SME IPO में निवेश से पहले देखें वाजिब दाम, मैनेजमेंट रिकॉर्ड और मेनबोर्ड में जाने की उसकी संभावना: एक्सपर्ट
एसएमई आईपीओ में बीते 2-3 वर्षों में तेजी के बीच कुछ प्रमोटर व इन्वेस्टमेंट बैंकर्स मिल कर इसमें मैनुपुलेशन करने लगे हैं। मामला सामने आने के बाद सेबी ने जांच और कार्रवाई शुरू की है। स्टॉक एक्सचेंजों ने भी नियमों को सख्त किया है। बहरहाल विशेषज्ञ निवेशकों को नुकसान से बचने के लिए एमएमई आईपीओ में चार बातों का खास ध्यान रखने की सलाह दे रहे हैं।
स्कन्द विवेक धर/एसके सिंह, नई दिल्ली। यामाहा के दो शोरूम और 8 कर्मचारियों वाली पश्चिमी दिल्ली की एक छोटी सी कंपनी रिसोर्सफुल ऑटोमोबाइल के 11.39 करोड़ रुपए के एसएमई आईपीओ को 2700 करोड़ रुपए से ज्यादा बोली मिलने की खबर ने पिछले महीने जबरदस्त चर्चा बटोरी। साथ ही इसने पिछले कुछ समय से एसएमई आईपीओ को लेकर रिटेल निवेशकों में मची भेड़चाल और कुछ मामलों में प्रमोटरों की ओर से की जा रही गड़बड़ी को यकबयक सामने ला दिया। बहरहाल, रिसोर्सफुल ऑटोमोबाइल के शेयर लिस्टिंग के एक महीने के भीतर ही इश्यू प्राइस 117 रुपए से 38% नीचे 72.50 रुपए पर आ चुके हैं।
प्राइमडेटाबेस की ओर से जागरण प्राइम को मिले एक्सक्लूसिव डेटा बताते हैं कि पिछले चार साल में देश में कुल 533 एसएमई आईपीओ आए हैं। इनसें से 111 आईपीओ इस समय इश्यू प्राइस से नीचे नुकसान में ट्रेड कर रहे हैं। इसे इस तरह से भी समझ सकते हैं कि हर पांच में से एक एसएमई आईपीओ आज नुकसान में है।
SME IPO के फायदे और नुकसान
एचडीएफसी सिक्युरिटीज में रिटेल रिसर्च के प्रमुख दीपक जासानी कहते हैं, एसएमई आईपीओ काफी ओवरसब्सक्राइब हो रहे हैं और उनकी लिस्टिंग भी ऊंचे प्रीमियम पर हो रही है। इसके कई कारण हैं। एक तो इन आईपीओ का आकार छोटा होता है। फिर, ग्रे मार्केट में इनमें बहुत लेन-देन होता है। इनके अलावा फ्लोटिंग शेयर (जिनमें खरीद-बिक्री हो सकती है) भी सीमित होते हैं। ये कारण मिलकर एक दुष्चक्र बनाते हैं। लेकिन अगर आप साल भर का प्रदर्शन देखें तो वह उतना अच्छा नहीं होता है।
प्रभुदास लीलाधर इन्वेस्टमेंट बैंकिंग में कॉरपोरेट फाइनेंस के डायरेक्टर निपुण लोढा कहते हैं, एसएमई आईपीओ में कई जोखिम हैं। सबसे पहला जोखिम तो यह है कि बाजार में लिक्विडिटी अचानक कम होने पर निवेशकों के लिए निकलना मुश्किल हो जाता है। दूसरा, रेगुलेशन में भविष्य में होने वाले बदलावों से एलिजिबिलिटी के मानदंड सख्त हो सकते हैं। इनके अलावा बिजनेस में प्रदर्शन का भी जोखिम है। लगभग 50% कंपनियों की ग्रोथ उम्मीद के मुताबिक नहीं होती है।
इसके बावजूद एसएमई आईपीओ की संख्या बढ़ने के कारण गिनाते हुए लोढा कहते हैं, मेन बोर्ड इश्यू की तुलना में एसएमई आईपीओ ने ऐतिहासिक रूप से बहुत ज्यादा रिटर्न दिया है। बिजनेस का आकार छोटा होने के कारण अक्सर इनकी इश्यू प्राइस बड़ी लिस्टेड कंपनियों की तुलना में कम रहती है। इसलिए लिस्टिंग के बाद उनके भाव बढ़ने की काफी गुंजाइश रहती है। दूसरा कारण है लिक्विडिटी, बाजार में इस समय लिक्विडिटी अच्छी है और निवेशक जम कर पैसा लगा रहे हैं। एएसबीए (एप्लिकेशन सपोर्टेड बाइ ब्लॉक्ड अमाउंट) में आईपीओ में आवेदन के बाद फंड तो ब्लॉक हो जाता है, लेकिन रिफंड भी समय पर होता है। इसलिए निवेशक को दूसरे आईपीओ में दांव लगाने का मौका मिल जाता है।
आईपीओ में आवेदन का साइज भी एक कारण है। मेन बोर्ड आईपीओ के 15,000 रुपये की तुलना में एसएमई आईपीओ में न्यूनतम आवेदन एक लाख रुपये का होता है। इससे शेयर एलॉटमेंट की संभावना बढ़ जाती है और आगे फायदा हुआ तो वह भी बड़ा होता है।
SME IPO में निवेश करने से पहले क्या जानें?
