नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी।  भारत की इकोनॉमी तेजी से तरक्की रही है। एक समृद्ध देश बनने के लिए इसे दिन-ब-दिन नई कुलांचे भरनी पड़ेंगी। एक तरफ मेक इन इंडिया ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नए पंख लगाए हैं तो दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय व्यापार बढ़ाने और मजबूत करने के लिए हो रही कवायदें रंग लाती दिख रही हैं। बात चाहे इकोनॉमिक कॉरिडोर की हो या समुद्री सीमा के दोनों तरफ तीन बंदरगाहों का कामकाज अपने हाथों में लेने की बात हो, भारतीय रणनीति हर जगह कामयाब होती दिख रही है। जी-20 के आयोजन में अफ्रीकन यूनियन को शामिल करना हो, ग्लोबल साउथ की बात मुखरता से रखने की हो या फिर जी-7 जैसे मंचों पर भारत की उपस्थिति उसके वैश्विक कद को बढ़ाने के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक समझौतों को प्रगाढ़ कर रही है।

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवाइजर नीरज सिंह मन्हास कहते हैं कि दुनिया भर में कोविड महामारी और भू-राजनीतिक तनाव के कारण स्थितियां बदली हैं। इसकी वजह से अब निवेश पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। कंपनियां अधिक जोखिम नहीं ले रही हैं। चीन में बढ़ती श्रम लागत और आपूर्ति श्रृंखलाओं के "क्षेत्रीयकरण" और "स्थानीयकरण" पर जोर देने से यह कंपनियां भारत को निवेश के लिए अधिक मुफीद मान रही हैं।

भारत सरकार की पीएलआई योजना, जो घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है, ने निवेश गंतव्य के रूप में भारत की दावेदारी को अधिक मजबूत किया है। इंडो-पैसिफिक जियोपॉलिटिक्स मामलों के जानकार आकाश साहू कहते हैं कि भारत तेजी से विकास करने वाला देश है और इसे यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए कि आर्थिक विकास न्यायसंगत, समान रूप से वितरित और टिकाऊ हो। व्यापार समझौतों में सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है ताकि स्थानीय बाजारों पर प्रभाव कम से कम हो और आगामी प्रतिस्पर्धा स्थानीय उत्पादकों को अपने मानकों में सुधार करने की अनुमति दे। यदि इन व्यापार समझौतों पर अच्छी तरह से बातचीत की जाती है और स्थानीय उत्पादक अपने निर्यात उत्पाद को आसानी से आयात करने में सक्षम होते हैं, तो भारत विनिर्माण क्षेत्र में निवेश के लिए एक प्रमुख गंतव्य बन सकता है।

शारदा विश्वविद्यालय की ह्यूमैनिटीज और सोशल साइंसेज की डीन प्रोफेसर अनविति गुप्ता कहती हैं कि भारत को 2047 तक विकसित होने में अफ्रीका और ग्लोबल साउथ अहम भूमिका निभाएगा। वैश्विक व्यवधानों के बावजूद सप्लाई चेन के विविधीकरण ने भारत को प्रमुख निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित किया है। मजबूत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों और रणनीतिक आर्थिक नीतियों के कारण भारत 2047 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने की ओर अग्रसर है। विनिर्माण को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए डिज़ाइन की गई प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना इस परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है।

समझौते रख रहे समृद्ध भारत की नींव

नीरज सिंह कहते हैं कि संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख वैश्विक भागीदारों के साथ व्यापार समझौतों पर बातचीत करने और उन्हें अंतिम रूप देने में भारत के सक्रिय दृष्टिकोण ने विदेशी निवेश के लिए इसके आकर्षण को बढ़ाया है। ये समझौते व्यापार बाधाएं कम करने, बाजार पहुंच बढ़ाने और एक स्थिर व्यावसायिक वातावरण प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त अरब अमीरात के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (सीईपीए) का उद्देश्य व्यापार और निवेश प्रवाह को सुविधाजनक बनाना है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ इसी तरह के समझौते टैरिफ कम करने और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करने पर केंद्रित हैं। ये व्यापार समझौते न केवल भारतीय वस्तुओं के लिए नए बाजार खोलते हैं बल्कि विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इससे विदेशी कंपनियों के लिए एक बड़ा भारतीय बाज़ार भी खुल जाता है।

