नवनीत शर्मा, शिमला। घटना पुरानी है। हिमाचल प्रदेश के एकमात्र कृषि विश्व विद्यालय, चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के डॉ. जीसी नेगी पशुचिकित्सा महाविद्यालय का परिसर था। एक लंबी और आरामदेह कार में एक कुत्ते को उपचार के लिए लाया गया। पता चला कि उसे सरकार में किसी बड़े पदाधिकारी के स्वजन लाए हैं।

कुत्ते का उपचार हुआ और वापस भेज दिया गया। बाद में महाविद्यालय का कद बढ़ाने के संबंध में कोई चर्चा उक्त पदाधिकारी के सामने की गई तो वह बोले, ‘ वहां क्या है...वहां तो बड़ी-बड़ी गाड़ियों में लोग कुत्तों को उपचार के लिए लाते हैं। उक्त महोदय यह बताना भूल गए या जानबूझ कर नहीं बताया कि उनके कुत्ते का भी उपचार हुआ है और उसे भी ‘बड़ी गाड़ी’ में ही लाया गया था। प्रदेश में 3,50,000 कुत्ते गिने गए हैं, क्या उनका उपचार नहीं होना चाहिए?

मनुष्‍यों जितना ही महत्‍वपूर्ण है जानवरों का स्‍वास्‍थ्‍य

एक स्वास्थ्य या वन हेल्थ यानी मनुष्यों जितना ही महत्वपूर्ण है जानवरों का स्वास्थ्य....इसे लेकर यह दृष्टि है। हिमाचल प्रदेश का यह एकमात्र पशुचिकित्सा महाविद्यालय पशुओं का पीजीआइ समझा जाता है किंतु यह आज तक पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय नहीं बन पाया। हिमाचल प्रदेश की उन्नति के लिए चिंतित होने वालों को यह समझना होगा कि उन्हीं राज्यों ने कृषि और पशुपालन या पशुचिकित्सा में उन्नति की है, जिनमें इन दोनों संकायों को बराबर अधिमान दिया गया है।

हिमाचल प्रदेश के सामने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात ऐसे राज्य हैं, जहां पशु चिकित्सा का स्वतंत्र विश्वविद्यालय है। करीब 24 राज्यों में स्वतंत्र पशुपालन/ पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय हैं। कुछ राज्यों में तो दो-दो पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय स्थापित होने वाले हैं। लेकिन सरकार किसी भी दल की रही हो, गांव, गाय, किसान की बात करने वाले नेताओं ने यह इच्छाशक्ति नहीं दिखाई कि 1986 में बना यह महाविद्यालय, विश्वविद्यालय बन जाए।

विश्वविद्यालय बनाने का कारण

आखिर क्यों बनना चाहिए इसे विश्वविद्यालय? इसलिए क्योंकि केंद्र में अब पशुपालन, कृषि मंत्रालय के अधीन नहीं, एक स्वतंत्र मंत्रालय है। इस मंत्रालय का नाम है मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय। क्योंकि जो लोग पशुपालन को केवल गाय के कृत्रिम गर्भाधान या कुत्ते के उपचार तक सीमित समझते हैं, उन्हें जानना चाहिए कि उपरोक्त संकाय भी इसी का भाग हैं। एक पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय में डेयरी, जन स्वास्थ्य , मत्स्य, मुर्गीपालन इत्यादि संकाय भी जुड़े हैं। यह हर संकाय अपने आप में एक महाविद्यालय है। देशभर के 70 विद्यार्थी स्नातक स्तर पर प्रवेश परीक्षा से आते हैं, स्नातकोत्तर के लिए 35 विद्यार्थी आते हैं। इसके अलावा वे हैं जो डाक्टरेट करते हैं।

यह भी पढ़ें: Himachal Pradesh Tourism: रेंगती गाड़ियां, घंटों जाम में फंसना... इसे तो नहीं कहते पर्यटन

