राजीव सचान। भारत में वांछित और अमेरिका के साथ कनाडा की नागरिकता लिए खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित साजिश में अमेरिका ने रा के पूर्व अधिकारी विकास यादव को आरोपित किया है। क्या अब वह विकास यादव के प्रत्यर्पण की मांग करेगा?

यदि वह ऐसा करता है तो भारत को मुंबई हमले की साजिश रचने वाले लश्करे तोइबा और साथ ही अमेरिकी एजेंसी ड्रग इनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (डीईए) के गुर्गे डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाऊद गिलानी को फांसी की सजा से बचाने वाले अमेरिकी अधिकारियों के प्रत्यर्पण की मांग करनी चाहिए। क्यों? क्योंकि मुंबई हमले के पहले अमेरिकी एजेंसियों को पता था कि गिलानी भारत जाकर कोई गुल खिलाने की तैयारी में है।

उन्होंने उसे न तो रोका-टोका और न ही भारत को उसके बारे में जानकारी दी। इसके नतीजे में ही मुंबई में भीषण आतंकी हमला हुआ। गिलानी नहीं होता तो पाकिस्तानी आतंकी मुंबई में इतनी आसानी से घुसकर इतना कहर नहीं ढा पाते।

अमेरिका ने उसे इसलिए गिरफ्तार किया, क्योंकि वह डेनमार्क में आतंकी हमले की साजिश रच रहा था। अमेरिका ने उसे केवल भारत को सौंपने से इन्कार ही नहीं किया, बल्कि उससे एक समझौता (प्ली बार्गेन) किया, ताकि उसे फांसी की सजा न मिले। इस नापाक समझौते पर गिलानी को सजा सुनाने वाले अमेरिकी जज तक ने आपत्ति जताई थी।

अमेरिकी मां और पाकिस्तानी पिता की संतान दाऊद गिलानी यदि डेविड कोलमैन हेडली बनकर इसी नाम से पासपोर्ट हासिल कर सका तो अमेरिकी एजेंसियों की मेहरबानी से। गिलानी का भांडा न फूटने पाए, इसके लिए अमेरिका ने भारतीय अधिकारियों से उससे सीमित पूछताछ ही करने दी। अमेरिका गिलानी के साथी तहव्वुर हुसैन राणा को भी भारत को सौंपने से इन्कार कर रहा है, जबकि वहां की एक अदालत यह कह चुकी है कि ऐसा किया जा सकता है।

पाकिस्तानी मूल का तहव्वुर कनाडा का नागरिक है। उसने मुंबई हमले की साजिश रचने में गिलानी की मदद की थी। साफ है कि अमेरिका मुंबई हमले के गुनहगारों को बचाने के साथ अपने पाप भी छिपा रहा है। अमेरिका ऐसा इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह भारत का सच्चा दोस्त नहीं। वह पन्नू जैसे खालिस्तानी को संरक्षण देने का काम इसीलिए कर रहा है, ताकि जब-तब भारत के कान उमेठ सके। उसका खुलकर साथ कनाडा भी दे रहा है।

माना जाता है कि कनाडा को पंजाब से भागे आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की कथित लिप्तता की खुफिया जानकारी अमेरिका ने ही उपलब्ध कराई। इस जानकारी को खालिस्तानियों की गोद में बैठे कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने पुख्ता आरोप की शक्ल देकर भारत पर मढ़ दिया।

शायद उन्हें किसी ने समझा दिया है कि कनाडा के सारे सिख खालिस्तान समर्थक हैं और यदि वह खालिस्तानियों की भाषा बोलेंगे तो कनाडाई सिखों के सभी वोट उन्हें ही मिलेंगे। उनका यह मुगालता शायद अगले साल चुनाव में दूर हो जाए, लेकिन तब तक भारत को कनाडा से ज्यादा अमेरिका से सावधान रहना चाहिए, क्योंकि वह पन्नू को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है।

अमेरिका की शह पर ही पन्नू भारत को खुली धमकियां देता है। वह कभी भारत में हमास की तरह हमले की धमकी देता है, कभी कहता है कि भारत के टुकड़े-टुकड़े करके रहूंगा और कभी यह कहते हुए धमकाता है कि अमुक तिथियों को सिख पंथ के लोग एअर इंडिया से यात्रा न करें, क्योंकि उनकी जान को खतरा हो सकता है।

वह यही कहना चाह रहा कि एअर इंडिया के विमान उसी तरह उड़ाए जा सकते हैं, जैसे कनाडा के खालिस्तानी आतंकियों ने 1985 में भारतीय विमान को उड़ाया था, जिसमें 329 लोग मारे गए थे। इनमें अधिकांश भारतीय मूल के कनाडाई या भारतीय थे। पन्नू की हैसियत शेखचिल्ली की सी है, लेकिन अमेरिका उसी को भारत के खिलाफ मोहरा बनाए हुए है।

उसके खिलाफ कार्रवाई करने के भारत के आग्रह पर अमेरिका का कुतर्क होता है कि हमारे यहां तो अभिव्यक्ति की आजादी है। यह कुतर्क देकर वह भारत की आंखों में किस तरह धूल झोंक रहा है, इसे रिद्धि पटेल के प्रसंग से समझें। इसी अप्रैल में जब इजरायल गाजा में बमबारी कर रहा था, तब इजरायली कार्रवाई रोकने के लिए अमेरिका के कई शहरों में प्रदर्शन हो रहे थे।

ऐसे ही एक प्रदर्शन में रिद्धि पटेल बढ़-चढ़कर भाग ले रही थी। वह इससे कुपित थी कि कैलिफोर्निया की बेकर्सफील्ड सिटी काउंसिल गाजा में युद्ध विराम का प्रस्ताव पारित क्यों नहीं कर रही है। इसी को लेकर सिटी काउंसिल की ओर से बुलाई गई बैठक में उसने काउंसिल के प्रतिनिधियों को खूब खरी-खोटी सुनाई और तैश में आकर यह भी कह गई कि हम तुम्हें तुम्हारे घर पर देख लेंगे और मार देंगे।

उसके इस भाषण के साथ अदालत में जार-जार रोते हुए भी उसका वीडियो वायरल हुआ, क्योंकि उसे गिरफ्तार कर लिया गया था। उस पर आतंकित करने के इरादे से धमकी देने और अधिकारियों को निशाना बनाने समेत एक दर्जन से अधिक मामले दर्ज किए गए। उसे तत्काल प्रभाव से नौकरी से निकाल दिया गया, पासपोर्ट जब्त कर लिया गया और उसे जीपीएस निगरानी में रहने को बाध्य किया गया।

लगता है उसने यह समझ लिया था कि वह भारत में है और किसी को कुछ भी कह सकती है। उसके खिलाफ अदालती कार्रवाई जारी है। आखिर अमेरिका ने अभिव्यक्ति की जैसी आजादी पन्नू को दे रखी है, वैसी रिद्धि पटेल को क्यों नहीं दी? क्या इसलिए कि वह भारत के लोगों के बजाय अमेरिकी नागरिकों को धमका रही थी? रिद्धि पटेल का मामला अमेरिका के दोगलेपन और उसकी बुरी नीयत के साथ उसकी चालबाजी की पोल ही खोलता है।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)