[ अद्वैता काला ]: दिल्ली के भयावह दंगों के बाद कुछ और डरावने रुझाने सामने आए। इसी में एक है पश्चिमी मीडिया का एकतरफा एजेंडा। उसके द्वारा दंगों से जुड़ा एकपक्षीय विमर्श पेश करना किसी खतरे की घंटी से कम नहीं। वास्तविकता यह है कि दिल्ली के दंगे पूरी तरह सांप्रदायिक थे जिसमें हिंदू और मुसलमानों दोनों वर्गों को जान-माल का नुकसान उठाना पड़ा। इसके बावजूद पश्चिमी मीडिया इसे मुस्लिम विरोधी दंगों के रूप में चित्रित करने की कोशिश में लगा रहा। इसमें कुछ भारतीय भी उसके मददगार रहे।

पश्चिमी मीडिया ने फेक न्यूज फैलाकर ‘सांप्रदायिक’ भूमिका निभाई

वास्तव में इन लोगों ने फेक न्यूज फैलाकर ‘सांप्रदायिक’ भूमिका ही निभाई। उनके दुष्प्रचार ने खासा खतरनाक असर दिखाया। इसकी बानगी आइएस पर व्यापक रूप से लिखने वाली पत्रकार रुक्मिणी कलिमाछी की उस रिपोर्ट में दिखा जिसके अनुसार पश्चिमी मीडिया के इस दुष्प्रचार भरे विमर्श को आइएस ने ‘विलायत-ए-हिंद’ में जवाबी हिंसा को जायज ठहराने वाले पोस्टर का हिस्सा बनाया है। आइएस ने अपने खलीफाई शासन में भारत को यही नाम दिया है।

पश्चिमी मीडिया की  कवरेज ने भारत को आतंकी संगठनों के निशाने पर ला दिया

स्पष्ट है कि पश्चिमी मीडिया की इस किस्म की कवरेज ने भारत को आतंकी संगठनों के निशाने पर ला दिया है। भारतीय सुरक्षा परिदृश्य पर गहन नजर रखने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे बताया कि हमें किसी बड़े आतंकी हमले को लेकर सतर्क रहना चाहिए। यह देश की सुरक्षा के साथ-साथ समुदायों के बीच भाईचारे की भावना के लिए सही नहीं होगा।

एक हिंदी चैनल ने दिल्ली दंगों का प्रतीक बन चुके शाहरुख को हिंदू बताने से नहीं किया गुरेज

भारत में मुख्यधारा के एक हिंदी चैनल पर मशहूर एंकर ने दिल्ली दंगों का प्रतीक बन चुके शाहरुख को हिंदू बताने से गुरेज नहीं किया। पुलिस की भूमिका और अक्षमता पर भी सवाल उठाए गए। इसके पीछे संदेश स्पष्ट था कि पुलिस को पता नहीं था कि वह क्या कर रही है और इस कारण उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यह पूरी तरह गैरजिम्मेदाराना कृत्य था।

मेरिकी अखबार में झूठी खबर छपी कि हिंदू भीड़ ने आइबी कर्मी अंकित शर्मा को मार डाला

अमेरिकी अखबार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ में दंगों में जान गंवाने वाले आइबी कर्मी अंकित शर्मा के भाई के हवाले से यह झूठी खबर छपी कि हिंदू भीड़ ने उनके भाई को मार डाला। यह सरासर झूठ है, क्योंकि तमाम प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक आप नेता ताहिर हुसैन के साथी अंकित को घसीटकर ले गए थे। सीएनएन पर अपने कार्यक्रम में फरीद जकारिया ने मोदी की घोर आलोचक पत्रकार राणा अय्यूब का साक्षात्कार किया। उसमें सिर्फ और सिर्फ मुस्लिमों के नुकसान पर बात हुई। हिंदू पीड़ितों का कोई उल्लेख नहीं हुआ। कुछ भी कर लिया जाए, लेकिन कोई लाशों को तो नहीं झुठला सकता?

दिल्ली दंगों पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने पूरी तरह एकतरफा और कुटिल रिपोर्टिंग की

आखिर मोदी को लेकर नापसंदगी हिंदुओं के प्रति नापसंदगी में कैसे बदल सकती है? इससे भी महत्वपूपूर्ण बिंंदु यह है कि क्या हिंदुओं के प्रति नफरत के लिए मोदी केवल एक बहाना हैं? अफसोस की बात है कि यह पहली बार नहीं जब अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने पूरी तरह एकतरफा और कुटिल रिपोर्टिंग की हो। उसकी कुटिलता से आइएस जैसे आतंकी संगठन भारत को निशाना बना सकते हैं। इससे दो समुदायों के बीच हिंसा भड़कने की आशंका के साथ ही अविश्वास की खाई और चौड़ी हो सकती है।

