डेमोग्राफिक डिविडेंड के लिए सिर्फ 15 साल का समय बचा, इसलिए बेहतर उच्च शिक्षा के साथ रोजगार सृजन में तेजी जरूरी
सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 15 से 29 साल के युवाओं में बेरोजगारी दर पांच साल में कम हुई है। यह 2017-18 में 17.8% थी 2022-23 में 10% पर आ गई। हालांकि आईएलओ के अनुसार भारतीय बेरोजगारों में 83% युवा हैं। लेबर मार्केट में हर साल 70 से 80 लाख युवा आ रहे हैं। उनके लिए शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट के साथ जॉब क्रिएट करने की चुनौती है।
एस.के. सिंह, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव को देखते हुए जागरण न्यू मीडिया मतदाताओं को जागरूक करने के मकसद से ‘मेरा पावर वोट- नॉलेज सीरीज’ लेकर आया है। इसमें हमारे जीवन से जुड़े पांच बुनियादी विषयों इकोनॉमी, सेहत, शिक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा पर चर्चा की जा रही है। हमने हर सेगमेंट को चार हिस्से में बांटा है- महिला, युवा, शहरी मध्य वर्ग और किसान। इसका मकसद आपको एंपावर करना है ताकि आप मतदान करने में सही फैसला ले सकें। इस नॉलेज सीरीज में बात इकोनॉमी और युवाओं की।
सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 15 से 29 साल के युवाओं में बेरोजगारी दर पांच साल में कम हुई है। यह 2017-18 में 17.8% थी, 2022-23 में 10% पर आ गई। हालांकि आईएलओ के अनुसार भारतीय बेरोजगारों में 83% युवा हैं। देश के लेबर मार्केट में हर साल 70 से 80 लाख युवा आ रहे हैं। उनके लिए शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट के साथ जॉब क्रिएट करने की चुनौती है।
इस विषय पर हमने बात की इन्फोमेरिक्स रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट तथा केनरा बैंक के पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट डॉ. मनोरंजन शर्मा और ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के जिंदल स्कूल ऑफ गवर्मेंट एंड पब्लिक पॉलिसी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर डॉ. अवनींद्र नाथ ठाकुर से।
-सीआईआई-व्हीबॉक्स इंडिया स्किल्स रिपोर्ट के अनुसार भारतीय युवाओं की रोजगारपरकता एक दशक में 33% से सुधर कर 51% हुई है। निश्चित रूप से यह बड़ा बदलाव है। लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि आधे युवा अब भी रोजगार के लायक नहीं हैं। इसे सुधारने के लिए क्या करने की जरूरत है?
मनोरंजन शर्मा- आपने अहम सवाल उठाया है, इसके साथ रोजगारपरकता का सवाल भी आता है। हर साल 70 से 80 लाख लोग काम के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में आ रहे हैं। क्या वे काम के लायक हैं? इस बारे में नीपा (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन), नीति आयोग, रिजर्व बैंक ने कई अध्ययन किए हैं। लोगों को रोजगार के लायक बनाने के लिए एक समन्वित प्रयास भी हो रहा है। इसके लिए सबसे जरूरी है स्किल गैप को दूर करना। जिस तरीके से उद्योग-धंधे में बढ़ोतरी हो रही है, उस तरह के हुनर अगर हम युवाओं को मुहैया करा सकें तो बेहतर होगा। इसके लिए स्किल बेस्ड ट्रेनिंग और शिक्षा की क्वालिटी पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
-इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि भारत का डेमोग्राफिक डिविडेंड 2041 में शिखर पर होगा। उस समय 20 से 59 साल के लोग 59% होंगे। देश में हर साल 70 से 80 लाख युवा, लेबर मार्केट में आ रहे हैं। उनके लिए जॉब कहां से आएगा?
अवनींद्र ठाकुर- युवाओं में स्किल बढ़ाना तो जरूरी है ही, लेकिन मेरे विचार से स्किल कई बार अस्थायी होता है। उदाहरण के लिए, जब 1990 के दशक में आईटी में बूम आया तो लोगों ने आईटी की स्किल हासिल की। उसके बाद डिमांड आईटी से मैनेजमेंट की तरफ शिफ्ट हो गई तो लोग मैनेजमेंट की स्किल लेने लगे और उसमें ओवर सप्लाई की स्थिति आ गई। मेरे विचार से स्किल तो महत्वपूर्ण है ही, उससे ज्यादा जरूरी है युवाओं को बेहतर उच्च शिक्षा देना, उन्हें स्किल हासिल करने के काबिल बनाना। अगर युवा अच्छी उच्च शिक्षा हासिल करते हैं तो वे जरूरत के हिसाब से स्किल भी हासिल कर लेते हैं। अगर हम विकसित देशों से तुलना करें तो आज भी एनरोलमेंट और ड्रॉप आउट जैसे मामलों में उच्च शिक्षा में हमारी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। इसे सुधारने की जरूरत है।
दूसरी बात यह है कि डेमोग्राफिक डिविडेंड के लिए हमारे पास सिर्फ 15 साल का समय बचा है। इसलिए अगर हमें रोजगार सृजन करना है तो वह जल्दी करना पड़ेगा। इसके लिए मेरे दो सुझाव हैं। पहला यह कि हमारी आधी वर्कफोर्स कृषि में है, हम उन्हें तत्काल वहां से हटा कर कहीं और नहीं लगा सकते। इसलिए कृषि को मजबूत बनाने की जरूरत है, ताकि जो युवा वहां पर हैं वे सस्टेन कर पाएं। दूसरा, भारत में टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग जैसी कई इंडस्ट्री लेबर इंटेंसिव हैं। हम पश्चिम की कैपिटल इंटेंसिव नीति अपना कर अपनी समस्या को दूर नहीं कर सकते। हमें यह पहचान करने की जरूरत है कि किन सेक्टर में लेबर इंटेंसिटी ज्यादा है, जहां ग्रोथ होने से ज्यादा संख्या में लोगों को रोजगार मिलेगा। उन सेक्टर पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।
-अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार बेरोजगारों में 83% युवा हैं। दूसरी तरफ नई इंडस्ट्री के लिए उनके पास स्किल नहीं है। इस गैप को कैसे दूर किया जा सकता है?
