नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। 

दिल्ली जल संकट की विभीषिका का सामना कर रही है। हर साल गर्मियों में दिल्ली पानी की कमी से जूझती है लेकिन इस बार यह परेशानी ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गई है। पानी का कुप्रबंधन, बेहतर तरीके से संचयन न करना, लीकेज, पानी की बेजा बर्बादी जैसे तमाम कारण है जिसकी वजह से दिल्लीवासी हर गर्मी में पानी की दिक्कत से रूबरू हो जाते हैं। दिल्ली के कई इलाकों में पूरी गर्मी बदस्तूर यही हाल रहता है। रिपोर्ट बताती है कि औसत भारतीय अपनी दैनिक जल आवश्यकता का 30 प्रतिशत बर्बाद कर देता है।

संयुक्त राज्य भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार , प्रति मिनट 10 बूंदें टपकने वाला नल प्रतिदिन 3.6 लीटर पानी बर्बाद करता है। साथ ही, शौचालय के हर फ्लश में लगभग छह लीटर पानी खर्च होता है। सीएसई के आंकडे के अनुसार पानी की बर्बादी का एक और अनुमान बताता है कि हर दिन 4,84,20,000 करोड़ क्यूबिक मीटर यानी 48.42 अरब एक लीटर बोतल पानी बर्बाद होता है, जबकि इस देश में करीब 16 करोड़ लोगों को साफ और ताजा पानी नहीं मिल पाता है।

पूर्व आईएएस केबीएस सिद्धू अपने लेख में लिखते हैं कि मानसून के मौसम में लगातार बारिश और उफनती यमुना नदी से शहर के बड़े हिस्से जलमग्न हो जाते हैं, जिससे हज़ारों निवासियों को अपने घरों से भागने और ऊंची जगहों पर शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। बाढ़ के बीच,उस दौरान भी शहर को पीने योग्य पानी की भयंकर कमी का सामना करना पड़ जाता है। यह एक विडंबना ही है कि लोग कमर तक पानी में चल रहे हैं पर प्यासे हैं।

वह बताते हैं कि 1984 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और हमारे बैचमेट रमेश नेगी ने दिल्ली के जल संसाधनों के प्रबंधन के बारे में बताया कि सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक समाज के सभी वर्गों में इस बात की कमी है कि पानी का सही तरीके से इस्तेमाल कैसे किया जाए। अभिजात्य वर्ग, जो अक्सर सबसे बड़ा अपराधी होता है, हर महीने दिए जाने वाले 20,000 लीटर मुफ्त पानी का दुरुपयोग करता है, खासकर मल्टीफ्लोर कोठियों में, जबकि अमीर और गरीब दोनों को ही नुकसान उठाना पड़ता है। जल वितरण में असमानता बहुत अधिक थी, नियोजित क्षेत्रों को प्रति व्यक्ति प्रति दिन 70 से 100 लीटर (एलपीसीडी) मिलता था, जबकि अनियोजित क्षेत्रों को केवल 20 से 40 लीटर पानी मिलता था। चरम गर्मियों में, जलवायु परिवर्तन के कारण स्थिति और भी गंभीर हो जाती थी।

रूमी एजाज अपने शोध पत्र वाटर सप्लाई इन दिल्ली-फाइव की इश्यू के मार्फत बताते हैं कि कच्चे पानी की अपर्याप्त उपलब्धता पर चिंताओं के बावजूद, विभिन्न तरीकों से बर्बादी जारी है। डीजेबी ने कुल आपूर्ति किए गए पानी के 40 प्रतिशत तक जल वितरण के नुकसान का अनुमान लगाया है। उपचारित पानी का एक हिस्सा पाइपलाइनों में रिसाव के कारण नष्ट हो जाता है। कुछ स्थानों पर, पाइपलाइनों से अवैध दोहन एक मुद्दा है। टैंकर माफिया द्वारा पानी का दुरुपयोग एक और समस्या है। गर्मियों के मौसम में, पाइपलाइनों से पर्याप्त पानी नहीं मिलता है। इसके अलावा, अनधिकृत कॉलोनियों में कई घरों में अभी तक डीजेबी द्वारा पानी की पाइप आपूर्ति नहीं की गई है। ऐसी स्थितियों में, लोगों के पास पानी प्राप्त करने के लिए वैकल्पिक उपायों का सहारा लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है, जैसे कि सरकारी और निजी पानी के टैंकरों से।