अनविति गुप्ता इस बात से इत्तेफाक रखती हुई कहती हैं कि संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापार समझौते बनाने में भारत के सक्रिय दृष्टिकोण ने इसकी आर्थिक नींव को और मजबूत किया है। ये समझौते न केवल भारतीय वस्तुओं के लिए बाजार पहुंच बढ़ाते हैं बल्कि तकनीकी आदान-प्रदान और निवेश प्रवाह को भी बढ़ावा देते हैं।

बंदरगाह और कॉरिडोर विकसित भारत की पहचान बनेंगे

नीरज सिंह कहते हैं कि 2047 तक विभिन्न औद्योगिक और आर्थिक गलियारों के विकास के माध्यम से एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत की स्थिति काफी मजबूत होने की उम्मीद है। दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (डीएमआईसी), चेन्नई-बैंगलोर औद्योगिक गलियारा (सीबीआईसी) और अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक गलियारा (एकेआईसी) जैसी परियोजनाएं अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा बनाने, विनिर्माण को बढ़ावा देने और निर्बाध सुविधा प्रदान करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं। इन गलियारों का उद्देश्य प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों को जोड़ना, कनेक्टिविटी बढ़ाना और घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय निवेश आकर्षित करना है।

बढ़ी हुई कार्गो मात्रा को संभालने और परिचालन दक्षता में सुधार के लिए मुंद्रा, जेएनपीटी और विशाखापत्तनम जैसे बंदरगाहों का विस्तार और आधुनिकीकरण किया जा रहा है। इसके अलावा, "सागरमाला" परियोजना जैसी पहल का उद्देश्य बंदरगाह से जुड़े औद्योगीकरण, तटीय आर्थिक क्षेत्रों को विकसित करना और नीली अर्थव्यवस्था की गतिविधियों को बढ़ावा देना है।

अनविति गुप्ता बताती हैं कि विभिन्न आर्थिक गलियारों का निर्माण 2047 तक भारत की आर्थिक स्थिति को पुख्ता करेगा। इससे भारत का वैश्विक कद मजबूत होगा। दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (डीएमआईसी) और चेन्नई-बैंगलोर औद्योगिक गलियारा (सीबीआईसी) जैसी परियोजनाएं विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रही हैं, औद्योगिक विकास को बढ़ावा दे रही हैं और सुविधा प्रदान कर रही हैं। इन गलियारों से महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित होने, रोजगार सृजन बढ़ने और निर्यात को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

इसके अलावा, बंदरगाहों का निरंतर अधिग्रहण और विकास भारत की समुद्री क्षमताओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण है। रणनीतिक बंदरगाहों पर नियंत्रण मजबूत करने से न केवल व्यापार दक्षता बढ़ती है, बल्कि विदेशी बंदरगाहों पर निर्भरता भी कम होती है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला का सुचारू संचालन सुनिश्चित होता है। इस रणनीतिक कदम से भारत एक प्रमुख समुद्री खिलाड़ी के रूप में मजबूत होगा।

नीरज सिंह कहते हैं कि भारत के औद्योगिक गलियारे और बंदरगाह 2030 तक देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। ये गलियारे आर्थिक क्लस्टर बनाकर, निवेश आकर्षित करके और रोजगार के अवसर पैदा करके औद्योगिक विकास को बढ़ावा देंगे। साथ में, ये पहल विनिर्माण को बढ़ावा देगी, निर्यात बढ़ाएगी और एफडीआई को आकर्षित करेगी, जो भारत की आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देगी। शारदा स्कूल ऑफ बिजनेस स्टडीज के डीन प्रोफेसर डॉक्टर कपिल पांडला कहते हैं कि बंदरगाहों का निर्माण और व्यापार गलियारे खोलने से भारत को विकसित भारत @2047 के सपने को साकार करने में मदद मिलेगी।

