एस.के. सिंह, नई दिल्ली। क्या आप जानते हैं कि पिछले साल मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में 178% और बरेली में 160% बढ़ गई? या फिर जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर, राजस्थान के भीलवाड़ा, तमिलनाडु के सलेम और केरल के अलपुझा में साल भर में मान्यता प्राप्त स्टार्टअप 150% से 200% बढ़े हैं? या इस बात से वाकिफ हैं कि बिहार के वैशाली, पश्चिम बंगाल के पश्चिम बर्धमान, ओडिशा के गंजम, महाराष्ट्र के सांगली और औरंगाबाद जैसे जिलों में स्टार्टअप तेजी से उभर रहे हैं?

स्टार्टअप संख्या के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है, और ऊपर लिखे स्टार्टअप इंडिया फैक्ट बुक के तथ्य बताते हैं कि ये कैसे दूर-दराज के इलाकों तक पहुंच कर समावेशी विकास को आगे बढ़ा रहे हैं। देश के 80% जिलों में कम से कम एक मान्यता प्राप्त स्टार्टअप है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ने 2 जुलाई 2024 तक 1,40,991 स्टार्टअप को मान्यता दी है।

सिर्फ क्षेत्र के लिहाज से नहीं, रोजगार देने और लैंगिक भेद दूर करने में भी इनकी समावेशी प्रकृति दिखती है। स्टार्टअप इंडिया फैक्ट बुक के अनुसार 31 दिसंबर 2023 तक 1,17,254 मान्यता प्राप्त स्टार्टअप में 12.42 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ था। एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में स्टार्टअप हर साल 15 लाख नौकरियों का सृजन करते हैं।

दरअसल, स्टार्टअप रोजगार का बड़ा स्रोत बनते जा रहे हैं। वे अलग-अलग सेक्टर में काम करते हैं, इसलिए उनकी वर्कफोर्स में भी विविधता होती है। उनमें अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोगों को काम करने का मौका मिलता है। ऐसे रोजगार का भी सृजन कर रहे हैं जिनके बारे में पहले किसी ने सोचा भी नहीं था। स्टार्टअप महिलाओं के लिहाज से भी समावेशी हैं। दिसंबर 2023 तक 55,816 मान्यता प्राप्त स्टार्टअप में कम से कम एक महिला डायरेक्टर थी।

इनोवेशन से उत्पादकता बढ़ाने में मदद

विशेषज्ञों का कहना है कि समावेशी प्रकृति के कारण स्टार्टअप भारत को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। दरअसल, समृद्धि के लिए उत्पादकता बढ़ाना बेहद जरूरी है। चाहे वह व्यक्ति की हो, मशीन की या खेत की। पारंपरिक तरीकों से उत्पादकता बढ़ाने की एक सीमा होती है, इसलिए इनोवेशन के जरिए नए तौर-तरीके विकसित करना जरूरी है। यहीं पर स्टार्टअप की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। स्टार्टअप उत्पादकता बढ़ाने के साथ इनोवेशन को प्रोत्साहित करते हैं। इनकी सफलता से नई इंडस्ट्री, नए बाजार खड़े हो रहे हैं और प्रतिस्पर्धा बढ़ने से उपभोक्ताओं को फायदा मिल रहा है।

स्टार्टअप्स को कानून सलाह देने वाली अहमदाबाद की फर्म लीगलविज.इन के संस्थापक शृजय शेठ जागरण प्राइम से कहते हैं, “स्टार्टअप में दो बातें महत्वपूर्ण होती हैं- इनोवेशन और तेजी। बड़ी कंपनियां आम तौर पर स्थापित ट्रेड प्रैक्टिस का पालन करती हैं, इसलिए उन्हें अमल में समय लगता है। लेकिन स्टार्टअप विभिन्न समस्याओं का समाधान निकालने में सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाते हैं।” इसलिए वे कम समय और कम खर्च में सॉल्यूशन निकाल सकते हैं।

किसी समस्या का समाधान तलाशने में स्टार्टअप को कई तरीके से मदद मिलती है। इनमें प्रमुख है बाजार की समझ और अफोर्डेबिलिटी। सोशल सेक्टर में काम करने वाले स्टार्टअप में स्थानीय लोग ही अधिक होते हैं, इसलिए वे उपभोक्ताओं की जरूरतों को बेहतर समझते हैं। इससे उन्हें ऐसा सॉल्यूशन बनाने में सहायता मिलती है जिसका अधिक से अधिक लोग इस्तेमाल कर सकें। इससे उन्हें स्केल का भी फायदा मिलता है।