इंवायरनमेंटल साइंस डिपॉर्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर ऋतु सिंह कहती है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली इन दिनों जल संकट से जूझ रही है। कई इलाकों को ड्राई जोन घोषित किया जा चुका है। दिल्ली में रोजाना 50 मिलियन गैलन पानी की शॉर्टेज बताई जा रही है। जलवायु परिवर्तन पानी की कमी के पीछे का एक प्रमुख कारण है तो वहीं अत्यधिक उपयोग और बर्बादी ने भी जल संकट के खतरे को और बढ़ा दिया है। वह कहती है कि इस देश में करीब 16 करोड़ लोगों को साफ और ताजा पानी नहीं मिल पाता है। दिल्ली के लोग अगर आज पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं तो इसके पीछे दो कारण हैं- पहला भीषण गर्मी और दूसरा पानी के लिए पड़ोसी राज्यों पर निर्भरता।

जल संकट का सामना कर रहा भारत

भारत में वैश्विक आबादी का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा रहता है, लेकिन वैश्विक जल संसाधनों का केवल चार प्रतिशत ही भारत में है। विश्व बैंक के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता लगभग 1,100 क्यूबिक मीटर है, जो "प्रति व्यक्ति 1,700 m3 की जल संकट की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमा से काफी नीचे है, और प्रति व्यक्ति 1,000 m3 की जल कमी की सीमा के ख़तरनाक रूप से करीब है।" इसकी तुलना में, वैश्विक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 5,500 क्यूबिक मीटर है।

जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास ने मिलकर जल संसाधनों पर दबाव डाला है। आधी सदी पहले, 1970 में, भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्तमान स्तर से 2.5 गुना अधिक थी। 1970 में प्रति व्यक्ति मीठे पानी की उपलब्धता 2,594 m3 थी। विश्व बैंक के अनुसार, यह लगातार कम होकर 1990 में 1,661 m3 और 2020 में 1,036 m3 रह गई।

उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी भारत अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक तनावग्रस्त है। 2020 में, पंजाब ने सीमा से कहीं ज़्यादा 164.4 प्रतिशत पानी निकाला। जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, राजस्थान ने 2020 में अपने वार्षिक भूजल का 150.2 प्रतिशत, हरियाणा ने 134.6 प्रतिशत और दिल्ली ने 101.4 प्रतिशत निकाला ।

कई स्थानों पर जमीन के अंदर रिसाव होता रहता है जिससे होने वाले नुकसान का पता नहीं चलता है। यूरोप, अमेरिका, सिंगापुर, जापान में बर्बादी रोकने के लिए प्रत्येक स्तर पर पानी का आडिट होता है। उपभोक्ताओं द्वारा पानी की खपत का भी आडिट किया जाता है जिससे घरों में होने वाली बर्बादी का पता लगाकर उसे रोकने के कदम उठाए जाते हैं।

अपशिष्ट जल प्रबंधन अनियमितताएं

रूमी एजाज बताते हैं कि उपभोक्ताओं को आपूर्ति किए जाने वाले पानी का लगभग 80 प्रतिशत (720 एमजीडी) उपयोग के बाद अपशिष्ट जल के रूप में नाली में चला जाता है। ताकि यह जीवित प्राणियों और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए, विभिन्न परिसरों में उत्पन्न अपशिष्ट जल को भूमिगत सीवरों के माध्यम से सुरक्षित रूप से स्थानांतरित करने की आवश्यकता है, और फिर इसे पीने योग्य/गैर-पीने योग्य उद्देश्यों के लिए पुन: उपयोग करने, सतही जल निकायों में निपटाने या भूजल को रिचार्ज करने के लिए उपयोग करने से पहले उपचारित किया जाना चाहिए। दिल्ली में, अपशिष्ट जल के प्रबंधन में कई कमियां हैं। वह कहते हैं कि दिल्ली में पानी के मौजूदा और संभावित स्रोतों की क्षमताओं को बचाने और सुधारने के लिए और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

वॉटर बॉडी पर अतिक्रमण

जल शक्ति मंत्रालय द्वारा 2023 में जारी जल निकाय जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में 893 जल निकायों में से 216 या 24.19% पर अतिक्रमण है। रिपोर्ट के अनुसार, जिन जल निकायों पर अतिक्रमण पाया गया, उनमें से 132 पर 75% से अधिक अतिक्रमण था। एक्सपर्ट कहते हैं कि इन जल निकायों को संरक्षित और बनाए रखने में स्थानीय समुदायों की भागीदारी महत्वपूर्ण है, लेकिन इन जल निकायों के मालिक एजेंसियां ​​​​सामुदायिक कार्य या भागीदारी की अनुमति नहीं देती हैं।

असमान वितरण

इसके अलावा, दिल्ली में जल आपूर्ति का अत्यधिक असमान वितरण है और गर्मियों के मौसम में हमारी अनियोजित और अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाले वंचित शहरी निवासियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सीएसई की एक रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण दिल्ली के संगम विहार की घनी, अनियोजित बस्ती में जलापूर्ति, स्वच्छता और जल प्रबंधन की चुनौतियों पर विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि दस लाख से अधिक की आबादी वाली इस बस्ती में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 45 लीटर जलापूर्ति की अत्यंत कम मात्रा है।

