एस.के. सिंह, नई दिल्ली। भारत में आज स्किल्ड टैलेंट की जितनी मांग है, वैसी पहले कभी नहीं थी। वजह है, देश में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर यानी जीसीसी (GCC) की बढ़ती संख्या। इनमें प्रोफेशनल्स की मांग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, डेटा एनालिटिक्स, साइबर सिक्योरिटी, फुल-स्टैक डेवलपमेंट, यूआई/यूएक्स, क्लाउड कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में है। ये टेक्नोलॉजी कंपनियों के अलावा बैंकिंग और फाइनेंस, ऑटोमोबाइल, टेलीकॉम और रिटेल सेक्टर की कंपनियों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के वैश्विक ऑपरेशन में भी बढ़-चढ़कर भूमिका निभा रहे हैं।

पिछले दो साल में भारतीय आईटी कंपनियों के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी या तो छंटनी की है या नई भर्तियां कम की हैं। लेकिन इन्हीं दो वर्षों में जीसीसी में बड़े पैमाने पर लोगों को जॉब मिली है। इनमें फ्रेशर तो हैं ही, पुरानी आईटी कंपनियां छोड़कर आने वाले भी हैं। स्किल्ड प्रोफेशनल्स की बढ़ती मांग को देखते हुए जीसीसी की तरफ से कैंपस हायरिंग भी बढ़ी है। अच्छे अंक पाने वाले ग्रेजुएट्स को अच्छा पैकेज भी मिल रहा है। उन्हें ज्वाइनिंग बोनस, लर्निंग एंड डेवलपमेंट (एलएंडडी) बजट, रेस्ट्रिक्टेड स्टॉक यूनिट (आरएसयू) और हेल्थकेयर बेनिफिट के साथ प्रोफेशनल डेवलपमेंट के अवसर भी ऑफर किए जा रहे हैं। प्रतिभाएं महानगरों से बाहर भी हैं, इसलिए टियर-2 शहर जीसीसी हायरिंग के महत्वपूर्ण केंद्र बनते जा रहे हैं।

नैस्कॉम-जिनोव की नई रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 से 2023-24 के दौरान भारत में जीसीसी की संख्या 1285 से बढ़कर लगभग 1700 हो गई। इनमें 1090 अमेरिका की, 480 यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका की और 140 एशिया-प्रशांत क्षेत्र की कंपनियों के सेंटर हैं। पिछले पांच साल में यहां ज्यादातर जीसीसी अमेरिकी कंपनियों ने खोले हैं। लगभग 40 ग्लोबल यूनिकॉर्न ने यहां अपने केंद्र खोले हैं, जिनमें 35 अमेरिका के हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों में अनेक भारतीय ग्लोबल सीटीओ की भूमिका में हैं और वे सीधे ग्लोबल सीईओ या एक्जीक्यूटिव बोर्ड को रिपोर्ट करते हैं।

बहुराष्ट्रीय कंपनियां जब नॉलेज-आधारित टैलेंट, लागत और ऑपरेशनल क्षमता का लाभ उठाने के लिए दूसरे देशों में अपनी इकाई खोलती हैं, तो उसे ग्लोबल कैपेसिटी सेंटर कहा जाता है। इनमें मुख्य रूप से टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग से जुड़े कार्य होते हैं। एमएनसी की सर्विस प्रोवाइडर या सेल्स जैसी इकाइयां इसके दायरे में नहीं आती हैं।

भारत में जीसीसी की शुरुआत

टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स नाम की कंपनी ने 1985 में भारत में अपना एक केंद्र खोला था। उसे यहां पहला ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर माना जाता है। 1991 में उदारीकरण की शुरुआत हुई तो आईबीएम, एसेंचर और माइक्रोसॉफ्ट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी अपने केंद्र खोले। इस तरह भारत में जीसीसी की पहली लहर 1990 के दशक के उत्तरार्ध और 2000 के दशक के पूर्वार्ध में आई। उसी दौरान सिटी बैंक और बैंक ऑफ अमेरिका जैसे बहुराष्ट्रीय बैंक भी यहां आए।

