जागरण संपादकीय: असली-नकली हिंदुत्व की लड़ाई, शिवाजी की प्रतिमा पर नहीं होनी चाहिए राजनीति
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव का समय आ रहा है इसलिए उद्धव ठाकरे राकांपा और कांग्रेस को लग रहा है कि शिवाजी की प्रतिमा गिरना ऐसा मुद्दा है जिसके आधार पर राज्य के लोगों की भावनाएं भाजपा और महायुति के विरुद्ध भड़काई जा सकती हैं। इसलिए सच के इस दूसरे महत्वपूर्ण पक्ष को अवश्य देखा जाना चाहिए। लेकिन शिवाजी की प्रतिमा पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।
अवधेश कुमार। पिछले दिनों महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के राजकोट किले में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा गिरने पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सार्वजनिक सभा में क्षमा मांगने के बावजूद राज्य में हंगामा जारी है। भारी खर्च के बाद निर्मित प्रतिमा का लोकार्पण के नौ महीने के अंदर ही भूलुंठित हो जाना शर्मनाक है। इसमें प्रदेश और केंद्र सरकार, दोनों को क्षमा याचना करनी ही चाहिए थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की क्षमायाचना के बावजूद महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस आक्रामक अभियान चला रही हैं। उद्धव ठाकरे ने इसे जूता मारो आंदोलन नाम दिया है। उन्होंने इसे एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की रणनीति अपनाई है। प्रश्न है कि इसे किस रूप में देखा जाए? पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी ने छत्रपति शिवाजी की इस 35 फुट की प्रतिमा का अनावरण नौसेना दिवस समारोह के हिस्से के रूप में किया था।
इसका उद्देश्य समुद्री रक्षा और सुरक्षा के प्रति मराठा नौसेना और छत्रपति शिवाजी की विरासत एवं आधुनिक भारतीय नौसेना के साथ इसके ऐतिहासिक संबंधों का सम्मान करना था। इस परियोजना की परिकल्पना और संचालन भारतीय नौसेना ने राज्य सरकार के साथ मिलकर किया था। इससे इसका महत्व समझ में आता है। लिहाजा उनकी प्रतिमा गिरने की घटना की जांच हो रही है। इस मामले में कुछ गिरफ्तारियां भी हुई हैं।
आने वाले समय में सिंधुदुर्ग जिले के राजकोट किले में छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा फिर लगेगी, किंतु यहां कई प्रश्न उभरते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जो लोग दिन-रात वीर सावरकर को अपमानित करते हैं, वे कब क्षमा मांगेंगे? पहली दृष्टि में ऐसा लगेगा कि प्रधानमंत्री ने चुनावी राजनीति की दृष्टि से वीर सावरकर का मुद्दा रख दिया है। इसमें सच्चाई हो सकती है। जब विपक्ष इसका चुनावी उपयोग कर रहा है तो भाजपा या महायुति क्यों न करे?
उद्धव ठाकरे प्रचारित कर रहे हैं कि हिंदू पद पादशाही स्थापित करने वाले शिवाजी उनके आदर्श हैं। कांग्रेस और राकांपा का भी स्वर मोटा-मोटी यही है। साफ है कि उद्धव ठाकरे शिवाजी के बहाने हिंदुत्व के प्रति अपनी निष्ठा साबित करने की कोशिश रहे हैं। स्वर यही है कि भाजपा का हिंदुत्व नकली है और प्रतिमा गिरना इसका प्रमाण, जबकि हमारी निष्ठा और प्रतिबद्धता वास्तविक। इसकी थोड़ी छानबीन आवश्यक है कि क्या वह जो बोल रहे हैं, वही सच है?
