अच्छे बीज, उर्वरक और कीटनाशक के संतुलित इस्तेमाल से बढ़ेगी किसानों की आय
जागरण एग्री पंचायत का तीसरा सत्र ‘खेती में इनपुट के बेहतर प्रबंधन के जरिए उत्पादकता बढ़ाना’ विषय पर था। इसमें पैनलिस्ट के तौर पर धानुका एग्रोटेक के चेयरमैन आर.जी. अग्रवाल एग्रोकेम फेडरेशन ऑफ इंडिया के महानिदेशक डॉ. कल्याण गोस्वामी आईसीएआर के बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्रा और आईसीएआर में स्वॉयल साइंस एंड एग्रीकल्चर केमिस्ट्री विभाग के प्रमुख डॉ. देबाशीष मंडल शामिल रहे।
प्राइम टीम, नई दिल्ली। जागरण एग्री पंचायत का तीसरा सत्र ‘खेती में इनपुट के बेहतर प्रबंधन के जरिए उत्पादकता बढ़ाना’ विषय पर था। इसमें पैनलिस्ट के तौर पर धानुका एग्रोटेक के चेयरमैन आर.जी. अग्रवाल, एग्रोकेम फेडरेशन ऑफ इंडिया के महानिदेशक डॉ. कल्याण गोस्वामी, आईसीएआर - पूसा के बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्रा और आईसीएआर - पूसा में स्वॉयल साइंस एंड एग्रीकल्चर केमिस्ट्री विभाग के प्रमुख डॉ. देबाशीष मंडल शामिल रहे। सत्र का संचालन जागरण न्यू मीडिया के एसोसिएट एडिटर विवेक तिवारी ने किया। पैनलिस्ट ने बताया कि किस तरह अच्छे बीज, उर्वरकों और कीटनाशकों के संतुलित इस्तेमाल और मिट्टी की सेहत का ध्यान रख कर उपज और आय को बढ़ाया जा सकता है। इस मौके पर आईसीएआर के वैज्ञानिक डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्रा ने कहा कि सरकार बीज निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर प्लानिंग कर रही है। अगले पांच सालों में देश में बीज क्रांति देखी जा सकती है। पेश हैं पैनलिस्टों से बातचीत के मुख्य अंश :-
मॉडरेटर : देश में नकली एग्रो केमिकल कितनी बड़ी समस्या है, इस समस्या से कैसे निपटा जा सकता है ?
आर.जी. अग्रवाल : आज हमारे देश में नकली खाद और बीज बहुत बड़ी समस्या है। कहा जा सकता है कि इसकी समानान्तर इंडस्ट्री चल रही है। ऐसे में कई किसानों के साथ धोखा हो जाता है और उनकी फसल खराब हो जाती है। आईसीएआर और धानुका मिल कर जागरूकता अभियान चला रहे हैं। किसानों को बिना बिल के कोई भी उत्पाद नहीं लेना चाहिए। अगर कोई विक्रेता 18 फीसदी जीएसटी की बात कह कर बिना बिल के समान लेने को कहता है तो उसकी शिकायत करें। आजकल सभी अच्छी कंपनियां अपने प्रोडक्ट पर क्यूआर कोड लगा रही हैं। आप अपने फोन से इसे स्कैन कर उत्पाद की जानकारी ले सकते हैं। साथ ही आप कंपनी की वेबसाइट पर जाकर भी उस उत्पाद के इस्तेमाल की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
मॉडरेटर : क्या केमिकल युक्त कीटनाशकों के इस्तेमाल से कैंसर होता है ?
आर.जी. अग्रवाल : अब तक इस तरह की कोई साइंटिफिक रिपोर्ट नहीं है कि एग्रो केमिकल से कैंसर होता है, ये भ्रम फैलाया जा रहा है। पूरी दुनिया में एग्रो केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है। मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ का डेटा है कि कैंसर में नॉर्थईस्ट नम्बर वन है, जबकि वहां सबसे ज्यादा प्राकृतिक तरीके से खेती होती है। हमें इस बात के बारे में सोचना होगा कि चीन में आज प्रति हेक्टेयर उत्पादन भारत की तुलना में तीन गुना है। हमारे यहां खेती योग्य जमीन ज्यादा है, बारिश भी उनसे 33 फीसदी ज्यादा है लेकिन हमारा उत्पादन क्यों नहीं बढ़ पा रहा है। पहले की तुलना में कीटनाशकों का इस्तेमाल घटा है।
मॉडरेटर : प्राकृतिक खेती क्या है? क्या केमिकल पेस्टिसाइड का कोई विकल्प है?
