नई दिल्ली, स्कन्द विवेक धर। कोविड के चलते नौकरियां मिलने में हुई परेशानी और इसके चलते एजुकेशन लोन में बड़ी संख्या में आए डिफॉल्ट का असर इस पूरे सेक्टर पर दिख रहा है। बिना कुछ गिरवी रखे मिलने वाले छोटे एजुकेशन लोन पिछले तीन साल से लगातार घट रहे हैं, वहीं कोलैटरल के जरिए मिलने वाले बड़े एजुकेशन लोन में तेजी देखी जा रही है।

बैंक दो तरीके के एजुकेशन लोन बांटते हैं। 20 लाख रुपए तक के एजुकेशन लोन प्रायॉरिटी सेक्टर के लोन माने जाते हैं। सितंबर 2020 से पहले यह सीमा 10 लाख रुपए की थी। वहीं, 20 लाख रुपए से अधिक के एजुकेशन लोन पर्सनल लोन की श्रेणी में गिने जाते हैं।

बीते तीन साल में प्रायॉरिटी सेक्टर के छोटे लोन का कुल आवंटन 62,907 करोड़ रुपए से घटकर 58329 करोड़ रुपए रह गया है। वहीं, इसी दौरान पर्सनल लोन श्रेणी वाले एजुकेशन लोन का आवंटन 78,580 करोड़ रुपए से बढ़कर 87,456 करोड़ रुपए हो गया।  

इंडियन बैंकिंग एसोसिएशन की मॉडल एजुकेशन लोन योजना के अनुसार, 4 लाख रुपए तक के एजुकेशन लोन के लिए उधारकर्ता को किसी भी तरह के कोलैटरल की जरूरत नहीं होती है। 7.5 लाख रुपए तक का एजुकेशन लोन थर्ड पार्टी गारंटी के जरिए लिया जा सकता है। जबकि 7.5 लाख रुपए से अधिक के एजुकेशन लोन के लिए पर्याप्त कोलैटरल की जरूरत होती है। हालांकि, इन सभी मामलों में माता-पिता का को-ऑब्लिगेशन अनिवार्य है।

देश के एक बड़े सरकारी बैंक के जीएम स्तर के एक अधिकारी के मुताबिक, कोविड काल में एजुकेशन लोन का एनपीए बढ़कर दो अंकों के पार चला गया था, यह अब भी 7 फीसदी के नजदीक है। ऐसे में बैंक बिना कोलैटरल के एजुकेशन लोन सिर्फ आईआईटी, एनआईटी जैसे प्रतिष्ठित कॉलेज के छात्रों को ही बांट रहे हैं। अन्य मामलों में बहुत एहतियात बरता जा रहा है। यही कारण है कि कई एप्लीकेशन रिजेक्ट हो रहे हैं या उन्हें लोन मिलने में देरी हो रही है। जबकि, कोलैटरल के साथ एजुकेशन लोन बांटे जा रहे हैं क्योंकि उनमें बैंकों के लिए जोखिम कम होता है।

एक दशक के आंकड़ों को देखें तो 2013 में प्रायॉरिटी सेक्टर और पर्सनल लोन दोनों श्रेणियों में आवंटित एजुकेशन लोन के बीच दो हजार करोड़ रुपए का ही अंतर था। लेकिन इसके बाद से ये अंतर धीरे-धीरे बढ़ने लगा। साल 2020 से इस अंतर में तेजी से बदलाव आने लगा। फिलहाल प्रायॉरिटी सेक्टर की तुलना में पर्सनल लोन कैटेगरी के एजुकेशन लोन में 19 हजार करोड़ से अधिक का अंतर आ चुका है।

निजी क्षेत्र की शारदा यूनिवर्सिटी के फाइनेंस ऑफिसर अजय अग्रवाल कहते हैं, बैंक एजुकेशन लोन दे तो रहे हैं, लेकिन उनकी प्रक्रिया बेहद जटिल हो गई है। इसके चलते छात्रों को कई बार लोन मिलने में परेशानी आती है।

इसी तरह, आईएफटीएम युनिवर्सिटी के प्रोफेसर राजेश शुक्ला कहते हैं, एजुकेशन लोन लेने की प्रक्रिया अब भी काफी जटिल है। एजुकेशन लोन के प्रति जागरूकता का अभाव और बैंक अधिकारियों में सहयोग की कमी इसका प्रमुख कारण है।

देश की प्रमुख फिनटेक कंपनी बैंकबाजार डॉट कॉम के चीफ बिजनेस ऑफिसर पंकज बंसल कहते हैं, छोटे लोन में आई कमी में महंगाई की भूमिका भी हो सकती है क्योंकि यह निम्न आय वर्ग पर असर डालती है। इसके अलावा, ऑफलाइन शिक्षा की वापसी से ऑनलाइन अल्पकालिक पाठ्यक्रमों की मांग में कमी आई है। संभव है कि इससे भी छोटे एजुकेशन लोन की मांग कम हुई हो।

एजुकेशन लोन में आई कमी को पूरा करने के लिए छात्र और कॉलेज दूसरे उपाय तलाशने लगे हैं। अजय अग्रवाल कहते हैं, छात्र शॉर्ट टर्म लोन और ईएमआई का सहारा ले रहे हैं। कुछ छोटी फिनटेक कंपनियां भी टाइअप करके छात्रों की जरूरत पूरी कर रही हैं। इसी तरह, कई कॉलेज भी छात्र-छात्राओं को किश्तों में फीस जमा करने का विकल्प देने लगे हैं।