नई दिल्ली । अनुराग मिश्र / विवेक तिवारी । देश के पहले राष्ट्रपति ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी को अपने पहले भाषण में कहा था कि "हमारे गणतंत्र का यह उद्देश्य है कि अपने नागरिकों को न्याय, स्वतन्त्रता और समानता प्राप्त कराए तथा इसके विशाल प्रदेशों में बसने वाले तथा भिन्न-भिन्न आचार-विचार वाले लोगों में भाईचारे की अभिवृद्धि हो। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने डा. प्रसाद की कही गई बात को अक्षरश : निभाया। गणतंत्र दिवस का सबसे बड़ा आकर्षण परेड होती है। अब आठ किलोमीटर की दूरी तय करने वाली और भारत की गौरवगाथा को दर्शाने वाली यह परेड रायसीना हिल से शुरू होकर राजपथ, इंडिया गेट से गुजरती हुई लालकिला पर खत्म होती है लेकिन पहली परेड होने से लेकर यह सिलसिला शुरुआती कुछ सालों में अलग-अलग जगहों पर हुआ। कभी इर्विन स्टेडियम, किंग्सवे कैंप, लाल किला तो कभी रामलीला मैदान में आयोजित हुआ लेकिन इसकी रौनक हमेशा वैसी ही जगमग रही जैसी पहले हुआ करती थी।

गणतन्त्र दिवस सिर्फ एक समारोह नहीं है। भारत के एक स्वतन्त्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा इसे अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। इसे लागू करने के लिये 26 जनवरी की तिथि को इसलिए चुना गया था क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। इस दिन हर भारतीय अपने देश के लिए प्राण देने वाले अमर सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। वहीं ये दिन पूरी दुनिया को भारत में फलते फूलते लोकतंत्र और बढ़ती सामरिक क्षमता का भी प्रदर्शन करता है। गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल हर जवान का आत्मविश्वास देख कर जहां देशवासियों को गर्व की अनुभूति होती है वहीं दुनिया के लिए ये दिन भारत की बढ़ती सामरिक क्षमताओं का प्रदर्शन होता है। परेड में शामिल होने वाली झांकिया जहां भारत की विविधता और मजबूत लोकतंत्र को प्रदर्शित करती हैं वहीं आधुनिक हथियार इसके इसकी सामरिक क्षमता को प्रदर्शित करते हैं। इस परेड की शुरुआत में जिन हथियारों का प्रदर्शन होता था उनमें ज्यादातर भारत आयात करता था लकिन आज की परेड में बहुत से ऐसे हथियार हैं जो भारत कई देशों को निर्यात करता है। हम कह सकते हैं कि गणतंत्र दिवस की परेड भारत के सामर्थ के साथ मजबूत होते लोकतंत्र को प्रदर्शित करता है।

हमेशा से कर्तव्य पथ पर नहीं होती थी परेड

अगर आप सोचते हैं कि गणतंत्र दिवस की परेड हमेशा से राजपथ जो आप कर्तव्य पथ है वहां होती थी तो ऐसा नहीं है। दिल्ली में 26 जनवरी, 1950 को पहली गणतंत्र दिवस परेड, राजपथ पर न होकर इर्विन स्टेडियम (आज का नेशनल स्टेडियम) में हुई थी। तब के इर्विन स्टेडियम के चारों तरफ चहारदीवारी नहीं थी। उसके पीछे का पुराना किला साफ नजर आता था। लेकिन यहां भी कुछ साल ही परेड हुई। साल 1950-1954 के बीच दिल्ली में गणतंत्र दिवस का समारोह, कभी इर्विन स्टेडियम, किंग्सवे कैंप तो कभी लाल किला तो कभी रामलीला मैदान में आयोजित हुआ।

इंडोनेशिया के प्रथम राष्ट्रपति बने पहले मुख्य अतिथि

गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि को बुलाने की परंपरा पहली परेड से ही थी। भारत सरकार अतिथि के तौर पर किसी देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या शासक को आमंत्रित करती थी। 26 जनवरी 1950 को पहले गणतंत्र दिवस समारोह में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णो विशेष अतिथि बने थे।