प्रदेश के 28 से 30 संस्थान ऐसे हैं जिनके यहां पढ़ाए जाने वाले वेटरनरी फार्मासिस्ट के कोर्स के लिए संबद्धता, पाठ्यक्रम गठन, प्रश्नपत्र, मूल्यांकन प्रक्रिया आदि में इसी महाविद्यालय के प्राध्यापक जुटते हैं। कृषि विश्वविद्यालय जो लंबे समय से एक नियमित कुलपति के लिए तरस रहा है, उसकी कार्यशैली तो डिमांस्ट्रेशन प्लाट से समझ में आती है पर पशुचिकित्सा महाविद्यालय के अस्पताल में कुत्ते, खरगोश, भेड़ें, बकरियां, गाय, घोड़े, खच्चर, भैंस लेकर लोग प्रदेशभर से आते हैं। और तो और अब लोग चूहों का उपचार करवाने भी पहुंच रहे हैं।

सरकार से सौ रुपये आते हैं तो पशुचिकित्सा महाविद्यालय को केवल तीस रुपये मिलते हैं। कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर अब तक दो ही कुलपति ऐसे हुए हैं जिन्हें विश्वविद्यालय के भीतर के लोग ही नहीं, बाहर के लोग भी याद करते हैं..एक मेरठ के नजदीक शामली के रहने वाले डॉ. आरपीएस त्यागी और दूसरे डा जीसी नेगी।

सीएम सुक्‍खू ने भी उठाया था ये सवाल

राहत की बात यह है कि कुछ महीने पहले सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने इच्छा दिखाते हुए विश्वविद्यालय से पूछा था कि यदि इस महाविद्यालय को पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय बनाएं और उसका एक क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र हमीरपुर के ताल में खोला जाए तो कितना खर्च आएगा। ऐसी सूचना है कि जो खर्च बताया गया, वह इतना नहीं था कि सरकार वहन न कर सके। लेकिन सचिवालय तक पहुंचने से पहले उस प्रस्ताव ने कुलसचिव कार्यालय में कई दिन बिताए। अब देखना होगा कि उस प्रस्ताव पर क्या होता है।

संस्थान से जुड़े लोगों का कहना है कि पहला खर्च यही है कि एक बोर्ड लगेगा, जिस पर महाविद्यालय के स्थान पर विश्वविद्यालय लिखा होगा। उसके बाद एकमुश्त नहीं, चरणबद्ध ढंग से खर्च होगा, मानव संसाधन विकसित होगा...और अंतत: संसाधन भी जुटेंगे। लेकिन इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए।

कृषि विश्वविद्यालय की संपदा का होगा बंटवारा

यह अवश्य होगा कि पशुचिकित्सा महाविद्यालय से विश्वविद्यालय बनने की प्रक्रिया में कृषि विश्वविद्यालय की संपदा का बंटवारा होगा, लिपिकीय स्तर पर बंटवारा होगा...इसीलिए आज तक एक आवश्यक आवश्यकता को आधिकारिक और लिपिकीय अनिच्छा से हार मिलती रही। केंद्र सरकार के पास बजट की कमी नहीं है लेकिन उसे किसी परियोजना, किसी संस्थान, किसी प्रकल्प के लिए लेना होगा।

यह भी पढ़ें: Himachal Lok Sabha Election 2024: संकट टलने तक आराम से बैठो...टल जाएगा

आवश्यकता और उसका मंच या आधार बताना होगा। हिमाचल प्रदेश, जहां गांव अब भी बहुत हैं और शहर नगण्य ...जहां संसाधनों के नाम पर केवल बागवानी और पर्यटन या फिर पन बिजली का नाम लिया जाता है, पशुपालन विश्वविद्यालय के बनने से इस क्षेत्र में शिक्षा, कौशल, रोजगार और स्वरोजगार का ही पथ प्रशस्त होगा। आशा है, प्रदेश सरकार पहल करेगी और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद उसका सम्मान करेगी।