स्थिरता का भी माहौल आवश्यक

पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि भारत की समृद्धि में अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक संबंध अहम भूमिका निभाएंगे। ये बात भारत सरकार भी जानती है। इसलिए कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा जैसे समझौते भारत के कारोबार और अर्थव्यवस्था को बड़ा उछाल दे सकते हैं। हाल ही केंद्र सरकार ने रणनीतिक संबंधों और रक्षा सहयोग में मजबूती लाने के लिए कई देशों में डिफेंस अताशे की नियुक्ति करने का फैसला किया है। इससे भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट कई गुना बढ़ने की संभावना है। आने वाले समय में भारत रक्षा क्षेत्र में बड़ा निर्यातक बन जाएगा। सरकार ने 30 फीसदी से ज्यादा रक्षा उत्पाद देश में ही बनाने का फैसला लिया है। यह सरकार की दूरदर्शिता और इच्छा शक्ति को दिखाता है। भारत के अन्य देशों से इकोनॉमिक, डिफेंस, एग्रीकल्चर, आईटी और तकनीक संबंधी समझौते देश के आर्थिक विकास को गति प्रदान करेंगे। इन सब बातों के साथ हमें ध्यान रखना होगा कि देश में स्थिरता का माहौल रहे। चीन और पाकिस्तान सहित कई अन्य देश भारत के तेज आर्थिक विकास से खुश नहीं हैं। वे देश में अस्थिरता का माहौल पैदा करने के लिए कई तरह की साजिशें करेंगे। हमें इनसे बचना होगा।

ग्लोबल साउथ और अफ्रीका की मुखर आवाज

नीरज सिंह कहते हैं कि ग्लोबल साउथ और अफ्रीका के लिए एक मुखर वकील के रूप में भारत की उभरती भूमिका 2047 तक इसके वैश्विक प्रभाव और राजनयिक स्थिति को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देगी। विकासशील देशों के हितों की वकालत करके, भारत खुद को संयुक्त राष्ट्र, जी20 और ब्रिक्स जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित कर सकता है। यह नेतृत्वकारी भूमिका भारत को व्यापार, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास पर वैश्विक नीतियों को आकार देने, अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के देशों के साथ मजबूत राजनयिक संबंधों को बढ़ावा देने में सक्षम बनाएगी।

हालांकि, भारत को वैश्विक दक्षिण और अफ्रीका के लिए एक मुखर वकील के रूप में अपनी भूमिका में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें विविध हितों को संतुलित करना, भू-राजनीतिक तनाव का प्रबंधन और घरेलू प्राथमिकताओं को संबोधित करना शामिल हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए, भारत एक सहयोगी दृष्टिकोण अपना सकता है, साझेदार देशों के साथ निरंतर बातचीत कर सकता है और बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा दे सकता है। क्षेत्रीय संगठनों को मजबूत करना, प्रमुख मुद्दों पर आम सहमति बनाना और अपने लोकतांत्रिक मूल्यों का लाभ उठाना भारत की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता को बढ़ा सकता है।

आकाश साहू कहते हैं कि बुनियादी ढांचा भारत के लिए विकास को गति देने का एक प्रमुख तत्व है, लेकिन इन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को उपयुक्त बाजारों और उत्पादकों से जोड़ना महत्वपूर्ण है। भारत लंबे समय से विकासशील दुनिया या ग्लोबल साउथ की आवाज़ रहा है। इसने अतीत में अपने कई साझेदार देशों को उपनिवेश मुक्त करने में भूमिका निभाई और वर्तमान में भी उनका सहयोग करना जारी रखा है। इस सहयोग को आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों तक पर्याप्त रूप से बढ़ाया जाना चाहिए ताकि इन संबंधों की पूरी क्षमता का एहसास हो सके। ग्लोबल साउथ में बढ़ती जनसंख्या, तेज़ शहरीकरण और आर्थिक विकास, अप्रत्याशित जलवायु की चुनौतियां और कमजोर सुरक्षा को देखते हुए, भारत इन देशों के साथ सहयोग का लाभ उठा सकता है।

पीएलआई योजना

शारदा स्कूल ऑफ बिजनेस स्टडीज के डीन प्रोफेसर डॉक्टर कपिल पांडला कहते हैं कि प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना के कारण भारत वास्तव में लाभप्रद स्थिति में है। चीन में आपूर्ति श्रृंखला के मुद्दों के साथ संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौतों को मजबूत करना भारत के लिए इसे भुनाने का एक बड़ा अवसर बन रहा है, हालांकि इसका सकारात्मक प्रभाव कुछ देर बाद दिखाई देगा। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार, बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए पीएलआई योजना 28,636 लोगों को रोजगार प्रदान करके सबसे सफल योजना के रूप में विकसित हुई है और 2020-23 के बीच स्मार्टफोन के निर्यात में 139 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