जासानी कहते हैं, निवेशकों को अपने स्तर पर भी पर्याप्त रिसर्च करनी चाहिए और ग्रे मार्केट के प्रीमियम के चक्कर में नहीं फंसना चाहिए। ऐसे आईपीओ में पैसा लगाने से पहले उन्हें कंपनी के फंडामेंटल और उसके मुताबिक शेयर की वैल्यू को देखना चाहिए। अगर वे इस क्रेज में शामिल होते भी हैं तो शेयर एलॉट होने के कुछ दिनों बाद ही उससे निकल जाना ठीक रहेगा, चाहे उन्हें जितना नफा या नुकसान हुआ हो।
वहीं, निपुण लोढा कहते हैं कि एसएमई आईपीओ में पैसा लगाने से पहले निवेशकों को कुछ बातों पर खास तौर से ध्यान देना चाहिए। कंपनी में तीन साल में मेन बोर्ड में जाने की क्षमता होनी चाहिए। कंपनी जिस बिजनेस में है, उसका बाजार बड़ा हो ताकि वह लगातार आगे बढ़ सके। कंपनी की मैनेजमेंट टीम में अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले लोग हों। उस बिजनेस की पहले से लिस्टेड कंपनियों की तुलना में आईपीओ में शेयर की वैल्यू प्रतिस्पर्धी हो।
भारत में SME IPO
देश के छोटे और मध्यम उद्यम की पूंजी की जरूरत को पूरा करने के लिए साल 2010 में बाजार नियामक सेबी ने शेयर बाजारों को एसएमई के लिए अलग प्लेटफॉर्म बनाने के निर्देश दिए थे। बीएसई ने लंदन के एआईएम, कनाडा के टीएसएक्सवी, हांगकांग के जीईएम, जापान के मदर्स और कोरिया के कॉस्डैक का अध्ययन करने के बाद बीएसई एसएमई एक्सचेंज का गठन किया, जिसे सितंबर 2011 में सेबी की मंजूरी भी मिल गई। अगले साल यानी 2012 में एनएसई ने भी अपने एसएमई प्लेटफॉर्म एनएसई इमर्ज की शुरुआत की।
नया जरिया होने के चलते इसकी शुरुआत धीमी रही और पहली 200 कंपनियों की लिस्टिंग कराने में बीएसई को छह साल और एनएसई को सात साल लग गए। यह धीमी रफ्तार साल 2020 तक जारी रही, लेकिन कोविड के बाद से हालात बदलने लगे।
प्राइमडेटाबेस के आंकड़े बताते हैं, साल 2020 में 16 कंपनियों ने एसएमई आईपीओ के जरिए 96.67 करोड़ रुपए जुटाए थे, अगले साल आवेदन करने वाली कंपनियों की संख्या (59) तीन गुना और जुटाई गई राशि (746.15 करोड़ रुपए) बढ़कर 7 गुना से अधिक हो गई। 2022 में 109 कंपनियों ने एसएमई आईपीओ के जरिए 1874.81 करोड़ रुपए, जबकि साल 2023 में 182 कंपनियों ने 4686.18 करोड़ रुपए एसएमई आईपीओ के जरिए जुटाए। 2024 के पहले आठ महीनों में ही 167 एसएमई आईपीओ के जरिए बाजार से 5489.71 करोड़ रुपए जुटा चुकी हैं।
हाल के दिनों में एसएमई आईपीओ के प्रति बढ़े क्रेज का अंदाजा सेबी की 2023-24 की सालाना रिपोर्ट से भी मिलता है। इसके अनुसार, बीते दो वित्तीय वर्ष में एसएमई आईपीओ का औसत आकार 18.7 करोड़ से बढ़ कर 31.1 करोड़ रुपये हो गया। वर्ष 2022-23 में एसएमई आईपीओ औसतन 51.7 गुना सब्सक्राइब हुए थे, 2023-24 में 122.2 गुना सब्सक्राइब हुए। बीएसई का एसएमई आईपीओ इंडेक्स एक साल में करीब 160% बढ़ चुका है। इस वर्ष जनवरी से अब तक इसमें लगभग 115% की वृद्धि हुई है। तुलनात्मक रूप से देखें तो बीएसई सेंसेक्स एक साल में 21% और जनवरी से अब तक 13% बढ़ा है।
