गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान वाले छह राज्यों में सात करोड़ से अधिक लोगों पर आर्सेनिक का खतरा
फ्लोराइड और आर्सेनिक को लेकर हुए शोध में आर्सेनिक अब भूजल तक सीमित नहीं रहा है। वह खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर चुका है। यह बदलाव भारत के किसी एक राज्य में नहीं बल्कि पूरी गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी में हो रहा है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। देश के बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार में आर्सेनिक की अधिकता है। जिसकी वजह से सात करोड़ से अधिक लोगों के प्रभावित होने का खतरा है। फ्लोराइड और आर्सेनिक को लेकर हुए शोध में आर्सेनिक अब भूजल तक सीमित नहीं रहा है। वह खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर चुका है और यह चिंताजनक बदलाव भारत के किसी एक राज्य में नहीं बल्कि पूरी गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी में हो रहा है। हाल में आए एक रिसर्च में यह बात सामने आई है।
पश्चिम बंगाल की जादवपुर यूनिवर्सिटी के एनवायरनमेंटल स्टडीज के प्रोफेसर और लंबे समय से आर्सेनिक और फ्लोराइड पर काम कर रहे तड़ित रायचौधरी कहते हैं कि फूड चेन में अकार्बनिक आर्सेनिक प्रवेश कर रहा है जो सबसे अधिक खतरनाक और कैंसर का कारण बन सकता है। आर्सेनिक के दो रूप हो सकते हैं। एक अकार्बनिक है जो कि जहरीला और कैंसरकारक होता है, दूसरा कार्बनिक रूप में जो अधिकतर समुद्री वातावरण में होता है। चौधरी कहते हैं कि पहले आर्सेनिक और फ्लोराइड केवल भूजल से पीने के पानी के जरिए इंसानों में पहुंच रहा था। अब ये दोनों पीने के पानी के साथ, खाद्य श्रृंखला के जरिए विशेष तौर पर गर्मियों में हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं।
रायचौधरी ने कुछ समय पहले धान की बुआई से लेकर कटाई तक की सभी प्रक्रिया में आर्सेनिक का आकलन किया था। शोध में धान का बीज लगाने के शुरुआती दौर में यानी 28 दिनों में पौधों में ज्यादा आर्सेनिक पाया गया। इसके बाद 29 से 56 दिनों की अवधि में पौधों में आर्सेनिक की मात्रा कम रही, लेकिन फसल की कटाई के समय आर्सेनिक की मात्रा फिर बढ़ गई। रॉयचौधरी के एक अन्य शोध में सामने आया कि गाय के दूध, अंडे की जर्दी आदि में भी आर्सेनिक की अधिकता थी।
गंगा-मेघना-ब्रह्मपुत्र का मैदानी क्षेत्र प्रभावित
रायचौधरी कहते हैं कि गंगा के मैदानी इलाके आर्सेनिक प्रदूषण के प्रमुख क्षेत्र हैं। बांग्लादेश में भी गंगा (जहां इसे पद्मा नाम से जाना जाता है) का मैदानी क्षेत्र इससे प्रभावित है। यही नहीं, मेघना नदी बेल्ट और उत्तर पूर्वी राज्यों में ब्रह्मपुत्र का क्षेत्र भी इसकी चपेट में है। अर्थात गंगा-मेघना-ब्रह्मपुत्र का पूरा मैदानी क्षेत्र ही आर्सेनिक प्रभावित है।
अन्य रिपोर्ट में भी किया गया दावा
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में भी आर्सेनिक को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इसे मैनचेस्टर, पटना और ज्यूरिख के शोधकर्ताओं ने संयुक्त रूप से तैयार किया है।
इस शोध में भी पता चला कि गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के भूजल में उच्च मात्रा में आर्सेनिक मौजूद है। शोध के अनुसार उत्तर भारत में आर्सेनिक की मात्रा खतरनाक स्तर पर है। देश के कई अन्य इलाकों में भी आर्सेनिक की मात्रा तय मानकों से कहीं ज्यादा है।
फ्लोराइड का स्तर भी बढ़ा
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा कुछ माह पहले एक शोध किया गया था। उत्तर प्रदेश के लखनऊ, रायबरेली, कानपुर, हरदोई, सीतापुर, उन्नाव, बाराबंकी, जौनपुर, मिर्जापुर और वाराणसी के ग्रामीण इलाकों में लगे इंडिया मार्का हैंडपंप के पानी का विश्लेषण किया गया। पानी में फ्लोराइड की मात्रा निर्धारित 1.5 मिलीग्राम प्रतिलीटर से अधिक थी।
फ्लोराइड इस साल से मिलना शुरू हुआ
तड़ित रायचौधरी की शोध में सामने आया था कि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पंजाब में 1937 से 1950 के बीच पहली बार फ्लोराइड मिला। राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और कर्नाटक में 1950 से 1986 के दौरान मिला। केरल, जम्मू और कश्मीर में यह 1986 से 1992 के बीच मिला। पश्चिम बंगाल में यह 1997 में पहली बार सामने आया। असम, उत्तराखंड, सिक्किम में 1999 में मिला।