पीएलआई योजनाओं में नवंबर 2023 तक 1.03 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हुआ है। इस निवेश के परिणामस्वरूप 8.61 लाख करोड़ रुपये का उत्पादन/बिक्री हुई है। इसके अलावा, 6.78 लाख से अधिक नौकरियां (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों) सृजित हुई हैं। इन योजनाओं से संचालित निर्यात 3.20 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया है। निर्यात में बड़े योगदानकर्ताओं में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, फार्मास्यूटिकल्स, खाद्य प्रसंस्करण और दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पाद शामिल हैं।

भारत की प्रगति पूरे विश्व मंच पर डालेगी असर

दावोस में जारी वैश्विक कंसल्टेंसी फर्म ईवाई की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2047 तक भारत की अर्थव्यवस्था 26 लाख करोड़ डॉलर की हो जाएगी। साल 2028 में भारत 5 लाख करोड़ और 2036 में 10 लाख करोड़ के पड़ाव पर पहुंच जाएगा। 'इंडिया एट 100 : रीयलाइजिंग द पोटेंशियल ऑफ 26 ट्रिलियन इकोनॉमी' नाम से पेश इस रिपोर्ट के अनुसार 2047 में प्रति व्यक्ति सालाना औसत आय 15 हजार डॉलर यानी मौजूदा विनिमय दर के लिहाज से करीब 12.25 लाख रुपये पहुंच जाएगी, यह मौजूदा स्तर से 6 गुना से अधिक होगी। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2030 तक भारत जर्मनी और जापान को पीछे छोड़कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन चुका होगा। सभी अनुमान 6 प्रतिशत सालाना औसत वृद्धि दर के आधार पर दिए गए हैं।

ईवाई के सीईओ कार्मिन डी सिबियो ने दावा किया कि भारत ने भारी क्षमताएं दर्शाई हैं, उसकी प्रगति पूरे विश्व मंच पर असर डालने लगी है। रिपोर्ट के अनुसार भारत प्रतिभाओं का सबसे बड़ा सागर है, आर्थिक सुधार तेजी से लागू हो रहे हैं, ऊर्जा के स्रोतों में बदलाव लाए जा रहे हैं और वह डिजिटल रूप में ढल रहा है। यह सभी बातें लंबे समय तक उसे प्रगति के पथ पर अग्रसर रखेंगी। आईटी और अन्य सेवाएं भारत को विश्व में मजबूत स्थान देंगी। पिछले 2 दशक में भारत का सेवा संबंधित निर्यात 14% की दर से बढ़ कर 2021-22 में 25,450 करोड़ डॉलर पहुंच चुका है। इनमें अकेले आईटी और बीपीओ सेवाएं 15,700 करोड़ डॉलर की रहीं। गैर-आईटी में शिक्षा और स्वास्थ्य ऐसे क्षेत्र हैं, जहां भारतीय प्रतिभाएं पूरे विश्व की जरूरतें पूरी करेंगी। खासतौर से विकसित अर्थव्यवस्थाओं में क्योंकि वहां कुशल मानव संसाधनों की कमी होने जा रही है।

थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के अनुसार, यूएई, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से भारत का माल आयात 2019-24 के दौरान लगभग 38 प्रतिशत बढ़कर 187.92 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। दूसरी ओर, एफटीए वाले देशों का निर्यात 2018-19 में 107.20 बिलियन अमरीकी डॉलर से 14.48 प्रतिशत बढ़कर 2023-24 में 122.72 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। जीटीआरआई के आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2019 से वित्त वर्ष 2024 तक, भारत का आयात 37.97 प्रतिशत बढ़कर 136.20 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 187.92 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। आंकड़ों के अनुसार, यूएई को भारत का निर्यात 2023-24 में 18.25 प्रतिशत बढ़कर 35.63 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो 2018-19 में 30.13 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि आयात 61.21 प्रतिशत बढ़कर वित्त वर्ष 2019 में 29.79 बिलियन अमेरिकी डॉलर से पिछले वित्त वर्ष में 48.02 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।

