स्टार रेटिंग से पता ही नहीं चलेगा आपके खाने में सॉल्ट, शुगर या फैट जरूरत से अधिक है- विशेषज्ञ
भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने अनहेल्दी फूड आइटम की पहचान कराने के लिए ऐसा लेबल चुन लिया है जिससे उपभोक्ताओं को अनहेल्दी फूड की कोई चेतावनी तो नहीं मिलेगी। उपभोक्ता जरूर उससे अनहेल्दी फूड आइटम भी हेल्दी समझने लगेंगे। विशेषज्ञ इसे लेकर चिंतित हैं।
स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। बाजार में बिकने वाले पैकेट बंद अनहेल्दी खाद्य पदार्थों से उपभोक्ताओं को चेताने के लिए पूरी दुनिया में फूड पैकेट पर फ्रंट-ऑफ-पैक लेबल (एफओपीएल) लागू करने की कवायद चल रही है। इसी के तहत हमारे देश के खाद्य नियामक भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने ऐसा लेबल चुन लिया है, जिससे उपभोक्ताओं को अनहेल्दी फूड की कोई चेतावनी तो नहीं मिलेगी, उल्टा सबसे अनहेल्दी फूड आइटम भी हेल्दी कैटेगरी में आ जाएगा।
दुनियाभर में मुख्य रूप से पांच एफओपीएल उपयोग किए जा रहे हैं। न्यूट्री-स्कोर, गाइड लाइन डेली अमाउंट, हेल्थ स्टार रेटिंग (HSR), ट्रैफिक लाइट और हाई अलर्ट वॉर्निंग। विशेषज्ञ हाई अलर्ट वॉर्निंग लेबल को सबसे प्रभावी और हेल्थ स्टार रेटिंग (HSR) को सबसे अप्रभावी एफओपीएल मानते हैं। एफएसएसएआई ने पैकेट बंद खाद्य पदार्थों पर इसी हेल्थ स्टार रेटिंग को अपनाने का फैसला लिया है। इस पर लोगों से सुझाव मांगे गए हैं।
दुनिया के सिर्फ दो देशों ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में यह हेल्थ स्टार रेटिंग लागू है, जहां हुए अध्ययन में इसे बेअसर मान लिया गया है। जबकि, यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के अध्ययन में सामने आया है कि हाई अलर्ट का लेबल लगाने से ज्यादा कैलोरी, चीनी, नमक वाले उत्पादों की बिक्री कम हो गई। भारत में भी ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साईंसेज (IIPS) जैसे शीर्ष चिकित्सा एवं शोध संस्थानों द्वारा किए गए अनेक अध्ययनों में सामने आया है कि उपभोक्ता स्पष्ट वार्निंग लेबल को प्राथमिकता देते हैं।
फूड आइटम के पैकेट पर एफओपीएल को लेकर इसी साल एम्स की ओर से किए गए अध्ययन का हवाला देते हुए एम्स जोधपुर के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. पंकज भारद्वाज कहते हैं, ‘‘हमारे शोध ने पुष्टि की है कि वार्निंग लेबल जन स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सबसे अच्छा काम करते हैं। भारत, जहां दिल की बीमारी का वैश्विक भार 25 फीसदी है, वहां गोल्ड स्टैंडर्ड का पालन करना अनिवार्य है।”
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि HSR की कवायद से कंपनियों के बचाव का रास्ता निकाला जा रहा है। एपिडेमियोलॉजिकल फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट प्रोफेसर उमेश कपिल कहते हैं, स्टार रेटिंग से यह नहीं पता चलेगा कि प्रोडक्ट में नमक, शुगर या फैट मानक से अधिक है। स्टार एक जटिल स्कोरिंग प्रणाली द्वारा दिए जाते हैं। यह प्रणाली फायदेमंद चीजों जैसे फल और मेवा को ज्यादा महत्व देती है, फिर भले ही उस प्रोडक्ट में बहुत ज्यादा मात्रा में शुगर या सैचुरेटेड फैट हो। इस प्रणाली में सबसे नुकसानदायक फूड उत्पाद को भी दो स्टार मिल सकते हैं, और उस पर फायदेमंद होने का झूठा तमगा लग सकता है।