डॉ. कल्याण गोस्वामी : हमें ये मानना होगा कि हरित क्रांति से पहले जहां हम खाद्यान्न के लिए दूसरे देशों पर निर्भर थे वहीं आज हम आत्मनिर्भर होने के साथ ही दूसरे देशों को भी निर्यात कर रहे हैं। ये किसानों और वैज्ञानिकों की मेहनत से संभव हो सका है। बिना रासायनिक खाद और कीटनाशकों के ये संभव नहीं था। अगर हम ये कहें कि हम अचानक पूरी तरह से ऑर्गेनिक या प्राकृतिक खेती की ओर चले जाएं तो ऐसे में हमारी खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी। लेकिन बागवानी में प्राकृतिक खेती पूरी तरह से संभव है। खास तौर पर ऐसी जगहों पर जहां तापमान कम है। हमें ऑर्गेनिक और केमिकल के इस्तेमाल के बीच एक संतुलन बनाना होगा। किसानों को इस बात का पता होना चाहिए कि रासायनिक फर्टिलाइजर और कीटनाशकों का इस्तेमाल कब और कितना करना चाहिए।
मॉडरेटर : क्लाइमेट चेंज से खेती पर क्या असर हो रहा है? खाद्य सुरक्षा के साथ किसानों की बेहतर आय को बेहतर बीज किस तरह से सुनिश्चित कर सकते हैं?
डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्रा: हमारे देश के लिए 1960 में खाद्य सुरक्षा ही प्राथमिकता थी। लेकिन आज हम खाद्यान्न में पोषण या पोषक तत्वों की भी बात कर रहे हैं। हाल ही में सरकार ने जलवायु परिवर्तन को देखते हुए 109 नई उन्नत प्रजातियों के बीज मार्केट में उतारे हैं। इन प्रजातियों में से कुछ में पोषक तत्व सामान्य से ज्यादा हैं। ये बायो फोर्टिफाइड हैं। अब फसलों की इस तरह की प्रजातियां तैयार की जा रही हैं कि एकदम से सूखा या बाढ़ की स्थिति बने तो भी हमें कुछ उत्पादन मिलता रहे। फसल पूरी तरह से खत्म न हो। वहीं अनाज में पोषण की मात्रा को भी बढ़ाया जा सके। आज भी देश में एक ऐसा वर्ग है जो पोषण के लिए सिर्फ खाद्यान्न पर निर्भर है। जैव संवर्धित बीज इन लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं।
मॉडरेटर : बीज निर्यात के लिए सरकार की क्या योजना है ?
डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्रा: सरकार आने वाले समय में बीज निर्यात को बढ़ावा देने की योजना पर काम कर रही है। न्यू सीड बिल लगभग 20 साल से संसद में पेंडिंग है। इस बिल के आने से किसानों और कंपनियों को काफी फायदा होगा। आज बीज उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी पांच फीसदी और निर्यात में एक फीसदी है। आने वाले पांच सालों में निर्यात में हिस्सेदारी 5 फीसदी तक बढ़ाने की योजना है। मांग को पूरा करने के लिए यूपी, पंजाब, हरियाणा के किसानों को सीड प्रोडक्शन में आना ही होगा। सरकार का भारत बीज सहकारी समिति लिमिटेड बनाने का उद्देश्य ही ये था कि हम निर्यात को बढ़ा सकें। हमें बीज उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ानी होगी। आने वाले पांच सालों में बीज उत्पादन में क्रांति देखी जा सकती है।
मॉडरेटर : ऑर्गेनिक बीज किस तरह से किसान की आय कैसे बढ़ा सकते हैं ?
डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्रा : ऑर्गेनिक के नाम पर कृषि उत्पादों के बेहतर दाम मिलते हैं। आज ऑर्गेनिक उत्पादन की बात करें तो दो तरीके हैं। एक तरफ अंतरराष्ट्रीय नियम हैं और दूसरी तरफ भारत सरकार के नियम हैं। नियमों के तहत बीज ऑर्गेनिक होने चाहिए। हालांकि अभी इस बात की छूट है कि ऑर्गेनिक उत्पादन के लिए ऑर्गेनिक बीज का ही इस्तेमाल किया जाए। आने वाले समय में यह जरूरी हो सकता है ।
मॉडरेटर : जेनेटिक मॉडिफाइड बीज क्या है ?
डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्रा : भारत में बीटी कॉटन के अलावा अभी तक किसी भी फसल के लिए जेनेटिक मॉडिफाइड बीज को अनुमति नहीं मिली है। जीएम की तरह ही एक अन्य तकनीक है जिसे जिनोम एडिटिंग कहते हैं। इस तकनीक का इस्तेमाल भारत में हो रहा है। जेनेटिक मॉडिफाइड बीज पर देश में बहुत सी रिसर्च चल रही है। सरकार को तय करना है कि अन्य फसलों का जेनेटिक मॉडिफाइड बीज इस्तेमाल करना है या नहीं।
मॉडरेटर : मिट्टी की सेहत को बेहतर बनाए रखने के लिए किसान को क्या करना चाहिए ?
भारत सरकार ने अब तक लगभग 30 करोड़ स्वायल हेल्थ कार्ड बनाए हैं। ये एक बड़ा अभियान है। हमें समझना होगा कि जो जीवित है उसी का स्वास्थ्य होता है। हम मिट्टी को निर्जीव पदार्थ नहीं मानते हैं। एक चम्मच के बराबर मिट्टी में इतने बैक्टीरिया या जीव होते हैं जिनकी संख्या धरती पर रहने वाले लोगों से ज्यादा होगी। सॉयल का फुल फॉर्म है सोर्स ऑफ इनफाइनाइट लाइफ। पूरी धरती पर जितना भी खाद्यान्न है उसका 99 फीसदी मिट्टी से आता है। सिर्फ एक फीसदी जलीय जीवन से आता है। हमने पिछले कई दशकों से अपनी खाद्यान्न सुरक्षा के लिए मिट्टी से पोषक तत्व का शोषण किया है। इसका संतुलन बिगड़ गया है। आज से 50 साल पहले हम अगर हम एक किलो एनपीके डालते तो 14 किलो अनाज होता है। आज एक किलो डालने पर दो से तीन किलो अनाज मिलता है। निरंतर हम उर्वरक की मात्रा बढ़ा रहे हैं। वर्ल्ड फूड प्राइज से सम्मानित डॉ. रतनलाल का कहना है कि मिट्टी एक सेविंग बैंक खाते की तरह है। इसमें से हम लगातार पोषक तत्व निकालते रहेंगे तो एक समय के बाद जमीन की उपजाऊ शक्ति खत्म हो जाएगी।
आज हम जो खाना खा रहे हैं उनमें पोषक तत्वों की कमी है। खाने में आयरन की मात्रा कम होने से बच्चों को एनीमिया हो रहा है। मिट्टी में आयरन बहुत ज्यादा होता है। ये चौथा सबसे ज्यादा मिलने वाला तत्व है, लेकिन ये पौधे को नहीं मिल पाता। राजस्थान की मिट्टी में जिंक ज्यादा है पर वहां लोगों में जिंक की कमी है। क्योंकि जिंक जमीन से पौधों में नहीं जा पाता। मिट्टी में असंतुलन की वजह से ऐसा हो रहा है। केमिकल बेकार हैं ऐसा नहीं है, लेकिन आपको मात्रा का ध्यान रखना होगा। ज्यादा ऑर्गेनिक भी खेतों को नुकसान पहुंचाता है। ऐसे में आपको जानकारी होना जरूरी।