राष्ट्रपति ट्रंप ने मोदी को अपने हितों का ध्यान रखने वाला व्यक्ति कहा

हालांकि प्रधानमंत्री मोदी को इस पूरे अभियान से अलग करके नहीं देख सकते जिनके बारे में राष्ट्रपति ट्रंप ने स्वयं कहा कि वह बहुत दृढ़ व्यक्ति हैं। अगर दुनिया का सबसे ताकतवर व्यक्ति, जिसका पूरा जीवन कारोबारी सौदों को अंजाम देने में गुजरा हो और जिसने इस विषय पर एक किताब भी लिखी है, मोदी को अपने हितों का ध्यान रखने वाला व्यक्ति कहे तो यह काफी मायने रखता है। हम इसे ऐसे समझ सकते हैं कि दुनिया किसी ऐसे दृढ़ भारतीय नेता से सौदेबाजी की अभ्यस्त नहीं रही जिसने अपना पहला कार्यकाल वैश्विक स्तर पर स्वयं के लिए जगह बनाने में लगा दिया हो।

दुनिया का पाला पहले कभी मोदी सरीखे भारतीय नेता से पड़ा ही नहीं

उनकी राष्ट्र सर्वोपरि की शपथ ने उन तमाम लोगों का मिजाज बिगाड़ा है जो यथास्थितिवाद के शिकार होकर भारत को हमेशा मदद का कटोरा लिए सहायता मांगते देखने के अभ्यस्त थे। इसके बजाय मोदी भारत अभ्युदय की बात करते हैं। ऐसे भारत की जिसकी आबादी युवा और महत्वाकांक्षी है, जो चंद्रयान जैसे नवाचार और योग जैसी परंपरा को समान रूप से सराहती है। असल में दुनिया का पाला पहले कभी मोदी सरीखे भारतीय नेता से पड़ा ही नहीं।

मोदी के दोबारा सत्ता में आने से पहले मीडिया ने उनकी कड़ी आलोचना वाले आलेख छापे

मोदी के दोबारा सत्ता में आने से पहले ही परंपरागत मीडिया ने उनकी कड़ी आलोचना वाले आलेख छापे। उन्हें उम्मीद थी कि इससे जनता में उनकी स्वीकार्यता घटेगी। इसका मामूली सा भी असर नहीं हुआ और प्रधानमंत्री भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटे।

मोदी की सत्ता में वापसी से विरोधी खेमे को कुंठा के सिवाय कुछ नहीं मिला

मोदी की वापसी ने जहां भारतीयों के बीच उनकी लोकप्रियता को पुष्ट किया वहीं विरोधी खेमे को कुंठा के सिवाय कुछ नहीं मिला। अब उसी कुंठित तबके को दिल्ली दंगों में यह ‘अवसर’ दिखा कि वे दुनिया को यह दिखा सकें कि मोदी राज में मुस्लिम सुरक्षित नहीं। इसी मकसद को हासिल करने के लिए उन्हें अंकित शर्मा के साथ हुई बर्बरता को पूरी तरह अनदेखा करना था, जिनके शरीर पर 400 बार धारदार हथियार से वार किए गए और जिनकी लाश नाले में मिली। 

‘जय श्री राम’ के नारे को नफरत का पर्याय बना दिया

महज पांच हजार रुपये महीने की तनख्वाह पर काम करने वाला उत्तराखंड का एक युवा दिलबर नेगी भी ऐसी ही नफरत की भेंट चढ़ गया। विनोद कुमार की हत्या सिर्फ इसी वजह से हो गई कि उनकी मोटरसाइकिल पर ‘जय श्री राम’ का स्टिकर लगा था। आतंक का कोई धर्म नहीं होता, यही बात कहने वाले लोगों ने ‘जय श्री राम’ के नारे को नफरत का पर्याय बना दिया है।

दिल्ली दंगा हिंदुओं की छवि खराब करने की कवायद

इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंदुओं की छवि खराब करने की कवायद पहले से ही जारी थी, लेकिन दिल्ली में हुए दंगों के साथ इस अभियान ने पूरी तेजी पकड़ ली। 

दिल्ली दंगों में मुस्लिमों की हत्या की अनदेखी नहीं की जा सकती

हालांकि इन दंगों में मुस्लिमों की हत्या की अनदेखी करना भी निर्मम होगा। आखिर ऐसे देश में इस किस्म के दुष्प्रचार का क्या मतलब जहां अल्पसंख्यक खूब फूले-फले हों जबकि बगल के पाकिस्तान और बांग्लादेश में उनका विभाजन के बाद से ही सफाया होता गया। आखिर मृतकों में गिने जाने के लिए हिंदुओं को क्या कीमत अदा करनी होगी जब अपनी जान गंवाना भी इसके लिए पर्याप्त नहीं पड़ रहा हो?

हर जिंदगी कीमती है चाहे वह हिंदू की हो या मुसलमान की

चूंकि हर जिंदगी कीमती है चाहे वह हिंदू की हो या मुसलमान की इसलिए पश्चिमी मीडिया और देश में बैठे कुछ लोगों के दुष्प्रचार को बेनकाब करना ही होगा। हमें उन ताकतों को लेकर भी सचेत रहना होगा जो समुदायों के बीच विभाजन पैदा करना चाहती हैं।

( स्तंभकार पटकथाकार हैं )