रमेश कुमार दुबे। स्वच्छता के लिए सबसे महत्वपूर्ण जन आंदोलनों में से एक स्वच्छ भारत मिशन के शुभारंभ के 10 साल पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते दो अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर स्वच्छता से संबंधित 10,000 करोड़ रुपये की विभिन्न परियोजनाएं शुरू कीं। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने इस आंदोलन को मिले अपार जनसमर्थन पर प्रकाश डाला और कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक ने इसे अपना मिशन बना लिया।

प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि महात्मा गांधी के नाम पर वोट लेकर सरकार बनाने वालों ने कभी गंदगी को समस्या माना ही नहीं। सीधे शब्दों में कहें तो अब तक की सरकारों ने स्वच्छता के प्रति उपेक्षा का भाव अपनाया और शौचालयों की कमी को कभी राष्ट्रीय मुद्दा नहीं माना गया।

उल्लेखनीय है कि देश में हरित, श्वेत, पीली, नीली आदि क्रांतियां तो हुईं, लेकिन शौचालय क्रांति की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। यही कारण रहा कि आधुनिकता और विकास के तमाम दावों तथा सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में दुनिया भर में अपना लोहा मनवाने वाला भारत ऐसे देशों में अग्रणी रहा, जहां लोग खुले में शौच जाते हैं।

इस मामले में भारत पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और श्रीलंका से भी पीछे रहा। यूपीए सरकार ने वर्ष 2012 तक सभी को शौचालय सुविधा मुहैया कराने के लिए देश के सभी जिलों में संपूर्ण स्वच्छता अभियान शुरू किया, लेकिन भ्रष्टाचार, नौकरशाही की सुस्‍ती और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण लक्ष्य दूर ही रहा।

इन्हीं परिस्थितियों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2014 में लाल किले की प्राचीर से अपने पहले संबोधन में जब स्‍वच्‍छ भारत का समयबद्ध लक्ष्‍य निर्धारित किया, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह लक्ष्य समय से पहले पूरा हो जाएगा। लोग क्या कहेंगे इससे बेपरवाह प्रधानमंत्री मोदी ने “पहले शौचालय फिर देवालय” के अपने एजेंडे को लागू करने के लिए उसी साल महात्मा गांधी की जन्‍मतिथि अर्थात दो अक्टूबर से स्‍वच्‍छ भारत अभियान शुरू करने की घोषणा की।

स्कूलों में छात्राओं के लिए शौचालय बनाने की योजना को 15 अगस्त से ही शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन को एक बड़े जन आंदोलन में बदलने के लिए सफाई मित्रों, धार्मिक गुरुओं, एथलीटों, प्रसिद्ध हस्तियों, गैर सरकारी संगठनों और मीडिया के सहयोग का आह्वान किया। प्रधानमंत्री ने इसके लिए राज्य सरकारों के साथ-साथ निजी क्षेत्र का सहयोग देने के लिए आह्वान किया कि उन्हें सामाजिक दायित्‍व के तहत शौचालय निर्माण को प्राथमिकता देनी चाहिए।

शौचालय क्रांति में नवविवाहिताओं की जिद ने भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री द्वारा शौचालय क्रांति के आह्वान के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में नवविवाहिताओं ने ससुराल के उन घरों में रहने से साफ इन्कार कर दिया जिनमें शौचालय नहीं थे। इससे न केवल संबंधित परिवारों में, बल्कि समाज में भी शौचालय निर्माण के प्रति नई जागरूकता आई। इसका परिणाम यह हुआ कि मात्र 10 वर्षों में 12 करोड़ शौचालयों का निर्माण हुआ और महात्मा गांधी की 150वीं जयंती अर्थात दो अक्टूबर, 2019 से पहले ही भारत खुले में शौच से मुक्त देश घोषित हो गया।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार वर्तमान में देश के 82.5 प्रतिशत परिवारों में शौचालय की सुविधा है, जबकि 2004-05 में मात्र 29 प्रतिशत परिवारों में ही शौचालय थे। इससे खुले में शौच में भारी कमी के साथ ही बीमारियों का खतरा भी कम हुआ है। नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में गिरावट आई है। स्वच्छता अभियान हर साल 60-70 हजार बच्चों को डायरिया के कारण मौत के मुंह में जाने से बचा रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार साल 2014 से 2019 के बीच तीन लाख लोगों की जान बचाई गई, जो डायरिया के कारण गंवा दी जाती। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार अब देश की 90 प्रतिशत महिलाएं सुरक्षित महसूस कर रही हैं। स्वच्छ भारत मिशन के कारण महिलाओं में संक्रमण से होने वाली बीमारियों में भी काफी कमी आई है।

इसके अलावा लाखों स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय बनने से उनके स्कूल छोड़ने की दर में कमी आई है। यूनिसेफ के अध्ययन के अनुसार स्वच्छता के कारण परिवारों को आज हर साल औसतन 50,000 रुपये की बचत हो रही है, जो पहले बीमारियों के इलाज पर खर्च हो जाते थे।

स्वच्छता से जुड़ी प्रतिष्ठा में वृद्धि से देश में बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक परिवर्तन भी आया है। इसी का परिणाम है कि सफाई कार्य में शामिल लोगों को अब सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा है। स्वच्छ भारत अभियान ने देश में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन भी किया है। देश में करोड़ों शौचालयों के निर्माण से राजमिस्त्री, प्लंबर, मजदूर जैसे लाखों लोगों को रोजगार मिला है। इतना ही नहीं, स्वच्छ भारत अभियान ने महिला राजमिस्त्रियों की एक नई पीढ़ी तैयार की है।

गोबरधन योजना के तहत गांवों में बायोगैस संयंत्र लगाए जा रहे हैं, जहां पशु अपशिष्ट को बायोगैस में बदला जा रहा है। कुल मिलाकर स्वच्छ भारत अभियान देश को एक नई पहचान देने के साथ-साथ विकास को भी नई दिशा देने में सफल दिख रहा है।

(लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा में अधिकारी हैं)