RTI: जवाब देने के लिए मांगे 14 लाख रुपए, कहीं थमा दिए लीपेपोते दस्तावेज
सूचना के अधिकार के तहत जवाब चाहिए तो पांच कर्मचारियों की सालभर की सैलरी जमा करो। ये फरमान सुनाया है नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन के जनसूचना अधिकारी ने। यह फरमान सूचना को छुपाने के लिए अधिकारियों द्वारा गढ़े जा रहे नए-नए कुतर्कों का हिस्साभर है।
स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। देश के नागरिकों को सशक्त बनाने और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए बने सूचना के अधिकार कानून को सरकार के कारिंदे ही धत्ता बता रहे हैं। सूचना छिपाने के लिए नए-नए बहाने, नए-नए कुतर्क गढ़े जा रहे हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (NIN) पोषण पर रिसर्च करने वाली देश की शीर्ष संस्था है। देश में पोषण से जुड़ी कोई भी योजना और नीति बनाने में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के तहत आने वाली इस संस्था की रिसर्च एवं राय को काफी महत्व दिया जाता है। यह संस्था रिसर्च के लिए सरकार के अलावा किन संस्थानों से ग्रांट ले रही है, सूचना के अधिकार कानून के तहत यह जानकारी मांगी गई। एनआईएन के जनसूचना अधिकारी (CPIO) डाॅ. पी सूर्यकुमार का जवाब आया, हम इस समय कर्मचारियों की कमी से बुरी तरह जूझ रहे हैं। आपका जवाब देने के लिए हमें एक एमटीएस, एक क्लर्क, एक सहायक और एक सेक्शन ऑफिसर की नियुक्ति करनी होगी। इनके साल भर का वेतन और स्टेशनरी के 50 हजार रुपए मिलाकर कुल 14 लाख 68 हजार 400 रुपए जमा करा दें, एक साल में आपको मांगी गई सूचना दे दी जाएगी।
इसी तरह, देश में अध्यापक शिक्षण का नियमन करने वाली संस्था राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) की तत्कालीन चेयरपर्सन सतबीर बेदी की विदेश यात्रा से जुड़ा ब्योरा आरटीआई के तहत मांगा गया। सीपीआईओ ने आवेदन पर कोई जवाब नहीं दिया। प्रथम अपील के बाद 23 पन्नों का एक ऐसा पीडीएफ दस्तावेज आवेदनकर्ता को भेजा गया, जिसे पढ़ा ही नहीं जा सकता था।
ये उदाहरण यह बताने के लिए काफी हैं कि नागरिकों के सशक्तीकरण के लिए सरकार द्वारा बनाए गए कानून का सरकार के ही कुछ अधिकारी किस तरह से खिलवाड़ बना रहे हैं। देश के पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह कहते हैं, आरटीआई कानून में प्रिंटआउट जैसे खर्चों के लिए आवेदनकर्ता से एक राशि लेने का प्रावधान है। लेकिन आप आवेदनकर्ता से इतनी बड़ी रकम नहीं मांग सकते। यह साफ बता रहा है कि सूचना न देनी पड़े इसलिए संबंधित सीपीआईओ यह अव्यावहारिक राशि मांग रहे हैं।
सूचना देने के लिए सरकारी कर्मचारियों की सैलरी देने की मांग को बचकाना बताते हुए एक विशेषज्ञ ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों की सैलरी आप आवेदनकर्ता से कैसे मांग सकते हैं। यदि आपके पास कर्मचारियाें की कमी है तो आपको सरकार से कर्मचारियों की मांग करनी चाहिए, न कि आवेदनकर्ता से।
अब तक एक हजार से अधिक आरटीआई आवेदन लगा चुके आरटीआई एक्टिविस्ट विवेक पांडेय जागरण प्राइम से बातचीत में कहते हैं, ज्यादातर मामलों में सीपीआईओ सूचना देने से कतराते हैं। पांडेय के मुताबिक, अधिकतर मामलों में “सूचना उपलब्ध नहीं है” कह कर लोकसूचना अधिकारी पल्ला झाड़ लेते हैं, जबकि अपील के बाद अक्सर सूचना मिल जाती है। इसके अलावा, कई बार सवाल के गैर-संबंधित जवाब दे दिए जाते हैं। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) में दायर एक याचिका का उदाहरण देते हुए पांडेय कहते हैं, मैंने पूछा था कि एनटीए परीक्षा कराने में छात्रों से कितने रुपए परीक्षा शुल्क के रूप में वसूले और कितने रुपए खर्च किए। जवाब आया, ‘जेईई और नीट के इतने परीक्षार्थी परीक्षा में बैठे थे। उनकी कैटेगरी और फीस एनटीए की वेबसाइट पर देखे लें।’ वहीं, खर्च की रकम बताने की जगह जवाब दिया, ‘हम परीक्षार्थियों से मिलने वाला पैसा खर्च करते हैं।’ ये हास्यास्पद है।
देश में सूचना का अधिकार कानून लागू करने में मुख्य भूमिका निभाने वाली मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने जागरण प्राइम से कहा कि यदि सीपीआईओ आरटीआई कानून के तहत सूचना नहीं दे रहा है तो याचिकाकर्ता को फर्स्ट अपील करनी चाहिए, उसमें भी सूचना न मिले तो सूचना आयोग में सेकंड अपील करनी चाहिए। आयोग के पास अधिकार है कि वह ऐसे अधिकारियों पर पेनल्टी लगाए और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा करे। राय ने कहा कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग को ऐसे अधिकारियों पर एक्शन लेना चाहिए, जो कानून का पालन नहीं कर रहे हैं।
हबीबुल्लाह भी राय से इत्तिफाक रखते हुए कहते हैं, सूचना देने में बहाने बनाना या अपठनीय सूचना देना मिसइन्फाॅर्मेशन की श्रेणी में आता है। इसके लिए संबंधित जन सूचना अधिकारी पर पेनल्टी लगाने का प्रावधान आरटीआई एक्ट में है। याचिकाकर्ता को प्रथम अपील में संबंधित सीपीआईओ पर पेनल्टी लगाने की मांग करनी चाहिए। आयोग भी ऐसे अधिकारियों पर पेनल्टी लगा सकता है।
सूचना अधिकार कार्यकर्ता और आरटीआई मंच जयपुर के कमल कुमार कहते हैं, आरटीआई कानून का सेक्शन 4 कहता है कि सूचनाएं बिना मांगे भी पब्लिक डोमेन में दी जा सकती हैं। आज के डिजिटल दौर में इसे आसानी से किया जा सकता है। इससे अधिकारियों के हाथ में सूचना छिपाने का मौका नहीं रहेगा।