शुरू में जीसीसी मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, आईटी सर्विसेज और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) के काम करते थे। एक तो यहां आईटी प्रोफेशनल काफी थे और मैनपावर का खर्च भी कम था। तब ये सेंटर कम वेतन और कम कौशल वाले काम के लिए जाने जाते थे। इनकी पहचान बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बैक ऑफिस सपोर्ट के तौर पर थी, जिनमें कोई इंजीनियरिंग छात्र नहीं जाना चाहता था। लेकिन आज स्थिति अलग है। जीसीसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की वैल्यू चेन में काफी ऊपर आ गए हैं और इनोवेशन तथा कोर ऑपरेशन में हिस्सा लेने लगे हैं।

जीसीसी खुलने के साथ क्वांटम आर्किटेक्ट, एआई एथिक्स ऑफिसर, एमएल आधारित साइबर सिक्युरिटी एक्सपर्ट जैसे नए अवसर पैदा हुए हैं। अनेक कंपनियों में मुख्यालय के बाद सबसे ज्यादा इंजीनियर जीसीसी में ही हैं। बहुराष्ट्रीय सॉफ्टवेयर कंपनियां इनोवेशन और अत्याधुनिक सॉल्यूशन के लिए अपनी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट टीम यहां खड़ी कर रही हैं। बीएफएसआई जीसीसी में डेटा एनालिटिक्स, एल्गो ट्रेडिंग और फाइनेंशियल इंजीनियरिंग पर काम हो रहा है। एरोस्पेस, डिफेंस और सेमीकंडक्टर उद्योग में नई पीढ़ी के प्रोडक्ट और टेक्नोलॉजी डेवलप की जा रही हैं।

जीसीसी में किस तरह के अवसर और स्किल की मांग?

ग्लोबल मैनेजमेंट और स्ट्रैटजी कंसल्टेंसी फर्म जिनोव की पार्टनर और जीसीसी (इंडिया) हेड नमिता अदावी बताती हैं, “जीसीसी में काम करने के लिए तकनीकी दक्षता के साथ दूसरों के साथ मिलकर काम करने की क्वालिटी होना भी जरूरी है। यहां प्रोफेशनल्स की जरूरत सिर्फ जटिल और हाई इंपैक्ट वाले वैश्विक ऑपरेशन को मैनेज करने के लिए नहीं, बल्कि दूसरे देशों और अलग टाइम जोन के साथ काम करने के लिए भी है।” वे कहती हैं, दूसरों की संस्कृति को समझना, सहयोग और प्रभावी कम्युनिकेशन स्किल भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। इस तरह के विविध कौशल प्रोफेशनल्स को अलग विभागों और भिन्न कल्चर वाली टीम के साथ काम करने में सक्षम बनाते हैं।

एक्जीक्यूटिव सर्च फर्म ट्रांसर्च के सीनियर पार्टनर समीरन घोषाल के अनुसार, “दो तरह की स्किल की डिमांड है। नए जीसीसी में सामान्य स्किल वालों की मांग है। इनमें प्रोसेस, टेक्नोलॉजी आदि शामिल हैं। पुरानी बड़ी कंपनियों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, प्लेटफॉर्म, साइबर सिक्योरिटी आदि के स्पेशलिस्ट को लिया जा रहा है।” वे कहते हैं, पहले बीपीओ जॉब में हजारों की संख्या में लोग रखे जाते थे जो पे-रोल प्रोसेसिंग, बिलिंग आदि के काम करते थे। अब उनके भीतर भी टेक्नोलॉजी का समावेश हो रहा है। इसलिए सब कुछ मिक्स हो रहा है।