बर्बादी रोकने के लिए सिंगापुर व इजरायल से सीखने की जरूरत

दिल्ली को जल संकट से निपटने के लिए विश्व के अन्य देशों से सीखने की जरूरत है। सिंगापुर, इजरायल जैसे देश व विश्व के कई बड़े शहर पानी की बर्बादी रोककर और अपशिष्ट जल को शोधित कर पेयजल संकट को दूर कर रहे हैं। दिल्ली में आधा से अधिक पेयजल चोरी व रिसाव में बर्बाद हो जाता है।

सिंगापुर, टोक्यो सहित अन्य स्थानों पर यह पांच प्रतिशत के आसपास है। दिल्ली जल बोर्ड के पूर्व सदस्य आरएस त्यागी का कहना है कि तकनीक के सहयोग से सिंगापुर की तरह दिल्ली में भी पानी वितरण के दौरान व घर में जल की बर्बादी रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। शोधित अपशिष्ट जल का उपयोग कर जल संकट को दूर किया जा सकता है।

दिल्ली में लगभग 550 एमजीडी शोधित अपशिष्ट जल मिलता है, जिसमें से 89 एमजीडी का उपयोग होता है। शेष पानी बेकार बह जाता है। सिंगापुर ने 2030 तक 70 प्रतिशत अपशिष्ट जल को शोधित कर पेयजल के रूप में उपयोग का लक्ष्य रखकर काम कर रहा है। अन्य देश भी इस दिशा में काम कर पेयजल की आवश्यकता पूरी कर रहे हैं।

पानी का संचय

रूमी एजाज बताते हैं कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग (आरडब्ल्यूएच) भविष्य में उपयोग के लिए वर्षा जल को इकट्ठा करने और संग्रहीत करने के लिए एक प्रभावी तरीका होने के अलावा, भूजल को रिचार्ज करने में भी मदद कर सकता है। हालांकि दिल्ली में एक वर्ष में औसतन 600 मिमी से अधिक वर्षा होती है, लेकिन बहुत कम उपयोग और संचयन होता है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग में सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि उपभोक्ताओं को इस तरह के उपायों में रुचि कम होती है। इसके अलावा, कुछ इमारतों में संरचनात्मक कमियां, जैसे कि वर्षा जल टैंक या गड्ढे बनाने के लिए खाली जगह की कमी होती है। ऐसी स्थिति में बेहतर यह है कि निजी सोसायटियों में स्थापित आरडब्ल्यूएच इस बारे में अधिक प्रयास कर सकता है। दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) शहर में संभावित क्षेत्रों की पहचान कर सकता है जहां सड़कों, फ्लाईओवर, जल-जमाव वाले क्षेत्रों और खुले स्थानों पर गिरने वाले वर्षा जल को इकट्ठा करने के लिए आरडब्ल्यूएच संरचनाएं स्थापित की जा सकती हैं।

लीकेज रोकना अहम

दिल्ली में लीकेज रोक पानी का सही तरीके से प्रबंधन करने से बर्बादी रोकी जा सकती है। एजाज बताते हैं कि डीजेबी द्वारा आपूर्ति किए जाने वाले कुल उपचारित जल का 40 प्रतिशत पाइपलाइन लीकेज, उपचारित जल के दुरुपयोग और बिना मीटर वाले कनेक्शन के कारण बर्बाद हो जाता है। इस प्रकार, पीने योग्य पानी की हानि को रोकने के लिए उचित उपाय किए जाने की आवश्यकता है। सबसे पहले, रिसाव का पता लगाने के लिए बेहतर तकनीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ताकि पाइपों में दोषों की पहचान की जा सके और रिसाव शुरू होने से पहले उन्हें ठीक किया जा सके।

दिल्ली में इतने संयत्र

दिल्ली आर्थिक सर्वेक्षण (वित्त वर्ष 2023-24 ) के अनुसार दिल्ली में कुल 20 अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र (एसटीपी) हैं। इनकी कुल क्षमता 632 एमजीडी है, परंतु 550.07 एमजीडी का उपयोग हो रहा है। इस तरह से 87 प्रतिशत क्षमता का उपयोग हो रहा है। वर्तमान में लगभग 792 एमजीडी अपशिष्ट जल का उत्सर्जन होता है इसमें से सिर्फ 550 एमजीडी का उपचार होता है। ओखला में एशिया का सबसे बड़ा एसटीपी का काम अंतिम चरण में है।