मनोरंजन शर्मा- बेरोजगारी किसी भी तरह की हो, वह खराब है। शिक्षित लोगों में बेरोजगारी तो और बुरी बात है। इसके लिए हमें कई बातों पर ध्यान देना पड़ेगा। जैसे डिमांड-सप्लाई में अंतर दूर करना जरूरी है। एमएसएमई जैसे लेबर इंटेंसिव सेक्टर पर ध्यान दिया जा सकता है। शिक्षण संस्थानों की भूमिका भी अहम है कि पाठ्यक्रम में बदलाव कैसे करें। नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि इंडस्ट्री को जिस तरह के लोगों की जरूरत है हम युवाओं को वैसी ही शिक्षा दें। व्यावसायिक शिक्षा तथा उच्च शिक्षा के बीच एक समन्वय स्थापित करने की जरूरत है। अगर हम इन कदमों पर बेहतर तरीके से अमल करें तो अच्छे नतीजे आएंगे।
अवनींद्र ठाकुर- हमने देखा है कि विकास के कार्यक्रम कई बार भौगोलिक रूप से सीमित क्षेत्र में होते हैं। जैसे दिल्ली। विकास की उस प्रक्रिया में गांव और दूर-दराज के इलाके छूट जाते हैं। कोई भी शहर या सेक्टर इतना सक्षम नहीं है कि सभी युवाओं को नौकरी दे सके। इसलिए मुझे लगता है कि क्षेत्रीय असमानता दूर करना जरूरी है। गांवों-कस्बों में हम जो अवसर खो रहे हैं उस पर ध्यान देना होगा। मेरे विचार से विकास के प्रति एक संतुलित नजरिया अपनाने की जरूरत है। आप देखिए, युवाओं में माइग्रेशन बहुत ज्यादा है, चाहे वह शिक्षा के लिए हो या नौकरी के लिए। इसलिए क्षेत्रीय विकास पर ध्यान देना जरूरी है।
-तो क्या रिवर्स माइग्रेशन इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है?
अवनींद्र ठाकुर- अगर अच्छे अवसर मिलें तो निश्चित रूप से इसकी भूमिका अहम हो सकती है। आज शहरों में जो बहुत सी समस्याएं हैं, हम इससे उनका समाधान भी कर सकते हैं। अगर हम रिवर्स माइग्रेशन न कर सकें, माइग्रेशन को रोक भी लें तो वह बड़ा बदलाव होगा।
मनोरंजन शर्मा- मैं यहां एक और बात जोड़ना चाहूंगा। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने एक शब्द दिया था- रर्बनाइजेशन। यह रूरल और अर्बन डेवलपमेंट का प्रभावी सम्मिश्रण है। अगर हमें लोगों को शहरों में आने से रोकना है तो हमें उन्हें मूलभूत सुविधाएं मुहैया करानी पड़ेंगी। इंफ्रास्ट्रक्चर, पानी, सड़क, साफ-सफाई, स्कूल, अस्पताल इन सबकी। जब तक हम समुचित विकास नहीं करते हैं तब तक यह उम्मीद करना बेमानी होगा कि लोग शहरों की तरफ जाना बंद कर देंगे।
-आज के युवाओं में उद्यमिता है। उन्हें फाइनेंस, मेंटॉरशिप और सपोर्ट नेटवर्क के क्षेत्र में मदद भी दी जा रही है। फिर भी 90% से ज्यादा आंत्रप्रेन्योर शुरुआती स्टेज में ही फेल हो जाते हैं। इस अनुपात को कैसे बेहतर किया जा सकता है?
मनोरंजन शर्मा- आंत्रप्रेन्योर के विफल होने के चार कारण होते हैं- क्रेडिट, मार्केटिंग, टेक्नोलॉजी और इंफ्रास्ट्रक्चर। इसके अलावा कई बार उचित प्रशिक्षण की भी कमी होती है। इस दिशा में हाल में सरकार ने कुछ अच्छे कदम उठाए हैं। एमएसएमई को इक्विटी सपोर्ट के लिए 10000 करोड़ रुपये का फंड भी बनाया गया है। यह एक अच्छा कदम है।
अवनींद्र ठाकुर- जब आप आंत्रप्रेन्योरशिप की बात करते हैं तो वहां संतुलित इकोनॉमी जरूरी है। अगर हर कोई आंत्रप्रेन्योर बन जाएगा तो वह बेचेगा किसे। मेरे विचार से सरकारी और निजी क्षेत्र में नियमित नौकरी वालों का अनुपात बढ़ाने की जरूरत है। नियमित आय वाले इकोनॉमी में बड़ी डिमांड क्रिएट करते हैं। आंत्रप्रेन्योरशिप के सामने एक बड़ी समस्या डिमांड की होती है। अगर मांग नहीं होगी तो उद्यमिता का भी विकास नहीं होगा। सिर्फ स्किल काफी नहीं है, उसके साथ अलग तरह का संतुलन और मांग होना भी जरूरी है।
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(डिस्क्लेमरः इस लेख में व्यक्त विचार विशेषज्ञों के हैं। इसका मकसद मतदान का सही फैसला लेने में एंपावर करना है, किसी पक्ष के लिए मत को प्रभावित करना नहीं।)