अनुराग मिश्र, नई दिल्ली।

7 नवंबर, 2022 : जम्मू-कश्मीर पुलिस ने बांदीपोरा में आईडी ब्लास्ट की साजिश रचने के आरोप में दो हाइब्रिड आतंकियों को गिरफ्तार किया। उनके कब्जे से रिमोट से चलने वाली दो आईईडी भी बरामद की गईं। आतंकियों की पहचान इरशाद गनी और वसीम राजा के तौर पर हुई।

8 नवंबर, 2022 : जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मंगलवार को दक्षिण कश्मीर के अवंतीपोरा इलाके में लश्कर-ए-तैयबा के एक हाइब्रिड आंतकवादी को गिरफ्तार किया। वह सतपोखरेन का रहने वाला अब्दुल अजीज शेख था। वह लश्कर कमांडरों के संपर्क में था और उनके लिए हथियारों और गोला-बारूद की तस्करी भी करता था।

20 नवंबर, 2022 : जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ में हाइब्रिड आतंकी सज्जाद मारा गया। वह 13 नवंबर को बिजबेहरा के राखमोमेन में एक प्रवासी मजदूर की हत्या में शामिल था।

20 नवंबर, 2022 : भारतीय सेना की शाखा 2 राष्ट्रीय राइफल्स और श्रीनगर पुलिस ने तीन कथित हाइब्रिड आतंकियों को गिरफ्तार किया। उनके पास से तीन एके-47 राइफल, दो पिस्तौल, नौ मैगजीन और 200 कारतूसों की बड़ी खेप मिली।

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भारत के आगे घुटने टेकने की पोजिशन में आ चुके पाक परस्त आतंकी संगठनों ने आतंक फैलाने का नया तरीका निकाला है। कश्मीर में सक्रिय चार आतंकी संगठन जेकेएलएफ, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन के शीर्ष कमांडरों के पिछले 3 साल में मारे जाने के बाद ये प्रॉक्सी और हाइब्रिड टेरर का सहारा ले रहे हैं। सिविलियन और आतंकी दोनों जिंदगियां जी रहे लोगों को ही हाइब्रिड आतंकी नाम दिया गया है। आतंकवादी संगठनों ने हताश होकर यह तरीका अपनाया है, ताकि अमन चुन चुके जम्मू-कश्मीर में अशांति का माहौल बनाया जा सके।

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के काउंटर टेररिज्म सेंटर के को-ऑर्डिनेटर डा. आदिल रशीद कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में टेररिस्ट संगठनों का सफाया कर दिया गया है। ऐसे में पाकिस्तान ने युवाओं से ऑनलाइन संपर्क किया और उनका ब्रेनवॉश किया। फाइनेंशियल एक्शन टास्ट फोर्स (एफएटीएफ) की तलवार लटकी होने की वजह से पाकिस्तान प्रत्यक्ष तौर पर आतंकवाद समर्थक टैग से बचना चाह रहा था। इसलिए उसने हाइब्रिड मिलिटेंट को प्रश्रय देना शुरू किया। उनको ऑनलाइन छोटी-मोटी ट्रेनिंग मुहैया कराई। उसने ऐसे लोगों को चुना, जिनका पुलिस में कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था।

रशीद कहते हैं, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद आतंकवाद खत्म होने की कगार पर है। आम आदमी करीब-करीब सामान्य जिंदगी जी रहा है। हाइब्रिड मिलिटेंसी अमन में खलल डालने का एक तरीका है। हालांकि, यह अभी कोई बड़ी समस्या नहीं है।

सीमा पार से घुसपैठ पर लगाम लगने के बाद हाइब्रिड आतंकियों के हमले बढ़ गए हैं। ये आतंकी द रेजिस्टेंस फ्रंट यानी TRF से जुड़े हैं। TRF लश्कर से जुड़ा एक संगठन है। इसमें जम्मू-कश्मीर के युवाओं को भर्ती किया जा रहा है और उन्हें हमले के लिए ट्रेंड किया जा रहा है।