डॉ. अलेक्जेंड्रा जोंस ऑस्ट्रेलिया के द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ की पब्लिक हेल्थ लॉयर हैं। उन्होंने वहां खाद्य उत्पादों पर स्टार रेटिंग लागू होने के बाद पड़े प्रभाव का अध्ययन किया है। वे कहती हैं, सात साल से लागू होने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया में सिर्फ 40% फूड पैकेट्स पर स्टार रेटिंग है। यानी उपभोक्ताओं को ज्यादातर फूड पैकेट्स पर स्टार रेटिंग दिखती ही नहीं है। भारत को इससे सबक लेना चाहिए।
उपभोक्ता अधिकार संस्था कंज्यूमर वॉइस के सीओओ आशिम सान्याल ने जागरण प्राइम से कहा, हाई वॉर्निंग लेबल ग्राहकों को स्वस्थ आहार चुनने के लिए सशक्त बनाते हैं। ये देश में बढ़ते गैर-संचारी रोगों पर काबू पाने में मदद करेंगे। हाई सोडियम, चीनी और फैट को केंद्र में रखने से फूड कंपनियां अनहेल्दी फूड आइटम को हेल्दी बताने का खिलवाड़ नहीं कर सकेंगी, लेकिन स्टार रेटिंग से यह संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि एफएसएसएआई ने स्टार रेटिंग चुनने के लिए आईआईएम की रिपोर्ट को आधार बनाया है, जबकि एम्स की रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया।
प्रोफेसर कपिल कहते हैं, हम खतरनाक मात्रा में पैकेज़्ड फूड का उपयोग कर रहे हैं। इनमें शुगर, सोडियम, सैचुरेटेड फैट्स, और रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट बहुत ज्यादा मात्रा में होते हैं। ये डायबिटीज, लिवर और किडनी को नुकसान, दिल की बीमारी, एवं कैंसर का कारण बन सकते हैं। फ्रंट-ऑफ-लेबल का सही उद्देश्य फूड उत्पाद के स्वास्थ्य पर प्रभाव के बारे में साफ और स्पष्ट जानकारी प्रदान करना है, ताकि लोग सही विकल्प चुन सकें। भले ही इरादा नेक हो, लेकिन एफएसएसएआई की ओर से प्रस्तावित इंडिया न्यूट्रिशन रेटिंग से यह उद्देश्य पूरा नहीं हो सकेगा।
गैर-सरकारी संगठन न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट के समन्वयक डॉ. अरुण गुप्ता कहते हैं, फ्रंट-ऑफ-पैक न्यूट्रिशन लेबल (एफओपीएल) में अब तक सबसे अच्छा काम इजरायल का है। वहां, एक्सपर्ट ने सबसे पहले हेल्दी फूड आइटम को छांटकर अलग किया और उसके लिए ग्रीन लेबल निर्धारित कर दिया। इसके बाद जो अनहेल्दी आइमट बच गए, उन्हें इनके इनग्रेडिएंट के हिसाब से हाई शुगर, हाई सॉल्ट या हाई फैट का वॉर्निंग लेबल लगा दिया गया। हमारे यहां एफओपीएल से छूट वाले उत्पादों की सूची तो जारी की गई है, लेकिन ये उपभोक्ताओं को और भ्रमित कर सकती है। उपभोक्ताओं को लग सकता है कि कहीं बिना स्टार रेटिंग के उत्पाद का मतलब अनहेल्दी उत्पाद तो नहीं है।
एफएसएसएआई का रवैया पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत में पैकेज़्ड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड एवं बेवरेजेस का उपयोग हर आय वर्ग और ग्रामीण एवं शहरी, हर इलाके में बढ़ा है। खानपान में यह बड़ा परिवर्तन भारत में डायबिटीज और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के बढ़ने का मुख्य कारण है। यदि इसे रोकने की कवायद को हेल्थ स्टार रेटिंग के जरिए कमजोर किया गया तो इसका खामियाजा देश को बीमार आबादी के तौर भुगतना होगा।