीव के कुछ जिम्मेदार लोगों द्वारा इंटरनेट मीडिया पर भारत और भारतीय नेताओं के प्रति गैर-जिम्मेदार एवं अपमानजक टिप्पणियां तक की गईं। हालांकि रविवार को मालदीव सरकार द्वारा इसे कुछ लोगों की निजी राय बताकर और उन पर कार्रवाई कर पल्ला झाड़ने का प्रयास किया गया, क्योंकि इसके चलते तमाम भारतीय पर्यटकों द्वारा मालदीव के दौरे रद किए जाने लगे। पर्यटन ही मालदीव की आय का सबसे बड़ा स्रोत है।

इस पूरे घटनाक्रम ने घरेलू पर्यटन के मुद्दे को नए सिरे से धार देने का काम किया है। मालदीव से इतर भी इस मुद्दे पर विमर्श आवश्यक है। असल में जब लोग सैर-सपाटे के लिए विदेश जाते हैं तो इससे उनके देश पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। आर्थिक मोर्चे पर देखें तो देश की धनराशि तत्काल बाहर जाती है जो देश में ही रहकर स्थानीय उद्यमों को प्रोत्साहन, रोजगार सृजन और अंतत: जीडीपी को बढ़ाती। विदेशी पर्यटन पर खर्च से न केवल घरेलू आर्थिक गतिविधियों की गति बढ़ाने का अवसर गंवा दिया जाता है, बल्कि व्यापार घाटा भी बढ़ सकता है। वहीं घरेलू पर्यटन स्थलों का अपेक्षित दोहन नहीं होने से उन क्षेत्रों में संभावित निवेश प्रभावित होता है। वहां विकास गतिविधियां थम सकती हैं, जिससे स्थानीय आर्थिकी सिकुड़ सकती है। परिणामस्वरूप बुनियादी ढांचे और सेवाओं के स्तर में गिरावट आ सकती है।

सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से भी विदेशी पर्यटन के गहरे निहितार्थ हैं। राष्ट्रीय पहचान और गौरव पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकते हैं। जब लोगों का देश के प्रमुख स्थलों, इतिहास, संस्कृति और विरासत के प्रति बोध कमजोर होता है तो अगली पीढ़ियों को उस भाव का अपेक्षित हस्तांतरण नहीं हो पाता। पर्यटकों की आवक में कमी से राजस्व भी घटता है जिससे स्थलों के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संरक्षण की मुहिम को झटका लगता है। नि:संदेह विदेशी पर्यटन से लोगों का नजरिया व्यापक होने के साथ ही विश्व को लेकर बेहतर समझ बनती है, किंतु उस पर अत्यधिक जोर से आर्थिक एवं सांस्कृतिक नुकसान के साथ ही देश की बेहतरी और पहचान को झटका लगने का जोखिम बढ़ जाता है।

बीमा कंपनी एको और बाजार अनुसंधान फर्म यूगोव की एक हालिया रपट के अनुसार भारतीयों के विदेश घूमने की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ रही है। जहां 60 प्रतिशत सैलानियों की योजना में विदेश घूमना रहा तो 10 प्रतिशत पर्यटक घूमने के उद्देश्य से केवल विदेश को ही वरीयता दे रहे हैं। महामारी की कई बंदिशों के बावजूद यह रुझान बढ़ने पर है जो पर्यटन व्यवहार में बड़े बदलाव को दर्शाता है। स्वच्छता, सहूलियत और भीड़भाड़ से बचना जैसे पहलू इसमें प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। इसी कारण गोवा, हिमाचल, केरल, उत्तराखंड और राजस्थान के मुकाबले दुबई, मालदीव, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड और बाली जैसे विदेशी स्थल पर्यटकों की पसंद बन रहे हैं। खर्च में भी बड़ा अंतर है। जहां विदेशी पर्यटन पर एक लाख से छह लाख रुपये के बीच खर्च किया जाता है तो करीब 55 प्रतिशत घरेलू पर्यटक अपना सैर-सपाटा एक लाख रुपये से कम खर्च में निपटाते हैं।

