डीएनए बदल चीन की बेरहम सुपरसोल्जर बनाने की तैयारी, विशेषज्ञों ने कहा फिलहाल यह दूर की कौड़ी
अमेरिकी इंटेलिजेंस के मुताबिक चीन ने 2020 में ही क्रिशपर टेक्नोलॉजी की मदद से सुपर सोल्जर बनाना शुरू कर दिया था। इसके लिए चीन में सैनिकों के DNA सैंपल लिए जा रहे हैं। अमेरिका के इस दावे को ब्रिटेन ने भी सही बताया है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी
चीन अपनी सैन्य शक्ति को घातक बनाने के लिए अब सैनिकों के डीएनए में जेनेटिक मॉडिफिकेशन की तैयारी कर रहा है। उसका इरादा डीएनए में बदलाव कर सुपर सोल्जर बनाने की है। ये सुपर सोल्जर आम सैनिकों की तुलना में अधिक खतरनाक होंगे। दावा किया जा रहा है कि ये सैनिक बिना खाना खाए और बिना बीमार हुए दुश्मन से मुकाबला कर सकेंगे। ये सैनिक भावना शून्य होंगे। इस बात की जानकारी अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने एक रिपोर्ट में दी है।
अमेरिकी इंटेलिजेंस के मुताबिक चीन ने 2020 में ही क्रिशपर टेक्नोलॉजी की मदद से सुपर सोल्जर बनाना शुरू कर दिया था। इसके लिए चीन में सैनिकों के DNA सैंपल लिए जा रहे हैं। अमेरिका के इस दावे को ब्रिटेन ने भी सही बताया है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी का कहना है कि चीन ने "जैविक रूप से उन्नत क्षमताओं" के साथ सैनिकों को विकसित करने की उम्मीद में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सदस्यों पर "मानव परीक्षण" किया है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल के एक लेख में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रीय खुफिया निदेशक जॉन रैटक्लिफ में लिखा था कि चीन के सुपर सोल्जर अमेरिका सहित दुनिया के लिए खतरा बन सकते हैं। ये सैनिक ज्यादा क्रूर और बेरहम होंगे। इन पर बायोकेमिकल का कोई असर नहीं होगा। यानी केमिकल वॉर में भी सुपर सोल्जर को रोकना मुश्किल होगा। ये सैनिक गोली लगने के बाद भी मैदान पर टिके रहेंगे। रैटक्लिफ के मुताबिक जिस तरह ‘कैप्टन अमेरिका’, ‘ब्लडशॉट’ और ‘यूनिवर्सल सोल्जर’ फिल्मों में जीन एडिटेड सुपर सोल्जर दिखाया गया है, चीन उसी टेक्नोलॉजी और कल्पना को हकीकत में बदलने के लिए काम कर रहा है।
हालांकि, चीन ने इन आरोपों से इंकार किया है। एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भले ही चीन जैविक रूप से अधिक शक्तिशाली सैनिकों को तैयार नहीं कर रहा हो, वह एक्सोस्केलेटन पर जरूर काम कर रहा है।
जेएनयू में स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज के प्रोफेसर पीसी रथ कहते हैं कि फिलहाल डीएनए में बदलाव कर किसी को सुपर ह्यूमन या सुपर सोल्जर बनाना संभव नहीं है। वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग की तकनीक विकसित की है जिस पर अभी काम जारी है। इस तकनीक के तहत डीएनए में मौजूद जीन में कुछ खामियों को दूर कर गंभीर बीमारी का इलाज किया जा सकता है। चीन में भी जीन एडिटिंग पर कई काम हो रहे हैं लेकिन सुपर ह्यूमन वाली बात फिलहाल अभी संभव नहीं लगती है।
वैज्ञानिकों ने कहा चुनौतीपूर्ण है यह काम
दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन नरेंद्र सैनी के मुताबिक किसी व्यक्ति के डीएनए में बदलाव करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम है। फिलहाल ये संभव नहीं लगता है कि किसी व्यक्ति के जीन या डीएनए में बदलाव कर उसे सुपर ह्यूमन बना दिया जाए। कुछ वायरस में इस तरह के बदलाव के बारे में कहा जा रहा है जिन्हें मैन मेड वायरस कहा जा रहा है। लेकिन अभी इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। कुछ बीमारियों के लिए जीन एडिटिंग की तकनीक का इस्तेमाल जरूर किया जा रहा है।
रिसर्च पेपर में भी अमेरिकी शोधकर्ताओं ने चेताया
अमेरिकी विद्वान और चीनी रक्षा मामलों की विशेषज्ञ एल्सा कानिया ने चीन मिलिट्री बायोटेक फ्रंटियर :CRISPR, मिलिट्री सिविल फ्यूजन एंड द न्यू रिवॉल्यूशन इन मिलिट्री अफेयर्स में लिखा है कि CRISPR तकनीक का इस्तेमाल करके भविष्य के युद्ध में सैनिकों की क्षमता बढ़ाने की संभावना वर्तमान समय में केवल कल्पना बनी रहेगी, लेकिन ऐसे संकेत हैं कि चीनी सेना के शोधकर्ता इस संभावना को तलाशने में जुट गए हैं।
अपने शोध पत्र में कानिया लिखती हैं कि CRISPR" जीन एडिटिंग का एक उपकरण है। अकादमिक संस्थानों और वाणिज्यिक उद्यमों के चीनी वैज्ञानिक शुरू से ही इस तकनीक के साथ प्रयोग करने में आगे रहे हैं। इसमें बीजीआई (जिसे पहले "बीजिंग जीनोमिक्स इंक" के रूप में जाना जाता था) कंपनी भी शामिल है, जो चीन के राष्ट्रीय जीन बैंक का प्रबंधन भी करती है।
चीन में चिकित्सा अनुसंधान के लिए कुछ नियामक आवश्यकताएं कम सख्त हैं। उदाहरण के लिए, वर्तमान में चीनी अस्पतालों में CRISPR के कम से कम चौदह परीक्षण चल रहे हैं, जो मुख्य रूप से कैंसर के इलाज के लिए इसकी क्षमता की खोज कर रहे हैं। आश्चर्यजनक रूप से, पीएलए चिकित्सा संस्थान, विशेष रूप से पीएलए जनरल अस्पताल और सैन्य चिकित्सा विज्ञान अकादमी में भी पांच परीक्षण चल रहे हैं। हालांकि चीन इस कल्पना को साकार करने में कितना सफल हुआ है इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता है ।
चीन पर उठ चुके हैं सवाल
रिसर्च पेपर में लिखा गया है कि CRISPR के चिकित्सा और कृषि में कई फायदे भी हैं, लेकिन चीन की कई रिसर्च इस मामले में नैतिकता के पैमाने पर सही नहीं है। जेनेटिक इंजीनियरिंग के तहत पहला मानव चीन में पैदा हुआ था। उस दौरान उसकी इस बात के लिए निंदा की गई थी कि उसने मानव की रचनात्मक क्षमताओं को मजबूत करने के लिए कुछ जीन को हटा दिया था।
क्या है जीन एडिटिंग
जीन एडिटिंग (जिसे जीनोम एडिटिंग भी कहा जाता है) में वैज्ञानिक किसी जीव के डीएनए में बदलाव करते हैं। यह प्रौद्योगिकी जीनोम में विशेष स्थानों पर आनुवंशिक सामग्री को जोड़ने, हटाने या बदलने में सहायक होती है। इस तकनीक का इस्तेमाल जेनेटिक बीमारियों के इलाज और पेड़ों में बदलाव के लिए किया जाता है। वहीं पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक का इस्तेमाल अनैतिक है जो स्वस्थ लोगों की क्षमता को बढ़ाने के लिए जीन्स में बदलाव करने का प्रयास करता है।
चीन के मनोवैज्ञानिक वारफेयर का हिस्सा : रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि डीएनए में बदलाव कर सुपर सोल्जर बनाना सिर्फ साइकोलॉजिकल वॉरफेयर का हिस्सा है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर ने अपने वैज्ञानिकों को निर्देश दिया था कि एक ही कद - काठी, एक वजन और एक सोच के बहुत से सैनिक तैयार करें। लेकिन ये संभव नहीं हो सका। सीधी सी बात है कि आप प्रकृति के विरुद्ध अगर कुछ उपलब्धि हासिल कर भी लेंगे तो आपको फायदे से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा।