यह बजट आने के पहले से स्पष्ट होता है कि विपक्षी दल किसी न किसी बहाने उसका विरोध करेंगे। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। विपक्षी दल इस आरोप के सहारे बजट का विरोध कर रहे हैं कि उसमें अन्य राज्यों के साथ भेदभाव किया गया है। इस विरोध का आधार बिहार और आंध्र प्रदेश की विभिन्न विकास योजनाओं के लिए विशेष घोषणाएं किया जाना है।

बिहार के लिए लगभग 60 हजार करोड़ और आंध्र प्रदेश के लिए 15 हजार करोड़ रुपये की योजनाएं घोषित की गई हैं। इसके पीछे एकमात्र कारण यह नहीं है कि इन दोनों राज्यों में सत्तारूढ़ दल भाजपा के प्रमुख सहयोगी हैं। इसका कारण यह भी है कि बिहार देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है और आंध्र प्रदेश के विभाजन के समय कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन केंद्र सरकार ने उसे विशेष सहायता देने का आश्वासन दिया था।

इसकी भी अनदेखी न की जाए कि लोकसभा चुनाव के साथ हुए आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र के जरिये यह गारंटी दी थी कि वह इस राज्य को दस वर्ष के लिए विशेष श्रेणी का दर्जा प्रदान करेगी। यह भी किसी से छिपा नहीं कि कांग्रेस के नेता बिहार के लिए भी विशेष सहायता देने की मांग करते रहे हैं।

यह हास्यास्पद है कि दिल्ली में तो कांग्रेस के नेता यह कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने अपनी सत्ता बचाने के लिए बिहार पर अतिरिक्त कृपा की, लेकिन पटना में उसके दल के ही नेता यह आरोप लगाने में लगे हुए हैं कि बजट में राज्य को कुछ नहीं मिला। बेहतर हो कि कांग्रेस यह स्पष्ट करे कि उसके किन नेताओं की बात को सही माना जाए?

कांग्रेस और उसके सहयोगी दल बजट में बिहार और आंध्र प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों की कथित अनदेखी का आरोप लगाकर संसद के भीतर-बाहर हंगामा कर सकते हैं, लेकिन वे इस झूठ को सच साबित नहीं कर सकते कि शेष राज्यों को कुछ नहीं मिला।

यह झूठ इसलिए नहीं चलने वाला, क्योंकि एक तो पूर्वोदय योजना में जिन पांच राज्यों को शामिल किया गया है, उनमें बिहार और आंध्र प्रदेश के अतिरिक्त ओडिशा, बंगाल एवं झारखंड भी हैं और दूसरे, असम को बाढ़ नियंत्रण तथा महाराष्ट्र को सिंचाई परियोजनाओं के लिए धन दिया गया है।

इसी तरह हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर को औद्योगिक विकास के लिए केंद्रीय सहायता का प्रविधान है। यदि वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में केंद्रीय सहायता देने के मामले में अन्य राज्यों का नाम नहीं लिया तो इसका यह अर्थ नहीं कि उन्हें कुछ नहीं मिलने जा रहा है।

अच्छा हो कि विपक्षी नेता प्रचार पाने के लिए विरोध की बेतुकी रस्म निभाने के बजाय बजट दस्तावेज पढ़ें। उन्हें पता चलेगा कि बजट में राज्यों को किस मद में कितना धन मिलने वाला है।