एसएमई आईपीओ में यह तेजी इसलिए आई क्योंकि रिटेल निवेशकों ने इसे हाथोहाथ लेना शुरू कर दिया है। कुछ कंपनियों के आईपीओ तो लिस्टिंग के दिन ही दोगुने हो गए। एक जुलाई को शिवालिक पावर कंट्रोल की लिस्टिंग 211 प्रतिशत अधिक कीमत पर हुई थी। इसके तीन दिन बाद नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने 4 जुलाई को नया नियम जारी करते हुए लिस्टिंग के दिन इश्यू प्राइस के ऊपर 90% की सीमा लगा दी। आरोप है, इस भेड़चाल का फायदा उठाने के लिए कुछ प्रमोटरों ने गड़बड़ियां भी शुरू कर दीं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सेबी करीब आधा दर्जन इन्वेस्टमेंट बैंकर्स की भी जांच कर रही है। सेबी ने पाया है कि इन इन्वेस्टमेंट बैंकर्स ने कंपनियों से उनके एमएमई आईपीओ के माध्यम से जुटाई गई धनराशि के 15% के बराबर शुल्क लिया है। यह भारत में 1-3% की मानक प्रथा से बहुत अधिक है। इसके बदले में उन्होंने सब्सक्रिप्शन के आवेदन को वास्तविक से कई गुना अधिक दिखाया। इसके चलते निवेशकों में इन्हें खरीदने की होड़ मच गई।
बाजार नियामक सेबी को इन गड़बड़ियों के संकेत पहले ही मिलने लगे थे। सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच ने इसी साल 11 मार्च को म्यूचुअल फंड कंपनियों के संगठन एम्फी के कार्यक्रम में इस गड़बड़ी की ओर सबसे पहले आगाह करते हुए कहा कि नियामक को एसएमई शेयरों की कीमतों में मैनिपुलेशन के संकेत मिले हैं। हम कार्रवाई करने के लिए और सबूत जुटा रहे हैं।
बुच ने निवेशकों को सतर्क रहने की सलाह देते हुए कहा था कि ये (एसएमई) अपेक्षाकृत छोटी कंपनियां हैं, इनका मार्केट कैप कम है और फ्री-फ्लोट (ट्रेडिंग वाले शेयर) भी छोटा रहता है, इसलिए इनमें आईपीओ और उसके बाद ट्रेडिंग के स्तर पर मैनिपुलेट करना आसान होता है। निवेशकों को समझना चाहिए कि एसएमई सेगमेंट मेनबोर्ड से अलग होता है, यहां रेगुलेशन और डिस्क्लोजर के मानक अलग होते हैं। इसलिए जोखिम भी अलग तरह का होता है।
इससे पहले सेबी प्रमुख ने 19 जनवरी को भी एक कार्यक्रम में कहा था कि रेगुलेटर तीन आईपीओ की जांच कर रहा है। संदेह है कि इन आईपीओ में कंपनियों ने सब्सक्रिप्शन की संख्या वास्तविक से ज्यादा दिखाई। हालांकि उन्होंने कंपनियों के नाम नहीं लिए, लेकिन बाजार विशेषज्ञों का कहना था कि ये एसएमई कंपनियां हो सकती हैंं, जहां कुछ समय से आईपीओ को लेकर काफी हलचल है।
