प्राइम टीम, नई दिल्ली। शेयर बाजार में कारोबार करने वाले छोटे निवेशकों की संख्या हाल में तेजी से बढ़ी है। वह भी खास कर फ्यूचर एंड ऑप्शन सेगमेंट में। बीते तीन साल में इस सेगमेंट में रिटेल ट्रेडर लगभग दोगुने हो गए हैं। लेकिन उसी तेजी से उनका नुकसान भी बढ़ रहा है।

बाजार नियामक सेबी की नई रिपोर्ट के अनुसार, इक्विटी फ्यूचर एंड ऑप्शन में 10 में से 9 रिटेल या इंडिविजुअल ट्रेडर को लगातार नुकसान हो रहा है। तीन साल में इन्हें 1.81 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। सिर्फ 2023-24 में इन्हें लगभग 75,000 करोड़ का घाटा हुआ है। सेबी ने इंडिविजुअल ट्रेडर में हिंदू अविभाजित परिवार और एनआरआई को भी शामिल किया है।

भारत में जून 2000 में डेरिवेटिव ट्रेडिंग की शुरुआत हुई थी। सबसे पहले एनएसई ने इंडेक्स फ्यूचर्स शुरू किया था। उसके बाद इंडेक्स ऑप्शन, स्टॉक फ्यूचर्स, स्टॉक ऑप्शन आदि शुरू हुए। लगभग ढाई दशक में भारत दुनिया के सबसे बड़े डेरिवेटिव मार्केट में से एक बन गया है। ट्रेड संख्या के लिहाज से यह शीर्ष पर है।

दरअसल, रिटेल ट्रेडर्स की संख्या 2021-22 में 51 लाख थी, जो 2023-24 में 95.75 लाख हो गई है। इन तीन वर्षों में ट्रांजैक्शन की संख्या 290 करोड़ से 157% बढ़ कर 745 करोड़ हो गई। कुल ट्रेड संख्या में 99.8% रिटेल ट्रेडर्स के हैं, हालांकि कुल टर्नओवर में इनकी हिस्सेदारी सिर्फ 30% है। इनमें नफा-नुकसान के पैटर्न को समझने के लिए सेबी ने 2021-22, 2022-23 और 2023-24 के आंकड़ों का अध्ययन किया है। सेबी ने जनवरी 2023 में भी एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बताया था कि 2021-22 में 89% इंडिविजुअल ट्रेडर को नुकसान हुआ था।

इन तीन वर्षों में 1.13 करोड़ रिटेल ट्रेडर्स ऐसे थे, जिन्होंने कम से कम एक बार एफएंडओ में ट्रेड किया। उन्हें 435.8 लाख करोड़ रुपये की खरीद-बिक्री में 1.81 लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। इसमें 49,480 करोड़ की ट्रांजैक्शन लागत भी शामिल है। इन 1.13 करोड़ रिटेल ट्रेडर्स में से 1.05 करोड़ यानी 92.8% को तीनों साल नुकसान हुआ। दूसरे शब्दों में सिर्फ 7.2% रिटेल ट्रेडर्स तीन साल में मुनाफा कमाने में कामयाब हुए।

घाटा उठाने वालों को हर साल औसतन 1.26 लाख रुपये का नुकसान और मुनाफा कमाने वालों को औसतन 3.08 लाख रुपये का लाभ रहा। सबसे अधिक नुकसान वाले 3.5% ट्रेडर्स को औसतन 28 लाख रुपये का नुकसान हुआ। ऐसे ट्रेडर्स की संख्या चार लाख के आसपास है। सिर्फ एक प्रतिशत इंडिविजुअल ट्रेडर्स ऐसे हैं, जिन्हें एक लाख रुपये से अधिक फायदा हुआ।

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रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में 90.2% ट्रेडर्स, 2022-23 में 91.5% ट्रेडर्स और 2023-24 में 91.1% ट्रेडर्स (73 लाख) को शुद्ध घाटा (ट्रांजैक्शन लागत समेत) हुआ। ट्रांजैक्शन लागत को छोड़ दें तो भी 2023-24 में 85.1% रिटेल ट्रेडर्स घाटे में रहे। इन तीन वर्षों में प्रति व्यक्ति नुकसान का औसत क्रमशः 1.30 लाख, 1.43 लाख और 1.20 लाख रुपये था। सभी रिटेल ट्रेडर्स का नुकसान 2021-22 में 40,824 करोड़, 2022-23 में 65,747 करोड़ और 2023-24 में 74,812 करोड़ रुपये था। वर्ष 2023-24 में लगभग आधे, यानी 42 लाख पहली बार ट्रेड करने वाले थे। इनमें 92.1% को घाटा उठाना पड़ा और हरेक का औसत नुकसान 46,000 रुपये था।

छोटे ट्रेडर घाटे में लेकिन बड़ों को फायदा

इंडिविजुअल ट्रेडर्स के विपरीत प्रॉपराइटरी ट्रेडर्स और एफपीआई मुनाफा कमा रहे हैं। 2023-24 में इंडिविजुअल ट्रेडर्स को 61,000 करोड़ का घाटा हुआ, जबकि प्रॉपराइटरी ट्रेडर्स को 33,000 करोड़ और एफपीआई को 28,000 करोड़ का लाभ हुआ। लाभ उन्हें ही हो रहा है जो ट्रेडिंग में एल्गोरिद्म का इस्तेमाल कर रहे। एफपीआई का 97% और प्रॉपराइटरी ट्रेडर्स का 96% प्रॉफिट एल्गो के जरिए आया।

एफपीआई और प्रॉपराइटरी ट्रेडर मुख्य रूप से एल्गोरिद्म आधारित (एल्गो) ट्रेडिंग करते हैं। कुल 376 में से 306 एफपीआई ने और 626 में से 347 प्रॉपराइटरी ट्रेडर्स ने एल्गो ट्रेडिंग की। दूसरी ओर 95.7 लाख में से सिर्फ 13% रिटेल ट्रेडर ने एल्गो ट्रेडिंग का सहारा लिया। पिछले वित्त वर्ष एनएसई में एल्गो ट्रेडिंग करने वाले 12.47 लाख ट्रेडर्स के मुकाबले 83.43 लाख बिना एल्गो ट्रेडिंग वाले थे।

कम आय वालों में नुकसान का अनुपात अधिक

रिटेल ट्रेडर्स में बड़ी संख्या उनकी है जिनकी सालाना कमाई 5 लाख रुपये से भी कम है। रिपोर्ट के अनुसार साल में 5 लाख रुपये से कम कमाने वाले रिटेल ट्रेडर तीन साल में 71% से बढ़ कर 76% (कुल 65.4 लाख) हो गए। सालाना 5 लाख से 25 लाख कमाई वालों की संख्या 18 % (19.2 लाख) थी। नुकसान का प्रतिशत (92.2%) भी कम आय वालों में अधिक है। उन्हें 2023-24 में प्रति व्यक्ति औसतन 65,000 रुपये का नुकसान हुआ। मध्य आय वर्ग वालों का औसत नुकसान 1.5 लाख रुपये और उच्च आय वालों का 2.6 लाख रुपये था। लेकिन अति उच्च (वेरी हाई) आय वालों को औसतन 96,000 रुपये का फायदा हुआ। महिलाओं और पुरुषों की तुलना करें तो 91.9% पुरुषों के मुकाबले 86.3% महिला ट्रेडर्स को घाटा उठाना पड़ा।

ट्रांजैक्शन कॉस्ट में जा रही है बड़ी रकम

रिटेल ट्रेडर ट्रांजैक्शन लागत के रूप में भी बड़ी रकम चुका रहे हैं। ऐसे हर ट्रेडर ने 2023-24 में औसतन 26,000 रुपये ट्रांजैक्शन कॉस्ट दिया। तीन साल में इन्होंने कुल 50,000 करोड़ रुपये ट्रांजैक्शन कॉस्ट के रूप में दिए। इसमें 51% रकम ब्रोकरेज फीस के तौर पर और 20% एक्सचेंज फीस के तौर पर थी। इन्होंने लगभग 25,000 करोड़ की ब्रोकरेज फीस दी। इसके अलावा 13,800 करोड़ सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी), जीएसटी और स्टांप ड्यूटी के तौर पर चुकाए। एक्सचेंज फीस 10,200 करोड़ रुपये थी।