बड़ी कंपनियों की तुलना में स्टार्टअप तेज और एडेप्टेबल होते हैं। वे ऐसे इनोवेशन कर सकते हैं जो उनके ग्राहकों के कम बजट में फिट बैठे। वे ऐसा इनोवेशन भी करने में सक्षम होते हैं जिन्हें सीमित संसाधनों के बूते दूर-दराज के इलाकों में पहुंचाया जा सके। अनेक स्टार्टअप फाइनेंशियल इनक्लूजन, दूर-दराज के इलाकों में शिक्षा जैसे सेगमेंट में काम कर रहे हैं। इससे समाज में समानता लाने में भी मदद मिलेगी।

नए बाजारों में जाने का फायदा

सॉफ्टवेयर ऐज ए सर्विस (SaaS) एक्सेलरेटर उपेक्खा के मैनेजिंग पार्टनर प्रसन्ना कृष्णमूर्ति के अनुसार, “भारत को स्केल के अगले स्तर तक पहुंचाने के लिए हमें अनेक कठिन चुनौतियों का समाधान तलाशना होगा। इसके लिए ऊर्जावान उद्यमियों की जरूरत है। मौजूदा बड़े संस्थानों के आगे बढ़ने के अपने रास्ते, अपने झुकाव होते हैं, लेकिन स्टार्टअप उन बाजारों में अधिक जाते हैं जहां खास सेवाओं की पहुंच नहीं है या कम है। ऐसे बाजारों में प्रवेश करना उनके लिए भी आसान होता है।”

स्टार्टअप इंडस्ट्री की परंपराओं से हट कर नए प्रयोग ला रहे हैं जिससे इकोनॉमी को भी गति मिल रही है। इन्होंने ऐसे इनोवेशन किए जिनसे हमारी जीवन शैली पूरी तरह बदल गई है। गांवों तक डिजिटाइजेशन की पहुंच इसका प्रमाण है। नैसकॉम फाउंडेशन की सीईओ निधि भसीन ने एक ब्लॉग में लिखा है, “डिजिटाइजेशन से लोगों के सशक्तीकरण में क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं, डेटा तक पहुंच और समावेशिता बढ़ी है…। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल 2047 तक भारत को विकसित बनाने का अवसर भी देती है।”

छोटे शहर बन रहे स्टार्टअप का ठिकाना

सबसे अधिक मान्यता प्राप्त स्टार्टअप आईटी, हेल्थकेयर और शिक्षा क्षेत्र में हैं। स्टार्टअप इंडिया फैक्ट बुक के अनुसार दिसंबर 2023 तक आईटी सर्विसेज में 13500, हेल्थकेयर में 11000 और शिक्षा क्षेत्र में 7100 से ज्यादा स्टार्टअप थे। इनमें लगभग आधे टियर 2 और टियर 3 शहरों में हैं। इससे पता चलता है कि कैसे छोटी जगहों पर भी स्टार्टअप कल्चर विकसित हो रहा है।

डीपीआईआईटी से मान्यता प्राप्त स्टार्टअप 57 इंडस्ट्री सेक्टर में हैं। टियर 2 और टियर 3 शहरों में कृषि शीर्ष 5 सेक्टर में शामिल हैं। चेंजमेकर यानी सबसे तेज गति से बढ़ने वाली इंडस्ट्री में वेस्ट मैनेजमेंट और खिलौना/गेम्स इंडस्ट्री शामिल हैं। वर्ष 2020-23 के दौरान वेस्ट मैनेजमेंट में मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या 41 गुना बढ़ कर 907 हो गई। इनमें से 58% टियर 2 और टियर 3 शहरों से थे। इस दौरान खिलौना/गेम्स इंडस्ट्री में मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या 84 गुना बढ़ कर 336 हो गई। इनमें से 41% टियर 2 और टियर 3 शहरों से थे।

समृद्धि के लिए इन चुनौतियों से निपटना जरूरी

देश में स्टार्टअप कल्चर विकसित करने में 16 जनवरी 2016 को शुरू की गई स्टार्टअप इंडिया पहल का योगदान अहम है। लेकिन देश को समृद्ध बनाने में इनकी संभावनाओं के पूर्ण दोहन के लिए कुछ चुनौतियों से निपटना भी जरूरी है। प्रसन्ना के अनुसार, “स्टार्टअप के नजरिए से परिस्थितियों में बड़े महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं। आगे इनके तेजी से आगे बढ़ने के लिए कुछ और कदम जरूरी हैं। जैसे रेगुलेटरी सैंडबॉक्स (जहां स्टार्टअप अपने प्रोडक्ट की लाइव टेस्टिंग कर सकें) तक स्टार्टअप की पहुंच आसान हो, सरकारी/सरकारी कंपनियों की खरीद प्रक्रिया में उनके लिए उचित और आसान शर्तें रखी जाएं।”

स्टार्टअप इंडिया पहल के तहत कई योजनाएं चलाई गई हैं। शृजय शेठ कहते हैं, “देश में स्टार्टअप संस्कृति को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक नीतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती इन नीतियों पर अमल की है। अगर सीड कैपिटल ग्रांट या टैक्स में छूट जैसे प्रावधान हैं तो बड़े स्टार्टअप को कम से कम समय में इन प्रावधानों का फायदा दिया जाना चाहिए।” उनके मुताबिक इनक्यूबेशन सेंटर मदद के मामले में अच्छा काम कर रहे हैं।

