नई दिल्ली, विवेक तिवारी । हमास के आतंकी हमले का बदला लेने के लिए इजरायल गाजा पर पूरी ताकत से हमला कर रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक गाजा में अब तक 2300 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं जिनमें एक तिहाई के क़रीब बच्चे हैं। इसको लेकर खाड़ी के देशों में काफी नाराजगी है। ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन मध्य पूर्व के नेताओं से मिल रहे हैं। इराक़ और सीरिया के दौरे के बाद ईरानी विदेश मंत्री लेबनान और कतर भी जा चुके हैं। उन्होंने इजरायल से गाजा में हमले रोकने की बात कही है और चेतावनी दी है कि अगर लेबनान का हिज़बुल्लाह इस युद्ध में शामिल होता है तो संघर्ष मध्य पूर्व के अन्य इलाकों में फैल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस युद्ध में ईरान सहित मध्य पूर्व के अन्य देश शामिल होते हैं तो ये एक महायुद्ध का रूप ले सकता है। तब मध्य पूर्व में शांति स्थापित करने में काफी समय लगेगा।

हालात की गंभीरता को अमेरिका भी समझ रहा है। इसी के चलते अमेरिका की ओर से एक तरफ जहां इजरायल के पूर्ण समर्थन की बात कही जा रही है, वहीं अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन मिस्र, जॉर्डन, बहरीन, कतर, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब की यात्रा कर चुके हैं और शांति बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिका ने इजरायल को भी चेतावनी दी है कि अगर हमास के खातमे के बाद वह गाजा में कब्जा करता है तो हालात बेहद खराब हो सकते हैं। गौरतलब है कि इसराइली सेना के तीन लाख से अधिक जवान गाजा सीमा पर तैनात हैं। इसराइल ने टैंकों और तोपखानों के अलावा भारी हथियार तैनात किए हैं। हालांकि इसराइली सेना ने अभी तक गाजा पर हमला शुरू नहीं किया है।

जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर राजन कुमार कहते हैं, हमको ये समझना होगा कि हमास को परोक्ष रूप से ईरान का समर्थन है। ईरान ने ये तो कहा है कि वो हमास के हमले में किसी तरह शामिल नहीं है। लेकिन ईरान ने अब तक एक बार भी इजरायल पर हुए हमले की निंदा नहीं की है। उल्टे हमास की ओर से किए गए हमले की प्रशंसा की है। हमास की ओर से इस्तेमाल किए जा रहे ज्यादातर हथियार भी ईरान से मिले हैं। दरसअल ईरान और हमास दोनों को लग रहा था कि अमेरिका की मध्यस्थता से इजरायलऔर साउदी अरब में शांति समझौता होने के बाद से फलस्तीन का मुद्दा कहीं न कहीं हमेशा के लिए दब जाएगा। ऐसे में हमास ने इस आतंकी हमले के जरिए फलस्तीन की मांग पर पूरी दुनिया को एक बार फिर सोचने को मजबूर किया। ईरान गाजा में हो रहे हमलों को लेकर बेहद आक्रामक रूप अपना रहा है। दरअसल ईरान ऐसे राष्ट्र के रूप में उभरना चाहता है जो इस्लामी दुनिया के नेतृत्व का मजबूत दावा कर सके। लेकिन ईरान तब तक युद्ध में सीधे तौर पर शामिल नहीं होगा जब तक उस पर किसी तरह का हमला न हो। हां ये संभव है कि ईरान समर्थित हिजबुल्ला के हमले आने वाले दिनों में बढ़ सकते हैं।

साउदी अरब की है अहम भूमिका

प्रोफेसर राजन कुमार कहते हैं कि दरअसल साउदी अरब को अच्छे से पता है कि ईरान की साजिश के तहत हमास ने इजरायलपर हमला किया है। इस हमले के पीछे मूल वजह ये थी कि इजरायलऔर साउदी अरब के बीच कोई समझौता न हो। साउदी अरब भी ईरान को दुश्मन के तौर पर देखता है। यमन की ओर से साउदी अरब पर होने वाले हमलों के पीछे भी कहीं न कहीं ईरान की मदद है। इजरायलऔर हमास के बीच युद्ध से कहीं न कहीं ईरान मजबूत दिख रहा है जो साउदी अरब कभी नहीं चाहेगा। ऐसे में साउदी अरब का पूरा प्रयास होगा कि वो इस युद्ध में शामिल न हो, साथ ही इसे जल्द से जल्द खत्म करने का प्रयास करेगा। लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि साउदी अरब खुद को मुस्लिम देशों के नेता के तौर पर देखता है। ऐसे में गाजा पर इजरायलके घातक हमले से साउदी अरब की नाराजगी भी धीरे धीरे बढ़ रही है। इसी का परिणाम है कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्‍मद बिन सलमान ने राजधानी रियाद पहुंचे अमेरिका के व‍िदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को घंटों इंतजार कराया। मुलाकात के दौरान भी सऊदी प्रिंस ने साफतौर पर ब्लिंकन से कह दिया कि इजरायल को अपना सैन्‍य अभियान रोकना होगा जिसमें आम नागरिक मारे जा रहे हैं।

पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि कोई भी देश युद्ध में जाता है तो वो 50 साल पीछे चला जाता है। लेकिन जब किसी देश को किसी तरह का खतरा महसूस होता है या उसे युद्ध से कुछ हासिल होता है तो वो युद्ध में जाता है। ईरान मुस्लिम देशों के नेता के तौर पर अपने आप को दिखाने की कोशिश कर रहा है। जबकि पहले से साउदी अरब खुद को नेता मानता है। लेकिन ईरान भी युद्ध में सीधे तौर पर शामिल होने से किसी भी तरह से बचेगा। हां सीरिया, लेबनान और हिजबुल्ला इस युद्ध में जरूर शामिल हो सकते हैं। गाजा में काफी संख्या में आम लोग भी मारे जा रहे हैं, इसको लेकर साउदी अरब सहित मुस्लिम देशों में काफी नाराजगी है। वे अमेरिका पर दबाव भी बना रहे हैं कि युद्ध को जल्द रोका जाए। ईरान युद्ध में शामिल होता है तो सीरिया भी शामिल हो जाएगा। ऐसे में युद्ध बड़ा रूप ले सकता है। लेकिन अमेरिका का पूरा प्रयास है कि किसी तरह युद्ध को रोका जाए। इसके लिए वो कई तरह से कूटनीतिक प्रयास भी कर रहा है। वहीं उसने ईरान पर दबाव बनाने के लिए अपने दो बेड़े भी भूमद्ध सागर में तैनात कर रखे हैं।

युद्ध रोकने में अमेरिका की कूटनीति

इजरायलऔर हमास के बीच चल रहा युद्ध महायुद्ध में न बदले, इसके लिए अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने खाड़ी देशों की यात्रा की। अमेरिकी विदेश मंत्री ने खाड़ी के 6 देशों के नेताओं से मिल कर ये बताने की कोशिश की कि इजरायलउस पर हुए आतंकी हमले की प्रतिक्रिया में आत्मरक्षा के तौर पर हमले कर रहा है। जबकि इजरायलकी गाजा पर भयानक बमबारी को देखते हुए खाड़ी देशों ने अमेरिका से अपनी नाराजगी जता दी है और तुरंत युद्ध को रोकने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। इसी दबाव के चलते अमेरिका ने इजरायलको संदेश दिया है कि गाजा में हमास के खात्मे के बाद इजरायलकी सेना वापस लौट आए। इजरायलअगर गाजा में किसी तरह के कब्जे के बारे में सोचता है तो आने वाले समय में स्थितियां गंभीर हो सकती हैं और युद्ध और बड़ा रूप ले सकता है। भले ही ईरान सीधे युद्ध में शामिल न हो, पर अगर युद्ध और भड़कता है तो इसमें ईरान की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। ईरान पर दबाव बनाने के लिए अमेरिका ने अपने युद्ध पोत भूमध्य सागर में तैनात कर रखे हैं।

इस युद्ध में रूस की भी रुचि

अमेरिका का मुख्य प्रतिद्वंदी रूस जरूर चाहता है कि ये युद्ध और भड़के ताकि अमेरिका खाड़ी देशों में उलझ जाए और यूक्रेन को मदद न कर सके। वहीं रूस की ईरान से दोस्ती भी किसी से छुपी नहीं है। ऐसे में रूस ईरान को अप्रत्यक्ष तौर पर मदद देगा, क्योंकि रूस खुद एक युद्ध लड़ रहा है। ऐसे में हथियार या किसी अन्य तरह की सामरिक मदद की बजाए ईरान को हर तरह की राजनीतिक मदद मदद देगा। वहीं उसके पक्ष को मजबूती से रखने का प्रयास करेगा।

युद्ध से भारत के हित भी होंगे प्रभावित

इजरायलऔर हमास के बीच शुरू हुए युद्ध में ईरान, साउदी अरब और अन्य देश भी शामिल हुए तो भारत के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। अमेरिका रूस स्वीडन में भारत के राजदूत रह चुके एवं पूर्व आईएफएस अधिकारी अशोक सज्जनहार कहते हैं कि दरअसल भारत के इजराइल, ईरान और साउदी अरब तीनों देशों से अच्छे संबंध हैं। ऐसे में अगर युद्ध महायुद्ध में बदलता है तो भारत के लिए किसी एक देश का समर्थन करना मुश्किल होगा। भारत के लगभग 90 लाख लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं। युद्ध और भड़कने पर इन लोगों को वहां से निकाल पाना भारत के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। खाड़ी देशों में काम करने वाले लोगों की ओर से भेजी जाने वाली विदेशी मुद्रा भारत के विदेशी पूंजी भंडार को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वहीं खाड़ी देशों के बीच युद्ध बढ़ने पर कच्चे तेल के दाम तेजी से बढ़ेंगे, ऐसे में भारत का इंपोर्ट बिल बढ़ जाएगा। इससे देश में महंगाई बढ़ेगी। भारत की अध्यक्षता में हाल में हुई जी 20 की बैठक में भारत मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारे को मंजूरी मिली है। इस गलियारे के पूरा होने पर भारत के लिए यूरोप माल भेजने में 40 फीसदी कम समय लगेगा। लेकिन इस युद्ध के चलते इस गलियारे के काम में भी कुछ देरी होगी।