यह मिक्स एक ही कंपनी में भी देखने को मिलता है। उदाहरण है चेन्नई स्थित फोर्ड बिजनेस सॉल्यूशंस जिसमें 12,000 से अधिक लोग काम करते हैं। इसमें एचआर के सीनियर डायरेक्टर धनंजय नायर के मुताबिक, “फोर्ड बिजनेस सॉल्यूशंस पूरी दुनिया में फोर्ड मोटर को टेक्नोलॉजी, डिजिटल, इंजीनियरिंग और बिजनेस प्रोसेस जैसे क्षेत्रों में मदद करती है। हमारे यहां इंजीनियरिंग से लेकर अकाउंटिंग और फाइनेंस, टेक्नोलॉजी/सॉफ्टवेयर से लेकर परचेजिंग, एचआर से लेकर डेटा एनालिटिक्स और एआई/एमएल के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले प्रोफेशनल हैं। इन कार्यों के लिए हम देशभर के इंजीनियरिंग कॉलेज, एमबीए और अन्य प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट से नए ग्रेजुएट के साथ अनुभवी प्रोफेशनल्स को भी रखते हैं।”

इसलिए कंसल्टेंसी फर्म लीगलविज.इन के संस्थापक शृजय शेठ का मानना है कि जीसीसी युवाओं के लिए बड़ा मौका लेकर आए हैं। अनेक वैश्विक कंपनियां भारतीय प्रतिभाओं को रखकर कम लागत का लाभ उठा रही हैं। बीपीओ, केपीओ, आईटीईएस जैसे सेगमेंट की कंपनियों में जिस तरह के जॉब प्रोफाइल की जरूरत पड़ती थी, उस प्रोफाइल के लोग जीसीसी में भी रखे जा रहे हैं।

शृजय के अनुसार, “औपचारिक शिक्षा और अनुभव के साथ अगर कोई व्यक्ति सॉफ्ट स्किल सीखने और किसी सॉल्यूशन पर गहराई से विचार करने के लिए तैयार है, तो उसके लिए जीसीसी में नौकरी पाना आसान हो सकता है। प्रोफेशनल तरीके से अंग्रेजी लिखने और बोलने की जानकारी भी होनी चाहिए। पेरेंट कंपनी के कल्चर के मुताबिक खुद को ढालने की योग्यता और अलग-अलग टाइम जोन के हिसाब से काम करने के लिए तैयार रहना अतिरिक्त फायदे देगा।”

जीसीसी कौन से इंडस्ट्री सेक्टर के लिए काम कर रहे हैं?

ट्रांसर्च के समीरन के मुताबिक सबसे ज्यादा बीएफएसआई से डिमांड है। फिर टेक्नोलॉजी कंपनियां हैं जिन्हें नए-नए क्षेत्रों में लोगों की जरूरत पड़ रही है। उसके बाद मैन्युफैक्चरिंग और कंज्यूमर सेक्टर आते हैं। टेक्नोलॉजी के अलावा दूसरे सेक्टर से मांग का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं, “कुछ दिनों पहले एक विदेशी कार कंपनी ने यहां अपना सेंटर खोला क्योंकि कारों के भीतर हार्डवेयर से ज्यादा सॉफ्टवेयर बढ़ा है। उनमें एआई, डेटा एनालिटिक्स जैसे क्षेत्रों में मांग बढ़ रही है। वह ऑटोमोबाइल कंपनी भारत में अपना रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर खोल रही है। तेल एवं गैस कंपनियां रिन्यूएबल के क्षेत्र में जा रही हैं। उनके लिए भी टेक्नोलॉजी को जानने वाले लोग भारत में उपलब्ध हैं।”

जिनोव की नमिता के अनुसार, “भारत में जीसीसी सबसे ज्यादा सॉफ्टवेयर और इंटरनेट सेक्टर के लिए काम कर रहे हैं। इनमें एंटरप्राइज सॉफ्टवेयर कंपनियां, डिजिटल नेटिव बिजनेस (DNB) और क्लाउड प्रोडक्ट कंपनियां शामिल हैं। रिटेल, हेल्थकेयर, सेमीकंडक्टर, फार्मास्यूटिकल्स, लाइफ साइंसेज जैसी इंडस्ट्री के लिए भी ये सेंटर काम करते हैं।”