स्टार्टअप की संख्या भले बढ़ रही हो, उनके लिए फंडिंग की समस्या है। खास कर शुरुआती दिनों में। कमजोर वर्गों के बीच बाजार तलाशने वाले स्टार्टअप को ज्यादा दिक्कतें आती हैं क्योंकि निवेशक जल्दी रिटर्न के लिए स्थापित बिजनेस मॉडल को प्राथमिकता देते हैं।

स्टार्टअप फंडिंग का आकलन करने वाली ट्रैक्सन टेक्नोलॉजीज की नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत के टेक स्टार्टअप ने जनवरी-जून 2024 में 4.1 अरब डॉलर का निवेश जुटाया। यह 2023 की पहली छमाही से 13% कम है। 2023 की पहली छमाही से तुलना करें तो सीड स्टेज फंडिंग में 17.3% और शुरुआती स्टेज की फंडिंग में 28% गिरावट आई है। बाद के स्टेज की फंडिंग में मामूली सही, पर इसमें भी 1.3% कमी आई है। गौरतलब है कि स्टार्टअप फंडिंग में लगातार दो साल से गिरावट का रुख बना हुआ है।

निधि भसीन के अनुसार, “दुर्भाग्यवश सामाजिक इनोवेशन वाले स्टार्टअप में इक्विटी फंडिंग अपर्याप्त है। इसका कोई अच्छा ईकोसिस्टम भी नहीं है। व्यापक इस्तेमाल योग्य समाधान तैयार करने में पूंजी, टेक्नोलॉजी, मेंटरशिप, इनक्यूबेशन और साझेदारी महत्वपूर्ण है। इसमें निजी क्षेत्र की मदद की जरूरत है।”

नैसकॉम-जिनोव की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार टेक स्टार्टअप की फंडिंग पिछले साल 67% घट कर 6 अरब डॉलर रह गई। लेकिन 60% टेक स्टार्टअप संस्थापकों ने बताया कि रेवेन्यू और मुनाफा बढ़ा है। नए स्टार्टअप में 25% डीपटेक पर फोकस कर रहे हैं। देश में 100 से ज्यादा जेनरेटिव एआई स्टार्टअप काम कर रहे हैं। विश्व स्तर पर देखें तो 2022 में स्टार्टअप्स ने 7.6 लाख करोड़ डॉलर की आर्थिक वैल्यू पैदा की। उस साल टेक स्टार्टअप में 540 अरब डॉलर का निवेश हुआ।

डिजिटाइजेशन बढ़ने के बावजूद भारतीयों में डिजिटल डिवाइड बहुत है। आबादी का बड़ा अनुपात अभी तक स्मार्टफोन से दूर है। भरोसेमंद इंटरनेट की भी समस्या है। ग्रामीण इलाकों में पावर कट, ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक्स की समस्या स्टार्टअप के लिए अपनी सेवाएं उपलब्ध कराने में बाधक हैं। समावेशी विकास के लिए इन बाधाओं को दूर करना जरूरी है।

विशेषज्ञों के अनुसार, सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले स्टार्टअप में निवेश करने वालों को बढ़ावा देने के लिए उन्हें टैक्स में रियायत दी जा सकती है। ऐसे स्टार्टअप में जल्दी रिटर्न मिलना मुश्किल होता है, इसलिए उनके लिए विशेष इनसेंटिव दिया जा सकता है। ग्रामीण इलाकों में डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम से डिजिटल डिवाइड कम किया जा सकता है। कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक्स सुविधाएं सुधारने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि उसका लाभ स्टार्टअप के साथ टार्गेट समुदाय को भी मिले। उन्हें अनुभवी निवेशकों से मेंटरशिप भी दी जा सकती है ताकि वे बिजनेस की चुनौतियों को समझ सकें।

स्टार्टअप के लिए नियम-कानून भी सरल होने चाहिए क्योंकि रेगुलेशन की जटिलताएं और मंजूरी में लगने वाला समय स्टार्टअप के खर्च बढ़ा देता है। इससे इनोवेशन की गति भी धीमी पड़ जाती है। शृजय शेठ के अनुसार, “स्टार्टअप तेजी से उभरते हैं और तेजी से खत्म भी हो जाते हैं। सरकारी निकायों को स्टार्टअप की तेजी के साथ तालमेल बिठाने की जरूरत है।” वे कहते हैं, “मेरे विचार से मदद उपलब्ध कराने में तेजी लाना स्टार्टअप के लिए सबसे बड़ी सहायता होगी। नीतियां तो अनेक उपलब्ध हैं, लेकिन उनका फायदा लेने में स्टार्टअप का काफी समय और प्रयास जाया होता है।”