नई दिल्ली, विवेक तिवारी । भारत की अध्यक्षता में हुई G20 की बैठक में इंडिया- मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर पर बनी सहमति को एक बड़ी सफलता के तौर पर देखा गया, लेकिन इजरायल और हमास के बीच शुरू हुई जंग ने इस आर्थिक गलियारे की राह को मुश्किल कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि मध्य पूर्व के देशों के बीच तनाव बढ़ने से इस गलियारे का काम सुस्त पड़ जाएगा। इस कॉरिडोर की रूपरेखा तैयार करने के लिए फिलहाल संबंधित देशों को एक मंच पर लाना ही काफी मुश्किल होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि 13-14 अक्टूबर को दिल्ली में आयोजित होने वाले G20 देशों के संसद अध्यक्ष शिखर सम्मेलन (P20) में भी इजरायल-हमास युद्ध का मुद्दा चर्चा में रहेगा। वर्तमान हालात में आर्थिक कॉरिडोर बनने में होने वाली संभावित देरी पर भी चर्चा हो सकती है।

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा बनने से भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोप और अमेरिका के बीच कारोबार की संभावना के नए अवसर खुलेंगे। इस आर्थिक गलियारे का एक बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व देशों से गुजरेगा। इसमें सऊदी अरब की बड़ी भूमिका होगी। रक्षा विशेषज्ञ एवं पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि इजरायल और हमास के बीच युद्ध को एक आतंकी संगठन और एक देश के युद्ध के तौर पर नहीं देखा जा सकता है। आप ये कह सकते हैं कि ये युद्ध इजरायल और फलस्तीन का समर्थन करने वाले देशों के बीच है। हमास को मध्य पूर्व के कई मुस्लिम देशों का समर्थन है, जो फलस्तीन का समर्थन करते हैं। हमास ने जिस तरह से हमला किया उससे साफ पता चलता है कि उन्हें हथियार दिए गए, उन्हें बताया गया कि किन इलाकों में हमला करने से ज्यादा नुकसान होगा और उन्हें ट्रेनिंग दी गई। मध्य पूर्व के देशों के बीच शांति का माहौल बनने लगा था, लेकिन अब एक बार फिर असुरक्षा और अविश्वास का माहौल बनने लगा है।

अमेरिका की मध्यस्थता से इजरायल और सऊदी अरब के बीच एक शांति समझौता होने ही वाला था। ऐसे में हमास की ओर से किए गए हमले की टाइमिंग से काफी कुछ साफ हो जाता है। फलस्तीन का मुद्दा पिछले कुछ समय से काफी दबा हुआ था। इजरायल और सऊदी अरब के बीच समझौता होने से फलस्तीन का मुद्दा और कमजोर पड़ता। हमास के हमले के बाद सऊदी अरब के लिए अब किसी भी तरह का शांति समझौता करना आसान नहीं होगा। वहीं मध्य पूर्व के देशों के बीच बढ़े इस तनाव के बाद सऊदी अरब या मध्य पूर्व का कोई अन्य देश आज इस स्थिति में ही नहीं है कि वो भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे के बारे में सोच सके।

मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान में मध्य पूर्व पर काम करने वाले एक विशेषज्ञ कहते हैं कि इजरायल-हमास युद्ध के बीच सऊदी अरब या मध्य पूर्व के किसी भी देश को फिलहाल भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे पर चर्चा के लिए एक मंच पर लाना आसान नहीं होगा। ऐसे में यह गलियारा बनने में देरी होना निश्चित है। सऊदी अरब और इजरायल के बीच शांति समझौता लगभग होने ही वाला था, लेकिन वर्तमान स्थिति में सऊदी अरब या कोई भी मुस्लिम देश अपनी जनता की भावनाओं को देखते हुए इजरायल से किसी तरह का शांति समझौता करने को तैयार नहीं होगा। पिछले काफी समय से इजरायल सऊदी अरब सहित आसपास के देशों से बेहतर संबंध बनाने का प्रयास कर रहा है। लेकिन हमास के हमले और इजरायल की प्रतिक्रिया के बाद हालात पहले से ज्यादा बिगड़ गए हैं। जब तक इस इलाके में शांति का माहौल वापस नहीं बनता, आर्थिक गलियारे पर काम शुरू कर पाना मुश्किल होगा।

भारत और इजरायल पिछले कुछ सालों में कई क्षेत्रों में मिल कर काम कर रहे हैं। भारत की कंपनियों ने इजरायल में निवेश भी किया है। वहीं कई इजरायली कंपनियां भारत में कारोबार कर रही हैं। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी कहते हैं कि भारत के साथ इजरायल का व्यापार काफी बढ़ा है। बीते कुछ सालों में भारत का प्रमुख रक्षा पार्टनर है इजरायल। जहां तक इकोनॉमिक कॉरिडोर की बात है तो यह इस बात पर निर्भर करता है कि युद्ध कितना लंबा चलेगा। मौजूदा हालात को देखते हुए लग रहा है कि इसमें देर होने की संभावना है। इस इलाके में एक बार शांति का माहौल बनने के बाद ही इस कॉरिडोर की संभावनाओं पर चर्चा शुरू हो सकेगी।

क्या है भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे को चीन के BRI प्रोजेक्ट यानी 'बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव' के जवाब के तौर पर भी देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह गलियारा एशिया, यूरोप और अमेरिका के बीच कारोबार बढ़ाने के साथ ही ऊर्जा सुरक्षा भी सुनिश्चित करेगा। मुंबई से शुरू होने वाला भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा लगभग 6 हजार किमी लंबा होगा। इसमें 3500 किमी समुद्र का रास्ता भी है। इस कॉरिडोर के बनने के बाद भारत को अपना सामान यूरोप पहुंचाने में लगभग 40 फीसदी कम समय लगेगा। अभी जहां किसी कार्गो को जर्मनी पहुंचने में 36 दिन लगते हैं, वहीं इस कॉरीडोर के जरिए ये कार्गो पहुंचाने में 22 दिन लगेंगे। यूरोप तक सीधी पहुंच से भारत के लिए आयात-निर्यात आसान और सस्ता होगा। इसमें प्रमुख रूप से दो गलियारे होंगे। पहला, भारत को पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व से जोड़ने वाला पूर्वी गलियारा और दूसरा, पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व को यूरोप से जोड़ने वाला उत्तरी गलियारा होगा।

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा के हैं ये बड़े फायदे

  • ये इकोनॉमिक कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प है।
  • कई देश जो चीन के BRI प्रोजेक्ट से जुड़े हैं और चीन के कर्ज जाल में फंस चुके हैं उनके पास विकल्प होगा।
  • जी-20 में अफ्रीकी यूनियन के जुड़ने से चीन की अफ्रीकी देशों में मनमानी कम होगी।
  • सबसे पहले भारत और अमेरिका इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में काम कर रहे थे, लेकिन पहली बार दोनों मिडिल ईस्ट में साझेदार बने हैं।
  • भारत की मध्य एशिया में जमीनी के जरिए कनेक्टिविटी में सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान था। अब इसका तोड़ मिल गया है।
  • भारत की UAE और सऊदी अरब से कनेक्टिविटी और बेहतर होगी।