जीसीसी की सेवाएं लेने वालों में अनेक फॉर्च्यून 500 कंपनियां हैं जो अपने ऑपरेशंस में बदलाव के लिए टेक्नोलॉजी तथा इनोवेशन को अपना रही हैं। ये बदलाव उनके इंजीनियरिंग, आईटी, रिसर्च एंड डेवलपमेंट, फाइनेंस और अकाउंटिंग जैसे विभागों में हो रहे हैं। ये कंपनियां भारत में स्टेम (STEM) तथा इंजीनियरिंग प्रतिभाओं को चुन रही हैं। इस तरह भारत उनके डिजिटल और ऑपरेशनल विकास का प्रमुख हब बन गया है।

इसका उदाहरण देती हुई नमिता कहती हैं, “बीएफएसआई सेक्टर के कैपेबिलिटी सेंटर डेटा एनालिटिक्स, एल्गोरिदमिक ट्रेडिंग और क्वांटिटेटिव फाइनेंशियल इंजीनियरिंग जैसे एडवांस क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रहे हैं। एयरोस्पेस, डिफेंस, सेमीकंडक्टर जैसे महत्वपूर्ण सेक्टर की कंपनियां यहां अपनी एडवांस इंजीनियरिंग के काम कर रही हैं और अगली पीढ़ी के प्लेटफॉर्म, प्रोडक्ट और टेक्नोलॉजी पर फोकस कर रही हैं।”

तीन-चार साल बाद कॉलेज से निकलने वालों को यहां काम मिलेगा?

टेक्नोलॉजी में तेजी से होने वाले बदलाव के मुताबिक जॉब मार्केट भी बदल रहा है। लेकिन नमिता कहती हैं, “तीन-चार साल बाद जो छात्र ग्रेजुएट बन कर निकलेंगे उनके पास जीसीसी में पर्याप्त अवसर होंगे। बस वे इंडस्ट्री के ट्रेंड के हिसाब से स्किल हासिल करें।” जीसीसी लगातार नई टेक्नोलॉजी को अपना रहे हैं। वे एआई, मशीन लर्निंग, क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सिक्योरिटी को अपने ऑपरेशन में शामिल करने में भी अग्रणी होंगे। वर्कफोर्स में शामिल होने वाले छात्र अगर इन अधिक डिमांड वाले क्षेत्रों पर फोकस करें तो उनकी एंप्लॉयबिलिटी बढ़ जाएगी।

नमिता के मुताबिक, “जीसीसी अकादमिक योग्यता के साथ व्यावहारिक कौशल और स्थिति के मुताबिक खुद को ढालने की क्षमता को भी परखते हैं। इसलिए इंटर्नशिप करने और प्रासंगिक टेक्नोलॉजी में सर्टिफिकेशन हासिल करने के साथ समस्याओं के समाधान तलाशना तथा टीमवर्क जैसी सॉफ्ट स्किल हासिल करना भी महत्वपूर्ण है।”

धनंजय के मुताबिक, “भारत में पिछले कुछ समय में जिस तरह जीसीसी का विस्तार हुआ और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का भारतीय वर्कफोर्स में भरोसा बढ़ा है, उसे देखकर लगता है कि भविष्य में भी जीसीसी की ग्रोथ स्टोरी में भाग लेने के लिए भारतीयों को अनेक अवसर मिलेंगे।”

कर्मचारियों के टैलेंट डेवलपमेंट में निवेश

धनंजय बताते हैं, “अगले तीन वर्षों के दौरान फोर्ड बिजनेस सॉल्यूशंस में 3000 नई भर्तियों की योजना है। भविष्य की वर्कफोर्स तैयार करने के लिए हम ‘बाय एंड बिल्ड’ रणनीति अपनाते हैं। मौजूदा कर्मचारियों की स्किल बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं ताकि वे नई टेक्नोलॉजी की डिमांड पूरी कर सकें। इसके लिए हम सर्टिफिकेशन, अपनी सुविधा के अनुसार लर्निंग मॉड्यूल, ऑन जॉब एक्स्पोजर, क्रॉस फंक्शनल प्रोजेक्ट जैसे तरीके अपनाते हैं।

इसलिए शृजय शेठ को फिलहाल जीसीसी में जॉब सिक्युरिटी को लेकर कोई बड़ी परेशानी नजर नहीं आती। उनके मुताबिक, “अगर किसी कंपनी का बिजनेस नहीं चलता है, तो वहां काम करने वालों को दूसरी जगह नौकरी मिल सकती है। मेरे विचार से युवाओं को अपनी प्रोफेशनल प्रोफाइल डेवलप करने पर ध्यान देना चाहिए। इससे उनकी एंप्लॉयबिलिटी बढ़ती है।”

नमिता कहती हैं, “जीसीसी अपने कर्मचारियों के प्रतिभा और कौशल विकास में काफी निवेश कर रहे हैं। ये फीडर रोल की पहचान करते हैं। यह भूमिका खास विशेषज्ञता और अधिक डिमांड वाले काम के लिए लॉन्चपैड का काम करती है। नियुक्ति के समय सर्टिफिकेशन और स्किल को पुरस्कृत करने के अलावा जीसीसी अच्छी प्रतिभा वाले प्रोफेशनल्स को अपने यहां रखने के लिए कस्टमाइज्ड रिकॉग्निशन प्रोग्राम भी चला रहे हैं।”

अपने कर्मचारियों को मौका देने की पहल से प्रोफेशनल्स को अलग-अलग असाइनमेंट का एक्सपोजर मिलता है और उनका चौतरफा विकास होता है। उन्हें बिजनेस की जरूरत के मुताबिक अलग-अलग विभागों की स्किल हासिल करने को प्रोत्साहित किया जाता है। जैसे एचआर के साथ मार्केटिंग स्किल। जीसीसी अपने स्तर पर प्रशिक्षण देने के साथ विशिष्ट कोर्स के लिए यूनिवर्सिटी के साथ साझेदारी भी कर रहे हैं।

भविष्य में जीसीसी का ट्रेंड कैसा रहने के आसार हैं?

पिछले कुछ वर्षों में जीसीसी मॉडल परिपक्व हुआ है। भारत की विकास गाथा को नया आकार देने में इन केंद्रों की अहम भूमिका है। भारत स्थित जीसीसी अत्याधुनिक आरएंडडी तथा प्रोडक्ट डेवलपमेंट में अनेक इंडस्ट्री का केंद्र बन गए हैं। यह बदलाव ग्लोबल इनोवेशन में भारत को आगे रखेगा।

इसलिए समीरन को लगता है, “अभी तो डिमांड रहेगी। यहां दो फैक्टर कहे जा सकते हैं- एक है कॉस्ट यानी लागत और दूसरा टैलेंट। भारत में मैनपावर की लागत अभी कम है। यह एडवांटेज करीब 20 साल तक बना रहेगा। टैलेंट फैक्टर और लंबे समय तक चलने की उम्मीद है, क्योंकि दूसरे देशों में इतनी बड़ी संख्या में टैलेंट उपलब्ध नहीं हैं।”

नमिता बताती हैं, “वैश्विक लीडरशिप भूमिका में भी भारतीयों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। यह संख्या 2024 में 6,500 पहुंच गई और अगले छह वर्षों में इसके 30,000 हो जाने का अनुमान है। जब ज्यादा संख्या में भारतीय जीसीसी लीडर वैश्विक ऑपरेशन में शामिल होंगे, तो वे अपनी मूल कंपनी के लिए रणनीतिक फैसले लेने में भी केंद्रीय भूमिका निभाएंगे। तब वे विश्व स्तर पर बिजनेस की दिशा प्रभावित करने की स्थिति में होंगे। इससे बिजनेस और इनोवेशन के ग्लोबल हब के रूप में भारत की स्थिति और मजबूत होगी।”

ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर को इनसेंटिव देने के लिए राज्य सरकारें भी नीतियां बना रही हैं। यह जीसीसी के लिए भविष्य में विस्तार और उचित बिजनेस माहौल का आधार बनेगा। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु सरकार ने राज्य में जीसीसी को प्रमोट करने के लिए विशेष योजना बनाई है। राज्य में स्थापित होने वाले नए जीसीसी को पहले साल पे-रोल में 30%, दूसरे साल 20% और तीसरे साल 10% सब्सिडी का प्रावधान है। कर्नाटक सरकार भी जल्दी ही जीसीसी पॉलिसी घोषित करने वाली है, जिसमें स्किलिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर, बिजनेस वातावरण आदि पर फोकस किया जाएगा।