इसी तरह, ऑस्ट्रेलिया को देश का निर्यात, जिसके साथ अंतरिम व्यापार समझौता दिसंबर 2022 में लागू हुआ, 2018-19 में 3.52 बिलियन अमेरिकी डॉलर से दोगुना से अधिक बढ़कर 2023-24 में 7.94 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। 10 देशों के दक्षिण-पूर्व एशियाई ब्लॉक आसियान को निर्यात पिछले वित्त वर्ष में लगभग 10 प्रतिशत बढ़कर 41.21 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वित्त वर्ष 2019 में 37.47 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।

अप्रैल 2024 में भारत का कुल निर्यात (माल और सेवाएं संयुक्त) 64.56 अरब अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जो अप्रैल 2023 की तुलना में 6.88 प्रतिशत की सकारात्मक वृद्धि दर्शाता है। अप्रैल 2024 में कुल आयात (माल और सेवाएं संयुक्त) 71.07 अरब अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जो अप्रैल 2023 की तुलना में 12.78 प्रतिशत की सकारात्मक वृद्धि दर्शाता है। अप्रैल 2024 में गैर-पेट्रोलियम और गैर-रत्न एवं आभूषण निर्यात 26.11 अरब अमेरिकी डॉलर था, जबकि अप्रैल 2023 में यह 25.77 अरब अमेरिकी डॉलर था।

अप्रैल 2024 में गैर-पेट्रोलियम, गैर-रत्न एवं आभूषण (सोना, चांदी और कीमती धातु) का आयात 32.72 अरब अमेरिकी डॉलर था, जबकि अप्रैल 2023 में यह 32.13 अरब अमेरिकी डॉलर था। अप्रैल 2024 के लिए सेवाओं के निर्यात का अनुमानित मूल्य 29.57 अरब अमेरिकी डॉलर है, जबकि अप्रैल 2023 में यह 25.78 अरब अमेरिकी डॉलर था। अप्रैल 2024 के लिए सेवाओं के आयात का अनुमानित मूल्य 16.97 अरब अमेरिकी डॉलर है, जबकि अप्रैल 2023 में यह 13.96 अरब अमेरिकी डॉलर था।

यूरोप का भी बढ़ रहा निवेश

भारत में अगले 15 सालों में 100 अरब डॉलर का निवेश यूरोप के चार देश करेंगे। हाल ही भारत और यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन के बीच एक व्यापार एवं आर्थिक साझेदारी समझौता हुआ है। इसके तहत अगले 15 सालों में ये देश करीब 100 अरब डॉलर का निवेश करेंगे। पहले 10 सालों में 50 अरब डॉलर इनवेस्ट किया जाएगा। उसके बाद पांच साल में बाकी 50 अरब डॉलर इनवेस्ट होंगे। इससे करीब 10 लाख नौकरियां प्रत्यक्ष रूप से मिलेंगी। इस समझौते में स्विट्जरलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और लिकटेंस्टीन शामिल हैं। इसमें स्विट्जरलैंड की सबसे अधिक लगभग 90 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

भारत ने चार यूरोपीय विकसित देशों के इस महत्वपूर्ण आर्थिक ब्लॉक के साथ पहली बार एफटीए किया है। ये समझौता मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के साथ युवा और प्रतिभाशाली श्रमबल को अवसर प्रदान करेगा। एफटीए बड़े यूरोपीय और वैश्विक बाजारों तक भारतीय निर्यातकों को पहुंचने का रास्ता भी प्रदान करेगा। समझौते के अंतर्गत मुख्य फोकस वस्तुओं से संबंधित बाजार पहुंच, उद्भव के नियमों, व्यापार सुगमीकरण, व्यापार उपचारों, स्वच्छता एवं पादप स्वच्छता उपायों, व्यापार से संबंधित तकनीकी बाधाओं, निवेश संवर्धन, सेवाओं पर बाजार पहुंच, बौद्धिक संपदा अधिकारों, व्यापार एवं सतत विकास और अन्य संबंधित कानूनी प्रावधानों पर है। वस्तुओं और सेवाओं में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि करने के लिए निरंतर अवसर बढ़ रहे हैं। ईएफटीए देशों में से स्विट्जरलैंड भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है जिसके बाद नॉर्वे का स्थान आता है। स्विट्ज़रलैंड का 40 प्रतिशत से अधिक सेवा निर्यात यूरोपीय संघ को होता है। भारतीय कंपनियां यूरोपीय संघ तक अपनी बाजार पहुंच बढ़ाने के लिए स्विट्जरलैंड को आधार बना सकती हैं।

