एस.के. सिंह, नई दिल्ली। देश के जिन दूरदराज इलाकों में इंटरनेट के अभाव में टेली-हेल्थ, टेली-एजुकेशन या तमाम वित्तीय सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं, वहां ये सेवाएं जल्दी ही मिलने लगेंगी। यह संभव होगा टेलीकॉम बिल 2023 के एक प्रावधान से, जिसमें सैटेलाइट कम्युनिकेशन (सैटकॉम) के लिए नीलामी के बजाय सीधे स्पेक्ट्रम आवंटन का विकल्प चुना गया है। इस बिल को संसद से मंजूरी मिल गई है। लोकसभा ने इसे 20 दिसंबर को और राज्यसभा ने 21 दिसंबर को पारित किया। यह बिल इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885, इंडियन वायरलेस टेलीग्राफी एक्ट 1933 और टेलीग्राफ वायर्स (अनलॉफुल पजेशन) एक्ट 1950 की जगह लेगा।

बिल के अनुसार, 19 तरह की सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम का प्रशासनिक आवंटन किया जाएगा। इनमें मोबाइल सैटेलाइट सर्विस, इन-फ्लाइट कनेक्टिविटी, मैरीटाइम कनेक्टिविटी, वीसैट, ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशन बाइ सैटेलाइट सर्विसेज (जीएमपीसीएस) भी शामिल हैं। भारत में सैटेलाइट कम्युनिकेशन अभी शुरुआती चरण में है। इसमें विस्तार की अनेक संभावनाएं भी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि नीलामी के जरिए स्पेक्ट्रम आवंटन होने पर सेवाएं शुरू होने में अधिक समय लगता, लेकिन प्रशासनिक आवंटन से सेवाएं जल्दी शुरू हो सकेंगी।

सैटेलाइट कम्युनिकेशन का इस्तेमाल

देश का आर्थिक विकास हो या सामाजिक, हर जगह टेलीकॉम प्रमुख माध्यम बन गया है। मोबाइल बैंकिंग से लेकर सरकार की किसी योजना का लाभ उठाने तक, हर काम में डिजिटाइजेशन का महत्व हम देख सकते हैं। यह इंटरनेट से ही संभव है जो टेलीकॉम सेक्टर उपलब्ध कराता है, लेकिन अब भी अनेक जगहों पर इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराना मुश्किल है।

इंडियन स्पेस एसोसिएशन (इस्पा) के महानिदेशक ले.जनरल (रिटायर्ड) ए.के. भट्ट जागरण प्राइम से कहते हैं, “दूरदराज के अनेक इलाकों में इंटरनेट उपलब्ध नहीं है, वहां फाइबर के जरिए भी इंटरनेट सुविधा नहीं पहुंची है। वहां की आबादी कम है, साथ ही वहां की भौगोलिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि इंटरनेट पहुंचाना मुश्किल है। कंपनियों के लिए वहां सेवाएं देना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं होता है। परिणाम यह होता है कि वहां के लोग हमारी फाइनेंशियल इकोनॉमी से जुड़ नहीं पाते हैं। आज ज्यादातर ट्रांजैक्शन मोबाइल से हो रहा है। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अगर सैटेलाइट कम्युनिकेशन उपलब्ध होगा तो निश्चित रूप से फायदा होगा।”

एनियारा स्पेस एंड कम्युनिकेशंस के प्रेसिडेंट डी.एस. गोविंदराजन कहते हैं, “सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के लिए प्रशासनिक आवंटन का तरीका अच्छा कदम है। यह अंतरराष्ट्रीय व्यवहार के भी अनुरूप है। इससे एक माकूल और न्यायोचित कनेक्टिविटी सुनिश्चित होगी। इस तरह स्पेक्ट्रम आवंटन से सैटेलाइट आधारित दूरसंचार सेवा उपलब्ध कराने वालों और इन सेवाओं का लाभ लेने वाले ग्राहकों, दोनों को फायदा होगा।”

रक्षा, टेलीमेट्री, रिमोट सेंसिंग जैसे क्षेत्रों में भी प्रयोग

अंतरिक्ष उद्योग के विकास के लिए सस्ता स्पेक्ट्रम मौलिक जरूरत है। इससे इनोवेटिव सॉल्यूशन और सस्ती सेवाएं उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी। सैटेलाइट कम्युनिकेशन में स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल सैटेलाइट ब्रॉडबैंड, डीटीएच टेलीविजन, कैप्टिव सैटेलाइट नेटवर्क और रक्षा जैसे क्षेत्रों में हो सकता है। टेलीमेट्री और रिमोट सेंसिंग में भी इसका प्रयोग संभव है। इस समय स्पेस आधारित टेक्नोलॉजी और उनके एप्लिकेशन पर भी काफी रिसर्च चल रही है। भविष्य में उद्योगों में इनके नए इस्तेमाल भी देखने को मिल सकते हैं। इन सबके लिए स्पेक्ट्रम की जरूरत है। टेली-हेल्थ, टेली-एजुकेशन में सैटकॉम उन इलाकों में भी सेवाएं मुहैया करा सकता है जहां सामान्य टेलीकॉम सेवाओं के जरिए इंटरनेट की सुविधा नहीं है।

सैटेलाइट आधारित इंटरनेट ऑफ थिंग्स स्टार्टअप नए सॉल्यूशन तैयार करने के लिए सैटेलाइट नेटवर्क पर ही निर्भर करते हैं। मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री भी सैटेलाइट कम्युनिकेशन के जरिए सप्लाई चेन मैनेजमेंट करती है। अनेक देशों में ट्रांसपोर्ट, बिजली और रक्षा क्षेत्र की कंपनियां रियल टाइम ट्रैकिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर मैनेजमेंट में सैटेलाइट कम्युनिकेशन का प्रयोग करती हैं।