नमिता के अनुसार सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, ज्वाइंट वेंचर और जॉइंट रिस्क पार्टनरशिप जैसे सहयोगी मॉडल में काम करके जीसीसी और सर्विस प्रोवाइडर एक-दूसरे के पूरक की भूमिका भी निभा रहे हैं। यह ट्रेंड आने वाले समय में अधिक दिख सकता है। जीसीसी ग्राहकों के साथ गहरे जुड़ाव की भूमिका निभाते रहेंगे और सर्विस प्रोवाइडर स्केल और स्पेशलाइज्ड क्षमता का फायदा उठाएंगे।

फोर्ड बिजनेस सॉल्यूशंस के धनंजय कहते हैं, “यहां ग्लोबल बिजनेस सॉल्यूशन सेंटर डिजाइन से लेकर कोर फंक्शन तक हर जिम्मेदारी उठाते हैं। इसके लिए टेक्नोलॉजी, डेटा, इंजीनियरिंग और बिजनेस प्रोसेसिंग जैसे क्षेत्रों में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस डेवलप हो रहे हैं। यह वैल्यू चेन में ऊपर चढ़ने की कड़ी है, जिसमें एफिशिएंसी आधारित ऑपरेशन से हम इनोवेशन आधारित ऑपरेशन में जा रहे हैं।”

टैलेंट के नजरिए से इसका मतलब यह है कि जीसीसी को अब भविष्य के लिए वर्कफोर्स तैयार करने के साथ बेहतर अपस्किलिंग रणनीति और इकोसिस्टम विकसित करने की जिम्मेदारी दी जा रही है। यह इकोसिस्टम बिजनेस में बदलाव के मुताबिक खुद को ढालने में सक्षम होगा।

यहां एक और बात है। भारत में 1990 के दशक में बीपीओ यानी कॉल सेंटर बहुत फले-फूले, उनमें बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिला। लेकिन उनमें ज्यादा कौशल की जरूरत नहीं थी, इसलिए कुछ वर्षों के बाद दूसरे देशों के लोग भी इस पेशे में आ गए। जीसीसी में रिसर्च एंड डेवलपमेंट, मैनेजमेंट कंसल्टिंग, अकाउंटिंग जैसे स्पेशलाइज्ड जॉब हैं। बीपीओ के विपरीत जीसीसी स्ट्रेटजी, सिस्टम डिजाइन, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट जैसी तकनीकी दक्षता वाला काम कर रहे हैं। इनमें दूसरे देशों को आने में समय लग सकता है।

इंडस्ट्री 4.0 को आगे बढ़ाने में जीसीसी की भूमिका

नमिता मानती हैं कि जीसीसी का योगदान टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इनोवेशन के साथ इंडस्ट्री 4.0 को आगे बढ़ाने में भी है। एआई, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ब्लॉकचेन और मशीन लर्निंग जैसी अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी में इनकी अग्रणी भूमिका है। नई रिसर्च के लिए इन्होंने डेडिकेटेड इनोवेशन लैब और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किए हैं। जैसे, 2022 में स्थापित रैपिडएआई अपने हाइब्रिड टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म रैपिड एज क्लाउड के लिए प्रोडक्ट डिजाइन और डेवलपमेंट का काम कर रही है।

आरएंडडी के अलावा जीसीसी अपने संस्थान में डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन ला रहे हैं। इनका काम कंपनी के कामकाज को स्ट्रीमलाइन करके प्रोडक्टिविटी बढ़ाना और बिजनेस प्रोसेस को ऑप्टिमाइज करने के लिए टेक्नोलॉजी में इंटीग्रेशन करना है। एडवांस एनालिटिक्स, इंटेलिजेंट ऑटोमेशन और क्लाउड कंप्यूटिंग सॉल्यूशन जैसी टेक्नोलॉजी से संस्थान की ऑपरेशनल क्षमता बढ़ती है।