क्या हैं हाइब्रिड आतंकी

हाइब्रिड आतंकी सामान्य आतंकी से अलग होते हैं। यह सामान्य जिंदगी जीते हैं। सुरक्षा एजेंसियों के लिए उन्हें ट्रैक करना और उनका पता लगाना मुश्किल होता है, क्योंकि वे आम जनता के बीच रहते हैं। कोई पुराना आपराधिक रिकॉर्ड न होने के कारण में इन्हें पहचानना मुश्किल होता है। इन्हें कम अवधि का क्रैश कोर्स कराया जाता है, जिसमें हथियारों की ट्रेनिंग भी दी जाती है। यह आतंकी सरगनाओं से बात नहीं करते, पर्चे में लिखकर एक-दूसरे को निर्देश देते हैं।

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी कहते हैं कि यह आतंकी आम लोगों के बीच घुले-मिले रहते हैं। पाकिस्तान ऐसे लोगों को चिह्नित करता है, जो राष्ट्र के प्रति वफादार नहीं हैं और थोड़े-से पैसे के लिए हत्या कर सकते हैं। इनको पाकिस्तान छोटा हथियार जैसे- पिस्टल, कट्टा मुहैया करा देता है। इससे ये सेना और पुलिस की नजर में सीधे तौर पर नहीं आते हैं।

इन आतंकियों को ऑनलाइन ही भर्ती किया जाता है। इन्हें ऑनलाइन ही ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद इन्हें हमला करने के लिए भेजा जाता है। आतंकी 1-2 की संख्या में हमले को अंजाम देते हैं। पहले आतंकी घटनाओं के जो वीडियो सामने आते थे, उनमें 3-4 आतंकी शामिल होते थे और वे एके-47 जैसे बड़े और आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल करते थे।

क्यों बन रहे हैं हाइब्रिड आतंकी

सेना के जवान अब जमीनी स्तर पर लोगों में पकड़ बना रहे हैं। किसी परिवार का कोई सदस्य अगर आतंकी ट्रेनिंग लेने के लिए पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) जाता है, या फिर किसी आतंकी संगठन के साथ उसके संबंध पाए जाते हैं तो कड़ी कार्रवाई होती है। हाइब्रिड आतंकी पार्ट टाइम या फ्रीलांस आतंकी की तरह काम करते हैं।

जम्मू-कश्मीर में सेना में लंबा समय बिता चुके रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि हाइब्रिड आतंकवादी कोई नई बात नहीं है। ये पहले भी हुआ करते थे। एक तरह से समझें तो पहले ग्राउंड आतंकी और अंडरग्राउंड आतंकी होते थे। अंडरग्राउंड आतंकी ही अब हाइब्रिड आतंकी कहे जा रहे हैं। फर्क इतना आया है कि पहले ग्राउंड आतंकी हजारों की तादाद में होते थे, जो अब काफी सिमट गए हैं।

लेफ्टिनेंट कर्नल सोढ़ी कहते हैं कि हाइब्रिड वारफेयर के तहत ही ये आतंकी बढ़ रहे हैं। खुले तरीके से आतंकी ऑपरेशन करना कश्मीर में नामुमकिन-सा हो गया है। इसलिए हताश-बेहाल पाकिस्तान ने अपने नापाक मंसूबों के लिए हाइब्रिड आतंकियों का इस्तेमाल शुरू कर दिया।

इन्हें ट्रैक करना मुश्किल

सेना के एक अधिकारी के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में विदेशी आतंकवादियों की संख्या बढ़ी है। सुरक्षा बलों को उनसे निपटने के लिए काफी तैयारी करनी पड़ी। अब लश्कर और जैश जैसे आतंकवादी संगठनों ने विदेशी आतंकवादियों को हाइब्रिड आतंकवादी तैयार करने का काम सौंपा है।

इनका इस्तेमाल तभी किया जाता है, जब आतंकी संगठनों को इनकी जरूरत होती है। इन्हें किसी घटना को अंजाम देने का आदेश दिया जाता है। उसके बाद ये घर लौट आते हैं। लेफ्टिनेंट जनरल भंडारी के मुताबिक, ये इस लिहाज से अधिक खतरनाक हैं, क्योंकि इनके बारे में अधिक जानकारी नहीं होती। इनको ट्रैक करना मुश्किल होता है। ऐसे में इंटेलीजेंस की भूमिका काफी बढ़ जाती है। इंटेलीजेंसी का ताना-बाना सटीक होना चाहिए।