तोपों से सलामी देने की परंपरा आज भी कायम है

लाहौर अधिवेशन में ब्रिटिश सरकार से 26 जनवरी 1930 को भारत को अधिराज्य (डोमिनियन) का दर्जा देने की मांग की गई थी। बाद में रावी नदी के किनारे तिरंगा फहराकर पूर्व स्वराज का संकल्प लिया गया। इसके बाद से ही 26 जनवरी को पूर्व स्वाधीनता दिवस मनाने की शुरुआत हुई। आजादी के बाद तत्कालीन गवर्नर सी. राजगोपालाचारी ने 26 जनवरी 1950 को सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर भारत को गणराज्य घोषित किया। इसके 6 मिनट के बाद डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को भारतीय गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई। गणतंत्र दिवस समारोह पहले से तय था। दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर राजेंद्र प्रसाद बग्घी में सवार होकर गवर्मेंट हाउस (राष्ट्रपति भवन) से निकले। राजेंद्र बाबू को सुबह लगभग साढ़े दस बजे तोपों की सलामी दी गई। तोपों की सलामी की यह परंपरा 70 के दशक से कायम रही है। आज भी यह परंपरा कायम है। राष्ट्रपति का कारवां दोपहर 2.30 बजे के बाद गवर्मेंट हाउस से इर्विन स्टेडियम की तरफ रवाना हुआ। यह कारवां कनॉट प्लेस और उसके आसपास के इलाकों का चक्कर लगाते हुए करीब 3.45 बजे सलामी मंच पर पहुंचा। तब राजेंद्र बाबू पैंतीस साल पुरानी पर विशेष रूप से सजी बग्घी में सवार हुए, जिसे छह ऑस्ट्रेलियाई घोड़ों ने खींचा। इर्विन स्टेडियम में हुई मुख्य गणतंत्र परेड को देखने के लिए लगभग 15 हजार लोग पहुंचे थे। उस समय हुई परेड में सशस्त्र सेना के तीनों बलों ने भाग लिया था। इस परेड में नौसेना, इन्फेंट्री, कैवेलेरी रेजीमेंट, सर्विसेज रेजीमेंट के अलावा सेना के सात बैंड भी शामिल हुए थे।

1952 से बीटिंग रिट्रीट का कार्यक्रम शुरू हुआ।

साल 1952 से गणतंत्र दिवस की परेड के बाद बीटिंग रिट्रीट का कार्यक्रम शुरू किया गया। इसका एक समारोह रीगल सिनेमा के सामने मैदान में और दूसरा लालकिले में हुआ था। सेना बैंड ने पहली बार महात्मा गांधी के मनपसंद गीत 'अबाइड विद मी' की धुन बजाई और तभी से हर साल यही धुन बजती है। 1953 में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड में लोक नृत्य और आतिशबाजी के कार्यक्रम को शामिल किया गया। इस मौके पर रामलीला मैदान में आतिशबाजी का भी आयोजन हुआ था। साल 1955 में दिल्ली के लाल किले के दीवान-ए-आम में गणतंत्र दिवस पर मुशायरे की परंपरा शुरू हुई। साल 1956 में पहली बार पांच सजे-धजे हाथी गणतंत्र दिवस परेड में सम्मिलित हुए। विमानों के शोर से हाथियों के बिदकने की आशंका को ध्यान में रखते हुए सेना की टुकड़ियों के गुजरने और लोक नर्तकों की टोली आने के बीच के समय में हाथियों को लाया गया।

रास्ते में फूल बरसाते थे लोग

उस दौर को याद करते हुए पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते है कि 1970 में उन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड में गढ़वाल राइफल कांटिजेंट के लीडर के तौर पर नेतृत्व किया था। उस समय जनरल मानेकशॉ भारतीय सेना के प्रमुख हुआ करते थे। मोहन भंडारी कहते हैं कि वो दौर बहुत कठिन था। 1948 और 1962 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था। उस समय सेना के हालात बहुत अच्छे नहीं थे। ऐसे में उस दौर में गणतंत्र दिवस की परेड देश के लोगों का आत्मविश्वास बढ़ाती थी कि देश की सेनाएं हर चुनौती से निपटने के लिए तैयार हैं। उस दौर में परेड के दौरान आम लोग पूरे रास्ते सेना के जवानों पर फूलों की बारिश करते थे। उस समय आज के जितनी सुरक्षा व्यवस्था नहीं हुआ करती थी। ऐसे में देश के आम लोगों को अपनी सशस्त्र सेनाओं को करीब से देखने का मौका मिलता था। उन दिनों लगभग दो घंटे तक परेड चलती थी। भंडारी कहते हैं आज समय काफी बदल चुका है। आज भारत के गणतंत्र दिवस की परेड पर पूरी दुनिया की निगाहें होती हैं। दुश्मन देश जहां भारत की सामरिक क्षमताओं का अनुमान लगाते हैं वहीं बहुत से देश भारत में बने बेहद आधुनिक और सस्ते हथियारों को खरीदने की संभावनाओं के चलते ये परेड देखते हैं। गणतंत्र दिवस की परेड जहां भारत की गौरवगाथा बताती है वहीं दुश्मनों के लिए ये चेतावनी भी देती है कि कोई भी चुनौती दुश्मन को महंगी पड़ेगी।