समीरन ऑटोमोबाइल सेक्टर का उदाहरण देते हैं, “गाड़ी के भीतर चिप, इंटरनेट ऑफ थिंग्स का इस्तेमाल बढ़ रहा है। कंपनियों को इनसे जुड़े एनालिटिक्स चाहिए। उन्हें एप्लीकेशन बनाने पड़ेंगे। इन सब कार्यों के लिए बड़ी संख्या में प्रतिभाशाली और सस्ते लोग भारत में ही उपलब्ध हैं।”

वे कहते हैं, ऑटोमोटिव कंपनियां या तो आरएंडडी का काम दूसरी टेक्नोलॉजी कंपनियों को देंगी या खुद करेंगी। ज्यादातर मौकों पर हमने देखा कि यह दोनों का मिक्स होता है। कुछ काम वे खुद करती हैं और कुछ आउटसोर्स करती हैं। पुणे में एक ऑटोमोटिव कंपनी ने पिछले साल 200 से ज्यादा स्पेशलिस्ट को हायर किया था। उनमें आईओटी, एनालिटिक्स, एआर-वीआर आदि के स्पेशलिस्ट शामिल थे। दो साल से पूरी आईटी इंडस्ट्री की गति धीमी है, लेकिन एलटीटीएस (एलएंडटी टेक्नोलॉजी सर्विसेज) और परसिस्टेंट जैसे ईआरएंडडी प्लेयर का बिजनेस बढ़ा है, क्योंकि ये इंडस्ट्री 4.0 में ट्रांसफॉर्मेशन के काम कर रहे हैं।

भारत में जीसीसी कहां खुल रहे हैं?

नैस्कॉम-जिनोव रिपोर्ट के अनुसार भारत के 47% जीसीसी और प्रोफेशनल बेंगलुरु और एनसीआर में हैं। इंजीनियरिंग, रिसर्च और डेवलपमेंट में 25% हैदराबाद तथा एनसीआर में और 13% ऑटोमोटिव टैलेंट चेन्नई में हैं। टियर 2/3 शहर (चंडीगढ़, कोलकाता, कोयंबटूर, तिरुवनंतपुरम, कोच्चि, अहमदाबाद तथा अन्य) में लगभग 220 जीसीसी यूनिट हैं। एक तो यहां खर्च कम आता है, दूसरा इन शहरों में टैलेंट पूल भी बढ़ रहा है।

दरअसल, कंपनियां लागत कम करने के लिए टियर-2 और टियर-3 शहरों में अपने जीसीसी खोल रही हैं। अहमदाबाद में सबसे बड़ी स्पेस प्रोवाइडर कंपनी डेव-एक्स के सह-संस्थापक उमेश उत्तमचंदानी बताते हैं, “पिछले दो वर्षों में जीसीसी की तरफ से ऑफिस स्पेस की मांग काफी बढ़ गई है। पारंपरिक कंपनियों की तरफ से भी ऑफिस स्पेस की मांग बढ़ी है, लेकिन जीसीसी के लिए औसत जगह पारंपरिक कंपनियों से अधिक होती है। इस समय जीसीसी औसतन 1.5 लाख वर्ग फुट की जगह ले रहे हैं। भविष्य में भी जीसीसी की तरफ से बड़े ऑफिस स्पेस की मांग रहने की उम्मीद है।”

जीसीसी का भविष्य लंबे समय तक उज्जवल दिखता है। केपीएमजी-नैस्कॉम ने अपनी रिपोर्ट ‘जीसीसी इन इंडियाः बिल्डिंग रेजिलिएंस फॉर सस्टेनेबल ग्रोथ’ में लिखा है कि विशाल टैलेंट पूल, इनोवेशन और ऑपरेशन में एक्सीलेंस, सरकार की मददगार नीतियों और इकोसिस्टम के कारण भारत ने जीसीसी खोलने में अपनी स्थिति मजबूत की है। भारत की 24% आबादी 20-34 आयु वर्ग की है और दुनिया में सबसे अधिक युवा भारत में ही हैं। सबसे ज्यादा स्टेम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथ्स) ग्रेजुएट यहां हैं, अंग्रेजी बोलने वाली दूसरी सबसे बड़ी आबादी भारत में ही है। एआई और एमएल भूमिका में भारतीयों की एंप्लॉयबिलिटी 48% है। आरएंडडी गतिविधियों में भी भारत आगे है। रिसर्च आउटपुट में भारत चौथे स्थान पर है और 2017 से 2022 के दौरान यहां आरएंडडी 54% बढ़ा है। विज्ञान से जुड़े प्रकाशनों में भारत तीसरे नंबर पर है। यहां 2014-15 से 2023-24 के दौरान पेटेंट संख्या आठ गुना हो गई है।