प्रोपगेंडा और तकनीक युद्ध में भी शामिल

लेफ्टिनेंट कर्नल सोढ़ी कहते हैं कि हाइब्रिड आतंकी प्रोपगेंडा को बढ़ावा देने का भी काम करते हैं। आम लोगों के बीच रहने के कारण ये जनभावनाओं को जानते हैं। उन्हें विभिन्न माध्यमों, जानकारियों और झूठे तथ्यों के आधार पर दिग्भ्रमित करते हैं। सोशल मीडिया पर अपने गलत मंसूबों के वीडियो डालते हैं। अक्सर वह सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ में आ जाते हैं, लेकिन सोशल मीडिया का प्रसार तेजी से होने की वजह से वे अनेक लोगों तक अपनी बात पहुंचा ही देते हैं। हालांकि, ऐसे मामले पहले की तुलना में कम हुए हैं।

सोढ़ी आगाह करते हैं, हमें प्रोपगेंडा वार के खिलाफ भी लड़ाई लड़नी होगी। हमें भी सोशल मीडिया तंत्र पर कश्मीर की बेहतरी और अमन परस्ती के लिए हुए कामों को दिखाना होगा। वहां आ रहे सकारात्मक बदलाव विभिन्न प्लेटफॉर्म पर आम आदमी की जुबानी प्रतिबिंबित होने चाहिए, ताकि किसी के मन भी कुत्सित भाव न आए। लोग कश्मीर में आ रहे विकास के परिवर्तन को समझें।

छोटे हथियारों का इस्तेमाल

कश्मीर में टारगेटेड किलिंग में एके-47 राइफल जैसे बड़े हथियारों के बजाय पिस्टल जैसे छोटे हथियारों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन पिस्टलों को बॉर्डर पर ड्रोन के जरिए गिराया जाता है, जहां से ये स्थानीय आतंकियों तक पहुंचते हैं। पुलिस का मानना है कि पाकिस्तान से ये हथियार ड्रोन के जरिए जम्मू और पंजाब बॉर्डर पर गिराए जाते हैं, जहां से ये कश्मीर घाटी पहुंचते हैं।

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस.सोढ़ी कहते हैं कि कश्मीर में ड्रग्स की सप्लाई यही हाइब्रिड आतंकी करते हैं। हमें इस पर भी कड़ी निगाह रखनी होगी। सुरक्षा बल नियमित अंतराल पर ऐसे लोगों को पकड़ते रहते हैं, लेकिन इस मामले में ज्यादा सख्ती बरतने की आवश्यकता है क्योंकि इससे युवाओं को बरगलाया जाता है। वहीं, हाइब्रिड आतंकी को सपोर्ट करने वालों को भी कड़ा संदेश देना होगा।

स्लीपर सेल से अलग हैं हाइब्रिड आतंकी

डा. आदिल रशीद कहते हैं कि अमूमन लोग स्लीपर सेल और हाइब्रिड आतंकी को एक ही मान बैठते हैं, लेकिन दोनों में अंतर है। स्लीपर सेल दुश्मन देश की आर्मी या सरकार को ज्वॉइन कर लेते हैं और उनके मकसद के लिए काम करते हैं, जबकि हाइब्रिड आतंकी आपके बीच ही रहते हैं। यह सिविलियन भी बने रहते हैं और आतंकी गतिविधियों से भी जुड़े रहते हैं।

महिला हाइब्रिड आतंकी बढ़ा रही चिंता

महिला ओवर ग्राउंड व‌र्क्स (ओजीडब्ल्यू) की बढ़ती संख्या कश्मीर में सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई चुनौती साबित हो सकती है। वैसे अभी तक महिला ओजीडब्ल्यू की संख्या काफी कम है, लेकिन यह नया ट्रेंड भविष्य में बड़ा रूप धारण कर सकता है। दो नवंबर को अनंतनाग में दो मजदूरों (एक नेपाल और एक बिहार के) पर हमले के लिए हाइब्रिड आतंकी को एक महिला ओजीडब्ल्यू ने पिस्तौल पहुंचाया था। पिछले साल राजौरी में एक भाजपा नेता के घर पर ग्रेनेड हमले में एक महिला ओजीडब्ल्यू का हाथ था। इन दिनों आतंकी महिला ओजीडब्ल्यू का इस्तेमाल इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि इन पर सुरक्षाबलों को शक कम होता है। कश्मीर की परिस्थिति और पोशाक के चलते ये आसानी से छोटे हथियार छिपाकर पहुंचा देती हैं।