महज दो मोटरसाइकिल शोरूम चलाने वाली कंपनी रिसोर्सफुल ऑटोमोबाइल को 2700 करोड़ रुपए की बोली ने बाजार नियामक और स्टॉक एक्सचेंजों को झकझोरने का काम किया। सेबी ने 28 अगस्त को औपचारिक रूप से निवेशकों को सावधान करते हुए एक एडवाइजरी जारी की। इसमें कहा गया, लिस्टिंग के बाद कुछ एसएमई कंपनियां और उनके प्रमोटर अपने कामकाज की अवास्तविक तस्वीर बताते हैं। ऐसी कंपनियां और उनके प्रमोटर सार्वजनिक घोषणाएं करते हैं, ताकि लोगों के बीच कंपनी के बारे में अच्छी तस्वीर बने। इन घोषणाओं के बाद बोनस इश्यू, स्टॉक स्प्लिट, प्रेफरेंशियल एलॉटमेंट जैसे कॉरपोरेट एक्शन भी होते हैं। इससे निवेशकों के बीच कंपनी को लेकर सकारात्मक सेंटीमेंट बनता है और वे उसके शेयर खरीदने लगते हैं। तब प्रमोटर ऊंची कीमतों पर शेयर बेच देते हैं।
एसएमई स्टॉक में पैसा लगाने से पहले निवेशकों को सावधानी बरतने की सलाह देते हुए सेबी ने कहा कि बिना वेरीफिकेशन वाले सोशल मीडिया पोस्ट पर भरोसा न करें और सिर्फ टिप्स तथा अफवाहों के आधार पर पैसा लगाने से बचें।
एनएसई ने भी एसएमई आईपीओ पर सख्ती करते हुए कुछ नए मानदंड शामिल कर दिए। इसमें यह शर्त जोड़ी गई कि एसएमई आईपीओ के आवेदन से पहले कंपनी के पास 3 वित्तीय वर्षों में से कम से कम 2 के लिए इक्विटी में पॉजिटिव फ्री कैश फ्लो (एफसीएफई) होना चाहिए।
सेबी ने एसएमई से मेनबोर्ड में जाने वाली कई कंपनियों के खिलाफ भी कार्रवाई की है। ऐसी ही एक कंपनी है जयपुर की डेबॉक इंडस्ट्रीज लिमिटेड। कृषि उपकरण, खनन और हॉस्पिटैलिटी सर्विसेज का बिजनेस करने वाली यह कंपनी 31 मार्च 2022 को एनएसई मेनबोर्ड एक्सचेंज में शिफ्ट हुई थी। अचानक बिजनेस बढ़ने पर एनएसई ने जांच की तो पाया कि इसकी 2021-22 और 2022-23 में 75% बिक्री और 95% खरीद रिलेटेड पार्टियों के बीच हुई थी। इस तरह कंपनी ने बैलेंस शीट को गलत तरीके से बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया। सेबी ने इसी साल 23 अगस्त को डेबॉक इंडस्ट्रीज और इसके मैनेजमेंट के भारतीय शेयर बाजार में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ट्रेडिंग पर रोक लगा दी। साथ ही, 89 करोड़ रुपये की अवैध कमाई भी जब्त करने का आदेश दिया।
SME IPO में कहां हुई चूक?
छोटे कारोबारियों के लिए पूंजी जुटाना आसान बनाने के लिए सामान्य आईपीओ की तुलना में एसएमई आईपीओ की प्रक्रिया को आसान रखा गया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है कि मेनबोर्ड आईपीओ में ड्राफ्ट रेड हियरिंग प्रॉस्पेक्टस की जांच और मंजूरी सेबी द्वारा की जाती है, जबकि एसएमई आईपीओ के ड्राफ्ट की जांच एक्सचेंज स्तर पर होती है। हाल में एक्सचेंजों ने आईपीओ की इच्छुक कंपनियों के मुनाफे पर अधिक ध्यान दिया है।
एसएमई आईपीओ को लेकर एनएसई और बीएसई का रुख जानने के लिए जागरण प्राइम ने उनसे ईमेल पर संपर्क किया। एनएसई ने जवाब में एसएमई आईपीओ एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया की लिस्ट भेजी, जबकि बीएसई ने कोई जवाब नहीं दिया। जवाब आने पर खबर अपडेट कर दी जाएगी।