शिवाजी के बाद आधुनिक समय में वीर सावरकर और उनके जैसे अनेक व्यक्तित्व हिंदुत्व के पुरोधा थे। कांग्रेस और उसके शीर्ष नेता राहुल गांधी वीर सावरकर को खलनायक बनाने का अभियान चलाते रहे हैं। क्या उद्धव ठाकरे या उनकी शिवसेना ने कांग्रेस या राहुल गांधी के विरुद्ध आंदोलन किया है? यूपीए सरकार के दौरान अंडमान निकोबार में सावरकर के वक्तव्य की तख्तियां हटा दी गई थीं और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने वीर सावरकर को सांप्रदायिक, द्विराष्ट्रवाद का प्रणेता तथा पाकिस्तान विभाजन का समर्थक कहा था।
उन्हें अंग्रेजों का पिट्ठू और क्षमा मांगकर अंग्रेजों की सेवा करने वाला बताया था। तब बालासाहब ठाकरे जीवित थे और उन्होंने मणिशंकर अय्यर के विरुद्ध जूता मारो अभियान चलाया था। 2019 में उद्धव ठाकरे जब महाविकास आघाड़ी में नहीं थे, तब कहा था कि जो लोग वीर सावरकर की विचारधारा को नहीं मानते हैं, उन्हें सार्वजनिक रूप से पीटा जाना चाहिए, तब उन्हें स्वतंत्रता का मूल्य समझ में आएगा।
उन्होंने राहुल गांधी को नासमझ बताया था। क्या उद्धव ठाकरे आज राहुल गांधी के विरोध में ऐसा बोलने का साहस दिखा सकते हैं? जो शिवाजी में आस्था रखेगा, वह कम से कम औरंगजेब का विरोधी अवश्य होगा। महाविकास आघाड़ी में आने के बाद उद्धव ठाकरे ने कभी पहले की तरह औरंगजेब के विरुद्ध बयान नहीं दिया। महाराष्ट्र में कुछ कट्टरपंथी तत्वों ने औरंगजेब को महान बताने का अभियान चलाया, लेकिन उसके विरुद्ध उद्धव न सड़कों पर उतरे, न जूता मारो अभियान चलाया।
एक समय उद्धव ठाकरे की सरकार ने औरंगजेब के मकबरे के लिए धन देने का भी एलान कर दिया था। कांग्रेस की सरकारों के काल में लिखे इतिहास में औरंगजेब को महिमामंडित करने वाली अनेक पुस्तकें मिल जाएंगी, लेकिन शिवाजी को केंद्र बनाकर सकारात्मक या महिमामंडन की दृष्टि से लिखी पुस्तकें नहीं मिलेंगी।
आप राजधानी दिल्ली में संसद से निकलें तो मुगलों के नाम पर सड़कें मिलेंगी, औरंगजेब रोड भी था, लेकिन उसके समानांतर छत्रपति शिवाजी के नाम से नहीं। यह अलग बात है कि मोदी सरकार ने उसका नाम एपीजे अब्दुल कलाम मार्ग कर दिया। इन दिनों उद्धव ठाकरे या उनकी पार्टी तो हिंदुत्व को लेकर नकारात्मक या विरोधी की भूमिका भी निभाते नजर आ रही है। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक रैली को संबोधित करते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा था, “भाजपा का हिंदुत्व गोमूत्रधारी है। हमारा हिंदुत्व सुधारवादी है।’’ हिंदुत्व विरोधी ही ऐसा कटाक्ष कर सकते हैं।
पिछले वर्ष उन्होंने नागपुर में भाजपा और आएसएस की आलोचना करते हुए कहा था, “हर बार मुझ पर कांग्रेस के साथ जाने और हिंदुत्व छोड़ने का आरोप लगाया जाता है। क्या गोमूत्र छिड़कने से हमारे देश को आजादी मिली?" साफ है कि वह तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें हिंदुत्व को लेकर कैसी राजनीति करनी चाहिए?
चूंकि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव का समय आ रहा है, इसलिए उद्धव ठाकरे, राकांपा और कांग्रेस को लग रहा है कि शिवाजी की प्रतिमा गिरना ऐसा मुद्दा है, जिसके आधार पर राज्य के लोगों की भावनाएं भाजपा और महायुति के विरुद्ध भड़काई जा सकती हैं। इसलिए सच के इस दूसरे महत्वपूर्ण पक्ष को अवश्य देखा जाना चाहिए। प्रतिमा गिरने का विरोध अस्वाभाविक नहीं है, पर इसे इस सीमा तक विस्तारित करना राजनीति के दोहरे आचरण का प्रमाण है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)