पहली परेड में न टैंक न आधुनिक हथियार 

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस.सोढ़ी कहते हैं कि, 26 जनवरी 1950 में आयोजित पहली परेड में कोई टैंक या आधुनिक गाड़ियां नहीं थी। ज्यादातर सेना की टुकडियां थी। उस समय की परेड को देख कर कोई भी अनुमान लगा सकता है कि उस समय देश की आर्थिक हालात अच्छी नहीं थी। हमारे कई सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था। हमारी सेना 1947 में एक तिहाई सेना पाकिस्तान में जा चुकी थी। हमारे देख के पास सेना पर खर्च करने के लिए पैसा नहीं था। हम बेहद कम संसाधनों में गुजारा कर रहे थे। लेकिन तक से आज की तुलना करें तो जमीन से आसमान का फर्क आ चुका है। ये किसी चमतकार से कम नहीं है। आज हमारे पास दुनिया के सबसे आधुनिक हथियार हैं। हमारे पास दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं तीसर की योजना पर काम शुरू हो चुका है। अपने देश में बने तेजस लॉइट कॉम्बेट एयर क्राफ्ट है। प्रचंड हेलिकॉप्टर है। 2024 की परेड में बेहद खास है कि इस बार परेड में हिस्सा लेने वाली 80 फीसदी महिलाएं हैं। वहीं परेड में मेडिकल कोर की एक टुकड़ी मार्च करेगी जिसको एक लेडी अफसर कमांड करेंगी जिनकी नाम मेजर सृष्टि खुल्लर है। 1950 से 2024 का भारतीय गणतंत्र दिवस की परेड का सफर बेहद खास रहा है।

हमारा संविधान इतनी अच्छी तरह से लिखा गया है जो देश की तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हर भारतीय नागरिक और सैनिक के साथ ही हमारे विकास में भारत के संविधान की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। संविधान के महत्व का अंदाजा हम पाकिस्तान के हालात को देख कर लगा सकते हैं। जैसा की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि है कि 2047 तक भारत पूरी तरह से एक विकसित देश होगा।

26 जनवरी गर्व के साथ ही सेना की बहादुरी का भी दिन

सोढ़ी कहते हैं, भारतीय सेना की परंपरा है कि 26 जनवरी के दिन ऑफिसर मेस में ऑफिसर को बुलाया जाता है। 26 जनवरी 2001 को मैं बठिंडा में पोस्टेड था। उस दिन दोपर को लगभग 12 बजे हमें सूचना मिली की गुजरात के भुज में भूकंप आया है और काफी क्षति हुई है। उस समय सेना की पहली रेजिमेंट हमारी थी जो एयरलिफ्ट की गई और गुजरात पहुंच कर हमने राहत बचाव का काम शुरू किया। हमने हजारों लोगों को बचाया। वहां के लोगों ने उस समय भारतीय सेना को जो सम्मान दिया उसे याद कर मैं आज भी गर्व से भर जाता हूं।

एयर फोर्स के रिटायर विंग कमांडर और वीर चक्र विजेता विनोद कुमार नेब कहते हैं कि गणतंत्र दिवस की शुरुआती परेड की तुलना आज से की जाए तो आपको साफ तौर पर भारत की विकास यात्रा दिखाई देगी। शुरुआती दिनों में सेनाओं की कुछ टुकडियां ही परेड में शामिल होती थी। आज पुलिस बल और कई खूबसूरत झांकियां भी इस परेड का हिस्सा हैं। ये भारत की विविधता और एकता को दिखाती हैं। अगर हम एयर फोर्स की बात करें तो निश्चित तौर आज हमारे पर दुनिया के सबसे अधुनिक हथियार हैं। पहले जहां भारत हथियारों का आयातक था वहीं आज हम कई देशों को हथियार निर्यात भी कर रहे हैं। निश्चित तौर पर पिछले कुछ सालों में सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत बेहतरीन काम किया है। आज की परेड में भी आत्मनिर्भर भारत की झलक दिखती है। देश में जल्द ही एयरक्राफ्ट के इंजन बनने का काम भी शुरू होगा। ऐसे में आने वाले समय में और बेहतर एयरक्राफ्ट बना पाएंगे।