चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर कोई समझबूझ कायम होने के आसार काफी पहले उभर आए थे, लेकिन इसकी प्रतीक्षा थी कि वह समझौते में कब बदलती है और दोनों देशों की सेनाएं अप्रैल 2020 वाली स्थिति में कब लौटती हैं। अंततः यह समझौता हो गया।

इस समझौते का एक कारण रूस में होने जा रहा ब्रिक्स देशों का शिखर सम्मेलन तो है ही, भारत की यह प्रतिबद्धता भी है कि जब तक सीमा पर पहले जैसी स्थिति बहाल नहीं होती, तब तक चीन से संबंध सामान्य नहीं हो सकते। जून 2020 में गलवन घाटी में भारतीय सैनिकों की चीनी सेना से खूनी झड़प के बाद दोनों देशों के संबंध पटरी से उतर गए थे।

भारत के अडिग रवैये के चलते चीनी सेना गलवन घाटी में तो पुरानी स्थिति में लौट गई थी, लेकिन उसने देपसांग और डेमचोक में यथास्थिति में बदलाव के इरादे को लेकर आक्रामक रुख अपना लिया था। इसके जवाब में भारतीय सेना ने भी चीन से लगती सीमा पर अपनी चौकसी बढ़ा दी थी। इसके बाद दोनों देशों के बीच वार्ता का सिलसिला कायम हुआ।

चीन की चेष्टा यह थी कि भारत सीमा पर तनाव की अनदेखी कर संबंध सामान्य करने के लिए तैयार हो जाए। भारत टस से मस नहीं हुआ। आखिरकार चीन को समझ आया कि उसकी दादागीरी और चालाकी काम आने वाली नहीं है।

हाल के वर्षों में भारत ने अपने अडिग रवैये से चीन को दूसरी बार झुकने को बाध्य किया है। इसके पहले डोकलाम में उसने चीनी सेना के अतिक्रमणकारी रवैये के खिलाफ अपनी सेनाओं को तैनात कर दिया था। तब भी चीन ने खूब गर्जन-तर्जन किया था, लेकिन भारतीय सेनाएं मोर्चे पर डटी रही थीं। तब भी चीन पीछे हटने को विवश हुआ था और अब भी।

यह अच्छी बात है कि उसे यह समझ आया कि भारत को दबाया नहीं जा सकता और यह 1962 वाला समय नहीं, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या उस पर भरोसा किया जा सकता है? इसका सीधा उत्तर है-नहीं। वह अभी भरोसे काबिल नहीं। वह अरुणाचल, लद्दाख और कश्मीर को लेकर जिस तरह बेजा बयानबाजी करता रहता है और सीमा विवाद के स्थायी हल की इच्छा नहीं जता रहा है, उसे देखते हुए उससे सतर्क रहने में ही भलाई है।

भारत को यह स्पष्ट करना चाहिए कि चीन को भरोसेमंद बनने के लिए सीमा विवाद को स्थायी रूप से हल करना होगा। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि सीमा विवाद को हल करने के लिए बीते तीन-चार दशक से वार्ताओं का दौर जारी है, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाला है।

इसका कारण सीमा विवाद की आड़ में भारत को तंग करते रहने वाला चीन का रवैया है। ऐसे में भारत को सीमाओं की रक्षा को लेकर सतर्क रहने के साथ ही चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करने के प्रयत्न भी जारी रखने होंगे।