एस.के. सिंह/स्कंद विवेक धर, नई दिल्ली। पिछले बुधवार (19 जून) को बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय परिसर के उद्घाटन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में युवाओं के लिए महत्वपूर्ण बात कही। वे बोले, “जब शिक्षा का विकास होता है, तो अर्थव्यवस्था और संस्कृति की जड़ें भी मजबूत होती हैं…। हम विकसित देशों को देखें, तो पाएंगे कि वे आर्थिक और सांस्कृतिक लीडर तब बने जब वे एजुकेशन लीडर्स हुए…। 2047 तक विकसित होने के लक्ष्य पर काम कर रहा भारत, इसके लिए अपने एजुकेशन सेक्टर का कायाकल्प कर रहा है…। हमारा प्रयास है, भारत में दुनिया की सबसे एडवांस रिसर्च ओरिएंटेड उच्च शिक्षा प्रणाली हो।” प्रधानमंत्री के ये शब्द भारत को एक समृद्ध और विकसित देश बनाने में उच्च शिक्षा के महत्व को बताते हैं। उच्च शिक्षा से ही भारत को युवा डेमोग्राफी का डिविडेंड का लाभ मिल सकता है।

वर्ष 2022-23 के इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि शिक्षा कामकाजी उम्र आबादी की एंप्लॉयबिलिटी (रोजगारपरकता) बढ़ाने के साथ गरीबी और सामाजिक पिछड़ेपन के दुष्चक्र को भी तोड़ती है। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी 4) में भी क्वालिटी शिक्षा की बात है। इसका उद्देश्य 2030 तक समावेशी और समान अवसर वाली क्वालिटी शिक्षा उपलब्ध कराना तथा सबके लिए आजीवन सीखने के अवसर को बढ़ाना है।

इस दिशा में अब के प्रयासों के निश्चित ही सकारात्मक नतीजे निकले हैं। पिछले इकोनॉमिक सर्वे में पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के हवाले से बताया गया है कि युवाओं (15-29 वर्ष) और कामकाजी आबादी (15-59 वर्ष) में औपचारिक व्यावसायिक/तकनीकी प्रशिक्षण बेहतर हुआ है। वर्ष 2018-19 और 2019-20 की तुलना में 2020-21 में इसमें सुधार आया है। यह सुधार शहर और गांव के पुरुषों और महिलाओं सबमें देखने को मिला है। हालांकि बेहतरी के बावजूद हम लक्ष्य से काफी दूर हैं।

भारत अभी दुनिया का सबसे युवा देश है और यही इसका डेमोग्राफिक डिविडेंड है। यहां के नागरिकों की औसत उम्र 28.4 साल है, लेकिन इसका लाभ उठाने के लिए समय कम है। वर्ष 2018-19 के इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार भारत का डेमोग्राफिक डिविडेंड 2041 में शिखर पर होगा। उस समय की आबादी में कामकाजी उम्र वाले 20 से 59 साल के लोग 59% होंगे। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा ने पिछले दिनों एक भाषण में कहा कि डेमोग्राफिक डिविडेंड की स्थिति 2050 के दशक के मध्य तक रहेगी। इस तरह भारत में तीन दशक से ज्यादा समय तक डेमोग्राफिक डिविडेंड रहेगा, लेकिन 2041 के बाद इसमें कमी आने लगेगी।

ग्लोबल कंसल्टेंसी फर्म ईवाई के अनुसार, विकसित देशों के साथ कुछ विकासशील देशों में भी लोगों की औसत उम्र बढ़ने के कारण भारत एडवांटेज की स्थिति में है। भारत की आबादी अपेक्षाकृत युवा है। करीब 26% आबादी 14 साल से कम और 67% आबादी 15 से 64 साल की है। 65 साल या इससे अधिक के सिर्फ 7% लोग हैं। इसके विपरीत 65 साल से अधिक वाले अमेरिका में 17% और यूरोप में 21% हैं।

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में सभी भारतीयों की मिलाकर औसत उम्र 28 साल थी, जबकि चीन और अमेरिका में 37 साल, पश्चिमी यूरोप में 45 साल, जापान में 49 साल थी। भारत की युवा आबादी सर्विसेज और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को सिर्फ लेबर फोर्स उपलब्ध नहीं कराती, बल्कि यह खपत बढ़ाने में भी योगदान करती है क्योंकि युवा कमाई का बड़ा हिस्सा खर्च करते हैं।