सर्विसेज एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (SEPC) के अनुसार, 2022-23 की तुलना में 2023-24 में सर्विसेज का निर्यात 325.3 अरब डॉलर से 4.8% बढ़कर 341.1 अरब डॉलर हो गया। मौजूदा वित्त वर्ष में भी इसमें अच्छी ग्रोथ देखने को मिल रही है। अप्रैल से जुलाई 2024-25 के दौरान सर्विसेज का निर्यात 11.9% बढ़ा है। सिर्फ जुलाई में 30.6 अरब डॉलर के सर्विसेज का निर्यात किया गया।

भारत से सेवाओं के निर्यात में आईटी सर्विसेज का योगदान लगभग 45% है। सिर्फ बिजनेस सर्विसेज की बात करें तो कुल सेवा निर्यात में इसकी हिस्सेदारी करीब 25% है। इसमें एकाउंटिंग, ऑडिट, आरएंडडी, क्वालिटी एश्योरेंस और मैनेजमेंट कंसल्टिंग आदि आते हैं। पारंपरिक सॉफ्टवेयर सर्विसेज की तुलना में यह सेगमेंट दोगुनी गति से बढ़ रहा है।

इस गति के और भी कारण हैं। नमिता के मुताबिक, “भारत एशिया का क्षेत्रीय बिजनेस हब और इनोवेशन केंद्र बनकर उभर रहा है। जीसीसी इस बदलाव में केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं। वे अपनी पेरेंट कंपनी के ऑपरेशन और रणनीतिक फ्रेमवर्क के लिए महत्वपूर्ण बन गए हैं। यह ट्रेंड अगले एक दशक तक जारी रहने की संभावना है। जीसीसी भारत के प्रभुत्व का नया अध्याय लिख रहे हैं।”

कामकाजी परिस्थितियों को लेकर शृजय कहते हैं, जीसीसी अपनी पेरेंट कंपनी का ही विस्तार होते हैं। इसलिए उनके ग्लोबल एचआर अपनी श्रेष्ठ प्रैक्टिस यहां भी लागू करना चाहेंगे और ऑफिस में समानता रखना चाहेंगे। ज्यादातर पेरेंट कंपनियां उन देशों की हैं, जहां विविधता को पसंद किया जाता है, इसलिए उनकी वैल्यू जीसीसी में भी लागू होती हैं।

नमिता के अनुसार, जीसीसी नए प्रोडक्ट और सॉल्यूशन के लिए साझा रिसर्च प्रोजेक्ट, पायलट प्रोग्राम और टेक्नोलॉजी इनक्यूबेटर के माध्यम से सर्विस प्रोवाइडर, स्टार्टअप और अकादमिक संस्थानों के साथ सहयोग करते हैं। इससे उन्हें बाहरी विशेषज्ञों का लाभ तो मिलता ही है, नई प्रतिभाएं तलाशने में भी मदद मिलती है। भारत को प्रौद्योगिकी विकास और औद्योगिक इनोवेशन का हब बनाने के लिए इस तरह के प्रयास आवश्यक हैं।

वैश्विक स्तर पर हो रहे इस बदलाव का भारत अधिक से अधिक लाभ उठा सके, इसके लिए धनंजय की सलाह है, “यहां शिक्षण संस्थानों को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि उनके पाठ्यक्रम टेक्नोलॉजी में हो रहे बदलावों के मुताबिक लगातार अपडेट होते रहें। इसके लिए वे इंडस्ट्री के साथ गठजोड़ करें और अर्थपूर्ण इंटर्नशिप जैसे कार्यक्रम चलाएं।”