इस रुझान को पलटने के लिए भारत को व्यापक प्रयास करने होंगे। अपने पर्यटन स्थलों का चतुर्दिक विकास करना होगा। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को साझा रणनीति बनानी होगी। टूर गाइड, बच्चों के लिए आकर्षक गतिविधियां, खानपान और सांस्कृतिक सहभागिता पर ध्यान देना होगा। साफ-सफाई, सुरक्षा और सुविधाएं बढ़ने से भी पर्यटक आकर्षित होंगे। ऐतिहासिक स्थलों को भी और आकर्षक बनाने के प्रयास उपयोगी होंगे। भारत की वैश्विक छवि को चमकाने में मार्केटिंग और इंटरनेट मीडिया का भी लाभ उठाया जाए।

इस मामले में मध्य प्रदेश द्वारा चलाए गए ‘एमपी गजब है, सबसे अलग है’ और ‘हिंदुस्तान का दिल देखो’ जैसे अभियानों ने लोगों के मानस पर गहरी छाप छोड़ी थी। किसी क्षेत्र के विशिष्ट पहलुओं और सांस्कृतिक समृद्धि के समावेश वाले ऐसे अभियान बहुत प्रभावी होते हैं। अन्य राज्यों को इससे सीख लेनी चाहिए। स्मरण रहे कि स्वागत-सत्कार और सुरक्षा ऐसे पहलू हैं जो पर्यटकों को किसी स्थान पर दोबारा जाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। एडवेंचर गतिविधियों और बुनियादी सुविधाएं बढ़ाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। भारत के बहुरंगी उत्सव-त्योहारों से भी पर्यटकों को लुभाया जा सकता है।

घरेलू पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र सरकार की योजना 50 नए पर्यटक अनुकूल केंद्र विकसित करने की है। उसके लिए कनेक्टिविटी और सुरक्षा पर जोर है। रेलवे नेटवर्क एवं हवाई अड्डों का विकास और बुनियादी ढांचा विकसित हो रहा है। ‘देखो अपना देश’ और ‘स्वदेश दर्शन योजना’ जैसी पहल के मूल में घरेलू पर्यटन को बढ़ाना ही है। थीम आधारित टूरिस्ट सर्किट भी इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए विकसित किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में ईको-पर्यटन और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए ‘अमृत धरोहर’ जैसी पहल की गई है। राज्य सरकारों को भी इसके लिए अपने स्तर पर हरसंभव प्रयास करने होंगे। स्थानीय कला और उत्पादों के आधार पर वे पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं।

उन्हें सैलानियों की सुविधाओं के साथ ही सुरक्षा, विशेषकर दूर-दराज के इलाकों में उन्हें सुरक्षा कवच प्रदान करना होगा। पर्यटन के स्तर पर नागरिकों की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं। हम विदेश में तो कड़े नियमों का पालन करते हैं, लेकिन अपने देश में नियम तोड़ते रहते हैं। खासकर गंदगी फैलाने के मामले में यह बहुत आम है। इस प्रवृत्ति को छोड़ना होगा। पर्यटकों के साथ बहुत शालीनता से पेश आना होगा। याद रहे कि सबका साथ-सबका विकास में सबका प्रयास जैसा पहलू भी समाहित है। भारत का पर्यटन क्षेत्र विपुल संभावनाओं से भरा है। इससे जुड़ी संभावनाओं को भुनाने से न केवल हमारी विरासत सशक्त होगी, बल्कि आर्थिक वृद्धि और सांस्कृतिक संरक्षण के साथ ही राष्ट्रीय गौरव भी बढ़ेगा।

(देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख और सिन्हा परिषद में ओएसडी-अनुसंधान हैं)