सरकारी आंकड़े भी दे रहे गवाही
देश के कई हिस्सों में लोग फ्लोराइड और आर्सेनिक की अधिकता का सामना कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में 44 जिले के कुछ भाग ऐसे हैं जहां भू-जल में फ्लोराइड की अधिकता है। उत्तर प्रदेश के 36 जिलों के कुछ भाग में पानी में आर्सेनिक की अधिकता पाई गई। हालांकि केंद्र सरकार का जल जीवन मिशन के तहत 2024 तक देश के प्रत्येक ग्रामीण परिवार को निर्धारित गुणवत्ता की पेयजल आपूर्ति प्रदान करने का लक्ष्य है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, असम, बिहार, छ्त्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड में क्रमश: 12, 10,17,13, 22,7,24,21,1,2,16 जिले ऐसे हैं जहां भूजल में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 एमजी प्रति लीटर से अधिक है। इन्हीं जिलों में भूजल में आर्सेनिक की मात्रा (0.01 एमजी प्रति लीटर से अधिक) क्रमश: 7,1,20,27,4,3,12,16,1,3,2 है। देश में 26 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में 409 जिलों के भाग ऐसे हैं जहां पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा है। वहीं 25 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 209 जिलों के भाग ऐसे हैं जहां आर्सेनिक की मात्रा अधिक है।
आर्सेनिक का सेहत पर असर
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी आर्सेनिक प्रदूषण की वजह से ही होती है। आर्सेनिक वाले पानी के सेवन से त्वचा में कई तरह की समस्याएं होती हैं। इनमें प्रमुख हैं, त्वचा से जुड़ी समस्याएं, त्वचा कैंसर, ब्लैडर, किडनी व फेफड़ों का कैंसर, पैरों की रक्त वाहिनियों से जुड़ी बीमारियों के अलावा डायबिटीज,उच्च रक्त चाप और जनन तंत्र में गड़बड़ियां। भारतीय मानक ब्यूरो के मुताबिक इस मामले में स्वीकृत सीमा 10 पीपीबी नियत है, हालांकि वैकल्पिक स्रोतों की अनुपस्थिति में इस सीमा को 50 पीपीबी पर सुनिश्चित किया गया है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1.8 से 3 करोड़ लोगों पर आर्सेनिक का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। शारदा अस्पताल के डा. भूमेश त्यागी का कहना है कि फिल्टर पानी का प्रयोग करना चाहिए। बीमारी की शुरुआती स्तर पर पहचान इसे गंभीर होने से बचा सकती है। जागरूकता कार्यक्रम, हेल्थ कैंपेन से इससे होने प्रभावों के बारे में लोगों को सचेत किया जा सकता है। पानी में आर्सेनिक की अधिक मात्रा से त्वचा का रंग बदल जाता है और नाखून की त्वचा भी मोटी हो जाती है। यही नहीं, इसके कारण त्वचा, फेफड़े, गुर्दा के कैंसर होने की आशंका भी बढ़ जाती है।
शारदा अस्पताल के डिपॉर्टमेंट ऑफ जनरल मेडिसिन के डा. श्रेय कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा फ्लोरोसिस को जन्म देती है। इसका असर दांतों और हड्डियों पर पड़ता है। दांतों में पीलापन आ जाता है। शरीर के सभी अंगों एवं प्रणालियों पर प्रभाव पड़ने से स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न प्रकार की शिकायतें होती हैं। अधिक फ्लोराइड गर्दन, पीठ, कंधे व घुटनों के जोड़ों व हड्डियों को प्रभावित करता है।
कैंसर, स्मरण शक्ति कमजोर होना, गुर्दे की बीमारी व बांझपन जैसी समस्या भी इससे हो सकती है। विदेश में पानी में फ्लोराइड की मात्रा 0.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक सामान्य मानी जाती है, जबकि भारत में यह दर 1.0 मिलीग्राम निर्धारित है। विटामिन ई और इससे जुड़े सप्लीमेंट इससे बचाव में कारगर साबित होते हैं।
ये हैं उपाय
आयरन का इस्तेमाल हो सकता है लाभकारी
रायचौधरी के शोध से पता चलता है कि आयरन में आर्सेनिक को सोखने की क्षमता है। यानी अगर धान की बुआई से लेकर कटाई तक खेतों में आयरन का इस्तेमाल किया जाए तो चावल में आर्सेनिक के प्रवेश को रोका जा सकता है। घरेलू चीजों के ट्रीटमेंट के लिए सरफेस वाटर का इस्तेमाल करना जरूरी है। इससे आर्सेनिक के खतरे को कम किया जा सकता है।
रायचौधरी का कहना है कि आर्सेनिक युक्त पानी का सेवन कई तरीके की बीमारियों का कारण बन सकता है। ऐसे में जिन जगहों पर आर्सेनिक की मात्रा अधिक है वहां आर्सेनिक फ्री पानी और न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट की व्यवस्था अनिवार्य की जानी चाहिए।