मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यही प्रकट किया कि विकसित भारत का लक्ष्य उनकी निगाह में है। इसी कारण आम बजट अंतरिम बजट की कड़ी दिख रहा है। इस बजट से यह साफ है कि कृषि उत्थान के साथ-साथ रोजगार के अधिकाधिक अवसर पैदा करना मोदी सरकार की प्राथमिकता है।

इन दोनों क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना आवश्यक था, क्योंकि किसानों की आय बढ़ाने के साथ रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करने के वादे सरकार के लिए परेशानी का कारण बने हुए थे। बजट में किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये के प्रविधान किए गए हैं।

बजट का जोर कृषि के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, कृषि में तकनीक को बढ़ावा देने और किसानों का रुझान प्राकृतिक खेती की ओर करने पर है, लेकिन कृषि और किसानों की दशा सुधारने के लिए जो उपाय किए जाने हैं, उन्हें वांछित सफलता तब मिलेगी, जब राज्य सरकारें कृषि संबंधी केंद्रीय योजनाओं को सहयोग देने के साथ किसानों की दशा सुधारने के लिए अपने हिस्से की भी जिम्मेदारी का निर्वाह करेंगी।

राज्य सरकारों का यह रवैया समस्याजनक है कि कृषि क्षेत्र का उत्थान तो केवल केंद्र की जिम्मेदारी है। बजट में रोजगार के सवाल का समाधान करने के लिए जो कई उपाय किए गए हैं, वे युवाओं को उत्साहित करने वाले तो हैं, लेकिन देखना यह होगा कि इस सिलसिले में सरकार ने जिन तीन नई योजनाओं की घोषणा की है, वे रोजगार के कितने मौके उपलब्ध करा सकेंगी?

युवाओं के लिए यह घोषणा खासी आकर्षक है कि सरकार पांच सौ बड़ी कंपनियों में एक करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप कराएगी और उन्हें पांच हजार रुपये महीना देगी। अच्छा हो कि इस दायरे में अन्य कंपनियां भी लाई जाएं, ताकि अधिकाधिक युवाओं का कौशल विकास हो सके।

यह महत्वपूर्ण है कि लोकसभा चुनावों में अपेक्षित परिणाम न मिलने के बाद भी सरकार ने खुद को लोकलुभावन योजनाओं से दूर रखा और देश को विकसित बनाने में सहायक बनने वाली योजनाओं पर अपना ध्यान केंद्रित रखा और ऐसा करते समय वित्तीय अनुशासन को प्राथमिकता दी।

यह सरकार के आत्मविश्वास का परिचायक तो है, लेकिन इसके बाद भी इस बजट में देश की सूरत बदलने वाले क्रांतिकारी उपायों का अभाव दिखता है। ले-देकर आयकर कानून की समीक्षा का वादा किया गया है। आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि शहरीकरण की तेज रफ्तार के चलते अगले पांच-छह वर्षों में 40 प्रतिशत आबादी शहरों में रह रही होगी।

इसे देखते हुए शहरों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए था, क्योंकि शहर आर्थिक विकास के इंजन होते हैं। समस्या यह है कि शहरों के विकास के मामले में राज्य सरकारों का रवैया भी ढीलाढाला है। यह समझना होगा कि विकसित भारत का लक्ष्य केंद्र और राज्यों के सहयोग से ही हासिल किया जा सकता है।