बढ़ती संख्या के कारण तीन साल में रिटेल ट्रेडर्स की तरफ से चुकाई गई ट्रांजैक्शन लागत दोगुनी से भी ज्यादा हो गई। ट्रांजैक्शन लागत 2021-22 में 10,047 करोड़, 2022-23 में 16,982 करोड़ और 2023-24 में 22,451 करोड़ रुपये थी। इसमें 51% ब्रोकरेज फीस, 20% एक्सचेंज फीस, 15% सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी), 13% जीएसटी और बाकी स्टांप ड्यूटी और सेबी फीस थी। इन तीन वर्षों में ट्रांजैक्शन की संख्या 290 करोड़ से 157% बढ़ कर 745 करोड़ हो गई।

युवाओं और छोटे शहरों की बड़ी भागीदारी

एफएंडओ सेगमेंट में 30 साल से कम उम्र के युवा ट्रेडर्स की संख्या काफी बढ़ रही है। 2022-23 में 31% ट्रेडर इस श्रेणी के थे, जो 2023-24 में 43% हो गए। इनमें 93% को नुकसान सहना पड़ा। यह 2023-24 के कुल औसत (91.1%) से ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार, 72% से ज्यादा ट्रेडर शीर्ष 30 शहरों के थे। तुलनात्मक रूप से देखें तो म्यूचुअल फंड के 62% निवेशक इन शहरों के होते हैं। इनमें भी चार राज्यों की हिस्सेदारी 50% से ज्यादा है। इंडिविजुअल ट्रेडर्स में 21.7% महाराष्ट्र के, 11.6% गुजरात के, 10.7% उत्तर प्रदेश के और 6.2% राजस्थान के हैं।

ऑप्शन की तुलना में फ्यूचर का प्रदर्शन बेहतर

फ्यूचर और ऑप्शन सेगमेंट में रिटेल ट्रेडर्स के प्रदर्शन में काफी अंतर है। वित्त वर्ष 2023-24 में फ्यूचर्स में उन्होंने 13,400 करोड़ का मुनाफा कमाया। फ्यूचर्स ट्रेडिंग में 2021-22 में 67.5% रिटेल ट्रेडर्स को नुकसान हुआ, जबकि ऑप्शन में 90.4% लोग घाटे में रहे। वर्ष 2022-23 में यह आंकड़ा क्रमशः 71.1% और 91.6% रहा। वर्ष 2023-24 में फ्यूचर्स में सुधार हुआ और सिर्फ 59.6% रिटेल ट्रेडर्स को नुकसान हुआ, जबकि ऑप्शन में 91.5% ट्रेडर घाटे में रहे। बीते वर्ष फ्यूचर्स में प्रति व्यक्ति औसतन 60,000 रुपये का लाभ हुआ, जबकि 2022-23 में 1.28 लाख रुपये का घाटा उठाना पड़ा था। ऑप्शन में 2022-23 के 1.03 लाख रुपये के औसत घाटे की तुलना में पिछले साल का औसत घाटा 91,000 रुपये था।

रिटेल निवेशकों के लिए क्या हो सकते हैं उपाय

एक बड़ी ब्रोकिंग कंपनी के आला अधिकारी ने जागरण प्राइम से कहा, रिटेल निवेशकों को एफएंडओ कारोबार में होने वाले नुकसान से बचाने का एक ही तरीका है कि उन्हें इससे दूर रखा जाए। अमेरिका का उदाहरण देते हुए अधिकारी ने कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा शेयर बाजार होने के बावजूद वहां ज्यादातर एफएंडओ कारोबार संस्थागत निवेशक करते हैं। वजह, अमेरिकी बाजार में एफएंडओ ट्रेडिंग के लिए कुछ पैमाने तय कर दिए गए हैं, इसमें आय और पढ़ाई का पैमाना काफी महत्वपूर्ण है। अधिकारी ने कहा, अगर भारत में रिटेल निवेशकों को एफएंडओ में होने वाले नुकसान से बचाना है तो यहां भी एक तय किस्म की पढ़ाई और आय को पैमाना बनाया जा सकता है।