इसी के तहत, ग्रीस के एग्रीकल्चर को-ऑपरेटिव ऑफ नेपोली एग्रीनियो तथा एसोसिएशन ऑफ पॉलिश फ्रूट्स एण्ड वैजीटेबल्स डिस्ट्रीब्यूटर्स ‘फ्रूटयूनियन’ ने भारत में यूरोपीय संघ की ओर से सह-वित्तपोषित कैंपेन ‘गार्डन ऑफ यूरोप’ के लॉन्च की घोषणा की है। इसका उद्देश्य भारत में पौलेंड के यूरोपीय सेबों तथा ग्रीस की यूरोपीय किवी की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।

‘गार्डन ऑफ यूरोप’ कैंपेन तीन वर्षीय परियोजना है, जो साल 2027 तक चलेगी। इसके तहत भारत, इंडोनेशिया एवं अन्य बाज़ारों में पौलेण्ड के यूरोपीय सेबों तथा ग्रीस की यूरोपीय किवी के बारे में जागरुकता बढ़ाने और पहुंच बढ़ाने में योगदान देगी। इन देशों को निर्यात बढ़ाना तथा फलों की उच्चगुणवत्ता, सुरक्षामानकों एवं पोषण के फायदों के बारे में जागरुकता बढ़ाना इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य है।

कैंपेन के तहत लक्षित देशों में कार्यालय बनाने के अलावा वेबसाइट बनाना, सोशल मीडिया पर मौजूदगी बढ़ाना, कारोबार मेलों में हिस्सा लेना, बी2बी बैठकों का आयोजन, यूरोप के अध्ययन दौरे का आयोजन तथा उपभोक्ताओं एवं उद्योग जगत के हितधारकों को इन उत्पादों के अनुभव के मौका देना शामिल है।

दुनिया मान रही भारत की ताकत

फाइनेंशियल टाइम्स के मुख्य आर्थिक टिप्पणीकार मार्टिन वुल्फ फॉल ने विश्व आर्थिक मंच में दावा किया कि अगले दो दशक में भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनेगा। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव की मौजूदगी में हुए एक विशेष सत्र में कहा कि उन्हें लंबे समय से यह विश्वास रहा है, और जो लोग लंबे समय से भारत के बारे में जानते हैं वे भी यह मानेंगे। अगले 10 से 20 वर्षों में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनेगा। यह बात पूरी निश्चितता से कही जा सकती है कि वह बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था भी बनेगा। जो इस क्षेत्र से नहीं जुड़ा है या दूसरे क्षेत्रों से ताल्लुक रखता है, वह शायद न समझ पाए कि भारत के मायने क्या हैं। हालांकि आज अधिकतर लोग यह बात जान चुके हैं।

विश्व आर्थिक मंच की बैठक में माइक्रोसॉफ्ट के प्रेसिडेंट ब्रैड स्मिथ ने ‘बिल्डिंग इंडियाज डिजिटल इकोनॉमी : टेक पावर्ड गवर्नेंस’ सत्र में दावा किया कि निकट भविष्य में अमेरिका में जन्मे विद्यार्थी भारत आकर पढ़ाई करेंगे। आज जिस तरह सऊदी अरब तेल के लिए जाना जाता है, भारत की पहचान इंजीनियरिंग के लिए बन चुकी है। स्मिथ ने कहा कि आज भारत के पास दुनिया का सबसे कीमती प्राकृतिक संसाधन है, और वह है प्रतिभावान इंजीनियरों और डाटा वैज्ञानिकों की बेहद बड़ी संख्या। 21वीं सदी की दुनिया यही इंजीनियर और डाटा वैज्ञानिक बना रहे हैं। यह संसाधन अगले 3 दशक तक उपयोगी साबित होगा। एआई उनके लिए नये अवसर पैदा करेगा। स्मिथ ने कहा, भारतीय युवा आज पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने वाले इंजीनियर हैं। वे भारत में रहते हुए सामाजिक तौर पर भी बाकी दुनिया से बेहतर और विविधता भरा अनुभव पा रहे हैं।