युवा वर्ग के लिए चुनौतियां

इस योगदान के लिए कुछ चुनौतियों से निपटना जरूरी है। विशेषज्ञों के अनुसार, युवाओं के संदर्भ में तीन प्रमुख चुनौतियां हैं- उच्छ शिक्षा उपलब्ध कराना, शिक्षित युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराना और रोजगार के लायक स्किल उपलब्ध कराना। ईवाई का आकलन है कि वर्ष 2030 तक भारत में कामकाजी उम्र वाली आबादी 104 करोड़ होगी। अगले एक दशक में दुनिया में आने वाली नई वर्कफोर्स में 24.3% भारतीय होंगे।

दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (दिल्ली यूनिवर्सिटी) के पूर्व विभागाध्यक्ष सीनियर प्रोफेसर सुरेंद्र कुमार कहते हैं, “भारत का डेमोग्राफिक ढांचा देखें तो कह सकते हैं कि हमारे पास एक बड़ी वर्किंग एज आबादी है, जिसका हमें लाभ लेना चाहिए। लेकिन प्रोडक्टिव रोजगार उपलब्ध नहीं कराएंगे तो वह वर्ग डिविडेंड के बजाय लायबिलिटी बन जाएगा। आज यही हो रहा है। इसे सुधारने के लिए शिक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है। उसके साथ रोजगार के अवसर भी चाहिए। दोनों पर काम करना पड़ेगा।”

युवाओं की रोजगारपरकता भी बड़ी चुनौती है। इंडस्ट्री की जरूरत और उपलब्ध स्किल में काफी अंतर है। मैनपॉवर ग्रुप एंप्लॉयमेंट आउटलुक के 2023 की दूसरी तिमाही के सर्वे के अनुसार बेहतर प्रतिभा वाले श्रमिकों की भर्ती करना 79% उद्योगों के लिए चुनौती भरा था। भारत के पास कम स्किल वाली लेबर फोर्स की भरमार है। इसलिए विकास के एजेंडे में उनका ध्यान रखना जरूरी है।

वर्ल्ड बैंक का कहना है कि भारत और इसके पड़ोसी देश अपनी युवा आबादी के लिए पर्याप्त नौकरियों का सृजन नहीं कर रहे हैं। ऐसे में पूरे क्षेत्र के लिए डेमोग्राफिक डिविडेंड खोने का खतरा है। भारत के बारे में खासतौर से इसमें कहा गया है कि तेज आर्थिक विकास के बावजूद भारत पर्याप्त रोजगार सृजन करने में संघर्ष कर रहा है। थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी का हवाला देते हुए उसने कहा है कि 2023 में युवाओं में बेरोजगारी दर 45.4% पर पहुंच गई थी।

जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर और जाने-माने अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार के अनुसार, “हमें शिक्षा का स्तर सुधारना पड़ेगा। एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) बताती है कि 14 से 18 साल की उम्र के 40% बच्चे दूसरी कक्षा की पढ़ाई नहीं कर सकते।”

वे कहते हैं, “डिविडेंड तभी होगा जब अच्छी शिक्षा और रोजगार होंगे, युवा प्रोडक्टिव होंगे, लेकिन भारत में युवाओं में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है। अभी सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि 95% युवाओं को अच्छी शिक्षा नहीं मिलती और शिक्षित युवाओं के सामने रोजगार की समस्या है। हम डेमोग्राफिक डिविडेंड के बजाय डेमोग्राफिक डिजास्टर की ओर बढ़ रहे हैं।”

इसलिए ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के जिंदल स्कूल ऑफ गवर्मेंट एंड पब्लिक पॉलिसी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर डॉ. अवनींद्र नाथ ठाकुर मानते हैं, “अगर हमने अभी इस अवसर को खोया तो शायद इसे हमेशा के लिए खो देंगे। अनेक देशों में आबादी की औसत उम्र बढ़ रही है। भारत में भी कुछ समय बाद ऐसा होने लगेगा। तब उन्हें शिक्षित करना और अर्थव्यवस्था में योगदान के लायक बनाना मुश्किल होगा। युवाओं को तत्काल शिक्षित नहीं किया गया तो वे एसेट के बजाय लायबिलिटी बन जाएंगे।”

यहां एक सवाल उठता है कि क्या डेमोग्राफिक डिविडेंड का अभी लाभ नहीं लेने पर भारत विकसित देश नहीं बन पाएगा? इसे प्रो. अरुण कुमार स्पष्ट करते हैं, “इन दोनों के बीच कोई संबंध नहीं है। डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा यह होता है कि इसमें ग्रोथ की रफ्तार अधिक हो जाती है। औसत उम्र बढ़ने के बाद भी ग्रोथ तो होगी, लेकिन उसकी रफ्तार कम रहेगी।”

