ब्रिटेन की प्रख्यात विज्ञान पत्रिका नेचर में स्वच्छ भारत अभियान के प्रभाव का सकारात्मक उल्लेख किए जाने पर प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना बनता है कि इस अभियान ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामले में बाजी पलटने वाला काम किया है। उक्त पत्रिका के अनुसार स्वच्छ भारत अभियान के क्रियान्वयन के बाद पूरे भारत में शौचालयों के निर्माण में तेजी से वृद्धि हुई और शिशु एवं बाल मृत्यु दर में कमी देखी गई। यदि स्वच्छता अभियान से हर वर्ष 70 हजार नवजातों की जान बच सकी तो यह एक बड़ी कामयाबी है।

आज से दस वर्ष पहले जब स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया गया था, तब उसके सफल होने के आसार कम ही थे, क्योंकि अतीत में ऐसे अभियान कोई प्रभाव नहीं छोड़ सके थे, लेकिन स्वच्छता के संदेश को गांव-गांव तक पहुंचाने की मोदी सरकार की प्रतिबद्धता के चलते अनुकूल नतीजे सामने आए। इस अभियान के तहत बड़े पैमाने पर शौचालयों का निर्माण तो किया ही गया, लोगों को उनका इस्तेमाल करने के लिए भी प्रेरित किया गया। यह आसान काम नहीं था। स्वच्छता की महत्ता के प्रति लोगों को जागरूक करने का ही यह परिणाम है कि आज लोग सार्वजनिक स्थानों में गंदगी फैलाने से हिचकते हैं।

आज यदि छोटे-बड़े शहरों में कचरा एकत्र करने का काम सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है तो यह स्वच्छ भारत अभियान की देन है, लेकिन स्वच्छता के मामले में अभी बहुत कुछ करना शेष है। अब जब इस अभियान के दस वर्ष पूरे होने जा रहे हैं, तब फिर यह देखा ही जाना चाहिए कि आगे क्या कदम उठाए जाने आवश्यक हैं? यह इसलिए, क्योंकि कचरे के निस्तारण की कोई ठोस व्यवस्था नहीं बन पा रही है। इसके चलते दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में भी कचरे के पहाड़ खड़े हो गए हैं। इसी तरह कई शहरों में कचरे को एकत्र कर बाहरी इलाकों में जमा कर दिया जाता है। वह यूं ही पड़ा रहता है, क्योंकि उसके निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है।

एक समस्या यह भी है कि कुछ ही शहरों में गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग एकत्रित किया जा पा रहा है। यह हर हाल में किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे ही वेस्ट टू वेल्थ का उद्देश्य पूरा होगा। कचरे का सही तरीके से निस्तारण स्वच्छ भारत अभियान की प्राथमिकता बननी चाहिए। इसी क्रम में यह भी देखा जाना चाहिए कि पालीथीन और प्लास्टिक का उपयोग कैसे कम हो। यह ठीक नहीं कि न तो पालीथीन के उपयोग को कम किया जा पा रहा है और न ही प्लास्टिक के चलन को नियंत्रित करने में सफलता मिल रही है। सिंगल यूज प्लास्टिक पर लगाम लगाने का अभियान कागजों पर ही अधिक है। स्वच्छता अभियान के प्रति लोगों को और जागरूक होने की आवश्यकता है और यह समझने की भी कि आधुनिक जीवनशैली कहीं अधिक कचरा पैदा कर रही है।