स्पेक्ट्रम देने के तरीके पर चली लंबी बहस

सैटेलाइट कम्युनिकेशन के लिए कंपनियों को स्पेक्ट्रम नीलामी के जरिए दिया जाए या सीधे, इस पर लंबे समय से बहस चल रही थी। भारत की तीन प्रमुख टेलीकॉम कंपनियों में से दो- रिलायंस जियो और वोडाफोन-आइडिया नीलामी के जरिए स्पेक्ट्रम आवंटन के पक्ष में थीं। दूरसंचार रेगुलेटर ट्राई ने इस बारे में ड्राफ्ट जारी करते हुए सिफारिशें मांगी थीं। उसमें भी दोनों कंपनियों ने प्रशासनिक आवंटन की जगह नीलामी का तर्क दिया था। हालांकि भारती एयरटेल प्रशासनिक आवंटन के पक्ष में थी। प्रमुख सैटकॉम कंपनी वनवेब में एयरटेल भी पार्टनर है। रिलायंस जियो ने जियोस्पेसफाइबर नाम से ब्रॉडबैंड सर्विसेज में उतरने के लिए लक्जेमबर्ग की कंपनी एसईएस के साथ करार किया है।

भारती ग्रुप के चेयरमैन सुनील मित्तल ने कुछ दिनों पहले कहा था कि स्पेक्ट्रम मिलने पर वनवेब नवंबर के अंत में सेवाएं शुरू कर सकती है। संसद में टेलीकॉम बिल पारित होने के बाद एयरटेल के मैनेजिंग डायरेक्टर गोपाल विट्ठल ने कहा है कि इससे टेलीकॉम ऑपरेटरों को कोई खतरा नहीं है। सैटकॉम की सेवाएं कंप्लीमेंट्री यानी पूरक के तौर पर काम करेंगी और इसकी कीमत भी सामान्य मोबाइल की तुलना में प्रीमियम रहेगी।

ले.जनरल भट्ट के अनुसार, “सामान्य टेरेस्ट्रियल सर्विसेज से तुलना करें तो सैटेलाइट कम्युनेकशन में लागत अधिक आएगी। हालांकि जब इनका इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ेगी तो उम्मीद है कि लागत भी घटेगी।” ग्लोबल सैटेलाइट सर्विस कंपनियां भी प्रशासनिक आवंटन की मांग कर रही थीं। मंजूरी मिलने के बाद इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश की उम्मीद की जा रही है। इससे भी आने वाले समय में सैटकॉम सेवाएं भी सस्ती होंगी। समर्थकों का तर्क है कि नीलामी होती तो स्टार्टअप तथा छोटी कंपनियों के लिए बड़ी कंपनियों के मुकाबले बोली लगाना मुमकिन नहीं होता।

दूसरे देशों में कैसे होता है स्पेक्ट्रम आवंटन

अमेरिका, ब्राजील, मेक्सिको और थाईलैंड में पहले सैटेलाइट कम्युनिकेशन के लिए स्पेक्ट्रम नीलामी का फैसला किया गया था, लेकिन उसमें खामियों को देखते हुए बाद में प्रशासनिक आवंटन का रास्ता अपनाया गया। अमेरिका में तो सैटेलाइट कम्युनिकेशन में प्रतिस्पर्धी नीलामी रोकने के लिए कानून (ऑर्बिट एक्ट, 2000) तक बनाया गया है।

सैटेलाइट टेक्नोलॉजी में कई ऑपरेटर एक ही स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर सकते हैं। फ्रीक्वेंसी कोऑर्डिनेशन से विभिन्न नेटवर्क के बीच इंटरफेरेंस यानी बाधा को दूर किया जा सकता है। सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का प्रयोग एक साझा रिसोर्स के रूप में किया जाता है, यह किसी एक कंपनी को अलग से नहीं दिया जाता।

सैटेलाइट इंडस्ट्री 28 गीगाहर्ट्ज बैंड का इस्तेमाल करती है। यह केए बैंड (27.5-40 गीगाहर्ट्ज) का हिस्सा होता है। वर्ष 2019 में आयोजित वर्ल्ड रेडियो कांग्रेस (डब्लूआरसी-19) में 5जी सर्विसेज के लिए 17 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम आवंटित करने का फैसला हुआ था। तब 28 गीगाहर्ट्ज बैंड को 5जी के लिए नहीं चुना गया। कुछ देशों ने इस कांग्रेस से पहले 28 गीगाहर्ट्ज को 5जी सर्विसेज के लिए आवंटित किया था, लेकिन उसके बाद सभी देशों ने 28 गीगाहर्ट्ज बैंड (27.5-29.5 गीगाहर्ट्ज) को सिर्फ सैटेलाइट सर्विसेज के लिए रखा है।

सैटेलाइट कम्युनिकेशन में अगला कदम क्या होगा और कौन सी कंपनियां इसमें तत्काल सेवा शुरू कर सकेंगी, यह पूछने पर ले. जनरल भट्ट कहते हैं, “ट्राई से सुझाव मांगे जाएंगे कि रेवेन्यू या प्रॉफिट का कितना प्रतिशत लाइसेंस फीस के रूप में लिया जाए। अभी सरकार के पास एक मॉडल है जो वीसैट के लिए इस्तेमाल होता है।” उन्होंने बताया, “वनवेब और टाटा समूह की नेल्को आगे हैं। इनके बाद इलोन मस्क की स्टारलिंक और जेफ बेजोस की एमेजॉन आ सकती हैं।”