वे कहते हैं, “दूसरी बात है कि कामकाजी लोगों पर कितने लोग आश्रित हैं। बुजुर्गों की संख्या के साथ आश्रितों की संख्या भी बढ़ेगी। अभी 15 से 64 साल के आयु वर्ग की बड़ी आबादी है। 15 साल से नीचे और 64 साल से ऊपर के लोग आश्रित माने जाते हैं। आश्रितों की संख्या अधिक हो जाने पर हमें युवा आबादी का बहुत फायदा नहीं मिलेगा।”

घट रही है जन्म की दर

डेमोग्राफी का फायदा मिलने का समय इसलिए भी सीमित है, क्योंकि भारत में आबादी बढ़ने की रफ्तार कम हो रही है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार प्रति महिला टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR- एक महिला कितने बच्चों को जन्म देती है) वर्ष 2000 में 3.2 थी। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के मुताबिक प्रति महिला टीएफआर 2.0 हो गई है, जो 2.1 की रिप्लेसमेंट दर से कम है। जिस जन्म दर पर आबादी स्थिर रहे, उसे रिप्लेसमेंट रेट कहा जाता है।

हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और दक्षिण के राज्यों में फर्टिलिटी दर रिप्लेसमेंट दर से कम हो गई है। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में फर्टिलिटी दर रिप्लेसमेंट दर से अधिक है, लेकिन वहां भी इसमें गिरावट आई है। प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लांसेट के अध्ययन के अनुसार 2050 तक भारत की टीएफआर 1.29 रह जाएगी, जो 2021 में 1.91 थी।

टीएफआर वर्ष 2025 तक घट कर 1.93, 2026-30 के दौरान 1.80 और 2031-35 के दौरान 1.72 रहने का अनुमान है। कुल भारतीय नागरिकों की औसत उम्र 2021 में 28.4 साल थी। वर्ष 2026 में यह 30.4 साल, 2031 में 32.5 साल और 2036 में 34.7 साल हो जाएगी। लोगों की औसत उम्र बढ़ने के साथ स्वास्थ्य सुविधाओं पर ध्यान देना जरूरी होगा। रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने की नौबत भी आ सकती है।

प्रो. सुरेंद्र कुमार के मुताबिक, “उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे कुछ राज्यों में ही फर्टिलिटी रेट 2.5-2.6 मिलेगा। इसी क्षेत्र में गरीबी ज्यादा है। बाकी राज्यों में टीएफआर रिप्लेसमेंट रेट से कम हो रहा है। वहां अगले 15 से 20 वर्षों के दौरान जनसंख्या कम होगी। इससे क्षेत्रीय असंतुलन बन रहा है, जो राजनीतिक और सामाजिक असंतोष पैदा करता है। मैक्रो स्तर पर हम भले ही 2047 तक 14000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय तक न पहुंचें, लेकिन क्षेत्रीय असंतुलन के कारण असंतोष बढ़ा तो उससे आर्थिक गतिविधियां भी प्रभावित होंगी। वह प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने में बाधा बनेगा।”

प्रो. अरुण कुमार भी सचेत करते हैं, “मुझे लगता है कि 2060 में हमारी आबादी 160 करोड़ पर स्थिर होगी। यहां ध्यान देने वाली बात है कि दक्षिण भारत में फर्टिलिटी रेट कम है और उत्तर भारत में ज्यादा। यानी आने वाले वर्षों में दक्षिण भारत में आबादी कम होगी और उत्तर भारत में बढ़ेगी। यह आगे चलकर बड़ी समस्या बन सकती है। डिलिमिटेशन में उत्तर भारत में आबादी अधिक होने के कारण सीटें बढ़ जाएंगी, जबकि दक्षिण में ऐसा नहीं होगा।”

जनसंख्या वृद्धि दर में भी गिरावट

आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, भारत की जनसंख्या वृद्धि दर अगले दो दशक में काफी गिर जाएगी। वर्ष 1971-81 के दौरान आबादी हर साल औसतन 2.5% बढ़ रही थी, जो 2011-16 के दौरान 1.3% रह गई। वर्ष 2021-31 के दौरान यह एक प्रतिशत सालाना से कम होगी और 2031-41 में 0.5% से भी कम रह जाएगी। जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों में अभी यह दर है।

बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में भी दर में गिरावट आई है। दक्षिणी राज्यों के अलावा पश्चिम बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र, ओडिशा, असम और हिमाचल प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि दर 1% से भी कम रह गई है।

टीएफआर घटने के कारण कुछ राज्यों के साथ देश की आबादी की औसत उम्र अगले एक दशक में बढ़ने लगेगी। टीएफआर में गिरावट से शून्य से 19 आयु वर्ग की आबादी शीर्ष पर पहुंच चुकी है और अब यह कम होने लगी है। यह 2011 में 41% थी और 2041 में इसके 25% रह जाने का अनुमान है। दूसरी तरफ 60 साल से अधिक वालों का अनुपात 2011 में 8.6% था, वह 2041 में 16% हो जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र ने 2065 में भारत की आबादी अधिकतम, 170 करोड़ पहुंचने का अनुमान लगाया है। लेकिन टीएफआर और जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट के आधार पर नए अनुमान बताते हैं कि अधिकतम आबादी 2065 से बहुत पहले हासिल हो जाएगी और वह संख्या भी कम होगी। यही नहीं, वर्ष 2100 तक देश की जनसंख्या 100 करोड़ रह जाने का अनुमान है।

आबादी कम होने का मतलब है कामकाजी लोग भी कम होंगे। तब ग्रोथ रेट भी कम होगी। दूसरी तरफ प्रति व्यक्ति आय पांच गुना बढ़ाने के लिए लगातार तेज विकास दर चाहिए। चुनौती ग्रोथ की गति को बनाए रखने की भी है। आईएमएफ के आंकड़ों के अनुसार, 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद सात बार भारत की विकास दर 7.6% के ऊपर रही, लेकिन इस गति को दो साल से अधिक बरकरार नहीं रखा जा सका।

जापान और सिंगापुर में टीएफआर 1.2, दक्षिण कोरिया में 0.82, चीन में 1.23 है। कम टीएफआर वाले कई देश अब ज्यादा बच्चों के लिए इन्सेंटिव दे रहे हैं। चीन ने एक बच्चे की नीति छोड़ दो या तीन बच्चों की नीति अपनाई है, रूस ने ज्यादा बच्चे पैदा करना महिलाओं का राष्ट्रीय कर्तव्य बताया है, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया नकद इन्सेंटिव दे रहे हैं।

भारत की आजादी के 100 साल और डेमोग्राफिक डिविडेंड का चरम दोनों लगभग एक साथ आ रहे हैं। इसलिए भारत को 2047 तक विकसित बनाने का लक्ष्य हम चूक नहीं सकते। इसके लिए चाहे तो हम जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से सीख ले सकते हैं जो पहले इस चरण से गुजर चुके हैं।

ग्लोबल मार्केट रिसर्च और इन्वेस्टमेंट बैंकिंग फर्म नेटिक्सिस के सीनियर इकोनॉमिस्ट ट्रिन गुयेन (Trinh Nguyen) का मानना है, “सिर्फ सर्विस सेक्टर पर फोकस करने से डेमोग्राफिक डिविडेंड का पूरा फायदा नहीं मिलेगा। इसका कारण है कि इस सेक्टर पर पहले ही काफी दबाव है और इसमें ज्यादा लोगों को खपाने की क्षमता अब कम है। जीडीपी में सर्विस सेक्टर की हिस्सेदारी 55% है। भारत का सर्विस निर्यात दुनिया में सातवां सबसे बड़ा है। टेलीकॉम, कंप्यूटर और आईटी सर्विसेज के निर्यात में यह विश्व में दूसरे नंबर पर है।” हाई टेक सर्विसेज सेक्टर भारत की ग्रोथ का नेतृत्व कर रहा है, जिसमें निवेश का तुलना में रोजगार का अनुपात कम होता है।

दूसरी तरफ युवाओं में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और स्किल के अभाव के कारण श्रम सघन मैन्युफैक्चरिंग में डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा नहीं मिल रहा है। बड़े उद्योग पूंजी सघन हो रहे हैं जिसमें मानव श्रम की जरूरत कम पड़ती है। टिकाऊ ग्रोथ के लिए जरूरी है कि टेक्नोलॉजी मानव श्रम की पूरक बने, उसकी जगह न ले। इसलिए प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “बिना सही नीति बनाए न तो हम उन्नत देश बन पाएंगे और न डेमोग्राफिक डिविडेंड को हासिल कर पाएंगे।”